फिल्म का मूल संदेश यह है कि अगर एक नौजवान अपनी दिल की आवाज सुनकर अपनी जिंदगी की राह तय करता है तो वह खुश भी होता है सही मायने में सफल भी। केवल ज्यादा पैसे कमाने के लिए पढ़ने वाले कोल्हू के बैल ही होते हैं। जिनकी जिंदगी में रस नहीं आ पाता। यही कारण है कि आईआईटी जैसी प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़कर सैकड़ों नौजवान आज देश में ऐसे काम कर रहे हैं जिसका उनकी डिग्री से कोई लेना देना नहीं है। मसलन झुग्गीयों में बच्चों को पढ़ाना, आध्यात्मिक आन्दोलनों में भगवत्गीता का प्रचारक बनना या गांव के नौजवानों के लिए छाटे-छोटे कुटीर उद्योग स्थापित करने में मदद करना। दूसरी तरफ इंजीनियरिंग की डिग्री की भूख इस कदर बढ़ गयी है कि एक-एक २kहर में दर्जनों प्राईवेट इंजीनियरिंग का¡लेज खुलते जा रहे हैं। जिनमें दाखिले का आधार योग्यता नहीं मोटी रकम होता है। इन का¡लेजों में योग्य शिक्षकों और संसाधनों की भारी कमी रहती है। फिर भी यह छात्रों से भारी रकम फीस में लेते हैं। बेचारे छात्र अधिकतर ऐसे परिवारों से होते हैं जिनके लिए यह फीस देना जिंदगी भर की कमाई को दाव पर लगा देना होता है। इतना रूपया खर्च करके भी जो डिग्री मिलती है उसकी बाजार में कीमत कुछ भी नहीं होती। तब उस युवा को पता चलता है कि इतना रूपया लगाकर भी उसने दी गयी फीस के ब्याज के बराबर भी पैसे की नौकरी नहीं पाई। तब उनमें हताशा आती है। आज हालत यह है कि एम.बी.ए. की डिग्री प्राप्त लड़के साडि़यों की दुकानों पर सेल्समैन का काम कर रहे हैं। समय और पैसे का इससे बड़ा दुरूपयोग और क्या हो सकता है?
‘थ्री इडियट’ फिल्म में आमिर खान की भूमिका एक ऐसे युवा की है जो हमेशा अपने रास्ते खुद बनाने में विश्वास करता है। लीक का फकीर बनने में नहीं। यह सलाह वह दूसरों को भी देता है। आज देश की 40 फीसदी आबादी युवाओं की है। जीवन की दिशा स्पष्ट न होने के कारण और बने बनाये रास्तों से अलग हटकर रास्ता बनाने की प्रवृत्ति न होने के कारण यह युवा भटक रहे हैं। नक्सलवाद, आतंकवाद व सामान्य अपराधों में यही युवा लिप्त होते जा रहे हैं। यह खतरनाक स्थिति है। अगर इसी तरह नौजवान हिंसा की तरफ बढ़ते गए तो इन्हें फौज और पुलिस की बंदूकों से रोकना संभव न होगा। जरूरत इस बात की है कि ‘थ्री इडियट’ जैसी फिल्में दिखाकर देश के युवाओं को अपना भविष्य खुद बनाने की प्रेरणा दी जाए। अगर युवा अपने निकट के परिवेश को समझकर समाज को अपनी सेवाऐं प्रदान करेंगे और नई सोच से समस्याओं के हल ढूँढेगे तो यकीनन वे अपने मकसद में कामयाब होंगे। आज शहरी जीवन में हजारों नई तरह की समस्याएं पैदा हो गई हैं। शहर नरक बनते जा रहे हैं। ऐसे में यह युवा अपनी नई सोच से समस्याओं के हल खोजकर अपनी जीविका कमा सकते हैं। अपनी सेवाओं के बदले समाज से खासी आमदनी पैदा कर सकते हैं। इससे देश की तरक्की भी होगी व युवाओं की भटकन दूर होगी।
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