आज जबकि ज्यादातर राजनेता जनता के बीच अपनी खराब छवि के कारण अलोकप्रिय हो रहे हैं कुछ ऐसे मुख्यमंत्री भी हैं जो अपनी कार्यकुशलता के कारण जनता में लोकप्रिय हो रहे हैं। इस क्रम में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम सबसे ऊपर है। इन मुख्यमंत्रियों ने कार्यकुशलता और प्रशासनिक जवाबदेही की अच्छी मिसाल कायम की है। आज से पहले जो लोग हैदराबाद गए होंगे उन्हें यह देखकर आश्यचर्य होगा कि हैदराबाद अब एक सजा-संवरा शहर बन चुका है। शहर की सफाई रात के 10 बजे से सुबह 4 बजे के बीच पूरी हो जाती है। जिस समय महापालिका के कर्मचारी और अधिकारी हैदराबाद की सड़कों पर घूम-घूम कर सफाई के काम को अंजाम देते हैं। इसलिए हैदराबाद शहर में आपको कहीं भी कूडे़ का ढेर नजर नहीं आएगा। इतना ही नहीं हैदराबाद की सड़कों पर से अवैध कब्जे हटा दिए गए हैं। फुटपाथो को रंग-पोत कर साफ कर दिया गया है। अलबत्ता हैदराबाद के ट्रैफिक को अनुशासित करने मेें श्री नायडू के अधिकारी अभी सफल नहीं हुए हैं। हैदराबाद में ट्रैफिक आज भी वाहन चालकों की मनमानी चाल पर ही चलता है। लेकिन सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि हैदराबाद की सड़कों पर भिखारी कहीं भी दिखाई नहीं देते। दीवारों पर नारे और पोस्टर लगाने की भी मनमानी तरीके से छूट नहीं है। जाहिर है कि हैदराबाद की नागरिक सेवाओं की गुणवत्ता में आए इस सुधार के लिए श्री नायडू को काफी प्रयास करना पड़ा होगा। इसके लिए उन पर स्थानीय नेताओं और दबाव समूहों के अनावश्यक दबाव भी आए होंगे। लोगों ने उनके सुधार कार्यक्रमों का विरोध भी किया होगा। अवैध कब्जे हटाते समय उन्हें अपने वोट बैंक के खोने का भय भी रहा होगा। पर लगता है कि श्री नायडू ने इन सब बातों की परवाह किए बगैर नागरिक जीवन को सुधारने का बीड़ा उठाया और उसमें उन्हें भारी कामयाबी मिली।
इतना ही नहीं हैदराबाद के भवन निर्माण क्षेत्रों व अन्य कार्यक्षेत्रों में काम की संस्कृति में भारी सुधार आया है। वहां काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उनका हेल्मेट पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। वे इस नियम का पालन भी कर रहे हैं। नतीजतन अब हैदराबाद में हर मजदूर हेल्मेट पहनकर ही काम नहीं करता बल्कि समय पर काम शुरू करता है और कुछ समय के लंच विश्राम के अलावा बाकी सब समय बड़ी तत्परता से काम करता है। पूरे हैदराबाद के माहौल में चुस्ती, फुर्ती व कर्तव्यपरायणता पग-पग पर दिखाई देती है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि श्री नायडू आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ही न होकर सीईओ हैं। इसीलिए वे हर क्षेत्र में कार्यकुशलता और गुणवत्ता लाने के पक्षधर हैं। सब जानते हैं कि चन्द्रबाबू नायडू ने अपना जीवन एक दामाद के तौर पर शुरू किया था। उनकी ख्याति सिर्फ इतनी सी थी कि वे आंध्र प्रदेश के दिवंगत मुख्य मंत्री एन.टी. रामा राव के दामाद थे। पर इतने वर्षों में उन्होंने स्वयं को एक दामाद की जगह एक युगदृष्टा के रूप में विकसित कर लिया है। ऐसा व्यक्ति जो समाज में सही परिवर्तन लाने की दिशा में निरंतर सक्रिय हो।
जातिगत और क्षेत्रीय स्वार्थों में उलझे भारतीय लोकतंत्र में आज ऐसी परिस्थियां विकसित हो गई हैं कि चुनाव जीतने के लिए राजनेता को अच्दा काम करने की जरूरत नहीं होती बल्कि उसे हर परिस्थिति में राजनैतिक लाभ कमाना आना चाहिए। इसलिए कई बार अच्छा काम करने वाले राजनेता भी चुनाव में वांछित सफलता नहीं पाते, जो कि उन्हें मिलनी चाहिए। जबकि गुंडे और मवाली चुनाव प्रक्रिया का अवैध फायदा उठाकर चुनाव जीतने में कामयाब हो जाते हैं। इसलिए चन्द्रबाबू नायडू का काम उनके मतदाताओं को पसंद आएगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता है पर इतना निश्चित है कि अपनी मेहनत और लगन से चन्द्र बाबू नायडू ने आज के राजनीतिज्ञों के बीच प्रमुख हैसियत बना ली है। ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में सक्रिय होना चाहिए। दिल्ली पर मात्र रिमोट कंट्रोल से काम नहीं चलेगा।
जो काम श्री नायडू ने आंध्र प्रदेश में किया है वहीं काम राजस्थान के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने भी किया है। राजस्थान के समझदार नागरिकों का कहना है कि श्री गहलोत ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ मुख्य मंत्री हैं। उनकी सादगी और ईमानदारी की पूरे राजस्थान में प्रशंसा हो रही है। जयपुर शहर भी क्रमशः हैदराबाद की तरह ही साफ और सुंदर होता जा रहा है। इस शहर का वायु प्रदूषण लगभग समाप्त हो चुका है। भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सरकार शिकंजा कसती जा रही है। श्री गहलोत को सबसे बड़ी सफलता तब मिली जब उन्होंने सरकारी कर्मचारियों की लंबी हड़ताल से डरे बिना हड़ताली सैकड़ों कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया। सरकार में बैठकर काम चोरी करने वालों को पहली बार यह एहसास हुआ कि वे सरकार को दबा नहीं पाएंगे। श्री गहलोत के इस एक निर्णय से प्रशासन में उनका डर बैठ गया। दूसरी तरफ बिजली की चोरी रोकने में भी श्री गहलोत को अभूतपूर्व सफलता मिली। प्रदेश में यह आलम था कि छोटे लोग ही नहीं बड़े-बड़े उद्योगपति तक बिजली की भारी चोरी करने में जुटे थे। सरकार को करोड़ों रूपए के राजस्व का घाटा हो रहा था। अब सब बिलबिला रहे हैं। ऐसे ही निहित स्वार्थ श्री गहलोत के खिलाफ दुष्प्रचार में जुटे हैं। पर श्री गहलोत अपनी कर्तव्यनिष्ठा से जनता के बीच लोकप्रिय होते जा रहे हैं। प्रदेश में आर्थिक संकट से निपटने के लिए श्री गहलोत ने कई कदम उठाए। उन्होंने सरकारी फिजूलखर्ची पर काफी हद तक रोक लगाने में सफलता हासिल की। कुछ लोगों का आरोप है श्री गहलोत के इर्द-गिर्द रहने वाले उनकी शराफत का नाजायज फायदा उठाकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। जिनसे श्री गहलोत को सावधान रहना होगा। वरना उनके किए कराए पर पानी फिर जाएगा।
इसी तरह कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्री एसएम कृष्ण की कार्यशैली भी सराही जा रही है। ये तीन मुंख्यमंत्री बाकी मुंख्यमंत्रियों के लिए मिसाल बन गए हैं। इनका काम यह सिद्ध करता है कि अपनी असफलता के लिए व्यवस्था को दोष देने वाले राजनेता दरअसल खुद ही प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारना नहीं चाहते। वरना ऐसी कामयाबी हर राज्य में मिल सकती है। यह इत्त्फाक ही है कि इन तीनों मुख्यमंत्रियों में से भाजपा के एक भी नहीं। दो इंका के हैं और एक तेलगूदेशम का। इन मुख्यमंत्रियों का काम पश्चिमी बंगाल सरकार के लिए भी एक सबक है। क्या वजह है कि पश्चिमी बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार पिछले बीस वर्ष सत्ता में रहने के बाद भी काम के ऐसे मानदंड स्थापित नहीं कर पाई ? इससे एक बार फिर यह सिद्ध हो गया है कि व्यवस्था कोई भी हो अगर उसके चलाने वाले सही नहीं है तो वह व्यवस्था नहीं चल सकती। किंतु यदि चलाने वाले सही हों तो व्यवस्था कैसी भी क्यों न हो काम करने लगती है। हमने लोकतंत्र अपनाया था इसलिए ताकि विविधता में एकता वाले इस विशाल राष्ट्र के हर नागरिक को सत्ता संचालन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी रहे। पर दुर्भाग्य से लोकतंत्रिक संस्थाओं का ऐसा पतन हुआ है कि जनप्रतिनिधि अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं। राजनैतिक ब्लैकमेलिंग, दलाली, अपराधियों को संरक्षण व समाज में द्वेष फैलाकर अपना फायदा देखने वाले आज राजनीति में ज्यादा हावी हो रहें। ऐसे में श्री नायडू व गहलोत आशा की किरण लेकर सामने आए हैं। इन्हें जरूरत है मजबूत हाथों की जो इनके कामों में इनकी मदद करे। प्रदेश की युवा पीढ़ी, सेवानिवृत्त कुशल अधिकारी और राजनैतिक कार्यकर्ता इनके साथ स्वयं सेवी रूप में जुड़ कर विभिन्न कार्यक्रमों की स्थिति पर निगरानी रख सकते हैं। प्रशासक और प्रजा के पारस्परिक सहयोग से ही भारत के विभिन्न प्रांतों का विकास संभव है।
यह आश्चर्य की बात है कि हमारे टीवी चैनलों पर ऐसा काम करने वाले राजनेताओं को ज्यादा तरजीह नहीं दी जा रही है। या तो ये लोग अपने काम में इतने मशगूल हैं कि इन्हें मीडिया प्रचार से ज्यादा अपने काम को अंजाम देने की चिंता है। या फिर मीडिया की रूचि ऐसे कर्तव्यनिष्ठ लोगों में कम और चटपटी खबरें बनाने वाले लालू यादव जैसे विवादास्पद राजनेताओं में ज्यादा है। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि इन लोगों के अच्छे काम को देश भर में प्रचारित किया जाए ताकि दूसरे राजनेता भी इनसे प्रेरणा लें और राजनीति की संस्कृति को टांग घसीटी से निकाल कर रचनात्मक दिशा में ले जाएं ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदलते परिवेश में भारत का लोकतंत्र और भी ज्यादा मजबूती के साथ दुनिया के सामने उभर कर आएं।