Monday, June 13, 2022

देश में आग किसने लगाई ?


जिस दिन से भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता रहीं नूपुर शर्मा के बयान पर विवाद खड़ा हुआ है उस दिन से देश में आग लग गई है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? यकीनन टीवी चैनल ही इस अराजकता फैलाने के गुनहगार है। जो अपनी टीआरपी बढ़ाने के लालच में आये दिन इसी तरह के विवाद पैदा करते रहते है। जानबूझ कर ऐसे विषयों को लेते है जो विवादास्पद हों और ऐसे ही वक्ताओं को बुलाते है जो उत्तेजक बयानबाजी करते हों। टीवी ऐन्कर खुद सर्कस के जोकरों की तरह पर्दे पर उछल कूद करते है। जिस किसी ने बीबीसी के टीवी समाचार सुने होगें उन्हें इस बात का खूब अनुभव होगा कि चाहें विषय कितना भी विवादास्पद क्यों न हो, कितना ही गम्भीर क्यों न हो, बीबीसी के ऐन्कर संतुलन नहीं खोते। हर विषय पर गहरा शोध करके आते है और ऐसे प्रवक्ताओं को बुलाते है जो विषय के जानकार होते है। हर बहस शालीनता से होती है। जिन्हें देखकर दर्शकों को उत्तेजना नहीं होती बल्कि विषय को समझने का संतोष मिलता है।



भारत के कुछ टीवी, न्यूज चैनलों के ऐन्कर तो विषय के अनुसार परिधान भी बदल देते है। अगर चन्द्रयान चांद पर उतरने वाला था तो ये कार्टून एस्ट्रोनेट की ड्रेस पहनकर चांद की सतह के ब्लोअप फोटो के सामने ऐसी कलाकारी दिखाते हैं, मानो कुछ ही क्षणों में ये खुद चांद पर उतरने वाले है। जब चन्द्रयान उतरने में नाकाम रहता है तो ये मर्सिया गाने लगते है। जैसे मुर्दनी छा गई हो। जबकि पत्रकार को संत कबीर दास जी की ये वाणी याद रखनी चाहिये, ‘‘दास कबीर जतन से ओढी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया।’’ बिना राग-द्वेष के हर विषय को निष्पक्षता से प्रस्तुत करना, पैनल पर बैठे मेहमानों को अपनी बात कहने देना, नाहक विवाद को उठने से पहले रोक देना और कार्यक्रम का समापन, यदि सम्भव हो तो, समाधान के साथ करना। पर दुख की बात है कि आज भारत के अधिकतर टीवी चैनल इस आचार संहिता का पालन नहीं कर रहे। जिसके लिए काफी हदतक मौजूदा केन्द्र सरकार भी जिम्मेदार है। जो अपनी कमियां या आलोचना बर्दाश्त नहीं करती। नतीजन टीवी चैनलों के पास दो ही रास्ते बचते हैंः या तो सरकार का झूठा यशगान करें या इस तरह की उत्तेजक, बिना सिर पैर की बहस करवा कर टीआरपी बढ़ाएँ।


जब भारत में कोई प्राईवेट टीवी चैनल नहीं था तब 1989 में देश की पहली हिन्दी विडियो समाचार कैसेट ‘कालचक्र’ जारी करके मैंने टीवी पत्रकारिता के कुछ मानदंड स्थापित किये थे। बिना किसी औद्योगिक घराने या राजनैतिक दल की आर्थिक मदद के भी कालचक्र ने देश भर में तहलका मचा दिया था। हमने कालचक्र में जनहित के मुद्दों को गम्भीरता से उठाया और उन पर देश के मशहूर लोगों से बेबाक बहस करवाई। जिनकी चर्चा लगातार देश के हर अखबार में हुई। इसी तरह आज के साधन सम्पन्न टीवी चैनल अगर चाहें तो जनहित में अनेक गम्भीर मुद्दों पर बहस करवा सकते है। जैसे नौकरशाही या लालफीताशाही पर, शिक्षा व्यवस्था पर, न्याय व्यवस्था पर, पुलिस व्यवस्था पर, अर्थ व्यवस्था पर, पर्यावरण पर व स्वास्थ्य व्यवस्था जैसे अनेक अन्य विषयों पर गम्भीर बहसें करवाई जा सकती हैं। जिनके करने से देश के जनमानस में मंथन होगा और उससे विचारों का जो नवनीत निकलेगा उससे समाज और राष्ट्र को लाभ होगा। आज की तरह देश में अराजकता, हिंसा और कुंठा नहीं फैलेगी। 


रही बात धर्म चर्चा की तो इस बात का श्रेय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को दिया जाना चाहिये कि उन्होंने हजारों साल पुराने वैदिक सनातन धर्म को देश की मुख्य धारा के बीच चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है। जबकि पिछली सरकारें ऐसा करने से बचती रही। जिसका परिणाम ये हुआ कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर  बहुसंख्यक हिन्दु समाज अपने को उपेक्षित महसूस करता रहा। इसलिए आज वो अवसर मिलने पर इतना मुखर हो गया है कि धर्म के हर प्रश्न पर आक्रमकता के साथ सक्रिय हो जाता है। 


हम इस विवाद में नहीं पड़ेंगे कि नूपुर शर्मा ने जो कहा वो सही था या गलत। हम इस विवाद में भी नहीं पड़ेंगे  कि भारत के विभिन्न धर्मावलम्बी अपने-अपने धर्म को लेकर क्या गलत और क्या सही कहते है। पर ये तो साफ है कि धर्म के सवाल पर टीवी चैनलों में और आम जनता के बीच भी जिस स्तरहीनता की बहस आजकल हो रही है उससे न तो सनातन धर्म का लाभ हो रहा है और न ही भारत हिन्दु राष्ट्र बनने की तरफ बढ़ रहा है। इन बहसों से हिन्दु समाज का ही नही हर धर्म के मानने वालों का अहित हो रहा है। जो एक डरावने भविष्य की ओर संकेत कर रहा है। दुनिया के अनेक विशेषज्ञों ने तो भारत में भविष्य में गृहयुद्व की सम्भावनाओं की भविष्यवाणी करनी शुरू कर दी है। यह हम जैसे सभी गम्भीर नागरिकों और सनातन धर्मियों के लिए बहुत चिन्ता का विषय है। इसलिए सभी राजनैतिक दलों व संगठनों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वे टीवी चैनलों पर विषयों के जानकार और गम्भीर प्रवक्ताओं को ही भेजे। स्तरहीन डिबेट में अपने प्रतिनिधी भेजे ही नहीं, जो असंसदीय भाषा का प्रयोग करें। टीवी चैनलों को भी धर्म चर्चा में पोंगे पण्डितों, फर्जी धर्माचार्यों और कठमुल्लों को न बुलाएं।


धर्म के विषय पर अगर ये टीवी चैनल गम्भीरता से बहस करवाये तो समाज का बहुत लाभ हो सकता है। सदियों की उलझी हुई गुत्थियां सुलझ सकती है। भारत अपनी पारम्परिक सांस्कृतिक विरासत की पुनः स्थापना कर सकता है। बशर्ते इन बहसों में धर्म के धुरंधर और विद्वान शामिल हो। उन्हें अपनी बात कहने दी जाये। ऐन्कर भी पढ़े लिखे हो, मूर्ख नहीं हो, आत्ममुग्ध नहीं हो और विषय पर शोध करके आयें। इस तरह की बहसों से सरकार को भी कोई अपत्ति नहीं होगी। टीआरपी भी धीरे-धीरे बढ़ेगी और स्वास्थ्य समाज व राष्ट्र का निर्माण होगा। राष्ट्र निर्माण का दावा करने वाले संगठनों की सत्ता में भी अगर धर्म के विषयों पर ऐसी गम्भीर बहसें नहीं होंगी, तो फिर कब होंगी ? इसलिए इन संगठनों को भी सोचना होगा कि क्या वे वाकई राष्ट्र का निर्माण करना चाहते है या आम लोगों की धार्मिक भावनाओं का दोहन करके, केवल अपना राजनैतिक हित साधना चाहते है?

Monday, June 6, 2022

संघ को सोचना पड़ेगा



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा॰ मोहन भागवत जी के ताज़ा बयान का देश के धर्मनिरपेक्षवादियों, वामपंथियों, समाजवादियों व कांग्रेसियों द्वारा भरपूर स्वागत किया जा रहा है। उन्हें ख़ुशी है कि भागवत जी के इस बयान से देश में अमन चैन पैदा होगा। हिंसा रुकेगी और हिंदू मुसलमानों के बीच सौहार्द बढ़ेगा। इन विचारधाराओं के वो लोग जो कल तक सोशल मीडिया पर संघ और भाजपा के कट्टर हिंदुवाद को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे, आज अचानक भागवत जी के बयान की खुलकर प्रशंसा कर रहे हैं। भागवत जी ने कहा कि अब संघ किसी मंदिर की मुक्ति के लिए आंदोलन नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि मस्जिदों के नीचे शिवलिंगों को खोजना बंद करें। हालांकि ज्ञानवापी मस्जिद व श्री कृष्ण जन्मस्थान मथुरा के विषय में उनके विचार भिन्न थे।



किंतु भागवत जी के इस बयान ने हिंदू जनमानस को विचलित कर दिया है। उनके इस बयान पर सोशल मीडिया में हिंदुओं की तीखी प्रतिक्रियाएँ भी आनी शुरू हो गई हैं। ‘सेव टेम्पल कैम्पेन’ नाम का संगठन, जो 40 हज़ार मस्जिदों से हिंदू मंदिरों को मुक्त कराने की सूची लेकर बैठा है और लगातार उनके विषय में जानकारियाँ प्रकाशित करता रहता है, उसने तो इस बयान को हिंदुओं के साथ धोखा और अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम संगठनों के साथ करार बताया है। देश के हिंदू संत भी इस वक्तव्य से बहुत आहत हैं और इस विषय पर माननीय भागवत जी से गंभीर वार्ता करने की तैयारी कर रहे हैं। वृंदावन के सोहम आश्रम के विरक्त संत त्यागी बाबा का कहना है, भागवत जी के इस बयान से तो यह तय हो गया कि अब हिंदू राष्ट्र का हमारा स्वप्न अधूरा रह जाएगा और अब भारत कभी हिंदू राष्ट्र नहीं बन पाएगा। 


यहाँ यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि भागवत जी को अचानक संघ और भाजपा की धारा के विरुद्ध ये बयान क्यों देना पड़ा? पिछले 32 वर्षों से भाजपा, संघ और उसके अनुसांगिक संगठनों जैसे विहिप आदि ने देश भर में हिंदू राष्ट्र बनाने का एक सघन अभियान चलाया हुआ है। 1990 की विहिप की दिल्ली के बोट क्लब पर हुई उस विशाल रैली को याद करें जिसमें लगभग 10 लाख हिंदू दिन भर मंच से भाजपा व संघ के नेताओं का आह्वहन  सुनते रहे थे, हिंदू राष्ट्र बनाना हमको हिंदुस्तान हमारा। मशहूर सिने संगीतकार रविंद्र जैन का ये गाना, राम जी की सेना चली तो इतना प्रभावी हो गया कि लाखों हाथ अति उत्साह में त्रिशूल और भाले लेकर हवा में लहराने लगे। इसके बाद तो देश के हर गली मोहल्ले में संघ परिवार ने घर-घर जा कर हिंदू राष्ट्र बनाने की अलख जगानी शुरू कर दी। उनके ही इस प्रयास का ये परिणाम है कि आज भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति व प्रधान मंत्री तीनों संघ परिवार से हैं। आज हिंदुओं का बहुसंख्यक हिस्सा ये तय कर चुका है कि अब भारत हिंदू राष्ट्र बन कर रहेगा। 


पिछले 8 वर्षों में देश में हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए जो सक्रियता संघ और भाजपा ने दिखाई उसका भारी असर पड़ा है। फिर वो चाहे गोरक्षा का मामला हो, मॉब लिंचिंग का मामला हो, मस्जिदों पर भगवा झंडे फहराने की कोशिशों का मामला हो, बॉलीवुड के मुसलमान सितारों की फ़िल्मों के बहिष्कार का मामला हो, तबलीकी जमात को भारत में कोरोना फैलने के लिए ज़िम्मेदार ठहराने का मामला हो, सदगुरु जग्गी वासुदेव का ‘सेव टेम्पल कैम्पेन’ के समर्थन में लगातार बयान देना हो, आर्यन खान को अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया का सदस्य बता कर जेल में डालने का मामला हो, ‘द कश्मीर फ़ाइल्ज़’ जैसी फ़िल्म को संघ व भाजपा सरकार द्वारा प्रोत्साहित कर जनता के बीच लोकप्रिय बनाने में सक्रिय भूमिका निभाने का मामला हो या ज्ञानवापी मस्जिद व श्री कृष्ण जन्मभूमि के साथ ही देश भर की मस्जिदों व क़ुतुब मीनार जैसी इमारतों से हिंदू मंदिरों को मुक्त कराने का मामला हो, इन सब मुद्दों ने हिंदू जनमानस को गहराई तक प्रभावित किया है। 


सबसे ज़्यादा असर तो हिंदुओं की युवा पीढ़ी पर पड़ा है। जिसके ज्ञान का स्रोत कुछ चुनिंदा टीवी चैनल और सोशल मीडिया है। रोज़गार के अभाव में ख़ाली बैठे ये युवा अब इतने उत्तेजित हो चुके है कि बात-बात पर हिंसक हो जाते हैं। कानपुर और बरेली के दंगे और पिछले वर्षों में इसी तरह के विषयों पर हुई हिंसक वारदातें इसका परिणाम हैं। देश के ग़द्दारों को, गोली मारो सालों को जैसे नारों ने आग में घी का काम किया है। सांप्रदायिक हिंसा के लिए पहले से बदनाम रहे मुसलमानों की भी युवा पीढ़ी इस माहौल में और ज़्यादा उत्तेजित और आक्रामक हुई है। आनेवाले समय में इस सब से देश की क़ानून व्यवस्था को बनाए रखना बहुत बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में सरकार चलाना भी मुश्किल हो जाएगा। जिसका भरपूर लाभ विपक्षी दल आने वाले चुनावों में उठाएँगे। इसी ख़तरे को भाँप कर माननीय भागवत जी ने ये बयान दिया है। जिससे भाजपा की सरकारों को बचाया जा सके। 


पहले संघ और भाजपा के बीच सम्मानजनक दूरी रहती थी। संघ की घोषित नीति थी कि उसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। वो केवल सामाजिक संगठन है। पर पिछले कुछ वर्षों में यह अंतर समाप्त हो गया है। अब भाजपा का संघ में विलय हो गया है। भाजपा वही करती है जो संघ चाहता है। इसलिए इस पूरे संघ व भाजपा परिवार के मुखिया होने के नाते माननीय भागवत जी को ये बयान देना पड़ा है। जिससे हालात बेक़ाबू होने से पहले संभल जाएं। पर भाजपा और संघ के शुभचिंतकों, हिंदू संतों और हिंदुओं के बहुसंख्यक हिस्से को इस बयान से भाजपा और संघ के अस्तित्व पर ख़तरा नज़र आ रहा है। इस वर्ग का मानना है कि जिस विचारधारा को लेकर संघ पिछले 100 वर्षों से चला, उसे ही इस तरह शिखर पर पहुँचने के बाद, नकार देने से संघ और भाजपा की सार्थकता क्या रह जाएगी? पिछले कुछ वर्षों में विकास के मुद्दों और सामाजिक सुरक्षा के सवालों को उठने से पहले ही संघ की इस विचारधारा ने हमेशा पीछे धकेला। हिंदू गर्व से कहता है कि हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए वो महंगाई और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं को भी भूलने को तैयार है। ऐसे में भागवत जी का ये बयान तपते तवे  पर ठंडे पानी की बौछार जैसा है। यहाँ ये याद रखना असंगत न होगा कि पिछले दशकों में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन चलाने वाले प्रांतीय और राष्ट्रीय नेता जब सत्ता पाने के बाद भ्रष्टाचार को नहीं रोक पाए और उसमें स्वयं भी लिप्त हो गए तो भ्रष्टाचार का मुद्दा ही समाप्त हो गया। इसी तरह इन परिस्थितियों में अब इस बात में कोई संदेह नहीं कि हिंदू राष्ट्र बनाने का मुद्दा भी समाप्त हो जाएगा। इस पर देश में हिंदुओं की क्या प्रतिक्रिया होती है और संघ परिवार उससे कैसे निपटता है, ये तो वक्त ही बताएगा। 

Monday, May 30, 2022

संतशिरोमणि स्वामी वामदेव जी महाराज की आदमकद मूर्ति कहाँ गई?


सारे भारत के संत समाज, भक्तसमाज व हिन्दुओं के लिए अत्यंत क्षोभ व आक्रोश का विषय है कि उत्तराखण्ड सरकार के अधीन हरिद्वार प्रशासन व पुलिस की घोर लापरवाही से स्वामी वामदेव जी महाराज की आदमकद प्रतिमा जो सितम्बर 2021 को चोरी हो गई थी उसका आज तक पता नहीं लगा है।
   

श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के सूत्रधार, विरक्त संत श्रद्धेय वामदेव जी महाराज की यह प्रतिमा खड़ी मुद्रा में थी व अष्टधातु की बनी थी और लाखों रुपए मूल्य की थी। जिसे 2007 में देशभर के संतों ने हरिद्वार के मुख्य स्थान ‘स्वामी वामदेव मार्ग’ पर बड़े उत्साह व वैदिक ऋचाओं के साथ विधि-विधान के साथ स्थापित किया था। जो हरिद्वार के मुख्य चौराहे पर स्थापित थी। बाद में उसे सड़क चौड़ीकरण के लिए हरिद्वार प्रशासन द्वारा अस्थायी रूप से हटाया गया था। संतों को यह अश्वासन दिया गया था कि सड़क का चौड़ीकरण कार्य पूर्ण होते ही इसे पुनः वहीं स्थापित कर दिया जायेगा। पर ऐसा नहीं हुआ। 


स्वामी वामदेव मार्ग की जगह प्रशासन ने उसे फिर एक नये स्थान ‘आस्था मार्ग’ पर ऊँचा चबूतरा बनवाकर स्थापित किया। किंतु उसी रात वो मूर्ति वहाँ से चोरी हो गयी। उसकी जगह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वामी वामदेव जी की छोटी सी पत्थर की मूर्ति रखवाकर उसका सितम्बर 2021 में अनावरण कर दिया। जिससे संत समाज बहुत आहत हुआ और इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया। वैसे भी यह कार्यक्रम पितृपक्ष में किया गया था जबकि कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता।

अगली सुबह हरिद्वार में हड़कम्प मच गया। संतों का प्रतिनिधि मण्डल हरिद्वार के जिलाधिकारी से मिला तो उन्होनें कोई मदद नहीं की। चूंकि इस आयोजन में विहिप के नेता दिनेश जी सक्रिय थे इसलिये संतों ने उनसे भी गुहार लगाई। आश्चर्य है कि प्रशासन की देखरेख में ये चोरी क्यों और किसने की, इसका आजतक पुलिस पता क्यों नहीं लगाया पायी? आम अनुभव है कि यदि चोरी का समय और स्थान बता दिया जाये तो पुलिस चोर को कुछ घंटों में ही पकड़ लेती है। स्वामी वामदेव जी की मूर्ति कोई सुईं नहीं है, जो एक ही रात में लापता हो जाये। वह भी तब जब वह सारे प्रशासन, मुख्यमंत्री, मीडिया व पुलिस की मौजूदगी में कांक्रीट से वहाँ दिन में ही ये स्थापित की गई थी। उल्लेखनीय है कि वहाँ आस्था मार्ग पर सीसीटीवी कैमरे भी लगे थे। फिर चोर आज तक क्यों नहीं पकड़े गये? क्या यह उत्तराखण्ड पुलिस की अकर्मण्यता का प्रमाण नहीं है ? ये लापरवाही हिन्दुओं के इतने श्रद्धेय संत के प्रति उपेक्षा व अपमान का भी परिचायक है।

राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन में स्वामी वामदेव जी के ऐतिहासिक योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वे ‘राम जन्मभूमि मुक्ति समिति’ के ‘मार्गदर्शक मंडल’ के अध्यक्ष थे। जब विहिप अध्यक्ष श्री अशोक सिंघल के प्रयास से संत समाज, राजनैतिक कारणों से संकोच कर इस अभियान से जुड़ने को तैयार नहीं था तब श्री सिंघल ने स्वामी वामदेव जी से निवेदन किया कि वे इस अभियान को अपना आशीर्वाद प्रदान करें। तब हिन्दू संस्कृति की रक्षार्थ स्वामी जी ने साधुओं की अपनी विशाल विरक्त मंडली के साथ पूरे भारत के कोने-कोने में जाकर सभी साधु संतों को श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन से जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया।

जब अक्तूबर 30,1990 को कार सेवा करने बड़ी श्रद्धा से देश के कोने-कोने से अयोध्या पहुँचे लाखों निहत्थे कारसेवकों पर पुलिस ने फ़ाइरिंग करके सैंकड़ों को शहीद कर दिया था, तो उस भयानक रात अयोध्या की गलियों में मौत का सन्नाटा था। गलियों में जहां-तहाँ भक्तों के शव बिखरे पड़े थे। ऐसे आतंक के माहौल में आंदोलन के सभी नेता जहां-तहाँ छिपे थे। पर एक देवता जो सारी रात अकेला उन लाशों के बीच लाठी लेकर घूमता रहा, वो थे बूढ़े, अशक्त और अस्वस्थ श्रद्धेय स्वामी वामदेव जी महाराज। 

ब्रहम्मुहूर्त में जब वे आश्रम में नहीं दिखे तो घबराहट में उनके साथ के साधुओं ने उनको खोजना शुरू किया। तो स्वामी जी गली में लाठी लिये खड़े मिले। चौंककर सबने पूछा महाराज! आप यहाँ क्या कर रहे हैं? उनका उत्तर सुनकर निश्चय ही आपके नेत्र सजल हो जाएँगे। वे बोले, भगवान! मैं रात भर इन शहीदों के शवों की रक्षा करता रहा, जिससे गली के कुत्ते इन भक्तों के पवित्र शवों को अपना ग्रास न बना सकें

तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने स्वामी वामदेव जी से तब कहा था, आप विहिप का साथ छोड़ दीजिए, मैं कल ही आपको राम जन्मभूमि दे दूंगा। स्वामी जी ने कहा आप लोकसभा मे आज ये घोषणा कीजिए, मैं कल ही विहिप का साथ छोड़ दूंगा।

नरसिंह राव जी ने एक बार उनसे कहा आप सुरक्षा गार्ड ले लें। स्वामी जी बोले गर्भ मे जिसने परीक्षित की रक्षा की थी, वे ही मेरा रक्षक है। अयोध्या में ढाँचा गिरने के बाद वे सीधे हरिद्वार आए, उनका कमरा तैयार नहीं था, तो वे मौनी बाबा के तखत पर ही लेट गए। बाबा ने पूछा महाराज आपका काम अधूरा रह गया। मंदिर कब बनेगा? स्वामी वामदेव जी का उत्तर था, मेरे तीन संकल्प थे; 1.जन्मभूमि से पराधीनता का चिन्ह मिटे। 2. भगवा वस्त्रधारी और श्वेतवस्त्रधारी संप्रदाय के भेद को भूलकर एक मंच पर आ जाएं। 3. देश का हिंदू जाग जाए। राम कृपा से तीनों संकल्प पूरे हुए, अब मंदिर कब बनेगा ये रामलला जाने। रामलला ने आज मोदी जी व योगी जी के प्रयास से ये भी पूरा कर दिया।

चूंकि स्वामी वामदेव जी का वृन्दावन के आनंदवन (श्री अखंडानंद आश्रम) से गहरा नाता था। वे भारत की धरोहर तो थे ही वृन्दावनवासियों को भी प्राणों से अधिक प्रिय थे। इसलिये वृन्दावनवासी, सभी संतगण, भागवताचार्य व गोस्वामीगण, इस समाचार को सुनकर अत्यंत व्यथित हैं। उन्होने भी उत्तराखण के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी से मांग की है कि स्वामी जी की उस मूर्ति को अविलम्ब खोजकर ‘आस्था मार्ग’, हरिद्वार पर वहीँ स्थापित किया जाए जहाँ से ये चोरी हुई। अब देखना ये होगा की उत्तराखण्ड की पुलिस कब तक स्वामी वामदेव जी की मूर्ति को खोज कर लाती है। अगर ऐसा नहीं होता तो इसका बहुत गलत सन्देश देशभर के संतगणों व हिन्दू समाज में जाएगा।

Monday, May 23, 2022

मंदिरों पर मस्जिदें क्यों खड़ी रहें ?


क्या भारत, पाकिस्तान या बांग्लादेश में एक भी मंदिर ऐसा है जो किसी मस्जिद को ध्वस्त करके बना हो? अगर है तो ये बात मुसलमान समाज सामने लाये ,हिंदू उस मंदिर को वहाँ से हटाने को सहर्ष राज़ी हो जाएँगे। जबकि देश में लगभग 5000 मस्जिदें ऐसी हैं जो हिंदू मंदिरों को तोड़कर उनके भग्नावेशों के उपर बनाई गयी हैं। 


1990 में पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर में एक व्याख्यान देने मैं गया तो वहाँ के लोग मुझे शर्की वंश के नवाबों की बनवायी इमारतें दिखाने ले गये। जिनमें से एक मशहूर इमारत का नाम था अटाला देवी की मस्जिद। नाम में ही विरोधाभास स्पष्ट था। देवी की मस्जिद कैसे हो सकती है ? 



जो धर्मनिरपेक्षतावादी ये कहते आये हैं कि इतिहास को भूल जाओ आगे की बात करो उनसे मैंने अपने इसी साप्ताहिक कॉलम में पिछले दशकों में बार-बार ये कहा है कि ये कहना आसान है पर करना मुश्किल। हम ब्रजवासी हैं और बचपन से श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर ईदगाह की इमारत खड़ी देखकर हमें वो ख़ौफ़नाक मंजर याद आ जाता है, जब किसी धर्मांध आततायी मुसलमान आक्रामक ने वहाँ खड़े विशाल केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करके ये इमारत तामीर की थी। हर बार हमारे सीने में यही ज़ख़्म दुबारा हरा हो जाता है। 


यही बात उन 5000 मस्जिदों पर भी लागू होती है जो कभी ऐसे ही आक्रांताओं द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनायी गयी थीं। इनमें से हरेक मंदिर से उस नगर के भक्तों की आस्था सदियों से जुड़ी है। फिर वो चाहे विदिशा, मध्यप्रदेश में मंदिरों को तोड़कर बनाई गयी बिजमंडल मस्जिद हो, रुद्र महालय को तोड़कर बनाई पाटन गुजरात की मस्जिद हो, भोजशाला परिसर में सरस्वती मंदिर को तोड़कर बनाई गयी मस्जिद हो, या बंगाल में आदिनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गयी मदीना मस्जिद हो। जिसे आज भारत की सबसे बड़ी मस्जिद माना जाता है। कहा तो ये भी जाता है कि दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे भगवान राम की विशाल मूर्ति दबी पड़ी है। जिस पर चलकर नमाज़ी जाते हैं। 


मेरे पुराने पत्रकार मित्र व भाजपा के दो बार सांसद रहे बलबीर पुंज जब प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ लाहौर गये थे तो एक प्रसिद्ध होटल में खाना खाने गये। जहां जगह-जगह हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के सिर पर गड्ढे बनाकर उनमें मेहमानों द्वारा सिगरेट की राख झाड़ने का काम लिया जा रहा था। ऐसे अपमान को देखकर कौन और कैसे अपने अतीत को भूल सकता है ? 


ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद में मुसलमानों द्वारा हिंदुओं को ‘प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप ऐक्ट 1991’ की याद दिलायी जा रही है। ये ऐक्ट अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद बनाया गया था ताकि आगे किसी और मस्जिद को लेकर ऐसा विवाद खड़ा ना हो। पर क्या इस क़ानून को बनाने से वो सब ज़ख़्म भर गए जो सदियों से हर शहर के हिंदू अपने सीने में छिपाए बैठे हैं? जिन शहरों में उनकी आस्था, संस्कृति, ज्ञान और भक्ति के केंद्रों को ध्वस्त करके उन पर ये मस्जिदें बना दी गयीं थीं? न भरे हैं न कभी भरेंगे। बल्कि हर दिन और ताज़ा होते रहे हैं। आप हमारी पिटाई करो और उसकी फ़ोटो खींच कर रख लो। फिर रोज़ वो फ़ोटो हमें दिखाओ और कहो कि भूल जाओ तुम्हारी कभी पिटाई हुई थी। तो क्या हम भूल पाएँगे? 


धर्मनिरपेक्षवादी, साम्यवादी और मुसलमान, भाजपा व आरएसएस पर ये आरोप लगाते हैं कि ये दल और संगठन हिंदुओं की भावना भड़काकर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करते आए हैं। उनका ये आरोप भी है कि भाजपा की मौजूदा सरकारें रोज़ बढ़ती मँहगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार पर से ध्यान बटाने के लिये ऐसे मुद्दे उछलवाती रहती हैं। उनके इस आरोप में दम है। पर क्या इस आरोप को लगाकर वो पाप धुल जाता है जो इन मस्जिदों को देखकर रोज़ आम हिंदू को याद आता रहा है और वो लगातार अपमानित महसूस करता आया है? नहीं धुलता । 


इसीलिये आज हिंदू समाज योगी और मोदी के पीछे खड़ा हो गया है, इस उम्मीद में कि ये ऐसे मज़बूत नेता हैं जो सदियों पहले खोया उनका सम्मान वापिस दिला रहे हैं। पर इसमें भी एक पेच है। भाजपा के राज में भी जहां कहीं भी काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर की तरह आधुनिकीकरण के नाम पर हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया है, उससे वहाँ के स्थानीय हिंदुओं को वही पीड़ा हुई है जो सदियों पहले मुसलमानों के हमलों से होती थी। इसी तरह भाजपा शासन में मथुरा के गोवर्धन क्षेत्र में स्थित पौराणिक संकर्षण कुंड व रुद्र कुंड का अकारण विध्वंस 2018 में घोटालेबाज़ों के इशारे पर हुआ। उससे भी सभी ब्रजवासियों को भारी पीड़ा हुई है। वे नहीं समझ पा रहे हैं कि योगी राज में हिंदू धर्म व संस्कृति पर ऐसा वीभत्स हमला क्यों किया गया ? 


यहाँ भाजपा व संघ के लिए एक सलाह है। अगर वे केवल मंदिर-मस्जिद और मुसलमान के मुद्दे में ही उलझे रहे और आम जनता की आर्थिक परेशानियों पर ध्यान नहीं दिया तो यहाँ भी श्रीलंका जैसे हालात कभी भी पैदा हो सकते हैं। ख़ासकर तब जन मुफ़्त का राशन मिलना बंद हो जाएगा। 


प्रेस का गला दबाकर, इन सवालों को उठाने वालों को अपनी ट्रोल आर्मी से देशद्रोही या वामपंथी कहलवाकर, उन पर एफ़आईआर दर्ज करवाकर आप कुछ समय के लिए तो आम लोगों को भ्रमित कर सकते हैं, पर लम्बे समय तक नहीं। वो तो कोई मज़बूत और विश्वसनीय विकल्प अभी खड़ा नहीं है वरना इन भीषण समस्याओं के चलते अब तक विपक्ष हावी हो जाता। जैसा कई राज्यों में हुआ भी है। इसलिये कोई मुग़ालते में न रहे। अगर भरे पेट वाले हिंदुओं के लिये मंदिर-मस्जिद का सवाल ज़रूरी है तो ख़ाली पेट वाले करोड़ों हिंदुओं के लिये मँहगायी, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार का सवाल उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है। इनका समाधान नहीं मिलने पर यही लोग आक्रोश में सड़कों पर भी उतरते हैं और पुलिस की लाठी-गोली झेलकर भी वहाँ डटे रहते हैं। इनके ही सैलाब से सरकारें क्षणों में अर्श से फ़र्श पर आ जाती हैं। इसलिए उन सवालों पर भी ईमानदारी से खुलकर बात होनी चाहिये। जिस उत्साह से मंदिर-मस्जिद की बात आज की जा रही है। 


जहां तक भाजपा व आरएसएस की मंदिर राजनीति का प्रश्न है, जिसे लेकर धर्मनिरपेक्ष दल आए दिन उनके ख़िलाफ़ बयान देते हैं, तो इसका सरल हल है। हर वो मस्जिद जो कभी भी हिंदुओं के मंदिर तोड़कर बनायी गयी थी उसे खुद-ब-खुद मुसलमान समाज आगे बढ़कर हिंदुओं को सौंप दें। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। वैसे भी खाड़ी के देशों की आर्थिक मदद से पिछले 30 वर्षों में देश भर में एक से बढ़कर एक भव्य मस्जिदें खड़ी हो चुकी हैं, जिनसे हिंदुओं को कोई गुरेज़  नहीं है। तो फिर हिंदुओं के इन प्राचीन पूजास्थलों पर बनी मस्जिदों को लेकर इतना दुराग्रह क्यों? 

Monday, May 16, 2022

हिंसा नहीं आध्यात्म के बल पर बने हिंदू राष्ट्र


पिछले दिनों हरिद्वार में जो विवादास्पद और बहुचर्चित हिंदू धर्म संसद हुई थी उसके आयोजक स्वामी प्रबोधानंद गिरी जी से पिछले हफ़्ते वृंदावन में लम्बी चर्चा हुई। चर्चा का विषय था भारत हिंदू राष्ट्र कैसे बने? इस चर्चा में अन्य कई संत भी उपस्थित थे। चर्चा के बिंदु वही थे जो पिछले हफ़्ते इसी कॉलम में मैंने लिखे थे और जो प्रातः स्मरणीय विरक्त संत श्री वामदेव जी महाराज के लेख पर आधारित थे। लगभग ऐसे ही विचार गत 35 वर्षों में मैं अपने लेखों में भी प्रकाशित करता रहा हूँ। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत की सनातन वैदिक संस्कृति कम से कम दस हज़ार वर्ष पुरानी है। जिसमें मानव समाज को शेष प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके जीवन जीने की कला बताई गई है। बाक़ी हर सम्प्रदाय गत ढाई हज़ार वर्षों में पनपा है। इसलिए उसके ज्ञान और चेतना का स्रोत वैदिक धर्म ही है। आज समाज में जो वैमनस्य या कुरीतियाँ पैदा हुई हैं वो इन संप्रदायों के मानने वालों की संकुचित मानसिकता के कारण उत्पन्न हुई हैं। आज का हिंदू धर्म भी इसका अपवाद नहीं रहा। यही कारण है जिस हिंदू धर्म की आज बात की जा रही है वह हमारी सनातन वैदिक संस्कृति के अनुरूप नहीं है।
   



पाठकों को याद होगा कि हरिद्वार की धर्म संसद में मुसलमानों के विषय में बहुत आक्रामक और हिंसक भाषा का प्रयोग किया गया था। जिसका संज्ञान न्यायालय और पुलिस ने भी लिया। इस संदर्भ में चर्चा चलने पर मैंने स्वामी प्रबोधानंद गिरी जी से कहा कि इस तेवर से तो हिंदू धर्म का भला नहीं होने वाला। जर्मनी और हाल ही में श्री लंका इसका प्रमाण है जहां समाज के एक बड़े वर्ग के प्रति घृणा उकसा कर पूरा देश को आग में झोंक दिया जाता है। 


यह सही है कि मुसलमानों के धर्मांध नेता उन्हें हमेशा भड़काते हैं और शेष समाज के साथ सौहार्द से नहीं रहने देते। जिसकी प्रतिक्रिया में भारत का हिंदू ही नहीं अनेक देशों के नागरिक उन देशों में रह रहे मुसलमानों के विरोध में खड़े हो रहे हैं। पर हमारा धर्म इन संप्रदायों से कहीं ज़्यादा गहरा और तार्किक है। इसका प्रमाण है कि यूक्रेन में 55 कृष्ण मंदिर हैं रूस में 50 मंदिर हैं। ईरान, इराक़ और पाकिस्तान तक के तमाम मुसलमान श्रीकृष्ण भक्त बन चुके हैं। यह कमाल किया है इस्कॉन के संस्थापक आचार्य ए सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने। जिन्होंने बिना तलवार या बिना सत्ता की मदद के दुनिया भर के करोड़ों विधर्मियों को भगवत गीता का ज्ञान देकर कृष्ण भक्त बना दिया।

 

ऐसा ही एक कृष्ण भक्त ईरानी मुसलमान 30 बरस पहले मेरे दिल्ली घर पर दो दिन ठहरा था। वो ईरान के एक धनी उद्योगपति मुसलमान का बेटा था। जो मुझे वृंदावन मंदिर में मिला। जिसका परिवार कट्टर मुसलमान था। तेहरान विश्वविद्यालय में उसके मुसलमान प्रोफ़ेसर ने उसे गीता का ज्ञान देकर भक्त बनाया था। जब इसने अपने प्रोफ़ेसर से इस गुप्त ज्ञान को प्राप्त करने का स्रोत पूछा तो प्रोफ़ेसर ने बताया कि अमरीका के एक विश्वविद्यालय में पीएचडी की पढ़ाई के दौरान उन्होंने स्वामी प्रभुपाद का प्रवचन सुना, उनसे कई बार मिले और फिर कंठीधारी कृष्ण भक्त बन गए। जबकि बाहरी लिबास में ये दोनों गुरु शिष्य मुसलमान ही दिखते थे। 


ये भक्त जब मेरे घर रहा तो सुबह 3 बजे हम दोनों हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने बैठे। मैंने तो डेढ़ घंटे बाद अपना जप समाप्त कर भजन करना शुरू कर दिया पर यह ईरानी भक्त 6 घंटे तक लगातार जप करता  रहा और तब चरणामृत पी कर उठा। उसकी साधना से मैं इतना प्रभावित हुआ कि उसे आरएसएस की शाखा में ले गया। जहां उससे मिलकर सभी को बहुत हर्ष हुआ। 


इसी तरह पाकिस्तान का एक लम्बा चौड़ा मुसलमान आईटी इंजीनियर मुझे लंदन के इस्कॉन मंदिर में मिला। पूछने पर पता चला कि उसने अपने एक अंग्रेज मित्र के घर प्रभुपाद की लिखी पुस्तक ‘आत्म साक्षात्कार का विज्ञान’ पढ़ी तो इतना प्रभावित हुआ कि अगले ही दिन वो इस्कॉन मंदिर पहुँच गया और फिर क्रमशः श्रीकृष्ण भक्त बन गया। अब। उसका दीक्षा नाम हरिदास है। 


ये उदाहरण पर्याप्त है यह सिद्ध करने के लिए कि हमारी सनातन संस्कृति में इतना दम है कि अगर मस्जिदों के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने और भीड़ में जय श्री राम का ज़ोर-ज़ोर से नारा लगाने की बजाय देश भर के उत्साही हिंदू, विशेषकर युवा, योग्य गुरुओं से श्रीमद् भगवद गीता का ज्ञान प्राप्त कर लें और उसके अनुसार आचरण करें, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि वे भी अर्जुन की तरह जीवन में हर महाभारत जीत सकते हैं। ये ज्ञान ऐसा है कि सबका दिल जीत लेता है-विधर्मी का भी। 


बहुत कम लोगों को पता है कि मुग़लिया सल्तनत के ज़्यादातर बादशाह, शहज़ादे और शहज़ादियाँ वृंदावन के स्वामी हरिदास परम्परा के शिष्य रहे हैं। 1897 में विलायत में जन्मे रिचर्ड निक्सन प्रथम विश्वयुद्ध में विलायती वायुसेना के पायलेट थे। जो जवानी में भारत आ गये। संस्कृत व शास्त्रों का अध्ययन किया और बाद में स्वामी कृष्ण प्रेम नाम से भारत में विख्यात हुए। स्वामी प्रभुपाद ही नहीं भारत के अनेक वैष्णव आचार्यों के भी सैंकड़ों मुसलमान शिष्य पिछली शताब्दियों में सारे भारत में हुए हैं और उन्होंने उच्च कोटि के भक्ति साहित्य की रचना भी की है। 


उत्तर प्रदेश में आईएएस से निवृत्त हुए मेरे मित्र श्री नूर मौहम्मद का कहना है कि पश्चिमी एशिया से तो दो फ़ीसदी मुसलमान भी भारत नहीं आए थे। बाक़ी सब तो भारतीय तो ही थे जो या तो सत्ता के लालच में या हुकूमत के डर से या सवर्णों के अत्याचार से त्रस्त हो कर मुसलमान बन गये थे। वो तब भी पिटे और आज भी पिट रहे हैं। नूर मौहम्मद कहते हैं कि धर्मांध मौलवी हो या हिंदू धर्म गुरु दोनो ही शेष समाज के लिए घातक हैं जो लगातार समाज में विष घोलते हैं।


इस सब चर्चा के बाद स्वामी प्रबोधनंद गिरी जी से यह तय हुआ कि हम निश्चय ही इस तपोभूमि भारत को सनातन मूल्यों पर आधारित हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं और उसके लिए अपनी शक्ति अनुसार योगदान भी करेंगे।पर इस विषय पर देश के संत समाज में व्यापक विमर्श होना चाहिए कि हमारा हिंदू राष्ट्र स्वामी वामदेव जी के सपनों के अनुकूल होगा, जिनका सम्मान सभी धर्मों के लोग करते थे या केवल निहित राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए होगा। ऐसा हिंदू राष्ट्र बनें जिसमें मुसलमान या अन्य धर्मावलम्भी भी स्वयं को हिंदू कहने में गर्व अनुभव करें। जहां प्रकृति  से सामंजस्य रखते हुए हर भारतीय अपने जीवन को वैदिक नियमों से संचालित करे और पश्चिम की आत्मघाती उपभोक्तावादी चकाचौंध से बचे। जिसका आह्वान आज पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद महाराज जी भी कर रहे हैं । हरि हमें सदबुद्धि दें और हम सब पर कृपा करें।

Monday, May 9, 2022

क्यों बने भारत हिन्दू राष्ट्र ?


जब भारत का कोई संत श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में जुड़ने को तैयार नहीं था तब देशभर के संतों को जोड़कर अकेले अपने बूते पर इस आंदोलन को खड़ा करने वाले विरक्त संत स्वामी वामदेव जी महाराज की प्रबल इच्छा थी कि भारत हिंदू राष्ट्र बने। इस विषय पर दशकों पुराना उनका लेख वृंदावन के विरक्त संत और स्वामी वामदेव महाराज के दाहिने हाथ रहे त्यागी बाबा से प्राप्त हुआ है। उसे यहाँ ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ,
वह राष्ट्र जिसका नाम इण्डिया के स्थान में हिन्दुस्थान होगा, क्योंकि संविधान में ‘इण्डिया दैट इज भारत’ इण्डिया देश का नाम है और ‘भारत’ द्वितीय श्रेणी का नाम है। इसलिये इण्डिया के स्थान में हिन्दुस्थान होना आवश्यक है, जिससे ऐसा भान हो, कि यह देश हिन्दू संस्कृति का है। ऐसा सांस्कृतिक वातावरण बनाया जायेगा, जहाँ हर व्यक्ति सर्वसुखी हों, सर्वनिरोगी हो, सर्व अपनी इन्द्रियों से सुखदायी वस्तु का अनुभव करें। कोई दुःखी न हो, इस संकल्प के साथ अपने दैनिक कार्यों का प्रारम्भ करेगा। स्वामी जी लिखते हैं। 


स्वामी जी कहते हैं कि, हिन्दू-राष्ट्र शब्द उस भूभाग का बोध कराता है, जहाँ पवित्र हिमालय पर्वत है, जहाँ गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी, ब्रह्मपुत्रादिक अनेकानेक नदी-नद बह रहे हैं। जो अनेक अवतारों की जन्मभूमि है। जिसे अनेक धर्मगुरुओं ने जन्म पवित्र किया है। जहाँ अनेक वीर तथा वीरांगनाओं की गाथा गूँज रहीं हैं। जहाँ युग परिवर्तन के समय अपना दिशा दर्शन देने वाले महापुरुष जन्मे हैं। जहाँ अध्यात्म चर्चा व्यक्ति के जीवन में नया उल्लास फूँक रही है। जहाँ की संस्कृति अनेक मत पंथों तथा भाषाओं आदि को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही नहीं देती, अपितु उनका पोषण तथा सामंजस्य भी स्थापित करती है। ऐसा बोध इण्डिया शब्द से नहीं होता।



इसलिए वे चाहते थे कि देश का नाम हिन्दुस्थान होना चाहिये। यह देश हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। कन्याकुमारी में ही इन्दू सरोवर है। हिमालय से कन्याकुमारी (इन्दू सरोवर) तक फैले इस देश का परिचय थोड़े शब्दों में देने की प्रक्रिया के अनुसार हिमालय का प्रथम अक्षर 'हि' ग्रहण कर तथा इन्दू सरोवर के नाम से 'न्दू' अक्षर को ग्रहण करके अर्थात् हि + न्दू = हिन्दू नाम इस विस्तृत देश का मनीषियों ने ही रखा है। इसे हिन्दुस्थान कहते आये हैं। गालिब आदि अनेक मुसलमान विद्वानों ने भी इस देश को हिन्दुस्थान नाम देकर ही गौरव प्रदान किया है। इसमें रहने वाले लोग इस देश के नाम के अनुसार अपने को हिन्दू मानते चले आये हैं। अंग्रेजों के आने से पहले यहाँ के मुसलमानों ने भी इस देश का नाम हिन्दुस्थान ही तो माना था। अंग्रेजों के आने पर इसका नाम इण्डिया रखा था। जब इस देश से अंग्रेजी शासन चला गया तो उनकी गुलामी का बोध कराने वाले विक्टोरिया आदि की पाषाणादि की प्रतिमायें हटा दी गई। उसी समय से इण्डिया नाम भी अंग्रेजों की गुलामी का बोध कराने वाला है, अतः हटा देना चाहिए था। इण्डिया नाम संविधान में संशोधन कर निकाल दिया जायेगा तथा हिन्दुस्थान नाम को संविधान में लाकर सम्मान देंगे।


वे लिखते हैं कि विदेशों में जब कभी कई देशों की बैठकें होती है तथा उस बैठक में भारत भी शामिल होता है। वहाँ अन्य देशों के प्रतिनिधियों के बैठने का स्थान नियत होता है। उस स्थान पर हर देश का नाम लिखा रहता है। जैसे जो स्थान पाकिस्तान के प्रतिनिधि के लिए होगा, उस पर पाकिस्तान लिखा रहता है। लंका के प्रतिनिधि के स्थान पर श्रीलंका ऐसा लिखा रहता है, परन्तु भारत के प्रतिनिधि के स्थान पर इण्डिया लिखा रहता है। हर स्वाभिमानी देश का नागरिक इण्डिया नाम से इस देश में गुलामी का स्मरण करता है। अतः गुलामी का स्मरण कराने वाला इण्डिया नाम देश के लिये अपमान का जनक है। इस देश का आम व्यक्ति यह समझता है, कि इस देश का नाम भारत है, परन्तु सन् 1992 तदनुसार संवत् 2048 के उज्जैन कुम्भ में सरकार की ओर से लगे मार्ग-दर्शक पट्टिका की ओर ध्यान गया तो देखा, उनके ऊपर इण्डिया नाम में लिखा था तथा उसके नीचे भारत नाम लिखा था अर्थात् भारत नाम दूसरी श्रेणी का है, उत्तम श्रेणी का नाम तो इण्डिया है। स्वतन्त्रता से पूर्व लंका का नाम सीलोन था। जब लंका स्वतंत्र हुआ तो अंग्रेजों की पराधीनता का नाम त्याग दिया। देश का नाम उन्होंने लंका ही नहीं किन्तु 'श्रीलंका' रखकर अपने देश को गौरवान्वित किया है, परन्तु हमारे नेताओं ने ऐसा नहीं किया। ऐसा न करना देश के गौरव के अत्यन्त विरुद्ध है। ऐसा यदि जानकर किया है तो अपराध है और यदि अनजाने में किया है तो भूल है। यदि अंग्रेजों से दबकर किया है तो यह गुलामी है।


स्वामी जी आगे कहते हैं कि विश्व में मुख्य रूप से रहने वाली जनता ईसाई, मुसलमान और हिन्दू नाम से जानी जाती है। उनमें से यीशु के द्वारा प्रचारित रिलिजन को मानने वाले ईसाई और मोहम्मद साहब द्वारा प्रचारित मजहब को मानने वाले मुसलमान कहलाते हैं। किसी कल्चर, मजहब या पंथ को मानने के कारण हिन्दू का नाम नहीं रखा गया है, किन्तु भारत-भूमि में जन्मी सभी विचार पद्धतियों का एक मात्र केन्द्र हिन्दू है। अतएव वह असाम्प्रदायिक तथा पंथ-निरपेक्ष है। उसने किसी की पूजा-पद्धति से द्वेष नहीं किया है। उदाहरण के लिये इस देश में पारसी आये, उनके रहन-सहन से हिन्दू को कोई द्वेष नहीं है। संसार में अपमानित और प्रताड़ित होकर भारत में यहूदी आये। हिन्दुओं में सम्मानपूर्वक रहे, इसका इतिहास साक्षी है। परन्तु आज इन विशिष्ट गुणों से युक्त हिन्दू को साम्प्रदायिक आदि शब्दों से अपमानित किया जा रहा है तथा साम्प्रदायिक, राष्ट्र-द्रोही लोगों को प्रोत्साहन देकर देश में खूनी संघर्ष किये जा रहे हैं। इन कारणों से देश में आर्थिक संकट तथा नैतिकता का पतन हो रहा है।


वे दृढ़ता कहते हैं कि यद्यपि यह देश हिन्दू-राष्ट्र ही है तथापि जिस दिन हिन्दू राष्ट्र के नाम से इस देश की घोषणा होगी, उस दिन हिंदुओं में अपने विशिष्ट गुणों को लेकर एक ऐसी जागृति में आयेगा कि फिर इस देश में साम्प्रदायिकता और राष्ट्रद्रोह को अवकाश प्राप्त नहीं होगा। इसके आधार पर होने वाले खूनी संघर्ष भी समाप्त हो जाएँगे।


अपने अनुभव के आधार पर वामदेव महाराज कहते हैं कि यद्यपि वेदान्त का अध्ययन और साधना, जिन वृद्ध संतो के संरक्षण में मैं करता था, उस काल में मेरा अखबारी दुनियाँ से कोई सम्बन्ध नहीं था तथापि जिस समय भारत को धर्म-निरपेक्ष देश घोषित किया गया, उसके विषय में वे संतगण कहा करते थे, कि देश को धर्म-निरपेक्ष घोषित करने वाले नेताओं के पास उनके अजीज ईसाई और मुसलमान गये और कहा हम तो धर्म-निरपेक्ष नहीं हो सकते, तब उनसे नेताओं ने कहा, भले ही आप धर्म-निरपेक्ष न रहें, परन्तु आपसे अतिरिक्त भी तो जनता है, वह धर्म निरपेक्ष रहेगी। जिसका सीधा अर्थ था कि धर्म-निरपेक्षता हिन्दुओं के लिए ही थी। किन्तु धर्म-निरपेक्षता का अर्थ सर्व-धर्म-समभाव है ऐसा प्रचार करके हिन्दुओं को गुमराह किया गया। अब तो यह बात मुस्लिम लीग के साथ गठबन्धन करने, मिजोरम आदि में बाइबिल के अनुसार शासन चलाने के आश्वासन देने आदि से स्पष्ट है कि ये उसी भावना की देन है। अतः अपराध के प्रायश्चित स्वरूप, भूल के सुधार स्वरूप, गुलामी की भावना के परित्याग रूप में, इण्डिया नाम देश के संविधान से निकाल देना होगा। देश के हिन्दुस्थान नाम की जगह इण्डिया नाम रहने से ऐसा भी लगता है, मानो हिन्दू नाम की विरोधी भावनाओं की ही यह देन है। इस भावना की निवृत्ति के लिये भी इसका परिवर्तन आवश्यक है। इस नाम के रहते संविधान हिन्दू विरोधी है, यह भाव भी अभिव्यक्त होता है। तब संविधान को यदि कोई हिन्दू विरोधी कहता है तो वे लोग उलटा-सीधा बोलते हैं, जो इण्डिया नाम के रखने के अपराध, भूल, गुलामी तथा हिन्दू विरोध की पुष्टि करते चले आ रहे हैं। इस हिन्दू विरोध के कारण ही, इस देश की धरती, संस्कृति तथा गौरव की भावनाओं में उत्पन्न हिन्दू से एक वर्ग (मुसलमान) घृणा करने लगा है। अतएव कट्टरपंथी मुसलमान तथा उनके कट्टरपने को पुष्ट करने वाले राजनैतिक नेता लोग, हिन्दू राष्ट्र का नाम सुनते ही चिल्लाने लगते हैं कि यह देश को तोड़ने का षड्यंत्र है। मुसलमानों में असुरक्षा की भावना पैदा हो रही है। इस विषय में हम विशेष तर्क न देकर कहना चाहते हैं कि नेपाल हिन्दू राष्ट्र है (तब था) वहाँ कौन ईसाई या मुसलमान असुरक्षित है? कौन देश तोड़ने की रट लगा रहा है? यह बात अवश्य है कि हिन्दू नाम से घृणा करने वाले राजनैतिक दलों द्वारा घृणा फैलाकर वोटों का स्वार्थ पूरा किया जा रहा है, उनका वह स्वार्थ अवश्य संकटग्रस्त हो जायेगा।


साम्प्रदायिक सद्भाव के संदर्भ में वे लिखते हैं सर्व वर्गों, सर्व मत-पंथों में समरसता लाने के लिये हिन्दू राष्ट्र भारत का नाम हिन्दुस्थान रखना ही उचित है। जैसा कि अंग्रेजों से पहले भी था। हिन्दुस्थान का प्रत्येक नागरिक हिन्दू, मुसलमान भी हिन्दू, ईसाई भी हिन्दू, जैन भी हिन्दू, सनातनी आर्य भी हिन्दू, कबीरपंथी भी हिन्दू, सिख भी हिन्दू, पारसी भी हिन्दू। हम सब एक हैं। हमारा हिन्दू राष्ट्र एक है। मन्दिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे पूजा के स्थान हैं। पूजा हम अपनी पद्धति से करें, परन्तु सर्व स्थान सबके लिये सम्मान्य होंगे। इनमें से किसी का भी अपमान सर्व का अपमान है। इस भावना की अभिव्यक्ति का कारण बनेगा हिन्दू राष्ट्र अगर इसका हिन्दुस्थान नाम हो गया तो। आज तो धर्म-निरपेक्षता बनाम हिन्दू धर्म-निरपेक्षता है। 


वे कहते हैं कि परिणामतः देश के राजनेता, विदेशों में भी कहीं हिन्दू सम्मेलन होते हैं तो भारत सरकार के राजदूत को आमन्त्रित करने पर भी उनमें भाग न लेकर हिन्दू धर्म की उपेक्षा करते हैं। साथ ही विदेशों में भी कहीं हिन्दुओं पर अत्याचार हो तो भारत सरकार उन देशों को यह कहकर नहीं ललकार सकती, कि आपके यहाँ हिन्दुओं पर क्यों अत्याचार हो रहे हैं, क्योंकि यहाँ की सरकार अपने को हिन्दू-निरपेक्ष मानती है। फिजी में हिन्दुओं पर अत्याचार हुआ तो उसकी अनुभूति भारत सरकार को नहीं हुई, परन्तु मालद्वीप में मुसलमान सरकार पर संकट आया तो उसकी बहुत भारी अनुभूति हुई। साथ ही सेना भेजकर उसके संकट को दूर कर दिया। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि धर्म-निरपेक्षता के नाम पर बनी सरकार हिन्दू के साथ अन्याय पूर्वक पक्षपात करती है। सरकार हिन्दुओं के ईसाईकरण तथा इस्लामीकरण को भी प्रोत्साहन देती है, जिससे हिन्दुओं की जनसंख्या निरन्तर कम होती चली जा रही है।


वे लिखते हैं कि भारत वर्ष में साम्प्रदायिकता, राष्ट्रद्रोहः व इस आधार पर होने वाले खूनी संघर्ष, धर्म-निरपेक्षता के नाम पर हिन्दू धर्मनिरपेक्षता, हिन्दुओं के साथ अन्यायपूर्ण पक्षपात तथा हिन्दुओं की जनसंख्या कम करने के उपायों की समाप्ति पूर्वक राष्ट्र में आर्थिक और नैतिक उत्थान के लिये देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना आवश्यक है।

Monday, May 2, 2022

मुख्य मंत्री योगी जी की भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांतिकारी पहल


उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी जी ने एक क्रांतिकारी घोषणा की है कि सभी अफ़सर, मंत्री व विधायक तीन महीने के अंदर अपनी चल-अचल सभी सम्पत्तियों की घोषणा सार्वजनिक करें। ज़ाहिर है कि इस घोषणा से अफ़सरशाही और मंत्रियों में हड़कम्प मचेगा। भ्रष्टाचार से जनता हमेशा त्रस्त रहती है। इसलिए जब भी कोई नेता इस मुद्दे को उठाता है तो उसकी लोकप्रियता सातवें आसमान पर चढ़ जाती है। योगी जी को भी इस घोषणा से ये लाभ मिल सकता है। बशर्ते वे इसे अपने बुलडोज़र वाले तेवर से लागू करें।
 


बोफ़ोर्स का मुद्दा उठाकर ही विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बन गए थे। इसी मुद्दे को उठाकर अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गए। ये बात दूसरी है कि दोनों के मुद्दे फुस्स रहे और जिनके ख़िलाफ़ इन्होंने अपना अभियान चलाया था और ढेरों सबूत सामने लाने का जन सभाओं में बार-बार आश्वासन दिया था, वो कभी सामने ही नहीं आए। 


दरअसल कोई भी नेता भ्रष्टाचार से ईमानदारी से लड़ना नहीं चाहता। सब इस पर शोर मचा कर कुर्सी हथियाते हैं और फ़िर मौन हो जाते हैं। पर योगी जी कुर्सी पाने के बाद भी अगर इस अभियान को शुरू कर रहे हैं तो उन्हें हल्के में नहीं लेना चाहिए। बाबा इरादे के पक्के हैं और जानते हैं कि प्रदेश के विकास का धन हुक्मरानों की तिजोरियों में चला जा रहा है। इसलिए वे इस मुहीम को कैसे आगे बढ़ाते हैं ये बात प्रदेश की ही नहीं देश भर की जनता देखेगी।


पर योगी जी को ये ध्यान रखना होगा कि उनके इर्द गिर्द के अफ़सरान ही उनके इस महत्वपूर्ण अभियान को पलीता न लगा दें। जैसा वे अभी तक लगाते आए हैं। इस कॉलम के पाठकों को याद होगा कि 29 जून 2020 और 20 जुलाई 2020 को हमने योगी जी के वीआईपी पाइलट कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा के भारी भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था। इस पाइलट के परिवार की 200 से ज़्यादा ‘शैल कम्पनियों’ में हज़ारों करोड़ रुपया घूम रहा है। जिसे सप्रमाण दिल्ली में मेरे सहयोगी, कालचक्र समाचार ब्युरो के प्रबंधकीय सम्पादक रजनीश कपूर ने उजागर किया था। कपूर की शिकायत पर ही प्रवर्तन निदेशालय ने प्रज्ञेश मिश्रा के ख़िलाफ़ जाँच करने का नोटिस उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को 19 मई 2020 को जारी किया था। आश्चर्य है कि दो साल में भी इसकी जाँच क्यों नहीं हुई? 


रजनीश कपूर ने उत्तर प्रदेश की महामहिम राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को भी इसकी जाँच न होने की लिखित शिकायत अप्रैल 2021 भेजी। राज्यपाल महोदया ने तुरंत 31 मई 2021 को उत्तर प्रदेश शासन को इस जाँच को करने के निदेश दिए। पर उस जाँच का क्या हुआ, आज तक नहीं पता चला। 


इस बीच यूपी के कई बड़े अफ़सरों व नेताओं ने रजनीश कपूर पर दबाव डालने की नाकाम कोशिश की जिससे वे इस जाँच को करवाने की अपनी ज़िद छोड़ दें। जाहिरन उन सबके सैकड़ों करोड़ रुपए कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा की कम्पनियों में लगे होंगे, तभी उन सब में आज तक इस मामले को लेकर इतनी बेचैनी है। 


रजनीश कपूर ने कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा की इन ‘शैल कम्पनियों’ की कई सूचियाँ भी योगी जी के कार्यालय को भेजी हैं। मैने भी ट्वीटर पर योगी जी का ध्यान कई बार इस ओर दिलाया है कि ये जाँच जानबूझकर दबाई जा रही है। उधर उत्तर प्रदेश शासन ने अपनी तरफ़ से आश्वस्त होने के लिए या कपूर का नैतिक बल परखने के लिए, उनसे शपथ पत्र भी लिया कि वे अपनी शिकायत पर क़ायम हैं और पूरी ज़िम्मेदारी से ये मामला जनहित में उठा रहे हैं। इसके बाद भी जाँच क्यों नहीं हुई ये चिंता का विषय है। अगर इन कम्पनियों में घूम रहे हज़ारों करोड़ रुपए का स्रोत कैप्टन प्रज्ञेश मिश्र या उनके परिवारजनों से कड़ाई से पूछा गया होता तो अब तक प्रदेश के कितने ही बड़े अफ़सर और नेता बेनक़ाब हो चुके होते। इसीलिए उन्होंने इस जाँच को आज तक आगे नहीं बढ़ने दिया और योगी जी को लगातार धोखे में रखा। अब योगी जी को इस जाँच का बुलडोज़र तेज़ी से चलाना चाहिए। इस से उनकी छवि तो बनेगी ही, भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनके इस अभियान की ईमानदारी भी सिद्ध होगी। क्योंकि किसी मुख्यमंत्री के एक साधारण से पाइलट को कुछ लाख रुपए का ही वेतन मिलता है। उस पर इतनी अकूत दौलत कहाँ से आ गयी, ये योगी जी के लिए गहरी चिंता का कारण होना चाहिए। 


इस पाइलट पर यह भी आरोप था कि इसने अपने आपराधिक इतिहास की जानकारी छुपा कर अपने लिए ‘एयरपोर्ट एंट्री पास’ हासिल किया था। इसकी शिकायत भी रजनीश ने नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) के महानिदेशक  राकेश अस्थाना से की और जाँच के बाद सभी आरोपों को सही पाए जाने पर इसका ‘एयरपोर्ट एंट्री पास’ भी रद्द किया गया। 


उत्तर प्रदेश सरकार में सूत्रों की मानें तो जब योगी जी को इस पाइलट की असलियत का पता चला तो कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा, जो कि उस समय उत्तर प्रदेश नागरिक उड्डयन विभाग का ऑपरेशन मैनेजर था, उसका प्रदेश के किसी भी हवाई अड्डे पर प्रवेश वर्जित कर दिया गया। रजनीश कपूर की शिकायत पर ही कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा का हवाई जहाज उड़ाने का लाईसेंस भी डीजीसीए से सस्पेंड कर दिया गया था। योगी जी के निर्देश पर मुख्यमंत्री कार्यालय और आवास पर भी उसका प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था। पर उसके महाघोटालों को देखते हुए ये सब बहुत सतही कार्यवाही है। उत्तर प्रदेश शासन के जो ताक़तवर मंत्री और अफ़सर उसके साथ अपनी अवैध कमाई को ठिकाने लगाने में आज तक जुटे रहे हैं, वो ही उसे आज भी बचाने में लगे हैं। क्योंकि कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा के विरुद्ध ईमानदारी से जाँच का मतलब उत्तर प्रदेश शासन में बीस वर्षों से व्याप्त भारी भ्रष्टाचार के क़िले का ढहना होगा। तो ये लोग क्यों कोई जाँच होने देंगे? 


इसी के साथ एक काम करना और ज़रूरी है जो योगी जी के इस अभियान को सफल बनाएगा। आज प्रदेश में विकास का काम करने के लिए सैंकड़ों करोड़ रुपए के बजट से खेलने वाले कुछ ऐसे अफ़सर हैं जो एक ही शहर में बीस बीस बरस से कुंडली मारे बैठे हैं। कोई भी सरकार आ जाए ये विभाग बदल बदल कर वहीं तैनात रहते हैं। इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण तो मथुरा के ‘ब्रज तीर्थ विकास परिषद’ में ही देखा जा सकता है। किसी अफ़सर का एक शहर में तीन बरस से ज़्यादा रहना उसकी ईमानदारी पर सवाल खड़े करता है। इसलिए शुरू से ये प्रथा रही है कि अफ़सरों के तबादले हर तीन साल में कर दिए जाते हैं। योगी जी को पूरे प्रदेश में ये फेरबदल भी तुरंत करनी होगी वरना वे भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं कस पाएँगे। अब देखना यह है कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ हिम्मत से छेड़ी इस मुहीम को योगी जी कितनी तेज़ी से आगे बढ़ाते हैं ?