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बाबा रामदेव के मंच से जो कुछ कहा गया उसमें पुरानी बातो को ही दोहराया गया। काले धन को लाने और भ्रष्टाचार को रोकने के बारे में जो भी बयान दिये गये उनमें ऐसी रोशनी दिखाई नहीं दी जिससे इन समस्याओं का हल निकाला जा सके। आगे का जो आव्हान किया गया है उसमें राजनैतिक दलों के अध्यक्षों और सासंदो का समर्थन जुटाने की बात की गई है। साथ ही आन्दोलन और धरनों के दौर को बनाये रखने का भी संकल्प लिया गया है। जोकि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जायज तरीका है। पर क्या इस प्रक्रिया से हल निकल पायेगा?
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निसंदेह बाबा रामदेव ने पिछले दो सालों में इन मुद्दों पर देशभर में जिज्ञासा जगाई है। यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धी है। अब उनका उदेश्य व्यवस्था परिवर्तन के लिए जमीन तैयार करना होना चाहिए। जो भी राजनैतिक दल बाबा को समर्थन का आश्वासन दे रहे है उनसे दो बातें कही जायें। पहली अपने दल द्वारा शासित राज्य को भ्रष्टाचार को मुक्त करके दिखायें। दूसरा संसद के मानसून सत्र में इन मुददों पर लगातार खुली बहस चलायें। केवल रस्म आदायगी न करें। उधर बाबा को जनजागरण का अपना अभियान जारी रखना चाहिए। पर उसका तेवर लोगो को समाधान देना होना चाहिए। समाधान ऐसा हो कि लोग उससे इतने सहमत हों कि उसके समर्थन में पूरी ताकत से उठ खड़े हों । इससे व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को बल मिलेगा। यह एक धीमी पर सतत प्रक्रिया होगी। जिसके परिणाम जल्दी तो नही आयेंगे पर दूरगामी होंगे।
पिछले कुछ महीनों से देशभर के अनेक सामाजिक कार्यकर्ता बाबा रामदेव से जुड़े हैं। ये वो लोग हैं जो पिछले तीन दशकों से देश के अलग अलग हिस्सो में, अगल अलग विचारधारा से सामाजिक सरोकार के मुददों पर संघर्षशील रहे है। इन लोगों ने गांवों से जिलों तक व्यवस्था के प्रभाव को देखा है और व्यवस्था से भिड़े है। इसलिए उनकी जमीनी समझ अच्छी है। पर राष्ट्रीय स्तर की समझ सैद्वान्तिक तो है पर व्यवहारिक अनुभव की कमी है। इसलिए यह लोग कभी एकजुट होकर देश में कोई बड़ा आन्दोलन नहीं खडा़ कर पाये। अब बाबा के संसाधनों की छत्र छाया में इन्हें मौका मिला है। पर अभी तक इनकी बाबा के साथ पूरी जुगलबन्दी नहीं हुई है। इनका मानना है कि बाबा आत्मकेन्द्रित हैं। जबकि बाबा चाहते हैं कि यह सब उनके नेतृत्व में एक जुट हो जायें। इसलिए अन्दरूनी रस्साकशी जारी है। देखना होगा कि आने वाले समय में अन्ना, सामाजिक संगठन, बाबा रामदेव के अनुयायी कहां तक एकमत हो पाते हंै। देखना यह भी होगा कि बाबा और उनका कोरगु्रप काले धन और भ्रष्टाचार के मामले पर अपनी रणनीति को व्यवहारिक और दलनिपेक्ष बना पाते हैं या नहीं ? इस पर ही इस आन्दोलन का भविष्य निर्भर करेगा।
क्या खोया क्या पाया.
ReplyDeleteपर ये कह सकते हैं , करोरों चमचों से वह बेहतर हैं .