Sunday, January 3, 2010

तीन इडियट ही क्यों?

आईआईटी के छात्र रहे चेतन भगत की पुस्तक पर आधारित फिल्म थ्री इडियटखासी लोक प्रिय हो रही है। सिनेमाघरों के बाहर लंबी कतारें लगी है। फिल्म है भी बहुत बढि़या। पूरे तीन घंटे हंसते-हंसते गुजर जाते हैं। पर इस हंसी के बीच बहुत सारे सार्थक संदेश दिए गए हैं। जो  आज के युवाओं और उनके अविभावकों के बड़े काम के हैं। इस पूरी फिल्म की कहानी उन तीन युवाओं के इर्द-गिर्द घूमती है जो आईआईटी जैसे इंजीनियरिंग संस्थान में पढ़ रहे हैं और भौतिक जिंदगी की दौड़ में आगे निकलने के लिए लगातार एक दबाव में जी रहे हैं। आईआईटी जैसे संस्थानों में होने वाली आत्महत्याओं का कारण भी यही तनाव बताया गया है।

फिल्म का मूल संदेश यह है कि अगर एक नौजवान अपनी दिल की आवाज सुनकर अपनी जिंदगी की राह तय करता है तो वह खुश भी होता है सही मायने में सफल भी। केवल ज्यादा पैसे कमाने के लिए पढ़ने वाले कोल्हू के बैल ही होते हैं। जिनकी जिंदगी में रस नहीं आ पाता। यही कारण है कि आईआईटी जैसी प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़कर सैकड़ों नौजवान आज देश में ऐसे काम कर रहे हैं जिसका उनकी डिग्री से कोई लेना देना नहीं है। मसलन झुग्गीयों में बच्चों को पढ़ाना, आध्यात्मिक आन्दोलनों में भगवत्गीता का प्रचारक बनना या गांव के नौजवानों के लिए छाटे-छोटे कुटीर उद्योग स्थापित करने में मदद करना। दूसरी तरफ इंजीनियरिंग की डिग्री की भूख इस कदर बढ़ गयी है कि एक-एक २kहर में दर्जनों प्राईवेट इंजीनियरिंग का¡लेज खुलते जा रहे हैं। जिनमें दाखिले का आधार योग्यता नहीं मोटी रकम होता है। इन का¡लेजों में योग्य शिक्षकों और संसाधनों की भारी कमी रहती है। फिर भी यह छात्रों से भारी रकम फीस में लेते हैं। बेचारे छात्र अधिकतर ऐसे परिवारों से होते हैं जिनके लिए यह फीस देना जिंदगी भर की कमाई को दाव पर लगा देना होता है। इतना रूपया खर्च करके भी जो डिग्री मिलती है उसकी बाजार में कीमत कुछ भी नहीं होती। तब उस युवा को पता चलता है कि इतना रूपया लगाकर भी उसने दी गयी फीस के ब्याज के बराबर भी पैसे की नौकरी नहीं पाई। तब उनमें हताशा आती है। आज हालत यह है कि एम.बी.ए. की डिग्री प्राप्त लड़के साडि़यों की दुकानों पर सेल्समैन का काम कर रहे हैं। समय और पैसे का इससे बड़ा दुरूपयोग और क्या हो सकता है?

थ्री इडियटफिल्म में आमिर खान की भूमिका एक ऐसे युवा की है जो हमेशा अपने रास्ते खुद बनाने में विश्वास करता है। लीक का फकीर बनने में नहीं। यह सलाह वह दूसरों को भी देता है। आज देश की 40 फीसदी आबादी युवाओं की है। जीवन की दिशा स्पष्ट न होने के कारण और बने बनाये रास्तों से अलग हटकर रास्ता बनाने की प्रवृत्ति न होने के कारण यह युवा भटक रहे हैं। नक्सलवाद, आतंकवाद व सामान्य अपराधों में यही युवा लिप्त होते जा रहे हैं। यह खतरनाक स्थिति है। अगर इसी तरह नौजवान हिंसा की तरफ बढ़ते गए तो इन्हें फौज और पुलिस की बंदूकों से रोकना संभव न होगा। जरूरत इस बात की है कि थ्री इडियटजैसी फिल्में दिखाकर देश के युवाओं को अपना भविष्य खुद बनाने की प्रेरणा दी जाए। अगर युवा अपने निकट के परिवेश को समझकर समाज को अपनी सेवाऐं प्रदान करेंगे और नई सोच से समस्याओं के हल ढूँढेगे तो यकीनन वे अपने मकसद में कामयाब होंगे। आज शहरी जीवन में हजारों नई तरह की समस्याएं पैदा हो गई हैं। शहर नरक बनते जा रहे हैं। ऐसे में यह युवा अपनी नई सोच से समस्याओं के हल खोजकर अपनी जीविका कमा सकते हैं। अपनी सेवाओं के बदले समाज से खासी आमदनी पैदा कर सकते हैं। इससे देश की तरक्की भी होगी व युवाओं की भटकन दूर होगी।

सरकारी नौकरियों पर निर्भरता, नौकरियों में आरक्षण की मांग, नौकरियाँ पाने के लिए कठिन प्रतियोगिता, सिफारिश, रिश्वत, ये ऐसे झंझट हैं जो एक युवा को उसकी जिन्दगी के सबसे उत्पादक दौर में थका देते हैं। फूल सी ताजगी खत्म कर देते हैं। इस सबके बाद भी अगर नौकरी न मिले तो उसे हताशा और गलत रास्ते पर चलने को मजबूर कर देते हैं। जितनी ऊर्जा केन्द्र और प्रांत की सरकारें नौकरी का आश्वासन देने में और उसका तानाबाना बुनने में लगाती हैं, उसे कहीं कम खर्चें और प्रयास से इन युवाओं को आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरित किया जा सकता है। उसके लिए जिलों के प्रशासन को संवेदनशील बनाना होगा ताकि वे इन युवा उद्यमियों के रास्ते में आने वाली प्रशासनिक दिक्कतों को दूर कर सकें। इसके साथ ही देश के शिक्षा संस्थानों में ऐसा माहौल पैदा करने के लिए सबसे पहले शिक्षकों को अपनी प्रवृत्ति बदलनी होगी। रटे-रटाये कोर्स से अलग हटकर जीवन उपयोगी शिक्षा देने का अभ्यास करना होगा। छात्रों से अधिक अंक लाने की अपेक्षा करने की बजाय उन्हें एक अच्छा इंसान, खुश इंसान और संतुष्ट इंसान बनने की प्रेरणा देनी होगी। यदि शिक्षक ऐसा कर पाते हैं तो भारत की मौजूदा युवा पीढ़ी देश के लिए बहुमूल्य निधि बन जायेगी। इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्री श्री कपिल सिब्बल को नीतिगत ढाँचे में बदलाव करने होंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस तरह मुन्नाभाई से देश के मध्यमवर्गीय शहर वालों ने गांधी गिरी सीखी उसी तरह थ्री इडियटफिल्म से शिक्षा के क्षेत्र में गैर पारंपरिक सोच को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।

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