रिची से राधानाथ स्वामी तक का अनोखा सफर बहुत रोमांचकारी था। जिसे अब 40 वर्ष बाद स्वामी जी ने ‘द जर्नी होम’ या ‘अनोखा सफर’ नाम से प्रकाशित अपनी पुस्तकों में लिखा है। मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी सौरभ गांगुली का कहना है कि, ‘यह पुस्तक पूरी युवा पीढ़ी के लिए उत्कृष्ट भेंट है। अशांति से भरे हमारे संसार में यह एक अमरीकी युवक द्वारा संतुष्टि की खोज की कथा है।’ आज भारत का युवा पश्चिम की चमक-दमक से चकाचैंध है। डीजे, डिस्को, ड्रग्स, सैक्स व उपभोगतावाद के जाल में उलझता जा रहा है। दूसरी तरफ रिची ने 19 वर्ष की आयु में संपन्नता के शिखर पर बैठे अमरीकी समाज को छोड़ा था तो वहां संपन्नता से उकताये लाखाs युवा हिप्पी बन रहे थे। रिची भी बन सकता था। पर उसे तलाश थी जीवन के ध्येय की जो उसे मिला भारत की सनातन संस्कृति में। आज भारत आर्थिक सफलता की ओर तेजी से बढ़ रहा है। फिर भी उसे अभी ऐसी सफलता नहीं मिली कि एक सौ दस करोड़ भारतीयों के पास वैभव के ढेर लग गए हों और भारत की युवा पीढ़ी इस वैभव से उकताने लगी हो। अभी तो भारत में मुठ्ठीभर लोगों के हाथ में अकूत दौलत आयी है। शेष भारत तो आज भी दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहा है। ऐसे में पश्चिम की संस्कृति का अंधानुकरण आत्मघाती सिद्ध हो रहा है। पर युवाओं को झकझोरने वाला, जगाने वाला और रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं। इसलिए भटकन है। इसलिए बिखराव है और इसीलिए हताशा है।
‘अनोखा सफर’ एक ऐसी सम-सामायिक पुस्तक है जिसे पढ़कर भारत के युवा, विशेषकर वे युवा जो पश्चिम से आकर्षित हैं, भारत की संस्कृति में ही अपनी कुंठाओं के हल खोज सकते हैं। 336 पेज की यह पुस्तक इतनी सरल भाषा में लिखी गयी है कि पाठक को हर क्षण लगता है कि वह रिची के साथ इस रोमांचक यात्रा को स्वयं कर रहा है। राधानाथ स्वामी ने इस्लाम, ईसायित, बौद्धधर्म, तांत्रिक व औघड़ पंरपरायें, हठयोग जैसी अनेक आध्यात्मिक धाराओं का अनुभव किया। इस अनुभव को इतनी खूबसूरती से इस पुस्तक में जड़ दिया कि बिना किसी के प्रति नकारात्मक भाव अभिव्यक्ति किये ही भारत की सनातन संस्कृति की ही श्रेष्ठता को पाठकों के लिए प्रस्तुत कर दिया। आज से कई दशक पहले 1946 में एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी ‘एक योगी की आत्मकथा।’ इस पुस्तक ने दुनियाभर में तहलका मचा दिया था। आज दशकों बाद भी इस पुस्तक की ढेरों प्रतियां पूरे विश्व में बिकती रहती हैं। उस पुस्तक के लेखक परमहंस योगानंद एक भारतीय स्वामी थे। जिन्होंने हठयोग और ध्यान की अपनी सिद्धि को स्थापित कर पश्चिमी जगत को चमत्कृत किया था। आज दशकों बाद एक अमरीकी स्वामी ने अपनी आध्यात्मिक खोज को युवा पीढ़ी के सामने इस तरह प्रस्तुत किया है कि उसे जीवन का सही रास्ता खोजने की प्रेरणा मिल सके।
स्वामी जी ने बहुत संजीदगी, संवेदनशीलता और कलात्मक आकर्षण के साथ कृष्णभक्ति और भगवान की लीलास्थली ब्रज क्षेत्र की महिमा को भी प्रस्तुत किया है और इसे ही अपने जीवन का अंतिम पड़ाव बनाया है। यही कारण है कि उनके हजारों अनुयायी ब्रज भूमि और कृष्णभक्ति के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं और इस भूमि के लिए हर तरह की सेवा करने को तत्पर रहते हैं। अनोखी बात है कि एक अमरीकी युवा इतने कम समय में भारत के प्रबुद्ध और संपन्न लोगों को कृष्ण भक्ति व ब्रज भक्ति के प्रति आकर्षित करने में सफल रहा। हाल ही में जारी हुई यह पुस्तक मराठी, कन्नड़ व तेलगू भाषाओं में भी जल्दी ही जारी हो रही है। निश्चित रूप से इसकी शैली और इसमें व्यक्त की गई भावना भारत के युवाओं को कुछ सोचने पर मजबूर करेगी। बशर्ते कि वे इसे पढ़ने की जहमत उठाने को तैयार हों।
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