थाईलैंड के बुद्धिजीवी मानते हैं कि आज की दुनिया में राजतंत्र का कोई औचित्य नहीं बचा है। थाईलैंड को भी यूरोप के देशों की तरह राजा का पद मात्र अलंकरण के लिए ही रखना चाहिए। राजा को शासन में दखल नहीं देना चाहिए। पर यह बात वहां खुलकर नहीं कही जा सकती। जनसभाओं, लेखों और अखबारों में तो बिलकुल नहीं। थाईलैंड का कानून राज परिवार के बारे में कुछ भी नकारात्मक चर्चा करने की अनुमति नहीं देता। ऐसा करने वाले को फौरन कारावास भेज दिया जाता है। इसलिए यह राजनैतिक चर्चा दबी जुबान से निजी दायरों में की जाती है। पर बहुमत लोकतंत्र के पक्ष में है। अलबता जनता राजवंश को पूरी तरह खत्म नहीं करना चाहती। विशेष कर मौजूदा राजा को तो कतई नहीं। समस्या युवराज को लेकर है। 57 वर्षीय युवराज वाजीरालोगोकर्ण का जीवन ढर्रा, स्वभाव, चरित्र व आचरण जनता के बीच चिंता का विषय बना रहता है। राजा भूमिबोल गत सात माह से अस्पताल में है। 82 वर्ष की आयु में उनके बहुत ठीक होने या लंबे समय तक जिंदा रहने की आशा नहीं की जा सकती। थाईलैंड की जनता को यही चिंता सत्ता रही है कि राजा के बाद उनका उत्तराधिकारी देश को दिशा कैसे दे पायेगा। जबकि दूसरी तरफ राजकुमारी सिरिधौर्न की छवि एक ममतामयी समाज सेवी की है। जनता की हार्दिक इच्छा राजकुमारी सिरिधौर्न को सत्ता में देखने की है।
राजनैतिक विश्लेषकों को भय है कि अगर राजकुमार वाजीरालोगोकर्ण को सत्ता मिलती है तो कहीं थाईलैंड में नेपाल जैसी खूनी क्रांति न हो जाए और कहीं राजतंत्र समाप्त ही न हो जाए। स्वयं वाजीरालोगोकर्ण अपने जीवन को लेकर इतने सशंकित रहते हैं कि उनके अंगरक्षकों को आग्नेय अस्त्र रखकर उनके इर्द-गिर्द खड़े होने की छूट नहीं है। बुजुर्गों का कहना है कि राजा अंत समय में अपनी वसीयत में राजकुमारी सिरिधौर्न को सत्ता देंगे और राजकुमार वाजीरालोगोकर्ण को देश निकाला। राजकुमार वाजीरालोगोकर्ण के पास अकूत दौलत है। इसलिए उन्हें यूरोप जैसे देशों में रहकर ऐशोआराम की जिंदगी बिताना मुश्किल न होगा। राजा ऐसा करेंगे या नहीं यह तो वक्त ही बतायेगा किन्तु इतना निश्चित है कि राजा भूमिबोल की मृत्यु के बाद थाईलैंड के राजतंत्र का स्वरूप और छवि ऐसी नहीं रहने वाली है जैसे आज है।
अच्छा होता कि राजा भूमिबोल अपने जीवनकाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था को विकसित करते। इससे देश में राजनैतिक अस्थिरता का माहौल इस तरह बार-बार न बनता। उन्होंने अपनी मर्जी के श्रेष्ठ लोगों की सलाहकार परिषद् बनाकर और उनसे सलाह लेकर देश तो ठीक चलाया और आर्थिक तरक्की भी खूब की। पर वे देश में सही नेतृत्व विकसित नहीं कर पाये। दरअसल थाईलैंड के राजा का आर्थिक साम्राज्य बहुत विशाल है। थाई अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र में राज परिवार का मोटा पैसा लगा है। वे प्रशासन कम और तिजारत ज्यादा करते हैं। लोगों को उनकी दौलत का कोई आंकलन नहीं है और न ही उनके खर्चों के हिसाब जनता की जांच के लिए उपलब्ध होते हैं। जबकि यूरोप के देशों में राज परिवारों पर किये जा रहे खर्चे को बाकायदा जनता की जांच के लिए प्रचारित किया जाता है या वेबसाईट पर डाला जाता है।
अगर थाईलैंड के राजपरिवार को लंबे समय तक अपनी स्थिति बनाये रखनी है तो उसे भूटान के राजा से सबक लेकर स्वतः ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल कर देना चाहिए। थाईलैंड के जागरूक लोगों को डर है कि ऐसा न करने पर थाईलैंड के राजवंश की दशा नेपाल के राजवंश जैसी न हो जाए।
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