Rajasthan Patrika 01-07-2007 |
संतोष की बात यह है कि उपराष्ट्रपति श्री भैरोसिंह शेखावत ने अपनी उम्र और पद की गरिमा का ध्यान रखते हुए राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार पर कोई भी व्यक्तिगत आरोप लगाने से मना किया है। वे इस चुनाव को अंतर्रात्मा की आवाज पर लड़ना चाहते हैं। उन्हें विश्वास है कि पिछले 6 दशकों से भारतीय राजनीति में उनके अभिन्न मित्र रहे दर्जनों नेता दलगत भावना से ऊपर उठकर उनका समर्थन करेंगे और वे वैसे ही जीत जाएंगे जैसे डा. नीलम संजीवा रेड्डी को हरा कर श्री वी.वी. गिरी जीते थे। राष्ट्रपति पद के लिए कुल वोट 10,98,882 हैं और 4,896 सांसद और विधायक नए राष्ट्रपति का चुनाव करेंगे। किक्रेट के खेल की तरह राजनीति कब पलटा खा जाए यह कोई नहीं कह सकता। आज वोटों का गणित भैरो सिंह जी के विरूद्ध दिख रहा हैं और विमला पाटील जी की विजय सुनिश्चित मानी जा रही है। पर क्या कांग्रेस आलाकमान इस बात के लिए पूरी तरह आश्वस्त हैं कि उनकी टीम के सभी सांसद और विधायक एकजुट होकर श्रीमती विमला पाटील के पक्ष में मतदान करेंगे ? क्योंकि इस चुनाव में पार्टी का व्हिप जारी नहीं होता इसलिए हर सांसद और विधायक अपना वोट देने के लिए स्वतंत्र है। ऐसे में अगर श्री भैरो सिंह शेखावत यूपीए के किले में सेंध लगा देते हैं तो कौन जाने क्या परिणाम सामने आएं? पर यदि राष्ट्रपति के चुनावों में व्यक्तिगत आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा। इससे राष्ट्रपति पद की प्रतिष्ठा गिरेगी जिसका लाभ किसी को नहीं मिलेगा, न जीतने वाले को न हारने वाले को। वेैसे भी भारत में राष्ट्रपति का पद केवल एक अलंकरण हैं, राष्ट्रपति नीति निर्धारण को प्रभावित नहीं कर पाते हैं। इसलिए राष्ट्रपति किसी भी दल का क्यों न हो संविधान के दायरे से बाहर जा कर कोई क्रांतिकारी कदम नहीं उठा सकता।
संविधान के निर्माताओं ने पहले ही इस बात के काफी प्राविधान रख दिए कि कोई राष्ट्रपति अपने पद का दुरूपयोग न कर सकें। हां जहां तक संविधान में प्रदत्त राष्ट्रपति के विवेक पर आधारित निर्णय का प्रश्न हैं तो वहां जरूर कभी गम्भीर स्थिति पैदा हो सकती है, जैसी 1984 में 31 अक्टूबर को तब पैदा हुई थी जब ज्ञानी जैल सिंह ने श्री राजीव गांधी को बिना संवैधानिक प्रक्रिया के पूरे हुए ही प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवा दी थी। चूंकि परिस्थितियां श्री राजीव गांधी के पक्ष में थी इसलिए यह मामला तुरंत ही संभाल लिया गया। ऐसी परिस्थितियां कभी-कभार ही आती है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि जब राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव की घोषणा हो गई है तो इस चुनाव को संजीदगी से और सम्माननीय तरीके से लड़ा जाए। बेहतर तो यही होगा यूपीए भैरो सिंह जी को उपराष्ट्रपति पद का एक और कार्यकाल देने पर राजी हो जाए और एनडीए श्रीमती विमला पाटील को अपना समर्थन दे दे। इससे पद की गरिमा भी बनी रहेगी और देश को दो विभिन्न दलों के योग्य, अनुभवी और सम्माननीय नेताआं का राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पद से मार्ग निर्देशन मिलता रहेेगा। दोनों ही पक्षों को गंभीरता से इस बात पर विचार करना चाहिए। होगा क्या यह तो भविष्य बताएगा पर अगर आडवाणी जी, वाजपेयी जी, चन्द्रबाबू नायडु जी, मुलायम सिंह जी, जयललिता जी व सोनिया गांधी जी आदि एक बार बैठ कर इस स्थिति को यहीं संभाल लें और बिगड़ने न दें वरना भविष्य में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के चुनाव उसी तरह लड़े जएंगे जैसे अपराधग्रस्त प्रांतों में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव लडे़ जाते हैं। यह पूरे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
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