Rajasthan Patrika 2-3-2008 |
आज मेनेजमेंट गुरू लालू प्रसाद यादव को मेनेजमंेट के गुर सिखानें देश विदेश के प्रतिष्ठित मेनेजमेंट संस्थानों में बुलाया जाता है। घाटे के रेल मंत्रालय को भारी मुनाफे का बना कर लालू ने अपनी कार्यकुशलता के झण्ड़े गाढ़ दिये है। लगातार चार बरस तक रेल भाड़े में वृद्धि न करके उन्होने रिकाडऱ् कायम किया है। रेल बजट के विश्लेषण पर तो इस हफते दर्जनो लेख छप रहे है। पर लालू की शख्सियत में आये बदलाव का कारण कम ही लोग जानते है। बिहार के चुनाव में नितीश कुमार की सरकार बनने के बाद लालू प्रसाद को बहुत धक्का लगा। पहली बार उन्हें एहसास हुआ कि जनता उनसे नाराज क्यों हुयी। एक जुझारू और आत्मविश्वासी लालू प्रसाद ने कमर कस ली। सबसे पहले तो उन रिश्तेदारों और चाटुकारों से पिण्ड़ छुडाया जो वर्षा से उनका नाम बदनाम कर रहे थे। दूसरी तरफ रेल मंत्रालय में सुधीर कुमार को ओ एस डी बनाकर बडे़ निर्णय लेने की छूट दे दी। आर के महाजन, विनोद श्रीवास्तव व के पी यादव जैसे विश्वास पात्रो को जनता की मदद करने के लिये छोड़ दिया। इस समर्पित टीम ने रेल मंत्रालाय मे अनेक प्रभावी कदम उठाकर लालू के पक्ष मे माहौल बनाया ।
लालू और उनके परिवार में आये भारी बदलाव की वजह राबड़ी देवी के साथ सभी परिवार जनो का अचानक भजन भक्ति की ओर झुकाव भी है। लालू काफी भक्ति करने लगे है। तीर्थाटन भी खूब कर रहे हैं। संत सेवा भी उदारता व श्रद्धा से कर रहे है। इस सब से लालू के व्यक्तित्व मे संजीदगी आई है। अब वे विभिन्न क्षेत्रो के प्रतिष्ठित और योग्य लोगों के बीच बैठना पसंद करते है, चमचे चाटुकारों के नहीं। उनमें अच्छे लोगो के प्रति सम्मान की भावना आई है। वे अपनी स्वस्थ आलोचना सुनने को तत्पर रहते है और फायदे के सुझाव बटोरने में कंजूसी नहीं करते।
दरअसल लालू किसी भी तरह बिहार के अगले विधानसभा चुनाव मे अपनी सत्ता फिर कायम करना चाहते हे। इसलिये उनका इस बार का रेल बजट भी पूरी तरह चुनावी बैनरो से भरा था। उनके निन्दक मानते है कि लालू का बजट सच्चाई का नहीं आंकड़ो का मायाजाल है। कुछ हद तक ऐसा हो भी सकता है पर हकीकत ये है की लालू प्रसाद ने रेल मंत्रालय को एक नई पहचान दी है। इससे यह सिद्ध होता है कि अगर कोई राजनेता ठान ले कि उसे ईमानदारी से अपनी सरकार चलानी है तो वह देश का भला कर सकता है। देश में संसाधनो की कमी नहीं है। जरूरत है उनके सही इस्तेमाल की।
वैसे भी व्यक्ति कोई गलत या सही नहीं होता। उसकी सोच उसे सही या गलत बनाती हैं। जब देश के हजारों कुलीन नेता कई दशको से देश लूट रहे है और कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता तो नई पीढी के नेताओं को भी गलत करने की प्रेरणा मिलती हैं। पर अब हालात तेजी से बदल रहे है। जनता जागरूक हो रही है। बिना जनता का भला किये न तो लालू चुनाव जीत सकते है और नाही दूसरे दलों के नेता। इसलिये हर नेता अब जनता को लुभाने में जुटा है। अगर जनता लोकतन्त्र पर अपनी पकड़ बढ़ायेगी तो नेताओ में कुछ करने की भावना जगेगी। फिर एक लालू ही क्यों हर वो नेता ठोस नतीजे लायेगा जिसे अगली बार फिर चुनाव में कूदना है। लालू में आये बदलाव ने देश के अनेक नेताओं को प्रभावित किया है। अच्छा हो कि वे अपनी इस सोच को अन्य लोगो मे भी विकसित करे। फिर हर मंत्रालाय मुनाफे का बजट बनायेगा।
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