Friday, April 2, 2004

भारत-पाक में जनमत करा लो


जो भी पाकिस्तान से क्रिकेट मैच देखकर लौटा है, उसने एक बात जरूर बताई और वो ये कि पाकिस्तान की जनता ने भारतीयों को खुले दिल से प्यार किया। इतना सम्मान और प्यार मिला कि यहां से गए लोग ये सोचने लगे कि आखिर पचास बरस तक इतना तनाव कैसे रह पाया? पाकिस्तान के लोगों ने एक सुर से यह कहा कि ये तनाव दोनों मुल्कों के सियासतदानों की देन है। उन्होंने वाजपेयी जी के लिए संदेश भेजा कि जल्दी से जल्दी दोनों मुल्कों के बीच की दीवार खत्म करने की कोशिश करें। जाहिर है कि आम आदमी चाहे वो भारत का हो या पाकिस्तान का, आपस में घुलमिलकर रहना चाहता है। व्यापार करना चाहता है। सांस्कृतिक आदान-प्रदान करना चाहता है। रिश्ते कायम करना चाहता है। पर भ्रष्ट राजनेता और उनसे भी ज्यादा दोनों देश की रक्षा व्यवस्था से जुड़े लोग ये नहीं होने देना चाहते। 

पड़ोसी देश का खतरा बताकर रक्षा व्यवस्था के नाम पर अनाप-शनाप खर्च किया जाता है और उसमें जमकर कमीशन मिलता है, जो अरबों रुपये साल होता है। दोनों देश एक-दूसरे पर अपना खौफ बनाए रखने के लिए अपनी सालाना इनकम का एक बड़ा हिस्सा सेना और सैनिक साजो-सामान पर खर्च करते हैं। करोड़ों रुपये के हथियार विदेशों से मंगवाए जाते हैं। परमाणु बम जैसे घातक हथियारों को बनाने में लाखों करोड़ रुपये पानी की तरह बहा दिए जाते हैं। सीमा पर सैनिकों की तैनाती में भी बेहिसाब पैसा खर्च कर दिया जाता है। यदि दोनों देशों के बीच की खाइयां मिट जाएं, तो फिर यह पूरा पैसा बच सकता है और इसका उपयोग दोनों देश अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने में कर सकते हैं। इस सैन्य खर्चें को यदि देश के विकास में लगाया जाए तो काया पलट सकती है। फिर दोनों देशों को किसी दूसरे के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कर्जों के बोझ में दबी अर्थव्यवस्था फिर से नई सांसे ले सकेगी।
पिछले दिनों लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में जो कुछ हुआ, वह एक अद्भुत नजारे से कम नहीं था। हिन्दुस्तान के खिलाडि़यों ने जब-जब बढि़या प्रदर्शन किया उन्हें पाकिस्तान की जनता से भी वाहवाही मिली। यहां तक कि जब भारत की क्रिकेट टीम ने पाकिस्तानी टीम को हरा दिया, तब भी न तो गुस्से का प्रदर्शन किया गया और ना ही कोई हमला किया गया। ये अभूतपूर्व घटना थी। पाकिस्तान जाने से पहले अफसर भारत के खिलाडि़यों की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। सो इसके लिए सीरीज के सहमति पत्र पर भी यह लिखा गया कि जरा-सी भी गड़बड़ी होने पर दौरा रद्द कर दिया जाएगा। पर पाकिस्तान की आबोहवा देखकर भारतीय खिलाडि़यों की चिंता दूर हो गई। वहां मिले प्यार और स्नेह से वह गद्गद् हो गए। 

आलम यह था कि चैथा वनडे जीतने के बाद भारतीय टीम के कप्तान सौरभ गांगुली अपने कुछ दोस्तों के साथ बिना किसी सुरक्षा के पाकिस्तान के एक ढाबे पर खाना खाने के लिए पहंुच गए और उन्होंने सड़क किनारे बैठकर दोस्तों के साथ मस्ती की। रात के 2 बजे तक वे वहां रुके। जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको डर नहीं लगा, तो गांगुली का कहना था कि जब लोग आपको इतना प्यार करते हों तो सुरक्षा घेरे के साथ निकलना पाकिस्तान के आम लोगों की भावनाओं को आहत करना होगा। कुछ समय पहले तक कहा जाता था कि भारत के खिलाफ आग उगलने वाला व्यक्ति ही पाकिस्तान की कमान संभाल सकता है। पर जनरल मुशर्रफ और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रयासों से यह मिथक भी अब टूटने लगा है। दोनों देशों के बीच दोस्ती की बयार फिर से बहने लगी है। दोनों देशों को इसका फायदा उठाना चाहिए। यह माना जाता है कि दोनों देशों की सरकारों के रवैये में आए इस बदलाव की वजह अमरीका का दबाव भी है। अपने व्यापारिक हितों को साधने के लिए अमरीका दक्षिण एशिया में शांति चाहता है। साथ ही वह दोनों देशों को इतना भी करीब नहीं आने देना चाहता कि भारत एक बड़ी ताकत बन जाए। रूस के विरुद्ध चीन की मदद करके अमरीका ने चीन की अर्थव्यवस्था को आज जहां पहंुचा दिया, वहां अब चीन खुद अमरीका के लिए एक चुनौती बन गया है। इस गलती को भारत के संदर्भ में अमरीका दोहराना नहीं चाहेगा। 

यूं तो यथा राजा तथा प्रजा वाली बात होती है, पर कभी-कभी लोकतंत्र में इसका उलट भी हो जाता है। प्रजा जब राजा के भ्रष्टाचार से आजिज आ जाती है तो सत्ता पलटने में उसे देर नहीं लगती। वोट उसके हाथ में एक ऐसा हथियार है जिससे वह हुक्मरानों को उनकी औकात बताती रहती है। भारत और पाकिस्तान के लोगों में कोई सामाजिक या सांस्कृतिक भेद नहीं है। बल्कि यूं कहा जाए कि बलूचिस्तान का इलाका छोड़कर शेष पाकिस्तान उत्तर भारत के प्रांतों का विस्तार ही है। ऐसे में दोनों देशों की जनता का यह चाहना कि दोनों मुल्कों के बीच की दीवार हट जाए, कोई असमान्य बात नहीं है। आखिर बर्लिन में ये हुआ ही है। फिर भारत और पाक के बीच की दीवार तो कोई पचास बरस पुरानी है। जबकि साझी विरासत पांच हजार वर्ष पुरानी है। इसलिए जनता के स्तर पर दोनों देशों में इसकी मांग उठनी चाहिए कि हम एक-दूसरे को दुश्मन नहीं, दोस्त समझते हैं। भाई समझते हैं या नातेदार समझते हैं। हम साथ रहना चाहते हैं। हम नफरत को मिटा देना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच की राजनैतिक दीवार खत्म कर दी जाए। फिर से भारत एक महासंघ बने। उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव अरसे से यह बात कहते आए हैं कि दक्षिण एशिया को अगर अपनी आर्थिक प्रगति करनी है तो उसे अमरीका की तरह एक संघीय गणराज्य बनना होगा। जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान जैसे देश जुड़ सकते हैं। दोनों देशों की जनता अपने देश में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जब इस मांग का जोरदार समर्थन करेगी और इस भावना के विरुद्ध उठाए गए हर कदम का पुरजोर विरोध करेगी, चाहे वो कदम भारत की सरकार उठाए या पाकिस्तान की, तो पूरी दुनिया में जनमत एकीकरण के पक्ष में तैयार होगा। फिर अमरीका भी अपनी सियासी चाल नहीं चल पाएगा। दोनों देशों के निहित स्वार्थ जनता की इस लोकप्रिय मांग के सैलाब को रोक नहीं पाएंगे। हम सर्वधर्म समभाव की भावना के साथ आगे बढ़ें। मुसलमान हिन्दुओं के प्रति व्यापक दृष्टिकोण अपनाएं, उनकी धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करें और हिन्दू मुसलमानों को दुश्मन न मानें, तो दक्षिण एशिया का यह मानवीय सागर आर्थिक विकास की नई ऊंचाइयों को छू सकता है। 

क्रिकेट श्रृंखला ने इस संभावना के लिए आधार तैयार किया है। खेल खेल की भावना से खेला गया और दोनों मुल्कों के दर्शकों ने खेल की गुणवत्ता के आधार पर देखा। यह एक स्वस्थ लक्षण है। आशा की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में दोनों देशों की सरकारें खेल, व्यापार, शिक्षा व सांस्कृतिक आदान-प्रदान के मामले में और भी उदारता बरतेंगी। जब दिल से दिल मिलेंगे और खुलकर मिलेंगे तो ना तो शक का निशां रहेगा और ना ही एक-दूसरे का खौफ ही बचेगा। ये वक्त की मांग है। आजादी के समय पता नहीं इस मुल्क को किस शनिचर की नजर पड़ी कि बेवजह इतना खून-खराबा हुआ। लाखों परिवार तबाह हो गए, पर उस दुखद अतीत को एक भयावह सपने की तरह भूल जाने की जरूरत है। इस दिशा में वाजपेयी जी के प्रयास सराहनीय रहे हैं। उम्मीद की जाती है कि ये प्रयास आगे भी जारी रहेंगे और एक बार फिर दोनों मुल्कों की युवा पीढ़ी अपना परचम लहराकर कहेगी, सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, हम बुलबुले हैं इसके यह गुलिस्तां हमारा।

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