Rajasthan Patrika 24-02-2008 |
देश में ऐसा अनेक बार हुआ है। इसलिए यह आशंका निर्मूल नहीं है। स्वस्थ रहने के लिए देश में हरियाली का प्रतिशत कुल धरती का 33 फीसदी होना चाहिए। पर चिंता की बात है कि यह प्रतिशत घटकर 20.6 रह गया है। वन्य अभ्यारण्यों को समेटे भरतपुर जिले में तो हरियाली का प्रतिशत 7 से भी कम है। इसलिए भरतपुर में मौजूद ब्रज के पर्वत बचेगें तो हरियाली भी बढ़ेगी।
अगर वसुंधरा राजे ने हृदय से यह निर्णय किया है तो उनकी सरकार को चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय में दायर ’नीलाम्बर बाबा व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य‘ मुकदमें में राज्य सरकार की ओर से एक नया शपथ पत्र दाखिल करे। जिसमें सर्वोच्च अदालत को अपने ताजा निर्णय की प्रति देकर यह आग्रह करे कि अब उसका याचिकाकर्ताओं से कोई मतभेद नहीं है और वह भी यही चाहती है कि ब्रज में सभी तरह के प्रदूषणकारी उद्योग जिनमें खनन व पत्थर तोड़ना भी शामिल है पर स्थायी रूप से प्रतिबंध लगाया जाय।
चिंता और दुख की बात यह है कि पिछले पांच वर्षों से बरसाना के साधु और ब्रज रक्षक दल के कार्यकर्ता अनेक स्तरों पर ब्रज के पर्वतों की रक्षा का जुझारू आन्दोलन चला रहे थे। पर तब वसुंधरा राजे नहीं मानी। अगर संतो के दबाव में अब खनन रोका है तो अगस्त 2006 में तो देश के सभी सुविख्यात संतों ने यह अपील की थी तब उनकी क्यों नहीं सुनी गई? जहां तक ब्रजवासियों के धरने व प्रदर्शन से डरने की बात है तो यह सही नहीं लगता। क्योंकि जो सरकार गुर्जर आन्दोलन के आगे नहीं झुकी उसे ऐसी धमकियों से फर्क नहीं पड़ता। दरअसल भाजपा ने अगले लोकसभा चुनाव में रामसेतु का मुद्दा प्रमुखता से उठाने का निर्णय किया है। ब्रज में पर्वत तोड़कर रामसेतु की रक्षा की दुहाई नहीं दी जा सकती थी। विधान सभा का चुनाव सिर पर है इसलिए जनता की भावनाएं और संतों का रूख अपने पक्ष में करने के लिए ही यह कदम उठाया गया है।
राजस्थान सरकार का यह तर्क ठीक नहीं कि डीग व कामां में खनन के ज्यादातर पट्टे इंका के शासन काल में दिये गये। धर्मनिर्पेक्षता का बैनर लेकर चलने वाली इंका ने अगर ब्रज के पर्वतों के आध्यात्मिक महत्व को नहीं समझा तो हिन्दू धर्म की रक्षा की दुहाई देने वाली भाजपा ने इस सच को स्वीकारने में पांच वर्ष क्यों लगा दिये? ब्रज रक्षक दल ने उपग्रह चित्रों के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया था कि पिछले वर्षों में डीग व कामां में खनन की मात्रा 28 गुना बढ़ गई है। संघ, विहिप व भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की जानकारी में यह सब कई वर्षों से था। फिर क्यों कुछ नहीं किया गया? अब चुनाव के डर से ही सही जो कुछ किया गया है वह सराहनीय है। पर वन विभाग के ही वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि बिना वाहनों, सुरक्षा कर्मियों व प्रशासनिक साधनों के उनके लिए अवैध खनन रोक पाना असंभव होगा। उनका यह भी कहना है कि जब पुलिस व प्रशासन मिलकर कुछ नहीं कर सके तो छोटा सा वन विभाग अवैध खनन को कैसे रोकेगा ? सही भी है कि इस इलाके में वैध से सौ गुना ज्यादा अवैध खनन हो रहा था। भाजपा के जिले से लेकर जयपुर तक हर स्तर के नेताओं का इसको पूरा समर्थन था। ऐसा खुद भाजपा के पूर्व सांसद व विहिप अध्यक्ष के अनुज Mk¡. बी.पी. सिंघल का कहना है। जिन पर 7 दिसंबर 2006 को कामां में भरतपुर के भाजपा अध्यक्ष ने खड़े होकर कातिलाना हमला करवाया था। वे ब्रज रक्षक दल के अध्यक्ष के साथ उनकी गाड़ी में बोलखेड़ा में चल रहे संतों के अनशन और खनन के विनाश को देखने गये थे। इतने संगीन हादसे के बाद भी राजस्थान सरकार ने कोई कारवाई नहीं की। दो दिन बाद भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के घर बैठक में श्रीमती राजे ने ब्रज के पर्वतों के मामले में तुरंत एक समिति बनाने का आश्वासन दिया, पर ऐसा किया नहीं। साफ जाहिर है कि राजस्थान सरकार ने पांच वर्षों तक जानबूझ कर तथ्यों को अनदेखा किया।
वरना मौजूदा कानून में ही इतनी ताकत है कि अवैध खनन को ही नही बल्कि इंका शासनकाल में दिये गये पट्टों के वैध खनन को भी आसानी से रोका जा सकता था। बशर्तें कि राजनैतिक इच्छा शक्ति होती। यह तो पांच वर्ष से कहा ही जा रहा था कि कितने भी आन्दोलन करलो, मीडिया में शोर मचा लो, धरने दे लो या प्रदर्शन कर लो वसुंधरा सरकार विधान सभा चुनाव के 6 महीने पहले डीग व कामां में खनन पर रोक लगा देगी। खैर जो भी हो अंत भला तो सब भला। पर अंत भला तभी होगा जब इस निर्णय पर कानून बने और सर्वोच्च न्यायालय में राजस्थान सरकार अपने इस नए निर्णय पर अदालत की स्वीकृति की मुहर लगवा ले।
ब्रज ही क्यों सारे भारत में नदियों और नहरों में बेदर्दी से जहरीला और रासायनिक कचड़ा फेंका जा रहा है। बड़ी तेजी से वन काटे जा रहे है। पर्वतों को डायनामाइट से तोड़ा जा रहा है। इस सब विनाश के चलते देश के पर्यावरण व धरोहरों का तेजी से विनाश हो रहा है। जो हर कीमत पर रूकना चाहिए। वरना हालात जीने लायक नहीं बचेंगे। तीस वर्ष पहले किसने सोचा था कि यमुना सड़ा नाला बन जाएगी और विशाल गंगा की हरिद्वार में पतली सी धारा बहेगी। दुर्भाग्य से आज यही हो रहा है। हमारे देश के ऋषियों ने प्रकृति को धर्म से जोड़ कर उसके संरक्षण की बहुत lqaUnj व्यवस्था विकसित की थी। पर विकास की आंधी, योजनाकारों का असंवेदनशील रवैया और सरकारी लोगों व ठेकेदारों की लूट ने देश के पर्यावरण को बहुत तेजी से बर्बाद कर दिया है। जिस पर रोक भी अब ऋषि ही लगाऐंगे। आशा की जानी चाहिए कि ब्रज की प्राकृतिक धरोहरों की रक्षा के पुरोधा विरक्त संत रमेश बाबा के सिंहनाद का स्वर आने वाले वर्षों में भारत के कोने कोने में जाकर प्रकृति की रक्षा का शंखनाद करेगा।
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