Rajasthan Patrika 30-12-2007 |
ऐसे बेकाबू होते हालातों में अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश का बयkन कि पाकिस्तान में चुनाव समय पर होने चाहिए और लोकतंत्र की बहाली को लेकर चल रहे प्रयkस और आतंक के खिलाफ लडाई जारी रहेगी पसोपेश में डालने वाला है. लोकतंत्र की वकालत करने वाले बुश शायद यह भूल रहे हैं कि पाकिस्तान में आखिर लोकतंत्र चाहता कौन है ? बेनजीर की हत्यk हो चुकी है नवाज शरीफ वैसे ही हाशिए पर लाए जा चुके हैं. अकेले इमरान खान ही एक विकल्प के रूप में उभरते हुए दिखाई देते हैं परन्तु उनकी पहचान भी एक सैलीब्रिटी के रूप में ही ज्यkदा है जमीन से जुडे हुए नेता के रूप में नहीं. लोकतंत्र की बहाली के लिए चुनाव जरूरी हैं और चुनावों के लिए एक माहौल की आवश्यकता होती है नेता की जरूरत होती है कानूनी व्यवस्था दरकार होती है. आज पाकिस्तान में इनमें से कोई भी मौजूद नहीं लगता.
लोकतंत्र बहाली के नाम अमरीका ने आज तक जहा¡ जहा¡ दादागिरि दिखाई है वह उसे मु¡ह की खानी पडी है. चाहे वह वियतनाम हो यk फिर कोसोवा यk फिर हाल ही के अफगानिस्तानी व इराकी प्रकरण. अपने निहित राष्ट्रीय स्वार्थों के चलते दूसरे मुल्कों की सार्वभौमिकता से छेडछाड करना अब अमरीका को भारी पडने लगा है. क्यsकि अब इन मुल्कों की जनता का आक्रोश आतंकवाद के रूप में उसके सामने आ रहा है.
आतंक के खिलाफ लडाई की दुहाई देने वाले बुश यह भी भूल जाते हैं कि उनके देश की अर्थव्यवस्था व राजनीति को काबू में करने वाली ला¡बी का अस्तित्व ही दहशत व हिंसा पर टिका हुआ है. यदि दुनियk में अमन बहाल हो जाएगा तो फिर उनके हथियkरों को कौन खरीदेगा. अतः आतंकवाद को जड से मिटाने की कवायद आ¡खों में धूल झksकने से ज्यkदा कुछ नहीं लगती.
उधर डाइरेक्ट एक्शन की ताकत पर बने पाकिस्तान में पिछले 60 वर्षों से आवाम को सैनिक तानाशाहों की संगीनों व इस्लामी कट्टरपंथियks के खौफ के सायs में ही जीना पडा है. पाकिस्तान के राजनैतिक व सामाजिक हलकों में इस्लामी कट्टरपंथियks ने इस हद तक पैठ कर रखी है कि बिना सैन्य तानाशाही के 16 करोड का यह मुल्क चल ही नहीं सकता. दरअसल इस्लाम को आधार बना पाकिस्तान की परिकल्पना ही दोषपूर्ण रही है. दुनियk के सबसे बडे पलायन के बाद वजूद में आए मुल्क की जडें मजबूत हो ही कैसे सकती हैं. 24 साल के अन्दर ही मुल्क के दो फाड हो गए. अमरीका की बैसाखियks के सहारे आखिर कब तक यह मुल्क यk ही घिसटता रहेगा. पाकिस्तान के भ्रष्ट सैन्य अधिकारी जिन्होंने खरबों की अकूत दौलत जमा कर रखी है न तो पाकिस्तान की आर्थिक तरक्की चाहते हैं और न ही वे कभी पाकिस्तान में लोकतंत्र को कायम होने देंगे.
साथ ही सोचने वाली बात य्ाह भी है कि इस्लामी समाज में ही हमेशा से सत्ता को लेकर ऐसी मारकाट होती रही है. बेटों ने बाप के कत्ल करके राजसत्ताए¡ हासिल कीं तो भाइयks ने भाइयkss के गले काटे. कहीं ऐसा तो नहीं कि मजहब की आड में एक सियkसी विचारधारा पिछले 1400 वर्षों से दुनियk में अपना प्रभाव जमाती आई है. यsह सवाल इस्लाम के उन धर्मगुरूओं बुद्धिजीवियks और राजनेताओं के लिए महत्वपूर्ण होना चाहिए जो इस्लाम का मानवीय चेहरा दुनियk के सामने पेश करने की ईमानदार कोशिश करते हैं. सोचने वाली बात यह है कि जिन इस्लामी मुल्कों ने इस्लाम के कट्टरपन की चाहरदिवारी को ला¡घ कर खुले विचारों को अपनायk है वहा¡ अमन चैन और तरक्की तेजी से कायम हुई है. चाहे पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित तुर्की और इराक जैसे देश हों यk वैदिक संस्कृति से प्रभावित इण्डोनेशियk और मलेशियk जैसे देश.
जो भी हो यह पाकिस्तान के लिए ही नहीं पूरे दक्षिण एशियk के लिए एक संकट की घडी है. पाकिस्तान में हर उॅंगली परवेज मुशर्रफ की तरफ उठ रही है और उसके बाहर की दुनियk बडी उत्सुकता से वहk¡ की आन्तरिक उथल पुथल पर निगाहें लगाए बैठी है.
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