Rajasthan Patrika 05-08-2007 |
वैसे तो सांसदों के आचरण से क्षुब्ध हो कर तत्कालीन दिवंगत लोकसभाध्यक्ष श्री जीएमसी बालयोगी ने लगभग पांच साल पहले उठाई थी और कुछ शख्त कार्यवाही पर सहमति भी बनी थी पर उसे लागू करने में विभिन्न पार्टी नेताओं की आनाकानी से उसमें वे सफल नहीं हो पाए थे। परंतु इस बार अगर श्री सोमनाथ चटर्जी के पहल पर गंभीरता से सभी पार्टी नेता अपना अपना सहयोग संासदों के आचरण के सुधार की पहल में करते हैं तो कोई कारण नहीं जो लोक सभा की कार्यवाहियों के समय को जाया जाने से बचाया न जा सके। अगर ऐसा लोकसभा में हो जाता है तो इससे सीख लेकर प्रदेश सरकार अपने-अपने विधानसभाओं में विधायकों को सांसदों के आचरण का अनुशरण जैसी सीख देने में सफल हो सकते हैं वरना जनता के गाढे खून-पसीने की कमाई को यूं ही जनसेवक बर्बाद करते रहेंगे और जनता यूं ही देखती रह जाएगी।
सांसदों के आचरणों के कारण 13वीं लोक सभा सत्र के दौरान हो-हल्ला में 22.4 प्रतिशत समय नष्ट हुआ था और 14वीं लोक सभा सत्र के दौरान अभी तक 26 फीसदी समय नष्ट हो चुका है, अब आप समझ सकते हैं कि मात्र एक मिनट लोक सभा कार्यवाही का खर्चा जब 26,035 रूपए आता है तो 13वीं व 14वीं लोक सभा सत्र के दौरान इतने समय की कीमत से अगर विकास कार्य होता या किसानों के कर्ज को माफ किया गया होता तो आए दिन कर्ज के कारण देश जिस प्रकार किसान आत्म हत्या कर रहे हैं उनमें से कुछ को अवश्य ही बचाया जा सकता है। एक तरफ तो कर्ज और भुखमरी के कारण लोग असमय मर रहे हैं और दूसरी ओर समय की कीमत को न समझना यह समझदारी कतई नहीं हो सकती।
कुछ वर्ष पहले मेरे मित्र श्री सूर्य प्रकाश ने सांसदों के व्यवहार पर एक शोध किया। अनेकों सांसदों से बातचीत के आधार पर उन्होंने अंग्रेजी में अपनी पुस्तक ‘व्हाॅट एल्स इंडियन पाॅलियामेंट-एन एग्ज़क्टिव डाग्नोसिस’ छापी। जिसमें खुद सांसदों ने यह स्वीकारा था कि वे किस तरह का गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार सदन में करते हैं।
मसलन, सांसदों ने ही बताया कि किस तरह बिना कोरम पूरे किए ही महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा की खानापूर्ति हो जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि अक्सर सांसदों की रूचि संसद की कार्यवाही में नहीं होती और वे अपनी उपस्थित रजिस्टर पर दस्तखत करके सत्र के दौरान सदन से गायब रहते हैं, दस्तखत इसलिए करते हैं कि उन्हें भत्ते के रूप में मिलने वाली धनराशि 1000 मिल जाए। सांसदों ने यह भी बताया कि प्रश्न पूछने के लिए किस तरह के गैर-जिम्मेदाराना कार्य किए जाते हैं, जिनसे अपने क्षेत्र या देश का हित नहीं बल्कि निहित स्वार्थों का हित पूरा होता हैं। पिछले एक दशक में उजागर हुए अनेक किस्म के घोटालों से बहुत से सांसदों के चरित्र और कार्य शैली पर प्रश्नचिन्ह लग गए हैं, जिनका यहां खुलासा करने की आवश्यकता नहीं हंै। इस सब के बावजूद यह जरूरी है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि चाहे वे सांसद हो या विधायक सदन के प्रति जिम्मेवारी से व्यवहार करें और इसके लिए कानून और नियमों में आवश्यक सुधार किए जाएं। लोक सभा अध्यक्ष को यह पहल करनी ही चाहिए और हर दल के अध्यक्ष को इस प्रयास में सकारात्मक सहयोग देना चाहिए। इससे सदन की गरिमा बढ़ेगी और विधायिका के प्रति जनता में विश्वास बढेगा।
जब सरकारी अधिकारियों, शिक्षकों और निजी क्षेत्र में लगे लोगों से अनुशासित आचरण की अपेक्षा की जाती हैं और जरा सी लापरवाही पर दण्डात्मक कार्यवाही की जाती है तो फिर सांसदों और विधायकों से ऐसे आचरण की अपेक्षा क्यों न की जाए। कहावत भी है कि यथा राजा तथा प्रजा। संासदों और विधायकों का आचरण अनुकरणीय होना चाहिए। निजी जीवन में न सही पर कम से कम सदन में तो उसकी मर्यादा के अनुरूप आचरण किया ही जाना चाहिए। जो भी सांसद या विधायक सदन की कार्यवाही के दौरान उपस्थित रजिस्टर पर दस्तखत करने के बाद भी उपस्थित न रहे उनका दैनिक भत्ता तो काटा ही जाए लगातार तीन बार ऐसा करने पर संसदीय समितियों से हटा दिया जाए और इसके बावजूद भी उनका व्यवहार न बदले तो दिल्ली में दी गई उन्हें आवास या अन्य सुविधाएं वापस लेने की कार्यवाही शुरू करनी चाहिए। कुल मिला कर प्रयास यही होना चाहिए कि सांसद और विधायक सदन के सत्र के दौरान जिम्मेदारी से व्यवहार करें जिससे जनता की आस्था उनमें बढे इस प्रयाय के लिए श्री सोमनाथ चटर्जी का मुक्त हृदय से समर्थन किया जाना चाहिए। पूरे देश के जागरूक नागरिकों विशेष कर युवाओं को इस प्रयास के समर्थन में अध्यक्ष को पत्र लिखने चाहिए जिससे उनका मनोबल बढ़े।
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