दुनिया भर के भ्रश्ट तानाषाह, सेनाध्यक्ष, राजनेता, नषीली दवाओं के तस्कर, हथियारों के सौदागर, बड़े नौकरषाह और उद्योगपति भी लंबे अर्से से अपनी अवैध अकूत दौतल स्विसबैंकों में जमा करते आए हैं। क्योंकि इन बैंकों में जमा की गई दौलत की थाह नहीं पाई जा सकती थी। दूसरे देषों की सरकारें तो दूर स्वीट्जरलैंड की सरकार भी इन खातों का पता नहीं लगा सकती। इसलिए दुनिया के किसी भी हिस्से में धन क्यों न कमाया जाए उसे स्विसबैंकों के खातों में ही जमा किया जाता था। एक अनुमान के अनुसार दुनिया की 40 फीसदी से ज्यादा दौलत स्वीट्जरलैंड में जमा है। षेश 60 फीसदी दौलत दुनिया के बाकी देषों में है। इतनी सारी दौलत को सहेज कर रखने में स्विस नागरिकों को कतई दिक्कत नहीं आती। दरअसल, बैंकिंग व्यवसाय उनके रक्त और संस्कारों में बसा है। वे इसे राश्ट्रीय गौरव मानते हैं। अनेक परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इन बैंको में काम करते आए हैं। ये लोग अपने काम के बारे में इतने गोपनीय होते हैं और समाज में इतने सिमटे रहते हैं कि इनसे कुछ भी उगलवाना संभव नहीं होता। यही कारण है कि पिछली सदियों के राजे-महाराजे भी अपना धन इन बैंकों में जमा करते थे। कई बार ऐसा भी होता है कि धन जमा करने वाला अचानक चल बसा और उसके स्विसबैंक में चल रहे गोपनीय खाते की जानकारी उसके साथ ही चली गई। नतीजतन उसके वारिसों को भी यह धन नसीब नहीं हुआ। ऐसे तमाम लोगों का लावारिस धन स्विसबैंक के खातों और लाॅकरों में पड़ा है।
स्विसबैंक में खाता खोलने का तरीका भी बड़ा जटिल और गोपनीय है। बैंक के मैनेजर और कर्मचारियों तक को नहीं पता होता कि किस खाते में किस व्यक्ति की रकम है। इस व्यवसाय के जानकार बताते हैं कि जब कोई व्यक्ति अपनी अकूत दौलत स्विसबैंक में जमा करने आता है तो वह बैंक के मैनेजर से संपर्क करता है। यदि मैनेजर को लगता है कि यह ग्राहक ठीक-ठाक है तो वह उसे बैंक के दो ऐसे अधिकारियों से मिलवा देता है जो उस व्यक्ति का खाता खुलवाने का काम करते हैं। ये दो या तीन व्यक्ति उन अधिकारियों में से होते हैं जिनकी विष्वसनीयता पर कोई उंगली नहीं उठा सकता। इन्हें नए खाताधारी का बैंकिंग सचिव कहा जाता है। खाता खोलने की सब औपचारिकताएं ये ही पूरी करवाते हैं और सब कागजात पूरे हो जाने के बाद खाताधारी को स्विसबैंक का एकाउंट नंबर दे देते हैं। किंतु अपनी फाइल में असली खाता नंबर न डालकर एक कोड नाम डाल देते हैं। मसलन अगर खाता खोलने वाले का नाम राजकुमार लालवानी है तो उसके खाते का नंबर हो सकता है प्रिंस रेड 98। खाते का नंबर ग्राहक को बताने के बाद उसका कोड फिर बदल दिया जाता है और अब संबंधित बैंकिंग सचिव इस खाते से संबंधित फाइल को बंद करके एक ऐसे कक्ष में ले जाते हैं जहां काउंटर के ऊपर धुंधले कांच की दीवार बनी होती है। इस दीवार की तली में जो बारीक-सी झिरि होती है उसमें से होकर नए खातेदार की यह गोपनीय फाइल दूसरी तरफ सरका दी जाती है। दूसरी तरफ जो व्यक्ति उस फाइल को लेता है उसे यह नहीं पता होता कि यह फाइल किसकी है और षीषे के बाहर से फाइल देने वाले बैंकिंग सचिवों को यह नहीं पता होता कि षीषे के दीवार के पीछे इस फाइल को किसने लेकर लाॅकर में रखा है। इस तरह नए खातेदार के खाते से संबंधित जो पांच-छह लोग होते हैं उनमें से किसी को भी पूरी जानकारी नहीं होती।
इस काम में जो कर्मचारी लगे होते हैं वे बैंक के विष्वसनीय अधिकारी होते हैं और इस बात के प्रति आष्वस्त हुआ जा सकता है कि गोपनीय जानकारी बाहर नहीं जाएगी। ऐसी घटनाएं इक्का-दुक्का ही हुई हैं। मजे की बात तो यह है कि स्विसबैंक में धन जमा करने वालों को ब्याज मिलना तो दूर इस धन के संरक्षण के लिए उन्हें नियमित फीस देनी होती है। इस तरह स्वीट्जरलैंड में अथाह धन जमा हो गया है। आबादी थोड़ी सी, जीवन स्तर में ज्यादा तड़क-भड़क की गुंजाइष नहीं इसलिए उनकी जरूरत से कहीं ज्यादा धन उनके लिए उपलब्ध है। स्विस नागरिक अब तक यह मानते आए थे कि धन कहां से आ रहा है इसका उनसे कोई सारोकार नहीं। उनके लिए हर तरह के धन का रंग समान था और वे किसी का भी धन लेने में संकोच नहीं करते थे। वे बैंकिंग को षुद्ध आर्थिक व्यवसाय के रूप में देखते थे। पर अब स्थिति बदल रही है।
अब उन्हें भी पता है कि दुनिया भर मे गरीबी, कुपोशण व भूख बढ़ती जा रही है। दुनिया के तमाम देषों के भ्रश्ट नेता और नौकरषाह अपने भ्रश्ट आचरण के कारण जनता को दुख दे रहे हैं। नषीली दवाओं के सेवन से समाज और बचपन प्रदूशित हो रहे हैं। ऐसे माहौल में स्वीट्जरलैंड दुनिया के प्रति सारोकार से उदासीन होकर नहीं रह सकता। मानवीय संवेदनाओं से षून्य होकर भी नहीं रह सकता। जब दुनिया भर के अपराधी स्वीट्जरलैंड में चोरी का धन छुपाएंगे तो स्वीट्जरलैंड इस अनैतिकता के पाप का भागीगार बने बिना नहीं रह सकता। ऐसे विचारों ने स्वीट्जरलैंड के नागरिकों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर किया। इसके साथ ही दुनियाभर में स्विसबैंकों के खातों के प्रति जागरूकता और उनमें अवैध रूप से जमा अपने देष का धन वापस देष में लाने की मांग कई देषों में उठने लगी। इस सबका नतीजा यह हुआ कि स्विस नागरिकों ने अपने संविधान में संषोधन किया। चूंकि स्वीट्जरलैंड दुनिया का सबसे परिपक्व लोकतंत्र है इसलिए वहां हर कानून बनने के पहले जनता का आम मतदान कराया जाता है। बहुमत मिलने पर ही कानून बन पाता है। इसलिए जब स्विस नागरिकों को नैतिक दायित्व का एहसास हुआ तो उन्होंने एक कानून बनाया जिसके अनुसार अब स्विसबैंकों में खोले गए खाते गोपनीय नहीं रहेंगे। स्वीट्जरलैंड की या अन्य किसी भी देष की सरकारें इन खातों की जानकारी प्राप्त कर सकती हंै। इसके लिए करना सिर्फ यह होगा कि संबंधित देष को उस व्यक्ति के खिलाफ, जिसके स्विस खाता होने का संदेह है, एक आपराधिक मामला दर्ज करना होगा। इसके बाद उस देष की सरकार स्वीट्जरलैंड की सरकार को आधिकारिक पत्र लिखेगी जिसमें उस व्यक्ति के विरूद्ध दर्ज आपराधिक मामले का हवाला देते हुए स्वीट्जरलैंड की सरकार से अनुरोध करेगी कि वह पता करके बताए कि उस व्यक्ति का कोई गोपनीय खाता स्वीट्जरलैंड के बैंकों में तो नहीं है ? इस पत्र के प्राप्त हो जाने के बाद स्वीट्जरलैंड की सरकार सभी बैंकों इस पत्र की प्रतिलिपियां भेजेगी और उन बैंकों से यह जानकारी मांगेगी। अगर किसी बैंक में संबंधित व्यक्ति का गोपनीय खाता चल रहा होगा तो बैंक को उसकी पूरी जानकारी अपनी सरकार को देनी होगी। स्वीट्जरलैंड की सरकार यह जानकारी संबंधित देष में भेज देगी। आवष्यकता पड़ने पर वह गोपनीय खाते में जमा रकम को भी उस देष को लौटा देगी। ऐसा कई मामलों में हो चुका है। इसलिए अब स्विसबैंकों में जमा अवैध धन गोपनीय नहीं रह सकता। बषर्तें कि खाताधारक के विरूद्ध आपराधिक मामला दर्ज हो।
स्वीट्जरलैंड में इस नए कानून के बन जाने से दुनिया के उन देषों की सरकारों को बहुत सहुलियत होगी जिन देषों का अवैध धन इन बैंकों में जमा है। अब तो बस किसी भी सरकार को इतना सा करना है कि वह ऐसे व्यक्तियों के विरूद्ध, चाहे वे कितने ही ऊंचे पद पर क्यों न बैंठे हों, केस दर्ज कराए और स्वीट्जरलैंड के बैंको में उनके खातों की जांच करवाए। जो भी सरकार अपनी साफ छवि होने का दावा करती है या जो प्रधानमंत्री भी यह दावा करते हैं कि देष को भ्रश्टाचार मुक्त प्रषासन देंगे उनका यह नैतिक दायित्व है कि वे ऐसे लोगों के विरूद्ध कार्रवाही करें जिन पर जनता की अकूत दौलत होने के संदेह हैं। ऐसे लोगों को चिराग लेकर ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्हें सब जानते हैं। यहां तक कि उनके इलाके के आम नागरिक भी। हां अगर गरीब देषों की सरकारें ही अपने देष का धन वापिस अपने देष में न लाना चाहें तो कोई क्या कर सकता है ?
पुरानी कहावत है कि तू डाल-डाल तो मैं पात-पात। जबसे स्वीट्जरलैंड में यह कानून बना है तब से ही इससे निपटने के नए तरीके ईजाद कर लिए गए हैं। अब माॅरीषस जैसे तमाम देषों में नकली कंपनियां रजिस्टर कराई जाती हैं। जिनके षेयर पूरी दुनिया में जारी किए जाते हैं। अवैध रूप से अर्जित धन के स्वामी इन षेयरों को छद्म नामों से खरीद लेते हैं। इस तरह वे अपनी अवैध दौलत कंपनी के खाते में जमा करवा देते हैं। ये कंपनियां फिर स्वीट्जरलैंड के बैंकों में कंपनी के नाम से खाते खोल लेती हैं। इस तरह स्वीट्जरलैंड के नए कानून को भी धता बता कर अवैध धन को जमा करने का सिलसिला जारी हैं। पर जब कभी स्वीट्जरलैंड के जागरूक नागरिकों की तरह ही अन्य देषों के नागरिक भी इस गोपनीय व्यवस्था के विरूद्ध उठ खेड़े होंगे तो स्विजबैंकों में जमा अवैध रकम के अपने-अपने देष में वापस लाने के रास्ते खुल जाएंगे।
अब यह दारोमदार तो तीसरी दुनिया के देषों के नागरिकों और उनकी सरकारों पर है। यदि वे स्वीट्जरलैंड में जमा अपने देष का धन वापिस देष में लाना चाहते हैं तो उन्हें सक्रिय होना ही पड़ेगा। स्वीट्जरलैंड के नागरिकों ने अपने संविधान में संषोधन करके यह बता दिया कि वे षेश दुनिया के सारोकार के प्रति उदासीन नहीं हैं। अब तो गेंद बाकी देषों के नागरिकों और सरकारों के पाले में है। फैसला उन्हें ही करना है।