बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार पिछले हफ्ते जब दिल्ली में रेल मंत्री से मिलने आये तो ममता बनर्जी ने चार मंजिल नीचे आकर हा¡ल में उनकी आगवानी की। किसी केन्द्रीय मंत्री का राज्य के मुख्यमंत्री का इस तरह स्वागत करना सामान्य बात नहीं है। चुनाव के दौरान भी इंका के युवा नेता राहुल गाँधी ने नितीश कुमार के कामों की तारीफ करके राजनैतिक परिपक्वता का परिचय दिया। विरोधी दल के नेता का अच्छा काम सराहे जाने की परम्परा अभी भारतीय लोकतंत्र में स्थापित नहीं हो पायी है। अन्तर्राष्ट्रीय जगत में अपनी सूझबूझ से माइक्रोसाफ्ट को दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनी बनाने वाले बिल गेट्स भी नितीश कुमार के मुरीद हैं और उनसे कई बार मुलाकात कर चुके हैं। यह सम्मान है नितीश के काम करने के तरीके का। सादगी, सच्चाई, ईमानदारी, भलमनसाहत और आम आदमी के दर्द को समझते हुए सरकार चलाना, नितीश के कुछ ऐसे गुण हैं जिन्होंने उन्हें बहुत जल्दी बिहार का नक्शा बदलने में सफल कर दिया है। पर ‘पा¡वर’ के मामले में नितीश पिछड़ गये हैं। इस बिन्दु पर बाद में आगे आयेंगे, पहले कुछ और बिन्दुओं पर नजर डाल लें।
विपक्षियों का आरोप था कि बिहार की सत्ता जंगलराज से चल रही है। व्यापारी और उद्योगपति बड़ी तादाद में बिहार से पलायन कर रहे थे। लोगों का कहना था कि उनका जीवन वहाँ सुरक्षित नहीं था। अपहरण की घटनाऐं आम थीं। विकास के नाम पर बिहार में औद्योगिकरण तो दूर, बुनियादी ढांचे तक का अभाव था। परन्तु पिछले साढ़े तीन साल में नितीश कुमार ने बिहार को अभय प्रदान की है। कानून का राज कायम किया है। सड़कों का जाल बिछा दिया है। कृषि के क्षेत्र में अनूठे प्रयोग करके किसानों की हालत सुधारने का प्रयास किया है। प्रशासन को जिम्मेदार बनाने की कोशिश की है। अपने उदाहरण से उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार पर लगाम कसी है। ग्रामीण रोजगार की दिशा में भी अच्छा काम किया है। पर ‘पावर’ के मामले में नितीश कुमार बहुत पिछड़ गये हैं।
‘पावर’ यानि बिजली। पटना को छोड़ दे तो बिहार के शहरों, कस्बों और गाँवों में बिजली की भारी समस्या है। कभी-कभी तो तीन-तीन दिन तक बिजली नहीं आती। बिजली औद्योगिक विकास की रीढ़ होती है। जब बिजली ही नहीं होगी तो औद्योगिक उत्पादन कैसे होगा? रोजगार कैसे बढ़ेगा? खुशहाली कैसे आयेगी? किसान की जरूरतें कैसे पूरी होंगी? ऐसे सवाल बिहार के लोग आज नितीश कुमार के शासन से पूछते हैं।
दरअसल बिहार की दशा इतनी खराब थी कि नितीश कुमार को उसे ढर्रे पर लाने में ही काफी वक्त लग गया। अब उनके पास अगले चुनाव से पहले काफी कम समय बचा है। ऐसा नहीं है कि उन्हें चुनौती देने वाला कोई मजबूत दल सामने खड़ा हो। पर यह भी सही है कि इस सवाल पर नितीश को मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। वे चाहते तो छोटे-छोटे शहरों में गैस पा¡वर प्लांट लगाकर बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते थे। बड़े पाॅवर प्लांट्स के लिए रेल मंत्रालय से बात करके कोयला खानों और पा¡वर प्लांटों के बीच ‘रेल कोल लिंकेज’ करवा सकते थे। जिससे इन प्लांटों को नियमित कोयले की आपूर्ति होती और बिहार की बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ पाती। हो सकता है कि विरोधी दल का मुख्यमंत्री होने के नाते केन्द्र सरकार उनके साथ सहयोग न करती। पर चूंकि कोयले से लदी सभी मालगाड़ी बिहार से होकर जाती हैं, अगर अपने दल के कार्यकर्ताओं को छिपा इशारा करके नितीश इन गाडि़यों को रूकवा लेते तो देशभर में हल्ला मच जाता और सरकार को उनकी मांग माननी पड़ती। पर लगता ये है कि इस ओर उनका ध्यान ही नहीं गया। ऐसे बयान या प्रयास नहीं देखे गये जब नितीश कुमार ने बिहार की बिजली समस्या को दूर करने के कोई ठोस कदम उठाये हों।
अभी भी कोई बहुत समय नहीं निकला है। देश-विदेश में ऐसी तमाम कम्पनियाँ हैं जो छोटे, मझले और बड़े पाॅवर प्लांट भारत में लगाने को अधीर हैं। यहाँ तक कि ‘क्लीन एनर्जी’ वाले प्लांट लगाने वाली कम्पनियाँ भी हैं जो पर्यावरण के सवाल को ध्यान में रखकर बिजली का उत्पादन करती हैं। ऐसी कम्पनियों को बुलाकर बिहार के कस्बों और शहरों में छोटे-छोटे से पाॅवर प्लांट लगाये जा सकते हैं। आज जब बिजली जाती है तो एक शहर में सैंकड़ांे जेनरेटर चल पड़ते हैं। उससे कितना प्रदूषण होता है? कितना शोर मचता है और पैसे की कितनी बर्बादी होती है? इससे कहीं कम लागत में ये लोग बिजली प्राप्त कर सकते हैं।
छोटे पा¡वर प्लांट लगाने में छह से आठ महीने का समय लगता है। लागत भी ज्यादा नहीं आती और तुरन्त उत्पादन शुरू हो जाता है। इससे एक लाभ और होगा कि बिहार के बड़े उद्योगों की मांग के अनुसार बिजली उपलब्ध हो पायेगी क्योंकि छोटे और मझले उद्योगो के लिए बड़े पा¡वर प्लांटों की बिजली को खींचना नहीं पड़ेगा। इससे औद्योगिक और आर्थिक प्रगति में गति आयेगी। आज बिजली की कमी के कारण भागलपुर के जुलाहे परेशान हैं। उनके कुटीर उद्योग बन्द होने की कगार पर हैं। ऐसे ही प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी बिजली का संकट बेरोजगारी का कारण बन रहा है। जिसपर नितीश कुमार को प्राथमिकता से ध्यान देना चाहिए।
पानी और बिजली दो ऐसी जरूरतs हैं जो जनता को बहुत जल्दी परेशान कर देती हैं। जिनकी कमी पर जन आक्रोश भड़क उठता है। आज नितीश कुमार अपने अच्छे कामों से यश कमा रहे हैं। पर ‘पा¡वर’ में बने रहने के लिए जो ‘पा¡वर’ उन्हें चाहिए उसका उत्पादन वे नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए सत्ता में होते हुए भी कहा जा सकता है कि नितीश कुमार ‘पा¡वर’ के मामले में पिछड़ रहे हैं।
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