Friday, November 7, 2003

राजस्थान में चुनाव महारानी और माली के बेटे के बीच मुकाबला

राजस्थान में चुनाव का बिगुल बज चुका है। दोनो सेनाएं आमने-सामने खड़े हैं क्योंकि मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंका) के बीच है। सभी चुनावी सर्वेक्षण इस बात का आभास दे रहे हैं कि इंका के लिए यह चुनाव बहुत आसान हो चुका है। आकलन है कि इंका को 125 से कम सीट नहीं मिलेगी और भाजपा 60 से ज्यादा सीट किसी भी सूरत में जीत पाने की हालत में नहीं होगी। इसके पीछे कोई मौसमी बुखार या चुनावी हवा काम नहीं कर रही है। अब तक यही माना जाता था कि चुनाव के पहले किसी भी मुद्दे पर हवा बना कर मतदाताओं को बहकाया जा सकता है। कई चुनाव ऐसी हवा बना कर ही जीते गए। पर ज्यों-ज्यों लोगों में जागरूकता बढ़ रही है और उन तक सूचना पहुचाने का तंत्र व्यापक होता जा रहा है। त्यों-त्यों लोगों की राजनैतिक दलों से अपेक्षाएं बढ़ती जा रही है। अब वे नेताओं की कोरी बयानबाजी या भड़काऊं भाषण शैली से प्रभावित नहीं होते है। बल्कि ठोस काम देखना चाहते हैं। राजस्थान में इंका की मजबूत स्थिति के लिए यही बात जिम्मेेदार है। मुख्यमंत्री श्री अशोेक गहलोत ने अपने आचरण से जनता का दिल जीत लिया है। 

जहां भाजपा की नेता श्रीमती वसुंधरा राजे का अतीत, वर्तमान और आचरण उनके लिए बोझ बन गया है वहीं श्री अशोक गहलोत का अतीत, वर्तमान और व्यवहार उनकी ताकत बन कर सामने आया है। श्रीमती राजे महारानी थीं और आज भी राजनीति को राजदरबार की तरह चलाती हैं इसलिए उनके अपने दल के कार्यकर्ता ही उनसे कट चुके हैं तो फिर जनता के पास आने का तो सवाल ही नहीं उठता। दूसरी तरफ श्री अशोक गहलोत एक माली के बेटे थे और मुख्यमंत्री बन कर भी उन्होंने खुद को ऐशो-आराम में नहीं डुबोया बल्कि रात के दो-दो बजे तक काम किया और पूरे कार्यकाल में एक दिन चैन से नहीं बैठे, लगातार भागते रहे। अपने प्रदेश के हर इलाके का दौरा करते रहे। जिससे जनता से उनका संपर्क और संवाद मजबूत हुआ। उनकी यह मेहनत आज चुनाव में काम आ रही है।  अपने विधानसभा क्षेत्र के ही नहीं बल्कि पूरे राजस्थान के हर क्षेत्र के गांव के लोगों से सीधा जुड़ाव और व्यक्तिगत संपर्क आज श्री अशोक गहलोत की बहुत बड़ी ताकत है। वहीं दूसरी तरफ श्रीमती  वसुंधरा राजे यंू तो पिछले 14 वर्षों से झालवाड़ा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहीं हंै। पर इतने वर्षों में भी अपने आम कार्यकर्ता से नहीं जुड़ पाईं। यहां एक उदाहारण पर्याप्त होगा। श्रीमती राजे ने आकाल के दौरान शोर मचाया कि उनके क्षेत्र में दर्जनों लोग भूख से मर गए। जब सारा मीडिया भाग कर वहां पहुंचा तो पता चला कि उनके आरोपों में कोई तथ्य नहीं था। कुछ महीने पहले तक तो श्रीमती वसुंधरा राजे को लोग राजस्थान में जानते तक नहीं थे। पिछले तीन-चार महीनों में चुनाव के कारण मीडिया में बार-बार उनका नाम आने से कुछ शहरी लोग उन्हें जानने लगे हैं।

आमतौर पर विपक्ष का काम होता है सरकार की गलतियों की तरफ जनता का ध्यान आकर्षित करना। अकाल के दौरान भाजपा ऐसा करने से चूक गई। श्री अशोक गहलोत ने भाजपाईयों से कहा कि वे केन्द्र से राज्य को मदद दिलाने में राजस्थान सरकार की मदद करें और फिर क्षेत्र में जाकर देखें कि उस मदद का सही इस्तेमाल हो रहा है कि नहीं। पर इतनी तकलीफ उठाने को भाजपा नेतृत्व तैयार नहीं था। सो आकाल के दौर में ठंडा पड़ा रहा और अब अपनी चिर-परिचित शैली में ब्लैक पेपर आदि छापकर अकाल के मुद्दे को उठाने की नाकाम कोशिश कर रहा है। राजस्थान के लोगों का कहना है कि लगातार चार वर्ष के अकाल के बावजूद मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने जिस कुशलता से राहत कार्यों का संचालन किया उससे उनके आलोचक भी उनके समर्थक बन गए है। श्री अशोक गहलोत ने हर जिले की निगरानी के लिए अपने मंत्रियों और सचिवों को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी। इस दौरान उन्होंने राजस्थान की जीर्ण क्षीर्ण पड़ी सड़कों को सुधारने का व्यापक अभियान चलाया और राजस्थान के धर्म क्षेत्रों को सड़कों से जोड़ दिया। इससे लोगों को रोजगार मिला और राज्य का       आधारभूत ढांचा मजबूत हुआ। शुरु के दौर में भाजपा के नेता श्री ललित चतुर्वेदी विधानसभा में गर्जन करते थे कि राजस्थान की सड़कों पर चल कर उनके हृदय में फफोले पड़ जाते हैं। उनका कहना था कि इन सड़कों पर इतने ज्यादा गढ्ढे हैं कि उन पर सीधा चला ही नहीं जा सकता। पर आज तस्वीर बिलकुल बदल चुकी है। राजस्थान की सड़कें अच्छी तरह सुधार दी गई हैं। जिसने पांच साल पहले इन सड़कों पर यात्रा की होगी वो अब इन सड़कों को देखकर खुद ही अंदाजा लगा सकता है कि कितना काम हुआ। इसी तरह अकाल के दौरान अच्छे अनाज का भी मुक्त हृदय से वितरण हुआ। बहुत सारे जनजातीय क्षेत्रों में जहां लोगों ने पहले अच्छा अनाज नहीं देखा था उन्हें अकाल राहत में खूब अच्छा अनाज बंटा। 

जहां दूसरे राज्यों में बार-बार बिजली की आपूर्ति में कटौती होती रही वहीं राजस्थान में बिजली की आपूर्ति लगातार सुधरती रही। राजस्थान सरकार के विद्युत विभाग के स्रोतों के अनुसार पिछले 50 वर्षों में बिजली का उत्पादन हुआ 3300 मेगावाट जबकि इन पांच वर्षों में उत्पादन हुआ 1800 मेगावाट। बिजली पैदा करने के लिए राजस्थान में जो भी परियोजनाएं लगी उन्होंने समय से पहले बिजली उत्पादन शुरू कर दिया। नतीजतन देहातों में भी सारी रात बिजली देने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई। तीन वर्ष वर्ष पहले जब राजस्थान सरकार ने बिजली की दरे बढ़ाई थीं तो वहां भारी विरोध और हंगामा हुआ था। पर पिछले तीन सालों में बिजली की आपूर्ति इतनी संतोषजनक रही कि लोग अब बढे दाम को भूल गए।

आमतौर पर बड़े लोग गंभीर बीमारियों का इलाज खूब पैसे खर्च करके प्राइवेट अस्पतालों या विदेशों तक में करवा लेते हैं पर गरीब कहां जाए। राजस्थान के गरीब लोगों के इस दर्द को पहचान कर श्री अशोक गहलोत ने एक मुख्यमंत्री जीवन रक्षक कोष़ की स्थापना की। इस कोष से उन लोगों के महंगे इलाज की व्यवस्था की जाती हैं जो गरीबी की सीमा रेखा के नीचे रहते हैं और इस तरह का इलाज करवाने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे जितने भी लोगों का इलाज पिछले वर्षों में राजस्थान सरकार ने करवाया वे सब लोग श्री अशोक गहलोत के मुरीद हो गए हैं और अपने गांवों में उनका यशगान करते हैं। 

अपने शासन के शुरूआती दौर में ही श्री अशोक गहलोत ने नौकरशाही की लगाम कसनी शुरू कर दी थी। सरकारी धन का अपव्यय रोकने के लिए उन्होंने सरकारी गाडि़यों के निजी इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। इससे नौकरशाही में काफी हड़कंप मचा था। पर जनता में इसका अच्छा संदेश गया। लोगों को लगा कि उनका मुख्यमंत्री जनता के पैसे की बर्बादी रोकने के मामले में गंभीर है। पारंपरिक रूप से भी राजस्थान के लोग सीधे-सच्चे तो होते ही है। पर फिर भी प्रशासन में भ्रष्टाचार न फैल पाए और सभी अधिकारी खुद को जनता के प्रति जवाबदेह माने इसलिए उन्होंने अफसरों पर काफी कड़ाई की है। इसका असर ये हुआ कि राजस्थान की नौकरशाही का रवैया जनता के प्रति सेवा भावी हो गया। इससे आम जनता विशेषकर शहरी लोगों को बहुत सुखद अनुभव हुए।

राजस्थान में यह अब मिथक टूट चुका है कि जनता सत्तारूढ दल से नाराज होकर विपक्षी दल को सत्ता सौप देगी। राजस्थान के लोग वर्तमान सरकार यानी श्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में इंका की सरकार ही बनाए रखना चाहते हैं। असलियत तो चुनावों के बाद ही सामने आएगी। पर ये अवश्य साफ है कि श्री अशोक गहलोत ने नारेबाजी से नहीं बल्कि अपने ठोस काम से जनता का दिल जीत लिया है। उनके नेतृत्व में राजस्थान में इंका को काफी सफलता मिलने की उम्मीद है।

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