Sunday, November 25, 2007

चैराहे पर वामपंथी

Rajasthan Patrika 25-11-2007
नंदीग्राम की हिंसा, उस पर मुख्यमंत्री बुद्ध्देव भट्टाचार्य का बयान, सी पी एम की चुप्पी और भाजपा का आक्रमक तेवर इस सब पर तो बहुत लिखा जा चुका है। जरूरत यह समझने की है कि इस घटना से वामपंथियों खासकर सी पी एम का कौन सा रूप सामने आया है?

वामपंथ की बुनियाद द्वेश, प्रतिषोध, हिंसा और काल्पनिक जगत के सपनों पर टिकी है। इस सदी के शुरू में वामपंथियों ने रूस और चीन में जो कामयाबी के झंडे गाढ़े थे उससे पूरी दुनियां हिल गई थी। एक बार तो हर पढ़े लिखे, चिंतनशील व्यक्ति को लगा कि यही सही रास्ता है। पूंजीवादी बुरी तरह घबड़ा गए थे। पश्चिम को वामपंथ का खौफ कई दशकों तक भयभीत किए रहा। पर जिस सदी में वामपंथ ने पैर जमाए उसी सदी में उसके डेरे तंबू उखड़ गए। अब जो रूस और चीन में बचा है वह वामपंथ की दसवीं कार्बन कापी भी नहीं है।

स्वभाविक है कि इन हालातों में भारत के वामपंथी दिग्भ्रमित हैं। उन्हें अपने को टिकाए रखने के लिए अब कोई ठोस आधार नहीं मिल रहा। जिससे वे अपनी श्रेश्ठता सिद्ध कर सके। इस प्रक्रिया में आज वामपंथियों व बाकी के राजनैतिक दलों में कोई अंतर नहीं बचा है। सर्वहारा की हित की बात करने वाला वामपंथी नेतृत्व आज सर्वहारा को कुचलकर हुकूमत चला रहा है। पर ऐसा पहली बार नहीं हुआ। मैं पिछले 20 वर्षाें से बंगाल के दौरे पर जाता रहा हूं। वहां हर आदमी यह कहता था कि वामपंथी आतंक और डंडे के जोर पर संगठन और सरकार चलाते हैं। अगर ऐसा न होता तो नक्सलवाद क्यों जन्म लेता? अगर सीपीएम वास्तव में सर्वहारा की हितैषी है तो उसके दो दशकों के शासन के बाद भी बंगाल की गरीबी क्यों दूर नहीं हुई? अगर सीपीएम धर्म निरपेक्ष है तो आज तक केवल हिन्दुओं का विरोध समर्थन क्यों करती रही? मैने दो दशकेां तक राजनीति के शीर्ष पर खोजी पत्रकारिता की है। और मैं बिना किसी राग द्वेश के यह कह सकता हूं कि कई नामी वामपंथियों का भी वैसा ही दोहरा जीवन है जैसा दूसरों का। वे भी उन्हीं पूंजीपतियों की खैरात पर पलते रहे हैं जिन पर दूसरे पलते हैं।

दरअसल वामपंथियों ने पश्चिमी बंगाल में जो आडंबर फैला रखा था उसके पीछे वही सब होता था जो अन्य राजनैतिक दल सत्ता में बने रहने के लिए करते हैं। हां आडंबर और संगठन इतना जोरदार रहा कि लोग बहकावे में आते रहे। पर नंदीग्राम जैसी घटनाओं ने सीपीएम के उस आडंबर को बेनकाब कर दिया है। देश में बुद्धिजीवियों, फिल्मी सितारों, लेखकों,  ायरों व पत्रकारों की एक लंबी फेहरिस्त है जो नंदीग्राम जैसी घटनाओं पर आसमान सिर पर उठा लेते हैं। टीवी चैनलों और सड़कों पर उतर आते हैं। सामने वाले को अमानवीय, साम्प्रदायिक, बुर्जुआ क्या कुछ नहीं कहते। पर आज ये सारे के सारे वाक्पटु लोगों को लकवा क्यों मार गया है?

नंदीग्राम का एक सच और भी है जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया। गत तीन दशकों में बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ ने पश्चिमी बंगाल का समाजिक ताना बाना बदल दिया है। एक  साजिश के तहत बांग्लादेशियों को पश्चिमी बंगाल के  हरों में भेजा गया  और सीपीएक सरकार ने उन्हें वोटों के लालच में जानते हुए भी अवैध रूप से बसने दिया। अपनी आलोचना और गृहमंत्रालय की चेतावनियों की परवाह नहीं की। धीरे धीरे यही अल्पसंख्यक समुदाय सीपीएम पर हावी होने लगा। अब उसका नेतृत्व फिरकापरस्तोें ने संभाल लिया। जिससे जाहिरन सीपीएम को खतरा लगने लगा कि जो लोग कल तक पनाह मांग रहे थे वे आज काबू के बाहर हो चुके हैं और अपनी जा-बेजा हर मांग मनवा लेते हैं। तस्लीमा नसरीन को निकलवाना इसका एक उदाहरण है। इसलिए सीपीएम के काडर ने नंदीग्राम में रहने वाले अल्पसंख्यक समाज को अपनी हिंसा के प्रदशन से एक चेतावनी दी है।

दरअसल जीवन के षश्वत सत्य व मनुश्य के मूल चरित्र को समझे बिना केवल द्वेश, हिंसा और प्रतिशोध की भावना से जिस राजनैतिक विचारधारा का जन्म हुआ हो उससे सिर्फ यही निकलेगा। समाज बनेगा, पनपेगा नहीं टूटेगा और बिखरेगा। नंदीग्राम की घटना ने सीपीएम के पूरे चरित्र को बेनकाब कर दिया है।

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