एयर इण्डिया के पायलटों की हड़ताल को लेकर मीडिया, यात्री व अदालत काफी सक्रिय हैं। वहीं इस हड़ताल के पीछे के खेल को बहुत कम लोग समझ पा रहे हैं। जबकि राजधानी की सत्ता के गलियारों में दबी जुबान से इस खेल पर टिप्पणीयाँ की जा रही हैं।
चर्चा है कि उ0प्र0 में राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन करने के बावजूद काँग्रेस को अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिली, इसलिए काँग्रेस अब चैधरी अजीत सिंह से पल्ला झाड़ना चाहती है, क्योंकि अब उनकी काँग्रेस को कोई उपयोगिता दिखाई नहीं दे रही। इसलिए इस हड़ताल को राजनैतिक शै पर करवाकर ऐसा माहौल खड़ा किया जा रहा है कि चैधरी अजीत सिंह को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया जाए।
दूसरी तरफ हवाई सेवाओं के व्यापार से जुड़े अनुभवी लोगों का कहना है कि इस हड़ताल के पीछे ताकतवर लोगों की कमाई का धंधा अच्छा चल रहा है। गर्मियों की छुट्टी के समय विदेश जाने वाले यात्रियों की भारी भीड़ रहती है। ऐसे में एयर इण्डिया के पायलटों की हड़ताल से एयर इण्डिया की केवल अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें ही रूकी हैं। इण्डियन एयरलाइंस की घरेलू उड़ानों पर कोई असर नहीं पड़ा है। जाहिर सी बात है कि जो यात्री एयर इण्डिया में सफर करते, वे अब निजी एयर लाइंस की तरफ भाग रहे हैं। निजी एयर लाइंस इस मौके का भरपूर फायदा उठा रही हैं। यात्रियों से मनमाने किराये वसूल कर रही हैं और आरोप है कि अपने मुनाफे को सत्ताधीशों के साथ गुपचुप रूप से बांट भी रही हैं। ऐसे दौर में जब हवाई सेवाऐं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मंदी के दौर से गुजर रही हैं, भारत में आॅपरेट करने वाली निजी एअरलाइंस इस हड़ताल से लाभान्वित हो रही हैं।
यह हड़ताल कोई इतनी बड़ी और महत्वपूर्ण नहीं थी, जिसे राजनैतिक कुशलता से काबू नहीं किया जा सकता था। एयर इण्डिया के सामने इससे भी बड़े कई मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान देने की फौरन जरूरत है। मसलन जेट एयरलाइंस जैसी मुनाफे में चलने वाली एयरलाइंस भी अपने खर्चों में कटौती कर रही है। उसने दिल्ली के टी-3 हवाई अड्डा से अपने विस्तार को कम किया है और देश-विदेश में अपने खर्चों में कटौती की है। वहीं एयर इण्डिया आज भी सफेद हाथी की तरह पूरी दुनिया में अपना गैर मुनाफे का कारोबार फैलाकर बैठी है। अनेक देशों में इसने महंगे किराये पर कार्यालयों के लिए सम्पत्तियाँ ले रखी हैं, जिन्हें काफी हद तक समेटा जा सकता है। इसके अलावा देश-विदेश में बहुत सारी सम्पत्तियाँ खरीद रखी हैं, जिन्हें बनाए रखने में नाहक फालतू खर्चा हो रहा है। अगर बुद्धिमानी से काम लिया जाए, तो इन सम्पत्तियों को बेचकर एयरलाइंस की आर्थिक दुर्दशा दूर की जा सकती है। इसी तरह एयर इण्डिया में हमेशा से कर्मचारियों की भारी फौज को लेकर सवाल उठते रहे हैं। आवश्यकता से कई गुना ज्यादा कर्मचारी एयर इण्डिया के पैरों में पत्थर की तरह बंधे बैठे हैं। जिनकी उत्पादकता नगण्य है और जिनके रहते घाटा दूर नहीं हो सकता। इसी तरह एयर इण्डिया उन सभी दोषों और अपराधों से भी मुक्त नहीं है, जो सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों के सम्बन्ध में जगजाहिर हैं। मसलन निर्णय व्यवसायिक न होकर, अवैध कमाई की दृष्टि से लिए जाते हैं। राजनैतिक आकाओं और आलाअफसरों को खुश करने के लिए इस एयरलाइंस का नृशंस दोहन किया जाता है। योग्यता और कुशलता की जगह भाई-भतीजावाद को प्राश्रय दिया जाता है। जरूरत इस बात की थी कि नागरिक उड्यन मंत्री, उनका मंत्रालय और सरकार इस मंदी के दौर में एयर इण्डिया की सेहत दुरूस्त करने की कोशिश करते। पर वह तो हो नहीं रहा, हड़ताल के जाल में एयरलाइंस को उलझाकर, उसकी कब्र खोदी जा रही है।
नागरिक उड्यन मंत्रालय से जुड़े स्रोतों के अनुसार सरकार बहुत समय से एयरइण्डिया से पिण्ड छुड़ाने का मन बना चुकी है। 1991 के बाद से खुला बाजार और खुली प्रतियोगिता के दौर में सरकारी वायु सेवाऐं चलाने का कोई औचित्य नहीं है। परन्तु अपने वामपंथी और समाजवादी सहयोगियों से दबाव में सरकार ऐसे कड़े निर्णय लेने से संकोच करती रही है। क्योंकि उसे डर है कि कर्मचारियों के भविष्य की दुहाई देकर ये सहयोगी दल उसके लिए आफत खड़ी कर सकते थे। सरकार यह समझ चुकी है कि एयरइण्डिया को अब फायदे की कम्पनी नहीं बनाया जा सकता। इसलिए इसे क्रमशः धीमी मौत मारा जा रहा है। जिसे ख्यह खुद-ब-खुद ऐसे हालात पैदा हो जाऐं कि इस कम्पनी को बन्द करने के अलावा कोई विकल्प ही न बचे। मौजूदा हड़ताल को इसी परिपेक्ष्य में देखा जा रहा है।
सोचने वाली बात यह है कि जिस आम जनता के खून-पसीने की कमाई पर यह सब सार्वजनिक उपक्रम खड़े किये गए थे, आज उसी जनता को सार्वजनिक उपक्रमों के प्रबन्धकों के निकम्मेपन और भ्रष्टाचार का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। सार्वजनिक उपक्रमों से उम्मीद थी कि एक दिन ये देश के विकास का आधारभूत ढांचा खड़ा करेंगे। जिसके बाद आत्मप्रेरित आर्थिक विकास होने लगेगा। काफी सीमा तक सरकार इस उद्देश्य में सफल रही। सार्वजनिक क्षेत्र ने भारत के आर्थिक विकास के लिए जमीन तो तैयार की, पर पेड़ में फल लगने से पहले ही उसकी जड़ों में दीमक लग गई। एयर इण्डिया इससे अछूती नहीं है।
इसलिए जो लोग भी नागरिक उड्यन के क्षेत्र से किसी भी रूप में सम्बद्ध हैं, उन्हें अपनी आवाज और विवेक का इस्तेमाल कर पायलटों की इस हड़ताल का बहाना लेकर एयर इण्डिया के इस विनाश को रोकना चाहिए। उल्लेखनीय है कि नागरिक उड्यन सेवाओं से समाज का वह वर्ग जुड़ा है, जो आधुनिक है और अपनी आवाज सत्ताधीशों तक पहुँचा सकता है। इसलिए उन्हें सक्रिय होकर इस कम्पनी की समस्याओं का सार्थक समाधान खोजने की कोशिश करनी चाहिए।
सरकार मलाया को तो कुछ कह नहीं सकती , पर पैलोतों को तो सबक सिखा ही सकती है
ReplyDeleteजय श्री राधे
अशोक गुप्ता
दिल्ली