पेशावर में आर्मी स्कूल के बच्चों की हत्या ने बर्बरता
की सारी हदें पार कर दी | आतंकवादियों ने इसे सेना के खिलाफ बदले की कार्रवाई बाते
है | पूरी दुनिया इस हमले से स्तब्ध है | अब तक आतंक का जो रूप देखा जाता था उससे यह
हमला बहुत अलग है | अब तक बेकसूरों और मासूमों और साधारण नागरिकों की हत्याओं से
ही भय और सनसनी फैलाई जाती थी | और आतंकवादियों की वैसी हरकतों पर राजनितिक
व्यवस्था का जवाब या प्रतिक्रिया यही रहती थी यह आतंकवादियों की कायराना हरकत है |
हालांकि आतंकवाद के खिलाफ सरकारी युद्ध में सेना और सुरक्षा बलों के सिपाहियों की
हत्याएं भी कम नहीं होती हैं | लेकिन उन्हें हम सैनिकों की शहादत कहते हैं और
आतंकवाद के खिलाफ निरंतर युद्ध का माहौल बनाये रखते आये हैं | लेकिन इस हमले में सबसे
ज्यादा सुविचारित काम यह हुआ है कि सेना कर्मियों के बच्चों को निशाना बनाया गया
है |
पूरी दुनिया के मीडिया ने इस हमले को वीभत्स और बर्बर
कहते हुए इसे अब तक की सबसे सनसनीखेज हरकत बतया है | और खास तौर पर ज्यादा अमानवीय
इस कारण बताया है क्योंकि हत्याएं बच्चों की की गई | उधर हमले पर प्रतिक्रिया के
बाद आतंकवादियों का रुख और भी ज्यादा कडा और सनसनीखेज़ है | उनकी धमकी है कि अब वे
नेताओं के बच्चों को निशाना बनाएंगे | शनिवार को जिस तरह से मीडिया में
आतंकवादियों के धमकी वाले वीडियो टेप जारी किये गए और उन्हें बार बार दिखाया गया
उससे यह भी साफ़ ज़ाहिर है कि आतंकवाद और राजनितिक व्यवस्थाओं के बीच यह लड़ाई
केद्रिकृत हो चली है |
अगर आतंकवाद पर राजनीतिकों की दबिश की समीक्षा करें तो
यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि सरकारें अब तक आतंकवाद के खिलाफ कोई कारगर
उपाय कर नहीं पायी है | राजनितिक तबका आतंकवाद को व्यवस्था के खिलाफ एक
अलोकतांत्रिक यंत्र ही मानता रहा है | और बेगुनाह नागरिकों की हत्याओं के बाद येही
कहता रहा है कि आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा | होते होते कई दशक बीत जाने
के बाद भी विश्व में आतंकवाद के कम होने या थमने का कोई लक्षण हमें देखने को नहीं
मिलता |
बहरहाल आतंकवाद के नए रूप को देखें तो संकेत मिलता है कि
नेताओं के बच्चों को निशाना बनाने की धमकी के बाद नेताओं के बच्चों की सुरक्षा का
नया इन्तेजाम करना होगा | कुलमिलाकर सेना, पुलिस, सुरक्षाकर्मियों और राजनीतिकों
के बच्चों व परिवारों की सुरक्षा को किस परिमाण में सुनिश्चित किया जा पाएगा यह
हमारे सामने नई चुनौती है |
आज की तारीख तक आतंकवाद के कुछ और महत्वपूर्ण पहलुओं की
समीक्षा करें तो यह भी कहा जा सकता है कि आतंकवाद अब और उग्र रूप में हमारे सामने
है | यानी उसकी तीव्रता और बढ़ गयी | इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि वह बेख़ौफ़ हो कर खुलेआम
राजनेताओं को चुनौती देने लगा है |
नए हालात में ज़रूरी हो गया है कि आतंकवाद के बदलते
स्वरुप पर नए सिरे से समझना शुरू किया जाए | हो सकता है कि आतंकवाद से निपटने के
लिए बल प्रयोग ही अकेला उपाए न हो | क्या उपाय हो सकते हैं उनके लिए हमें शोधपरख
अध्ययनों की ज़रूरत पड़ेगी | अगर सिर्फ 70 के दशक से अब तक यानी पिछले 40 साल के अपने सोच विचार – अपनी कार्यपद्धति पर नज़र डालें तो हमें हमेशा तदर्थ
उपायों से ही काम चलाना पड़ा है | इसका उदाहरण कंधार विमान अपहरण के समय का है जब
विशेषज्ञों ने हाथ खड़े कर दिए थे कि आतंकवाद से निपटने के लिए हमारे पास कोई
सुनियोजित व्यवस्था ही नहीं है |
सिर्फ भारतवर्ष ही नहीं बल्कि दूसरे देशों को भी देखें
तो राजनितिक व्यवस्थाओं में जिस तरह बाहुबल और धनबल का दबदबा बढा है उससे येही
लगता है कि हिंसा और शोषण को हम उतनी तीव्रता के साथ निंदनीय नहीं मानते | यदि
वाकई ऐसा ही है तो राजनितिक व्यवस्था को चुनौती देने के लिए आतंकवाद सिर क्यों
नहीं उठा लेगा | धर्म, जाति, धनबल और बाहुबल अगर राजनीति के प्रभावी यंत्र मने
जाते हैं तो आतंकवाद के खिलाफ उपाय ढूँढने में हम कितने कारगर हो सकते हैं |
खैर जब तक हमें कुछ सूझता नहीं तब तक आतंकवाद के खिलाफ
बल प्रयोग का उपाय करने के इलावा हमारे पास कोई चारा भी नहीं है | लेकिन इसी बीच
साथ-साथ अप्राध्शास्त्रियों, मनोविज्ञानियों, समाजशास्त्रियों और दर्शनशास्त्रियों
को इस काम के लिए सक्रीय किया जा सकता है | बहुत संभव है कि ऐसा करते हुए हम
आतंकवाद के साथ भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, शोषण और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं का
भी समाधान पा लें | इसके लिए विश्वभर के शीर्ष नेतृत्त्व को एकजुट हो कर कुछ ठोस
कदम उठाने होंगे तभी कुछ होने की उम्मीद है |