Friday, November 30, 2001

उत्तर प्रदेश में दंगल की तैयारी


 30-11-2001_PK
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की मेहनत रंग ला रही है। प्रदेश की हवा बदलने लगी है। कुछ महीनों पहले तक उत्तर प्रदेश के मतदाता भाजपा के शासन से खुश नहीं थे। इसलिए लगता था कि आगामी विधान सभा चुनावों में भाजपा काफी पीछे छूट जायेगी। चूंकि इंका कोई विकल्प देने की स्थिति में नहीं आ पाई इसलिए मुलायम सिंह को सपा के लिए रास्ता साफ दिखाई दे रहा था। पर जब से राजनाथ सिंह ने मोर्चा संभाला है तब से लोगों को लगा कि प्रदेश सरकार का तौर तरीका    सुधरने लगा। इसीलिए भाजपा खेमे में उम्मीद बंधी कि चुनावी हवा उनके पक्ष में भी हो सकती है। आमतौर पर सत्तारूढ़ दल से मतदाता नाराज रहता है और उसके विरोधी दल को चुनना पसंद करता है। पश्चिमी बंगाल इसका एक अपवाद रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश में कोई भी दल अकेले सरकार बनाने की हैसियत नहीं रखता। दलितों की एक खास जाति के वोट मायावती की बसपा के लिए समर्पित है जिनके आधार पर बसपा की सीटें जीतना तय है। यही कारण है कि पिछले कई वर्षों से उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने या गिराने में बसपा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आगामी विधान सभा चुनाव में बसपा की यही स्थिति बनी रहने की पूरी सम्भावना है।
उधर इंका का प्रदेश नेतृत्व इतना ढीला है कि न तो वह प्रदेश में अपनी पहचान बना पाया है और न ही इंका के कार्यकर्ताओं का उसमें विश्वास है। हर शहर और गांव में इंका से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए लोगों की कमी नहीं है। पर ये तमाम पुराने कांगे्रसी दिशा निर्देशन और नेतृत्व के अभाव में निष्क्रिय हुए बैठे हैं। इसीलिए सपा का रास्ता साफ होता चला जा रहा है। हालांकि सपा के नेता व लोक सभा सांसद बलराम यादव पार्टी नेता पर भाई-भतीजावाद और कुनबा परस्ती का आरोप लगाते हैं। उनका कहना है कि बड़े औद्योगिक घरानों से जुड़े अमर सिंह सरीखे लोग सपा को लोहिया के विचारों से काफी दूर ले गये हैं। उन्हें संशय है कि फिल्म कलाकारों की भीड़ दिखाकर मतदाताओं को रिझाया जा सकता है। वे मानते हैं कि फिल्म कलाकारों को देखने  को जो भीड़ उमड़ती है वह सब की सब वोटों में तबदील नहीं होती। केन्द्र में मंत्री रह चुके लोकसभा सांसद बलराम सिंह यादव को नहीं लगता कि अपनी तमाम लोकप्रियता के बावजूद सिने अभिनेता अमिताभ बच्चन मुलायम सिंह के लिए वोट इकट्ठे कर पायेंगे। उनका तर्क है कि इलाहाबाद की जनता को 1984 के आम चुनाव में लम्बे चैड़ सपने दिखाकर अधर में छोड़ जाने वाले श्री बच्चन का जनता कैसे विश्वास करे ? बलराम सिंह यादव के निकट सूत्रों के अनुसार वे सपा के विरूद्ध और भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार करने का मन बना चुके हैं। जबकि सपा के सूत्रों का कहना है कि बलराम सिंह यादव यह घुड़की सिर्फ इसलिए दे रहे हैं ताकि आगामी चुनाव में उनके चहेतों को टिकटें दिलवाई जा सकें।
उधर यात्राऐं निकाल कर, इंका वैसे तो हाथ-पैर मार रही है पर उसके पास प्रदेश स्तर पर न तो कुशल नेतृत्व है और न ही कोई ठोस कार्यक्रम। माधव राव सिंधिया और राजेश पायलट की असमय मृत्यु ने उसके दो लोकप्रिय नेता छीन लिए हैं। ले देकर अब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बचे हैं जिनसे उत्तर प्रदेश में जादू करने की उम्मीद की जा रही है। यूं तो देश में दिग्विजय सिंह के प्रभावशाली नेता और कुशल प्रशासक होने का काफी प्रचार किया गया है, पर मध्यप्रदेश की जनता कुछ और ही कहानी कहती है। छत्तीस गढ़ राज्य बन जाने के बाद मध्यप्रदेश में उर्जा का भारी संकट पैदा हो गया है। वैसे तो छत्तीगढ़ में भी इंका की ही सरकार है और उसके मुख्यमंत्री अजीत जोगी दिग्विजय सिंह को अपना बड़ा भाई बताते हैं पर असलियत में दोनों एक दूसरे के लिए मुश्किलें बढ़ाने में जुटे रहते हैं। ऐसा मध्यप्रदेश इंका के लोग ही बताते हैं। हालत इतनी बुरी है कि मध्यप्रदेश में बिजली का संकट विकट होता चला जा रहा है। आये दिन पावर कट होते रहते हैं। यहां तक कि दीपावली के दिन भी ऐन लक्ष्मी पूजन के समय प्रदेश की राजधानी भोपाल में 4 घंटे बिजली नहीं आई। सारा शहर अन्धकार में डूबा रहा। जिस पंचायत राज व्यवस्था को लेकर दिग्विजय सिंह चुनाव जीते थे वह पंचायत राज व्यवस्था मध्यप्रदेश सरकार के दीवालियापन के कारण कागजों पर ही रह गई है। लिहाजा मध्यप्रदेश के गांव-गांव में भी इंका की प्रदेश सरकार को लेकर काफी निराशा है। ऐसे में अगर इंका दिग्विजय सिंह को उत्तर प्रदेश के मतदाता के सामने एक आदर्श मुख्यमंत्री के रूप में पेश करती है तो मतदाता यह पूछ सकते हैं कि जब मध्यप्रदेश का इतना बुरा हाल है तो उत्तर प्रदेश में नेतृत्व विहीन इंका क्या कमाल कर देगी ? खास कर तब जबकि उसका ढांचा बिल्कुल चरमराया हुआ है। हां अगर आज इंका उत्तर प्रदेश में एक साफ और नया नेतृत्व दे पाती तो शायद लोगों को उम्मीद बंधती। पर ऐसा लगता है कि इंका के ही कुछ दिग्गज यह नहीं चाहते कि उनके दल की अध्यक्षा सोनिया गांधी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में इंका मजबूत हो। शायद उन्हें डर है कि देश के सबसे बड़े प्रान्त में अगर इंका के पैर जम गये तो सोनिया गांधी पार्टी पर भारी पड़ेंगी। उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों के लिए इंका के पास तुर्फ का दूसरा पत्ता प्रियंका गांधी हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अगर प्रियंका गांधी चुनाव प्रचार में उतरती हैं तो वे हवा बना सकती हैं। पर इंका के प्रदेश संगठन की हालत देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि यह संभव हो पायेगा। वैसे भी शायद प्रियंका गांधी पूरी तरह से राजनीति में लोकसभा के चुनावों के दौरान ही उतरना चाहेंगी। इसलिए इस वक्त उत्तर प्रदेश में इंका की हालत सबसे पतली है।
वैसे भी एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकों में मामूली परिवर्तन को लेकर जो तूल इंका सहित दूसरे विपक्षी दल दे रहे हैं उसका कोई विशेष लाभ चुनाव में उन्हें मिलने नहीं जा रहा है। जनता के लिए यह कोई अहम सवाल नहीं है। हां अगर, सपा और इंका जैसे दलों ने भाजपा के मुकाबले जनता के प्रति ज्यादा समर्पित होने का सकारात्मक प्रयास किया होता तो शायद उत्तर प्रदेश का मतदाता इन्हें भाव देता। पर इन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। उधर सपा अपनी छवि सुधारने में जुटी है। मुलायम सिंह यादव अच्छे और प्रतिष्ठित लोगों को अपने दल में लाकर यह सन्देश देना चाहते हैं कि सपा अपराधियों का दल नहीं है। उनके पिछले शासनकाल में अपराध बढ़ने के आरोप लगते रहे हैं। अपने मित्रों की मदद करने को किसी भी सीमा तक जाने वाले मुलायम सिंह यादव पर अपराधियों को खुला संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं। अब वे इस छवि से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। पिछले दिनों अपने जन्मोत्सव की एक दावत में मुलायम सिंह यादव इतने मस्त हो गये कि उन्होंने नाच गाने तक में भाग लिया। उनकी यह बर्थ-डे पार्टी सारी रात चली। लोहिया के अनुयायी और जमीन से जुड़े नेता मुलायम सिंह यादव का यह आधुनिकरण उनके सहयोगी अमरसिंह की देन माना जा रहा है। सारी कोशिश स्वयं को आधुनिक और खुले दिमाग का दिखाने के लिए की जा रही है। अपने को शुद्ध समाजवादी मानने वाले कुछ लोहियावादी मुलायम सिंह यादव की कड़ी आलोचना करते हैं। उनका आरोप है कि फिल्मी सितारों की तड़क-भड़क और नाच गाने से उत्तर प्रदेश के नौजवानों को रोजगार मिलने नहीं जा रहा है। प्रदेश की समस्याऐं इतनी व्यापक और गहरी हैं कि उन्हें नाच-गाकर हल नहीं किया जा सकता। उन समस्याओं को दूर करने के लिए दूरदृष्टि और दिमाग में विकास का नक्शा होना आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें नहीं लगता कि सपा अपने बूते पर उत्तर प्रदेश में कोई प्रभावशाली सफलता हासिल कर पायेगी। यह बात दूसरी है कि सपा के महासचिव अमरसिंह टी.वी. चैनलों पर यह दावा कर रहे हैं कि आगामी विधान सभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में उनके दल को पूर्ण बहुमत मिलेगा। 
ऐसे विरोधाभासी दावों के बीच उत्तर प्रदेश की राजनीति का दंगल चालू है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति से चिंतित लोगों को राजनीतिज्ञों की बयान बाजी देखकर भारी निराशा हो रही है। समाज के प्रति जागरूक इस वर्ग का मानना है कि प्रदेश का चुनाव सरकारी फिजूलखर्ची रोकने, आधारभूत ढांचे को सुव्यवस्थित करने और अर्थव्यवस्था सुधारने के सवालों पर होना चाहिए न कि राजनीतिक स्टेंटबाजी पर। इन लोगों को डर है कि भावनात्मक मुद्दों को भड़काकर सभी राजनीतिक दल अपना उल्लू सीधा करेंगे। ऐसे में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के सामने बड़ी दुविधा पैदा हो जायेगी। इसलिए इस चुनाव के भविष्य का अभी से कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता।

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