Punjab Kesari 9 May11 |
बाबा की धमकी से घबराये राजनेता यह कहकर बाबा का मजाक उड़ा रहे हैं कि अन्ना हज़ारे की भूख हड़ताल की सफलता से बौखलाये हुए बाबा रामदेव अन्ना की नकल कर रहे हैं। पर यह भूल जा रहे हैं कि लोकपाल विधेयक के समर्थकों को खुले दिल से सहायता और जनशक्ति देकर बाबा रामदेव ने ही उनके आन्दोलन में प्राण फूंक दिये। बाबा के अनुयायियों की संख्या आज देश में सबसे ज्यादा है। एक आंकलन के अनुसार 1 करोड़ लोग सीधे-सीधे बाबा से जुड़े हैं। अगर इसके पाँच फीसदी लोग भी बाबा रामदेव के साथ भूख हड़ताल पर बैठ गये तो उनकी अनदेखी करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। बाबा बड़ी भीड़ जुटाने में सक्षम हैं। उन्हें किसी के प्रायोजन की आवश्यकता नहीं। अगर बाबा के शिष्य पूरे देश से आकर रामलीला मैदान में डंट गये तो उनका आन्दोलन काफी जोर पकड़ लेगा।
जो लोग बाबा की मुहिम को अविवेकपूर्ण बताकर सवाल खड़े कर रहे हैं, उन्हें देश की असलियत की तरफ ध्यान देना चाहिए। आज देश में गरीबों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। विकास का लाभ चन्द लोगों के हाथों में सिमटता जा रहा है। योजना आयोग के अनुसार 2004-05 में भारत में गरीबों की संख्या 27 फीसदी थी। जो योजना आयोग के ही अनुसार अब बढ़कर 32 फीसदी हो गयी है। इतना ही नहीं, विकास की दर 8 या 9 प्रतिशत बताई जा रही है, उसके बावजूद गरीबों की संख्या इतनी बढ़ गयी है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद, जिसकी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी हैं, ने कहा है कि यदि देश में खाद्य सुरक्षा कानून बनाना है तो भारत की 70 फीसदी आबादी को 2 या 3 रूपये प्रति किलो अनाज देना पड़ेगा। मतलब यह हुआ कि देश की 70 फीसदी आबादी अत्यंत गरीब है। फिर हम दुनिया के मंचों पर, मूँछों पर ताव देकर, यह क्यों कहते हैं कि भारत तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहा है? भारत के कुछ लोग बेहद धनी होते जा रहे हैं, पर साफ ज़ाहिर है कि इस आर्थिक प्रगति का लाभ आम आदमी को नहीं मिल रहा। इसका मूल कारण है भ्रष्टाचार। जो धन जनता के हित की योजनाओं पर खर्च होना चाहिए, वह भ्रष्टाचारियों की जेब में जा रहा है और इस लूट में कई बड़े औद्योगिक घराने भी शामिल हैं। फिर भी भ्रष्टाचार के इस विकराल स्वरूप के बारे में कोई भी राजनैतिक दल गम्भीर नहीं है। बयान सब देते हैं। पर अपना आचरण बदलने को कोई तैयार नहीं। नतीज़तन आम जनता मंहगाई की मार झेल रही है।
ऐसे में जो नेतृत्व का शून्य पैदा हो गया था, उसे भरने के लिए अन्ना हजारे व बाबा रामदेव जैसे लोग मैदान में उतर रहे हैं। भ्रष्टाचार के विरूद्ध इनका अभियान बिल्कुल उचित है और इनका हठ भी सही है। क्योंकि बिना डरे राजनैतिक दल कुछ भी बदलने नहीं जा रहे। ये आपस में छींटाकशी करते रहेंगे और उसका राजनैतिक फायदा लेते रहेंगे। भ्रष्टाचार को निपटाने की कोई कोशिश नहीं करेंगे। इसलिए किसी न किसी को तो यह जिम्मेदारी लेनी ही थी। अब बाबा रामदेव ने ली है तो उन्हें इस लड़ाई को अंजाम तक ले जाना होगा। इसमें अनेक बाधाऐं भी आयेंगी। कुछ तो राजनैतिक दलों की ओर से और कुछ निहित स्वार्थों की ओर से। पर बाबा जैसे हठी हैं, वे मैदान नहीं छोड़ेंगे और उनके अनुयायी भी कमर कसकर बैठे हैं।
इस लड़ाई में देश के हर जागरूक नागरिक को हिस्सा लेना चाहिए। जरूरी नहीं कि सब एक मंच पर से ही लड़ें। भारत-पाकिस्तान का युद्ध होता है तो कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के मोर्चे पर अलग-अलग लड़ा जाता है। भ्रष्टाचार से युद्ध भी भारत-पाक युद्ध से कम नहीं है। इसलिए जिसे जहाँ, जैसा मंच मिले, जुट जाना चाहिए। सफलता और असफलता तो भगवान के हाथ में है। रही बात बाबा रामदेव के अभियान की, तो उनके निकट रहने वालों का कहना है कि अपनी समस्त शुभेच्छा के बावजूद बाबा इस लड़ाई की स्पष्ट रणनीति नहीं बना पाये हैं। वे बिना गहरा चिंतन किये कुछ भी बयान देकर विवाद खड़ा कर देते हैं। उनके पास दूसरी पंक्ति के नेतृत्व का भारी अभाव है। वे हर निर्णय खुद लेते हैं, यहाँ तक कि टी.वी. पर क्या प्रसारित हो। इस तरह पूरा आन्दोलन व्यक्ति केन्द्रित बन गया है। बाबा में अभी महात्मा गाँधी जैसी समझ, गम्भीरता, दूरदृष्टि व वैकल्पिक योजना की तैयारी जैसे गुण दिखायी नहीं दे रहे हैं। ऐसे में आन्दोलन के किसी भी मोड़ पर भटक जाने की सम्भावना है।
राजनैतिक विश्लेषक, मीडिया, सिविल सोसाइटी, विभिन्न आन्दोलनों से जुड़े लोग और आम शहरी अब उत्सुकता से बाबा के आन्दोलन का इंतजार करेंगे। हृदय से सभी चाहते हैं कि ऐसे सभी प्रयास सफल हों और आम आदमी को भ्रष्टाचार से राहत मिले। पर लड़ाई इतनी आसान नहीं, जिसे बिना कुशल रणनीति के लड़ा और जीता जा सके। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि बाबा जैसे लोग अपने हृदय को विशाल करें और उन सब लोगों को जोड़ें जो इस लड़ाई में ठोस योगदान कर सकें और इसे सफलता की मंजिल तक ले जा सकें।