Friday, June 2, 2000

सोरों में भाजपा की हार के मायने

पश्चिम उत्तर प्रदेष की सेारों विधानसभा सीट पर हाल में संपन्न हुए उप चुनाव में भाजपा के प्रत्याषी की जमानत जब्त हो गई। इस चुनाव में जीतने वाला प्रत्याषी भाजपा के निश्कासित नेता कल्याण सिंह के दल का है। जाहिरन कल्याण सिंह के हौसले बढ़े हैं और उत्तर प्रदेष के भाजपा के वर्तमान मुख्यमंत्री राम प्रका गुप्त के खेमे में हताषा फैली है। यूं एक उप चुनाव का भाजपा की प्रादेषिक सरकार के भविश्य पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ेगा। पर सभी जानते हैं कि किसी भी उप चुनाव नतीजे सत्तारूढ़ दल की लोकप्रियता या अलोकप्रियता के परिचायक होते हैं। इसलिए सोरों में भाजपा की हार उसे काफी महंगी पड़ेगी। इसलिए इसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

इसे उत्तर प्रदेष का दुर्भाग्य कहें या भाजपा का, आज उत्तर प्रदेष में भाजपा की सरकार को चार ऐसे लोग चला रहे हैं जिनका कोई उल्लेखनीय जनाधार नहीं। राजनाथ सिंह, लालजी टंडन, रामप्रकाष गुप्ता और कलराज मिश्र उत्तर प्रदेष की भाजपा के सरकार के चार स्वघोशित प्रमुख स्तंभ हैं। भाजपाईयों का कहना है कि इनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं, संकुचित मानसिकता, स्वार्थपरक क्रिया-कलापों और जातिगत गुटबाजी ने उत्तर प्रदेष की भाजपा को कई खेमों में बांट दिया है। इस सबके चलते सबसे ज्यादा दुर्गति तो प्रदेष के हजारों जमीन से जुड़े भाजपा कार्यकर्ताओं की हो रही है। एक तरफ तो भाजपा मंत्रिमंडल में पूर्ववर्ती सरकारों की ही तरह व्याप्त भारी भ्रश्टाचार के कारण उन्हें प्रदेष की जनता के सामने नीचा देखना पड़ रहा है और दूसरी तरफ भाजपा सरकार की पूरी निश्क्रियता, प्राषासनिक अकुषलता के चलते वे भाजपा के वोट बैंक को थामे रखने में अपने को असहाय महसूस कर रहे हैं। उत्तर प्रदेष के षहरों और गांवों में भाजपा के पारंपरिक मतदाताओं के मन में भारी आक्रोष है, जो बेबुनियाद नहीं है। आज प्रदेष में मूलभूत सुविधाओं की बेहद कमी है और अव्यवस्था फैल रही है। प्रदेष की ज्यादातर सड़के उधड़ी पड़ी हैं। पर उनकी देखरेख करने वाले विभाग चादर तान कर सो रहे हैं। बिजली व पानी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है और पूर्ववर्ती सरकारों की तरह भाजपा सरकार भी इन समस्याओं का हल ढूंढने में नाकाम रही है। सरकार साधनों की कमी का बहाना बना कर अपना पल्ला झाड़ लेती है। यह सही है कि उत्तर प्रदेष की सरकार दिवालिया हो चुकी है। उसके पास जोड़-तोड़ करके भी अपनी नौकरषाही को टिकाए रखने लायक भी पैसे नहीं हैं। परिणाम स्वरूप तनख्वाह और जमा भविश्य राषि तक बांटने में उसे भारी दिक्कत आ रही है। जब तनख्वाह ही बांटने को पैसे नहीं है तो विकास कार्य क्या खाक होंगे ? नतीजतन प्रदेष के लाखों सरकारी मुलाजिम और अफसर महीने से अपने दफ्तरों में निट्ठले बैठें हैं और इनको खाली बैठाकर खिलाने का भार प्रदेष की जनता पर पढ़ रहा है। ऐसा नहीं है कि धन के अभाव में प्रषासन तंत्र कुछ कर ही नहीं सकता। इच्छाषक्ति हो तो थोड़ी सी अक्ल लगा कर बिना पैसे खर्च किए जनता को राहत पहुंचाने के बहुत से काम किए जा सकते है। मसलन, प्रदेष भर के तालाबों को श्रमदान से खुदवाने का काम ये लोग अच्छी तरह से कर सकते हैं। जिससे भविश्य में प्रदेष में पानी का संकट दूर हो सकता है। षहरों में अवैध कब्जे तोड़कर यातायात को सुचारू करना, पुलिस को प्रभावी बनाकर अपराधों पर काबू पाना व जन सहयोग से बढ़ते कूड़े के अंबारों को खत्म करना। पर उसके लिए नौकरषाही और नेताषाही दोनों को अपने वातानुकूलित आरामगाहों से निकल कर धूप में सिर तपाने होंगे।

प्रदेष की ज्यादातर नगरपालिकाओं पर भाजपा हावी है। इन नगरपालिकाओं की भी भारी दुर्गति हो रही है। प्रदेष की ज्यादातर नगरपालिकाओं के अध्यक्षों के उल्टे-सीधे कामों से नगरपालिकाओं का दिवाला निकल गया है। सार्वजनिक जमीनों पर कब्जे कराना, उन्हें रिष्वत लेकर सस्ते दामों पर बेचना या आवंटित करना, खुलेआम निर्लजता से हो रहा है। प्रदेष की आम जनता इस बात से बहुत बौखलाई हुई है कि कुषल, पारदर्षी व ईमानदार प्रषासन देने का दावा करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के दल का इतनी तेजी से पतन क्यों हो गया ? आज उत्तर प्रदेष की जनता ये कहने पर मजबूर है कि भाजपा और कांग्रेस में कोई अंतर नहीं बचा।

प्रदेष की नौकरषाही एक तरफ तो मायावती के जमाने की ही तरह लगातार हो रहे तबादलों से त्रस्त हैं और कोई भी कडे़ निर्णय ले पाने में स्वयं को असमर्थ पा रही है। दूसरी तरफ प्रदेष की अनुभवहीन सरकार की कमजोरी का फायदा उठाकर प्रदेष की नौकरषाही का एक बड़ा हिस्सा उद्दंड, अहंकारी और लापरवाह होता जा रहा है। अगर प्रदेष की जनता को थोड़ी-बहुत राहत मिल रही है तो उसका श्रेय संघ के कार्यकर्ताओं को जाता है। संघ के समर्पित कार्यकर्ता आज भी अपना काम उसी तत्परता से कर रहे हैं जैसाकि वे हमेषा करते आए हैं। प्रषासनिक निकम्मेपन से जूझने में जनता की मदद करने संघ के कार्यकर्ता सदैव तत्पर रहते है। पर भाजपा की नीतियों के कारण इनमें भी काफी हताषा आती जा रही है। इसका प्रमुख कारण है भाजपा नेतष्त्व द्वारा हर जिलों में दलालों और भू-माफियाओं को वरीयता देना। जमीन व संपत्तियों पर कब्जे करने का जो काम ये माफिया पूर्ववर्ती सरकारों के दौर में कांग्रेसी नेता बन कर करते आए थे वहीं काम आज ये भाजपाई नेता बन कर कर रहे हैं। फिर भी इन षहरों व कस्बों में जब भाजपा के प्रादेषिक ही नहीं राश्ट्रीय नेता भी आते हैं तो वे इन माफियाओं और दलालों का आतिथ्य स्वीकारने में हिचकते नहीं। सत्ता के ये दलाल इन बड़े नेताओं को इस तरह अपने सुरक्षा घेरे में ले लेते हैं कि वर्शों से भाजपा के लिए समर्पित कार्यकर्ता भी मिलने वालों की कतारों में खड़े रह जाते हंै। ऐसी बातें छिपती नहीं हैं। जनता में उनकी खूब टीका-टिप्पणी होती है। पर लगता है कि भाजपा नेतष्त्व को अब अपनी स्वच्छ छवि की कोई परवाह ही न रही और उसने मान ही लिया है कि उसकी कमीज दूसरों की कमीज से ज्यादा चमकदार नहीं है, इसलिए क्यों परवाह की जाए ?

ऐसा नहीं है कि भाजपा उत्तर प्रदेष का महत्व नहीं समझती। उत्तर प्रदेष की राजनीति का केंद्र की सरकार के स्थायित्व से सीधा संबंध है। अगर उत्तर प्रदेष गड़बड़ाया तो केंद्र की सरकार भी स्थिर नहीं रह पाएगी। पर यह जानते हुए भी भाजपा का केंद्रिय नेतष्त्व उत्तर प्रदेष की उपेक्षा करता जा रहा है। आज प्रदेष में अनेक उद्योग-धंधे और कारोंबार बंद हो चुके हैं, जिससे बेरोजगारी बढ़ी है और नौजवानों में हताषा है। आर्थिक विकास होना तो दूर की बात रहा। प्रदेष में आधारभूत संरचनाओं के अभाव व प्रषासनिक निकम्मेपन के कारण प्रदेष से बाहर के लोग औद्योगिक विनियोग में रूचि नहीं ले रहे हैं। जबकि उत्तर प्रदेष के पास प्राकष्तिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है। एक तरफ भाजपा अपनी नाकामियों के बावजूद आत्मसम्मोहित होकर सो रही है तो दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह उसकी कमजोरियों का फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इनके दलों के नेता, सांसद, विधायक और कार्यकर्ता गुपचुप अपना जनाधार बढ़ाने में लगे हुए हैं। राजब्बर जैसे फिल्मी सांसद भी अपने क्षेत्र में डेरा डाले पड़े हैं और जनता के सवालों पर जमीनी संघर्श चलाने का उपक्रम कर रहे हैं। जाहिर है कि आगामी विधानसभाओं के निकट आने तक इनके तेवर आक्रामक हो जाएंगे और भाजपा रक्षात्मक भी नहीं रह पाएगी। पर षायद भाजपा के राश्ट्रीय नेतष्त्व ने वही रवैया अपना लिया है जो दूसरे पुराने दलों के बड़े नेताओं के अपना रखा है। वह है कि चुनाव जीतने तक जनता को खूब सपने दिखाओं फिर जनता को भूल जाओ और मौज मारों क्योंकि जनता अगले चुनाव में तो तुम्हें वोट देगी नहीं। अगले चुनाव में जब हारो तो दुख मत मनाओ क्योंकि जो आज जीते हैं वह कल हारेंगे। ये मौका मिला है अर्जित धन को ठिकाने लगाने का और मौज लेने का, सो खूब मौज लो तब तक जब तक कि अगला चुनाव सिर पर न आ जाए। यह दुखद स्थिति है। एक तरफ जनता को भेड़ बकरियों की तरह हांका जाए। दूसरी तरफ उसके संसाधन उससे छीन लिए जाएं। उसके संसाधनों को कौडि़यों के मोल बहुराश्ट्रीय कंपनियों को सौप दिए जाएं। जनता को प्रगतिषील और विष्व व्यापी आर्थिक दष्श्टिकोण अपनाने की प्रेरणा दी जाए। यह सब तब हो जबकि उसके सामने रोटी, कपड़ा, मकान, पानी, बिजली, षिक्षा, रोजगार व स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध न हों।

अब तो जनता के बुनियादी सवालों की बात करना भी दकियानूसी माना जाता है। पर आष्चर्य यह देखकर होता है कि देष, धर्म, स्वदेषी और संस्कष्ति का बात करने वाला दल भी क्या इतना खोखला है कि जब उसे जनता की सेवा करने का मौका मिला तो रातो-रात उसका नकाब उतर गया। पर ऐसा है नहीं। भाजपा और संघ को खड़ा करने में जिन लोगों ने अपनी जवानी और अपना खून-पसीना होम कर दिया उन्हें चुप नहीं बैठना चाहिए। आज उन्हें यह कह कर बरगला दिया जाता है कि साझी सरकार कड़े निर्णय लेने में असमर्थ है। पर क्या साझी सरकार में बैठे भाजपा के मंत्री भी लोकतांत्रिक और जनतांत्रिक जैसी राजनीति करने पर मजबूर हैं ? तमाम सीमाओं के बावजूद क्या उत्तर प्रदेष सरकार में भाजपा के मंत्री अपने स्वच्छ और पारदर्षी आचारण से जनता को राहत नहीं दे सकते ? क्या उनके ऐसे आचरण से सरकार का स्थायित्व खतरे में पड़ जाएगा ? अगर उत्तर प्रदेष के भाजपा के मंत्री अपने उन्हीं जूझारू दिनों को याद करें जब वे प्रदेष की जनता के बुनियादी सवालों को लेकर सड़कों पर संघर्श किया करते थे तो उन्हें सब समझ में आ जाएगा कि कमी कहां है और उसे कैसे पूरा करना है। अगर वे ऐसा कर पाते हैं तो वे अगले चुनाव में ये कह पाने की स्थिति में होंगे कि साझी सरकार की तमाम सीमाओं के बावजूद हम यह सब कर सके। अब अगर आप हमें पूर्ण बहुमत दें तो हम अपने एजंेडा के बाकी सवालों पर भी आपको ठोस नतीजे दे पाएंगे। बषर्ते वे ऐसा करना चाहें। लगता तो यह है कि भाजपा के राजनेताओं में अब न तो दल के प्रति समर्पण रहा और ना ही विचारधारा के प्रति। जब सारा खेल ही कुर्सी का और स्वार्थ सिद्धि का हो तो जनता की परवाह कौन करे ? इसलिए सोरों में भाजपा की करारी षिकस्त चाहे जो भी संदेष दे, भाजपा नेतष्त्व की खुमारी टूटने वाली नहीं है।

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