संसद में बिना बहस के बजट पास हो गया। विपक्ष ने इसका बहिष्कार किया। सरकार में शामिल दागी मंत्रियों को लेकर विपक्ष नाराज है। जबसे सरकार बनी है उसने लगातार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर दबाव बना रखा है। इसमें शक नहीं कि अपराधियों के राजनीति में प्रवेश को लेकर हर समझदार भारतवासी चिंतित है। पर असहाय भी है। कुछ कर नहीं सकता। पहल तो राजनैतिक दलों को ही करनी होगी। भाषण सब झाड़ते हैं पर किसी भी राजनैतिक दल के नेता में यह नैतिक साहस नहीं कि राजनीति से अपराधियों को निकालने के सवाल पर जनता को आंदोलित करे। राजनीति में अपराधियों का आना सबके लिए घातक है। जनता के लिए ही नहीं बल्कि उन राजनेताओं के लिए भी जो अपराधी नहीं हैं। यह कैंसर अगर जड़ से निर्मूल नहीं किया गया तो कुछ समय बाद डाॅक्टर मनमोहन सिंह नहीं बल्कि दाउद जैसे लोग इस देश में प्रधानमंत्री बन जायेंगे। पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ? सत्ता हासिल करने की होड़ में हर दल वही करता है जिसकी वह आलोचना करता है।
वैसे अपराधी कौन है या दागी कौन है ? इसका फैसला इतना आसान नहीं। राजग के सदस्य तपाक से उत्तर देते हैं कि हत्या, लूट, अपहरण और हिंसा में शामिल व्यक्ति को अपराधी नहीं तो और क्या माना जाये। यह तर्क सही है और इस कोई बहस की भी नहीं जा सकती। सब एक मत होंगे। पर सवाल उठता है कि क्या केवल ये अपराध ही अपराध है। देश द्रोह करना या देश के खिलाफ षड्यंत्र करने वालों को प्राश्रय देना तो इससे भी बड़ा अपराध है। दुख की बात यह है कि दागी मंत्रियों का मुद्दा उछालने वाली राजग का दामन कुछ ऐसे ही जघन्य अपराधों से भरा पड़ा है। उदाहरण के तौर पर स्टैंप घोटाले में बम्बई के पुलिस आयुक्त श्री राधेश्याम शर्मा को इसलिए गिरफ्तार किया गया कि उन्होंने इस मामले में एफ.आई.आर. दर्ज करने में ढील रखी और समय पर कार्यवाही नहीं की। क्या राजग सरकार के गृहमंत्री संसद को ये बताने को तैयार है कि हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों को विदेशी मदद पहुंचाने वाले लोगों को सी.बी.आई के जिन पुलिस अधिकारियों ने चार वर्ष तक बचाये रखा उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया ? सजा देना तो दूर राजग सरकार ने देशद्रोह के काण्ड में लिप्त इन अधिकारियों को समय से पहले पदोन्नति देकर, राष्ट्रपति के पदक दिलवाकर और विदेशों में तैनाती देकर पुरस्कृत क्यों किया ? यदि राजग सरकार देश के प्रति अपना फर्ज ईमानदारी से निभाती और जैन हवाला काण्ड की जांच में हुई कोताही को ध्यान में रख कर इस जघन्य काण्ड की ईमानदारी से जांच करवाती तो आतंकवाद देश में इतने पांव नहीं पसारता।
क्या राजग सरकार में शामिल दलों के नेता बतायेंगे कि तीन बार आंतकवाद पर श्वेतपत्र लाने की घोषणा करने के बावजूद राजग सरकार के गृहमंत्री ने यह श्वेतपत्र देश के सामने प्रस्तुत क्यों नहीं किया ? ऐसा क्या संशय था, क्या डर था और क्या हिचक थी जिसने गृहमंत्री को देश हित में यह काम नहीं करने दिया। केवल सामाजिक अपराध करने वाला ही अपराधी नहीं होता। आर्थिक अपराध समाज में विषमता को जन्म देते हैं। बेईमानी से और गरीबों का हक छीनकर हासिल की गई आर्थिक प्रगति समाज में हिंसा को जन्म देती है। इसलिए अपराध शास्त्री हर अपराध को समाज के लिए घातक मानते हैं।
राजनीति में विरोध केवल विरोध के लिए किया जाता है। जब तत्कालीन रक्षामंत्री के विरुद्ध तहलका काण्ड को लेकर इंका विरोध कर रही थी तब भी मैंने ये सवाल उठाया था कि ऐसा क्यों होता है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध शोर मचानेवालों को केवल अपने राजनैतिक प्रतिद्वन्द्वियों का भ्रष्टाचार ही नज़र आता है अपने सहयोगियों का नहीं। साफ जाहिर है कि शोर केवल राजनैतिक लाभ के लिए मचाया जाता है, जनता को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए नहीं। यही कारण है कि ऐसे किसी भी आन्दोलन का स्थाई परिणाम नहीं निकलता। मान लें कि डाॅक्टर मनमोहन सिंह सरकार से दागी मंत्री हटा दिये जाएं तो क्या हिन्दुस्तान की राजनीति से भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा। क्या राजग के हर नेता को यह पे्ररणा मिलेगी कि वह अपने पूरे परिवार और नातेदारों की आर्थिक हैसियत को सार्वजनिक करने को तैयार होगा ? क्या राजग के नेता उस कानून को लाने की पहल करेंगे जिसके तहत सी.बाी.आई. को बड़े नेताओं और अफसरों के खिलाफ जांच करने की खुली छूट मिल जायेगी। उल्लेखनीय है कि वाजपेई सरकार के दौरान जो सी.वी.सी. विधेयक पारित हुआ उसमें राजग सहित किसी भी दल ने सी.बी.आई. या सी.वी.सी. को स्वायत्त्ता नहीं मिलने दी। जब कि सर्वोच्च न्यायालन ने ऐसा किए जाने के आदेश दिए थे। क्या राजग के नेता इस बात पर भी डटेंगे कि जब तब राजनीति में अपराधियों के प्रवेश को प्रतिबंधित करनेवाला कानून पास नहीं हो जाता तब तक संसद को नहीं चलने देंगे ? जाहिर है कि वे ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। ये शोर तो केवल डाॅक्टर मनमोहन सिंह को घेरने के लिए मचाया जा रहा है। राजग के नेता इस बात से बुरी तरह बौखला गये हैं कि डाॅक्टर मनमोहन सिंह जैसी साफ छवि का व्यक्ति प्रधानमंत्री कैसे बन गया ? विज्ञापन ऐजेंसियों और चारण और भाट किस्म के पत्रकारों को खैरात बांट कर नेतृत्व की छवि कितनी ही क्यों न बनाई जाए कहते हैं कि ‘सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से’।
डाॅक्टर मनमोहन सिंह की ईमानदारी किसी के सर्टिफिकेट की मुरीद नहीं है। जब देश के भूखे किसान अपने परिवारों सहित जहर खाकर आत्महत्या कर रहे थे तब वाजपेई जी ने इस देश के गरीबों का उपहास उड़ाते हुए करोड़ों रूपयों की बेहद मंहगी बी.एम.डब्ल्यू. कारों का काफिला अपने आराम के लिए खरीदा। डाॅक्टर सिंह ने इन मंहगी कारों के काफिलों को चुपचाप लौटा दिया। इस प्रशंसनीय कदम की कोई चर्चा तक जनता के बीच में नहीं की। टिकट की लाईन में खुद लगना, अपनी मारूति खुद चलाकर सार्वजनिक कार्यक्रमों में पहुंच जाना, दावे कम करना और काम ज्यादे करना, किसी विवाद में न पड़ना, गलत काम को अगर रोक न सकें तो स्वयं उससे बचकर रहना उनके कुछ ऐसे गुण हैं जिन्हें देशवासियों को जानना चाहिए। मेरा छोटा पुत्र बचपन से डाॅक्टर सिंह के नाती के साथ पढ़ता भी है और दोनों घनिष्ठ मित्र भी हैं। आमतौर पर बच्चे जब राजनेताओं के घर जन्मदिन की पार्टियों में जाते हैं तो उन पार्टियों के वैभव से दिग्भ्रमित हो जाते हैं। हम साधारण मध्यमवर्गीय लोग उस स्तर के जश्न जन्मदिन के नामपर मनाने की सोच भी नहीं सकते। इसलिए प्रायः ऐसी जगह जाना टाल जाते हैं। पर डाॅक्टर सिंह के घर हर वर्ष जन्मदिन की पार्टी में जाना ऐसा ही अनुभव होता है जैसा अपने जैसे लोगों के बीच। न कोई तामझाम, न कोई वैभव। घर के बने दो-चार सामान और नाना-नानी की आत्मीय आतिथ्य शैली जहां नौकरों का भी प्रवेश नहीं। ऐसे सहज, सरल और ईमानदार व्यक्ति को हर राजनैतिक दल का समर्थन मिलना चाहिए ताकि देश की राजनैतिक संस्कृति में बदलाव की शुरुआत हो सके। पर ये बदलाव चाहता कौन है ? राजग के नेता ऐसा क्यूं चाहेंगे ? राजग छोड़ इंका में भी बहुत से लोग इस स्थिति से खुश नहीं हैं। चाहे जो भी कारण रहे हों पर इस कदम के लिए श्रीमती सोनिया गांधी की जितनी प्रशंसा की जाये कम है। उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में देश की बागडोर सौंपी जिसके भाई तक उससे किसी लाभ की उम्मीद नहीं रखते। ऐसा व्यक्ति आज के बिगड़े राजनैतिक माहौल में अपने बूते पर चुनाव जीतकर कभी भी प्रधानमंत्री के पद पर नहीं पहुंच सकता था। देश को पता ही नहीं चलता कि प्रधानमंत्री के पद पर सच्चे और ईमानदार व्यक्ति भी बैठ सकते हैं। राजग की यही तड़प है। दागी मंत्रियों के हक में कोई नहीं है। पर राजग को यह नहीं भूलना चाहिए कि सुखराम के खिलाफ 13 दिन तक संसद न चलने देने वाली भाजपा ने बाद में उन्हीं सुखराम के साथ मिलकर सरकार चलाई थी। अगर ये दागी मंत्री आज राजग का दामन थाम लें तो उसे इनके साथ सरकार चलाने में कोई संकोच नहीं होगा। फिर ये ढोंग क्यों ?
दरअसल राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं। हर दल सत्ता में रह कर वही करता है जो उसके अपने फायदे में होता है और विपक्ष में बैठ कर जनता के हितों की दुहाई देता है। दुर्भाग्य से लोकतंत्र का अब यही स्वरूप बन गया है। लोकतंत्र लोक आधारित न होकर कुलीन तंत्र बन गया है। नेता के बेटे-बेटी चाहे काबलियत न हो तो भी रातोरात नेता या टीवी स्टार बन जाते हैं। जबकि योग्य लोग वर्षों चप्पलें घिसते रहते हैं। सारी सत्ता कुछ कुलीनों के हाथ में केंद्रित है। इनमें से बहुत से भ्रष्ट तरीकों से ताकतवर बने हैं। जब ताकतवर बन ही गये तो फिर कुलीनों के क्लब में भी आसानी से शामिल हो जाते हैं। ऐसे तमाम राजनेता सत्ता अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहते। हर जा-बेजा काम कर सत्ता में बने रहना चाहते हैं और अपने गलत कामों को छिपाते हैं या उन्हें जनहित में बताकर जनता को गुमराह करते हैं। सत्ता से हट जाने के बाद वे हताशा में सरकार को गिराने में जुट जाते हैं। चूंकि देश में लोकतंत्र है और किसी को तलवार के जोर पर गद्दी से नहीं उतारा जा सकता। इसके लिए लोगों के पास वोट मांगने जाना होता है। लोग वोट उसी को देंगे जो उनकी गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने के सपने दिखाये। इसलिए विपक्ष के सभी दल जब तक सत्ता के बाहर रहते हैं तब तक गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के सवाल पर डटकर शोर मचाते हैं। खूब बयानबाजी करते हैं। सम्वाददाता सम्मेलन बुलाते हैं। संसद नहीं चलने देते। पर जब खुद सत्ता में होते हैं तो वही सब करते हैं जिसके विरुद्ध शोर मचा रहे थे। जब खुद घोटालों में फंस जाते हैं तो खतरनाक खामोशी अख्तियार कर लेते हैं। क्या राजग के नेता बतायेंगे कि देशद्रोह के जैन हवाला काण्ड की ईमानदारी से जांच करवाने की मांग उन्होंने कभी भी क्यों नहीं की? जिस काण्ड ने इस देश के दर्जनों मंत्रियों को कटघरे में खड़ा कर दिया क्या उसमें जांच की मांग करना भी जरूरी नहीं था ? फिर दागी मंत्रियों के विरुद्ध चल रहे हंगामें का नैतिक आधार क्या है ?