Rajasthan Patrika 10-02-2008 |
पर यह पहली बार नहीं हुआ कि किसी नेता ने अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए निरीह जनता को हिंसा की बलि चढाया हो। साम्प्रदायिकता, जातिवाद और क्षेत्रवाद के नाम पर देश के अलग अलग हिस्सों में ऐसे फायदा होते ही रहे हैं। जब कभी किसी राजनैतिक दल को मीडिया की सुर्खियों रहना होता है। तो वो ऐसी हरकत करने से बाज नहीं आता। उसकी बला से लोग मरे तो मरे लुटे तो लुट, और बर्बाद हो तो हो जायें। उसका स्वार्थ द्धि होना चाहिए। राम जन्म भूमि आन्दोलन में जो मरे उनकी भावनाओं की और उनके बलिदान की भाजपा ने क्या कद्र की ? मुलायम सिंह के समर्थन में लखनऊ में पिछले दिनों शहीद हुए नौजवान को क्या मिला? घडि़याली आंसू? उसकी श्हादत किसी राष्ट्रीय हित या सामाजिक हित के लिए न बल्कि एक राजनेता का हित साधने के लिए हुई। गुर्जर आन्दोलन में यही हुआ। जयललिता के लिए अक्सर आत्मदाह करने वालों को क्या मिलता है?
जनता भावुक है। जल्दी बहक जातीहै। नेता ये बखूबी जानते है। इसलिए जनता को बार-बार बहकाकर अपना उल्लू सीधा करते है। धर्म? जाति व क्षेत्र ऐसे सम्वेदन “khy मुद्दे है जिन पर जनता को भड़कना आसान होता है। जब कोई दल या नेता जनता को कुछ ठोस दे पता तो ऐसे फालतू के मुद्दों पर आन्दोलन खड़ा कर देता है। राज ठाकरे अभ राजनी में पैर जमाने कि जुगत में लगे है। खुद की कोई राजनैतिक पहचान है नहीं। विरासत में बाल ठाकरे से कुछ मिला नहीं। इसलिए ये बखेड़ा कर दिया ताकि लोग उनके वजूद को पहचाने।
राज ठाकरे के पास अकूत दौलत है। इसका प्रमाण यही है कि उन्होंने शिवसेना मुख्यालय के ठीक सामने अरबों रूपये कीसम्पत्ति अपना मुख्यालय बनाने के लिए खरीदी है। उनकी संगठन क्षमता उद्धव ठाकरे से बेहतर मानी जातीहै। वे युवा है और उनमें आगे बढ़ने की ललक है। अभी राजनीति में उन्हें लम्बी पारी खेलनी है। ऐसली अधीरता औ गैर जिम्मेदाराना व्यवहार से कोई अच्छ संदेश नहीं जाता। राज ठाकरे मगर दिमाग से काम लेते तो राहाराष्ट्र की राजनीति में ऐसा शगूफा ठोड़ते कि उनकी छवि एक ऐसे नेता बन जायेंगे तो यह उनकी भूल है। क्योंकि उनके काका भ अब क्षेत्रवाद के इस फार्मूले का घटता प्रभाव देखकर अपनी भाषा औ सोच बदल चुके है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि राज ठाकरे अपनी भूल lq/kkjsaxs s और लोगों के घावों पर मरहम लगाकर उन्हें अपने योग्य नेता होने का विश्वास दिलायेगें। अगर वे ऐसा नही करते तो उनके नये बने दल की छवि एक गुण्डे और मवालियों के दल के रूप में होगी। जो उकने राजनैतिक शेविशवकाल में ही उनके पतन का कारण बनेगी। राज ठकरे कीह नहीं देष के अन्य प्रान्तों में राजनीति करने वाले को समझ लेना चाहिए कि आत के हालात में वही आग लगाकर रोटी सेकने वालों के दिन अब लद रहें है।
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