Monday, October 1, 2018

पंजाब दी कुड़ी ने महाराष्ट्र पुलिस में कित्ता कमाल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ नारे से बहुत पहले पंजाब की लड़कियों ने भारतीय पुलिस सेवा में झंडे गाड़ दिये थे। अमृतसर की किरण बेदी भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी थीं, जो आजकल पुडुचेरी की उप राज्यपाल हैं। पर एक नाम ऐसा है, जिसे उत्तर भारत में कम लोग जानते हैं, लेकिन पश्चिमी भारत में उसका काफी जलवा रहा है। मुबंई आतंकी हमले के अपराधी अजमल कसाब और याकूब मेनन को पुणे की यरवदा जेल और नागपुर जेल में फांसी के फंदे पर चढ़ाने वाली महाराष्ट्र काडर की पहली आईपीएस अधिकारी मीरां चड्डा बोरवणकर भी पंजाब में जन्मीं और पली-बढीं। मूलतः जलन्धर की रहने वाली मीरां के पिता भी पंजाब राज्य पुलिस में थे और डीआईजी के पद से रिटायर हुए। जबकि मीरां भारत के ‘पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो’ के महानिदेशक पद से हाल ही में सेवा निवृत्त हुई हैं।

यूं तो अनेक अधिकारी सेवा निवृत्त होते हैं, पर इस समय मीरां पर लेख लिखने की वजह उनकी हाल में प्रकाशित हुई पुस्तक ‘जिंदगी के कुछ पन्ने’ है, जो आजकल विद्यालयों की छात्राओं को आगे बढ़ने की उपयोगी जानकारियां देने के कारण काफी लोकप्रिय हो रही हैं। मेरी 40 साल पुरानी मित्र मीरां जब डीजीपी बनकर दिल्ली आई, तो मैंने उसे कहना शुरू किया कि वो सेवा निवृत्ति के बाद की तैयारी शुरू कर दे, वरना समय काटना भारी पड़ेगा। पर मीरां अपने भविष्य को लेकर आश्वस्त थी और एक नई जिंदगी की शुरूआत के लिए उत्सुक थी। उसने रिटायर होते ही अपने जीवन के रोचक प्रसंगों को लेकर छात्राओं को प्रेरणा देने वाली ये पुस्तक अंग्रेजी और हिंदी में लिख डाली। जिसके कारण अब उसे देशभर के महिला विद्यालयों और कॉलेजों से व्याख्यान देने के लिए निमंत्रण आ रहे हैं।
मीरां की इस पुस्तक की विशेषता ये है कि यह बहुत ही सरल बातचीत की भाषा में लिखी गई है और इसमें बहुत छोटे-छोटे अध्याय हैं। हर अध्याय के अंत में मीरां ने उस अनुभव से क्या सबक मिलता है, यह बतानें की सफल कोशिश की है। साथ ही छात्राओं को आगे बढ़ने के कुछ सुझाव भी हर अध्याय में दिये हैं। इस पुस्तक में एक अध्याय में मीरां ने हम चार साथियों का भी जिक्र किया है, जब हम तीन दशक के अंतराल के बाद एक साथ कुछ समय बिताने के लिए मेरे निवास वृंदावन आऐ और हमने जीवन के अनुभवों को वृंदावन के सुरम्य वातावरण में साझा किया।
पुस्तक के विषय में और अधिक न कहकर, मैं मीरां के व्यक्तित्व के कुछ रोचक प्रसंग बताना चाहूंगा। जब हम लोग साथ में दिल्ली में पढते थे, तो मीरां उस समूह की सबसे सुंदर लड़की थी। हमारे समूह के कई लड़के उसकी नज़ाकत देखकर, अगर छात्रों की भाषा में कहूं तो, उस पर ‘लाइन मारने’ की कोशिश करते थे। पर मीरां जितनी दिखने में कोमल है, उतनी ही अंदर से कड़क भी। उसने किसी को आगे नहीं बढ़ने दिया और आखिर में समूह के एक गंभीर मराठी छात्र अभय बोरवणकर को अपना जीवन साथी चुना, जो आईएएस में सफल होकर महाराष्ट्र में ही उसके साथ तैनात था। उसकी सख्ती का प्रमाण ये है कि मीरां पिछले डेढ़ सौ साल के इतिहास में पहली महिला पुलिस अधिकारी थी, जिसे मुबंई का संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) नियुक्त किया गया। अंडरवल्र्ड और अपराध की नगरी मुबंई में एक महिला का इतने संवेदनशील पद पर तैनात होना मीरां के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। पर उसकी सख्ती, ईमानदारी और कड़े अनुशासन ने उसे पुलिस के खौफ का पर्याय बना दिया था। यहां तक कि बॉलीवुड में एक सफल हिंदी फिल्म ‘मर्दानी’ मीरां के जीवन पर बनीं और लोकप्रिय हुई। इसमें मीरां का किरदार रानी मुखर्जी ने निभाया था। जिन दिनों ये फिल्म बन रही थी, तब मीरां पुणे की पुलिस आयुक्त थीं। तब रानी मुखर्जी ने मीरां के साथ कुछ दिन रहकर उसके तौर तरीकों का अध्ययन किया था।
ऐसा ही एक प्रसंग और है। जब मीरां महाराष्ट्र की जेलों की सर्वोच्च अधिकारी थी, तो सिने अभिनेता संजय दत्त कई वर्षों तक मीरां के अधीन कैद में रहा। पर उसके ग्लैमर से आकर्षित होकर मीरां ने उसे कभी कोई विशेष सुविधा प्रदान नहीं की और न ही उसके प्रति कोई उत्सुकता दिखाई। लगभग 3 दशक पहले एक बार मुबंई में मेरी रिश्ते की बहन, उसके आईएएस पति और मैं ‘रोज़ा’ फिल्म देखना चाहते थे। जो मुबंई के भिंडी बाजार स्थित ‘मैट्रो सिनेमा’ में लगी थी। मीरां उस इलाके की उप पुलिस आयुक्त थी। मैंने दीदी के कहने पर उसे फोन किया कि वो हमारे लिए टिकट खिड़की पर तीन टिकट लेकर किसी को खड़ा कर दे। तो हमें लाइन में नहीं लगना पड़ेगा। रात के दस बजे का शो था। जब हम तीनों वहां पहुंचे, तो देखा कि सलवार कुर्ता पहने एक साधारण महिला की तरह टिकट खिड़की के पास हमारी तीन टिकट लिए मीरां खड़ी थी। मैंने चैंककर कहा कि, ‘अरे! तुम क्यों आईं, किसी सिपाही को भेज देतीं ?’ मीरां बोली, ‘‘मैं अपने निजी कामों के लिए सिपाहियों को इस्तेमाल नहीं करती।’’ उसकी यह निष्ठा प्रभावशाली थी। जीवन में फिर दोबारा मैंने उसे कभी कोई ऐसा काम नहीं कहा, जो उसके सिद्धांतों के विपरीत था। ऐसी शख्सियत, दबंग महिला व हमारी मित्र का जीवन निश्चय ही छात्राओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाला है।

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