Rajasthan Patrika 11 Oct 2009 |
सऊदी अरेबिया में औद्योगिक सलाहकार का काम करने वाले राकेश सिंह ने 7 दिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के ढाबों और सड़कों पर बिताए। वे जानना चाहते थे कि गत मई महीने में उनके 16 वर्षीय जवान बेटे को कुचलकर भागने वाला ट्रक ड्राईवर कौन था? आखिर उन्हें कामयाबी मिली। जो काम उ0प्र0 पुलिस नहीं कर सकी, वो एक जागरूक और दुःखियारे पिता ने कर दिखाया। बावजूद इसके ट्रक ड्राईवर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जमानत मिल गयी। इस खोज के दौरान श्री सिंह को पता चला कि राजमार्गों पर भारी वाहन चलाने वाले ड्राईवर मात्र 100 रूपया रिश्वत देकर भी ड्राईविंग लाईसेंस प्राप्त कर लेते हैं। स्वीकृत सीमा से कई गुना ज्यादा लदान करते हैं और ट्रक का संतुलन नहीं रख पाते। आये दिन जानलेवा दुर्घटनाऐं करते रहते हैं। मौजूदा कानून इस मामले में बहुत लचर है। अब वे नीतिश कटारा की माँ की तरह इन हत्यारे ड्राईवरों के विरूद्ध एक ‘जेहाद’ छेड़ना चाहते हैं ताकि उनके इकलौते बेटे की कुर्बानी बेकार न जाये।
राकेश सिंह इस लड़ाई में अकेले नहीं हैं। देशभर में लाखों माँ-बाप हैं जो अपने आँखों के तारों को इन लापरवाह ड्राईवरों की बलि चढ़ते देख चुके हैं। संजीव नंदा के बी.एम.डब्ल्यू. केस का क्या हुआ, ये सारे देश ने देखा। एक तरफ तो हम राष्ट्रमंडल खेलों के लिए देश की राजधानी को अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप देना चाहते हैं, दूसरी तरफ ये वही राजधानी है जहाँ ब्ल्यू लाइन बसें राकेश सिंह की तरह ही हजारों पिताओं को पुत्रविहीन कर चकी है। एक तरफ तो हमारे सड़क परिवहन मंत्री बीस कि.मी. राजमार्ग रोज बनाने का लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं, दूसरी तरफ इन्हीं राजमार्गों पर हर रोज न जाने कितनी मौतें ऐसे लापरवाह चालकों के हाथों हो रही हैं। एक तरफ तो 240 कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाली दुनिया की सबसे मंहगी कारें भारत में बनने और बिकने लगी हैं और दूसरी ओर सड़कों का आलम ये है कि आवारा पशु से लेकर साईकिल सवार तक, बैलगाड़ी से लेकर भारी ट्रक तक, सब एक ही सड़क पर चलते हैं। नतीजतन बेगुनाह लोग अकारण सड़क हादसों में जान गंवा बैठते हैं। इस पूरे मामले में राज्य और केन्द्र की सरकार सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। राकेश सिंह के शब्दों में तो सरकार ही इन अपराधों की गुनाहगार है। क्योंकि वह न तो ऐसे कानून बनाती है जिनसे ये दुर्घटनाऐं रूक सकें और न ही मौजूदा कानून में बदलाव करती है जिससे लापरवाह चालकों के मन में कानून का डर पैदा हो। इस मामले में दिल्ली के आबकारी मंत्री अशोक वालिया ने एक बढि़या पहल की है। उन्होंने सार्वजनिक स्थलों पर शराब पीने वालों पर पचास हजार रूपये तक का जुर्माना और नकली शराब बनाने वाले को मृत्यु दण्ड दिये जाने के कानून को दिल्ली विधानसभा में प्रस्तुत किया है।
कुछ इसी तरह का प्रावधान वाहन चालकों के संदर्भ में भी किया जाना चाहिए। अयोग्य व्यक्ति को ड्राईविंग लाईसेंस दिलवाने या देने वाले सभी अधिकारियों को आजीवन कारावास का प्रावधान किया जाना चाहिए और लापरवाही से वाहन चलाने वाले उन ड्राईवरों को जो बेगुनाह लोगों की जान ले लेते हैं, मृत्यु दण्ड या इसके समकक्ष सजा की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि इन वाहन चालकों के मन में कानून का डर बैठ सके। यहाँ एक सवाल उठेगा कि ये फेसला कैसे किया जाये कि दुर्घटना के लिए जिम्मेदार कौन है? चालक या दुर्घटना का शिकार मारा गया व्यक्ति! ऐसा भी होता है जब दुर्घटना में मरने वाला अपनी ही लापरवाही से मारा जाता है। अभी पिछले हफ्ते दिल्ली-आगरा राजमार्ग पर दो बीस वर्षीय युवा अपनी नई मोटर साईकिल पर तेजी से गलत दिशा में जा रहे थे और सामने से आते हुए ट्रक से भिड़ गये और वहीं खत्म हो गये। प्रायः ऐसे हादसों में आसपास के गाँव वाले भीड़ लगा लेते हैं और कारण जाने बिना चालक की अच्छी तरह मरम्मत कर देते हैं। जबकि इस दुर्घटना के मृतकों के पिताओं ने माना कि उनके बेटे अपनी गलती से मारे गये हैं। कभी-कभी ट्रक चालक भी मानवीयता का नमूना प्रस्तुत करते हैं। मुरादाबाद के एक ट्रक चालक सरदार सोहन सिंह के ट्रक के सामने अचानक भागती हुयी एक दस बरस की ग्रामीण लड़की आ गयी। वे सीमा के भीतर ट्रक चला रहे थे। पर इस अप्रत्याशित स्थिति का सामना नहीं कर सके। लड़की कुचलकर मर गयी। नित्य ग्रंथसाहब का पाठ करने वाले सोहन सिंह जी का कलेजा मुँह को आ गया। क्लीनर के लाख चेतावनी देने के बावजूद वे नहीं माने और मौके से भागे नहीं। उस सुनसान सड़क पर पड़ी लाश को गोद में लेकर 2 कि.मी. दूर पैदल चलकर उस लड़की के घर पहुँचे। जाहिरन वहाँ कोहराम मच गया। गाँव वालों ने उनकी भलमनसाहत की परवाह न करते हुए उनकी धुनाई कर दी। फिर भी वे लड़की के घरवालों को जो धन उनके पास था, देकर ही वहाँ से हटे। यह एक असामान्य स्थिति है। पर ऐसे चालक भी होते हैं। अगर कानून इतना सख्त हो जायेगा तो कभी-कभी ऐसे बेगुनाह चालकों को भी इसका शिकार बनना पड़ेगा। इसलिए कानूनविद् इस मामले में एकमत नहीं हैं।
यह पेचीदा स्थिति है। कानून सख्त नहीं होगा तो सड़क हादसे नहीं रूकेंगे और सख्त होगा तो कभी-कभी बेगुनाह उसका खामियाजा भुगतेंगे। जरूरत इस बात की है कि सड़क दुर्घटनाओं के विषय में कानून बनाते समय इन तथ्यों का ध्यान रखा जाये। ऐसी गंुजाइश छोड़ी जाये कि जाँच के बाद अगर यह सिद्ध होता है कि दुर्घटना के लिए वाहन चालक जिम्मेदार नहीं है तो उसे किसी भी तरह की सजा या मृतक के परिवार को कोई भी मुआवजा देने के लिए बाध्य न किया जाये।
केवल कानून बनाने से ही समस्या का हल नहीं निकलेगा। गुजरात में नशाबंदी लागू है। पर महात्मा गाँधी के जन्मस्थान पोरबंदर में सबसे ज्यादा अवैध शराब बिकती है। भ्रष्टाचार के विरूद्ध तमाम कानून और ऐजेंसियाँ हैं पर आज देश की सर्वोच्च न्यायपालिका के आचरण पर ही उंगलियाँ उठ रही हैं। यही हश्र सड़क दुर्घटना से सम्बन्धित नये कानून का भी हो सकता है अगर उसे लागू करने वाले अधिकारी ईमानदार और सख्त नहीं हैं। मौजूदा कानून में ही चालक लाईसेंस देने के पहले क्या परीक्षाऐं ली जानी चाहिए, इसका विस्तृत विवरण है। पर बावजूद इसके देश के हर लाईसेंसिग कार्यालय में बिना परीक्षा के ड्राईविंग लाईसेंस दिलवाने वाले दलालों की कतारें खड़ी रहती हैं। यहाँ तक कि आपके नाम, फोटो, राशनकार्ड आदि को भी नहीं देखा जाता। गत् दिनांे उत्तर भारत के एक शहर में एक नागरिक ने मुम्बई आतंकी हमले के दोषी मौ0 अजमल कसाब के नाम से ड्राईविंग लाईसेंस बनवा लिया और बाद में उसे पत्रकार सम्मेलन में जारी किया। जब कोई कसाब बनकर लाईसेंस ले सकता है तो असली कसाबों को लाईसेंस लेने में क्या दिक्कत आयेगी? यह शर्मनाक स्थिति है।
प्रधानमंत्री डा¡. मनमोहनसिंह ने राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में कोई कोताही न बरतने की सख्त हिदायत दी है। उनका कहना है कि अगर कोई कमी रह जाती है तो इससे भारत की अन्तर्राष्ट्रीय छवि धूमिल पड़ेगी। पर उन्होंने यह नहीं बताया कि लचर कानूनों और सरकारी अधिकारियों के भ्रष्ट व गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के कारण भारत की छवि नित्य ही कैसे खराब होती जा रही है। राकेश सिंह अपने पुत्र की मौत से भारी दुखी हैं, जो स्वभाविक है। पर संताप के इन क्षणों को इन्होंने जनहित की लड़ाई के लिए ऊर्जा में बदलने का कार्य किया है। आवश्यकता इस बात की है कि सड़क परिवहन या कानून की जानकारी रखने वाले सभी लोग, चाहें वे देश के किसी भी हिस्से में क्यों न हों, इस विषय पर गम्भीर चिंतन करें कि राजमार्गों पर आये दिन होने वाली ऐसी दुर्घटनाओं को कैसे रोका जाये और उसके लिए कैसे कानून बनें?
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