Showing posts with label MSME. Show all posts
Showing posts with label MSME. Show all posts

Monday, April 27, 2020

कैसे चलें देश के उद्योग व्यापार ?

कोरोना महामारी के कारण अगर हमारे जीवन की रफ़्तार पर गतिरोध लगा है तो ज़ाहिर है इससे सभी खुश नहीं हैं। लेकिन सोचने वाली बात है कि लॉकडाउन जैसे कठिन निर्णय लेने से पहले सरकार ने इसके हर पहलू पर सोचा ज़रूर होगा। जानकारों की मानें तो फ़िलहाल लॉकडाउन से जल्द राहत मिलना सम्भव नहीं है। ऐसे में जहां सरकार इस लॉकडाउन के एग्ज़िट प्लान के बारे में विचार कर रही है, वहीं समाज के कई वर्गों से भी इसके लिए कई सुझाव भी आ रहे हैं। 

भारत में लॉकडाउन को अब एक महीने से ज़्यादा हो चला है। व्यापार और उद्योग जगत, चाहे लघु हो या विशाल, इस लॉकडाउन के अंत की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है। ऐसे में सरकार की ओर से जो हिदायत और रियातें आईं हैं वो मध्यम और लघु उद्योगपतियों को नाकाफ़ी लग रहीं हैं। 

देश में एक लघु उद्योग चलाने वाले उद्यमी को उद्योग ठप्प होने और नियमित ख़र्चों की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। एक ओर जहां उस उद्योगपति की फ़ैक्टरी बंद पड़ी है वहीं उसे कर्मचारियों के वेतन के साथ-साथ फ़ैक्टरी के किराए और बिजली के बिलों पर लगने वाले फ़िक्स्ड चार्ज को भी भरना पड़ रहा है। अभी हाल ही में भारत सरकार द्वारा दी गई रियातों में इन ख़र्चों का कोई ज़िक्र नहीं किया गया। केवल बड़े उद्योगों को कुछ ज़रूरी हिदायतों के साथ चलाने की अनुमति दी गई है ।

उधर सोशल मीडिया में भी कई तरह के सुझाव आते हैं कि किस तरह हमें अपनी गाड़ियों को सप्ताह में एक बार स्टार्ट कर लेना चाहिए, या किस तरह हमें कुछ व्यायाम रोज़ कर लेने चाहिए। जिससे गाड़ी और शरीर दोनों चलते रहें। ऐसे में अर्थव्यवस्था को ठप्प होने से रोकने के लिए भी कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। 

सरकार ने ऐसी हिदायत दे दी हैं कि हर उद्योगपति को अपने किसी भी कर्मी के वेतन को नहीं काटना है और उसे पूरा वेतन देना है। यह भी कहा गया है कि अगर फ़ैक्टरी को सरकारी हिदायतों के साथ चलाया जाएगा तो उसमें काम करने वाले सीमित कर्मियों के रहने खाने की व्यवस्था साफ़ सुथरे वातावरण में, फ़ैक्टरी परिसर में ही करनी होगी। यदि किसी कर्मी को किसी भी कारण से कोरोना का संक्रमण हुआ तो उस उद्योग को दो दिन के लिये बंद करके संक्रमण मुक्त किया जाएगा  और तभी दोबारा चलने की अनुमति मिलेगी। 

अगर हमें देश की अर्थव्यवस्था को वापस ढर्रे पर लाना है तो हर उस उद्योग को खुलने की छूट देना अनिवार्य होगा जो इन बड़े उद्यमियों पर निर्भर हैं। केवल ट्रांसपोर्ट ही नहीं, उन सभी छोटी बड़ी दुकानों को भी सशर्त खुलने की छूट मिलनी चाहिए। अगर सामान की बिक्री नहीं होगी तो बड़ी-बड़ी फ़ैक्टरी में बनने वाली वस्तुएँ किस काम की? आज अगर सरकार ने कुछ सेवाकार्य करने वाले कारीगरों, जैसे कि इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर आदि को छूट दी है तो उनसे जुड़े दुकानदारों को छूट क्यों नहीं दी गई? अगर किसी के घर में कुछ बिगड़ गया है और उसकी मरम्मत करने वाला उपलब्ध है लेकिन मरम्मत के लिए ज़रूरी सामान की दुकानें बंद है तो इस छूट का क्या फ़ायदा? अगर सभी को सशर्त छूट मिलेगी तो धीरे धीरे ही सही, पर अर्थव्यवस्था की गाड़ी तो चलती रहेगी।   

आज जब विश्व में कच्चे तेल क़ीमतों में भारी गिरावट आ चुकी है या कहें की उसके दाम शून्य तक पहुँच गये हैं फिर इसका लाभ अगर जनता को क्यों नहीं मिल रहा? तो इसका कारण ये है कि देश में महंगे दर से ख़रीदे हुए तेल के भंडार अभी भरे हुए हैं। लॉकडाउन के चलते पेट्रोल डीज़ल की बिक्री पर भी विपरीत असर पड़ा है। 

अगर लॉकडाउन के एग्ज़िट प्लान में सशर्त छूट दी जाए तो उपभोक्ता को न सिर्फ़ सस्ते दर पर पेट्रोल डीज़ल जल्द उपलब्ध होगा बल्कि सरकार को मिलने वाले कर में भी बढ़ौतरी होगी। वित्त मंत्रालय और रिज़र्व बैंक को भी इस दिशा में ऐसे ठोस कदम उठा कर देश में मुद्रा की वृद्धि कर उसका लाभ जनता तक पहुँचना चाहिए। 

आज सरकार द्वारा मुफ़्त में राशन बाँटने से कहीं अच्छा ये होगा कि सरकार द्वारा इस पर होने वाले खर्च को स्वास्थ्य योजनाओं में लगाया जाए। मुफ़्त में राशन वितरण का कार्य तो कई स्वयंसेवी संस्थाएँ और व्यापारी वर्ग कर ही रहे हैं। सभी कारीगरों को काम में वापस लेकर उनके वेतन दिए जाएं जिससे वो अपनी कमाई से राशन लें और अर्थव्यवस्था की गाड़ी को पटरी पर लाएँ।   

ग़ौरतलब है कि अगर पेट्रोल डीज़ल के दामों में कटौती होती है तो इसका सीधा असर माल की ढुलाई की लागत में होगा और ज़रूरी वस्तुएँ भी सस्ती होंगी। ऐसा ठीक उसी तरह से है जैसे कि मधु की पैदावार में फूल, माली, तितली और मधुमक्खी का योगदान होता है। परिवार के मुखिया को परिवार के सभी सदस्यों की बेहतरी के लिए सोचना होता है, तभी सबका भला होता है। 

इतिहास गवाह है कि चाहे वो गाँव मोहल्ले के स्तर पर रामलीला का आयोजन हो, दशहरा का रावण बनना हो या फिर देश में किसी संकट का समय हो तो मध्य और लघु उद्यमी और व्यापारी जितना बढ़ चढ़ कर सहयोग करते हैं उसकी तुलना किसी भी बड़े ऑनलाइन मार्केटों कम्पनी या उद्यमी से नहीं की जा सकती। ऑनलाइन मार्केटिंग को बढ़ावा देकर तो इन सबका कारोबार समाप्त हो जाएगा। जिससे देश में बेरोज़गारी बढ़ेगी। लाक्डाउन में ये लोग ही आम जनता के लिए जीवन रक्षक बनकर सामने आए हैं कोई ऑनलाइन पोर्टल नहीं आया।

हाँ यह ज़रूर है कि बड़े उद्यमी समाज के कल्याण के लिए उच्च स्तर पर कार्य करते हैं। फिर वो चाहे कोई विशाल मंदिर का निर्माण हो, स्कूल हो या फिर अस्पताल हो। वो ऐसे समाज कल्याण के कार्यों से पीछे नहीं हटते। 

‘रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिये डारि।
जहां काम आवे सुई कहा करे तलवार ।। 

तो फिर लघु और मध्य उद्यमियों से सौतेला व्यवहार क्यों ? 

प्रधानमंत्री मोदी जी को देश के मुखिया होने के कारण इस दिशा में ठीक उसी तरह के ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है जैसा उन्होंने अतीत में किया है। तभी ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा सच होगा।