सारे भारत के संत समाज, भक्तसमाज व हिन्दुओं के लिए अत्यंत क्षोभ व आक्रोश का विषय है कि उत्तराखण्ड सरकार के अधीन हरिद्वार प्रशासन व पुलिस की घोर लापरवाही से स्वामी वामदेव जी महाराज की आदमकद प्रतिमा जो सितम्बर 2021 को चोरी हो गई थी उसका आज तक पता नहीं लगा है।
श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के सूत्रधार, विरक्त संत श्रद्धेय वामदेव जी महाराज की यह प्रतिमा खड़ी मुद्रा में थी व अष्टधातु की बनी थी और लाखों रुपए मूल्य की थी। जिसे 2007 में देशभर के संतों ने हरिद्वार के मुख्य स्थान ‘स्वामी वामदेव मार्ग’ पर बड़े उत्साह व वैदिक ऋचाओं के साथ विधि-विधान के साथ स्थापित किया था। जो हरिद्वार के मुख्य चौराहे पर स्थापित थी। बाद में उसे सड़क चौड़ीकरण के लिए हरिद्वार प्रशासन द्वारा अस्थायी रूप से हटाया गया था। संतों को यह अश्वासन दिया गया था कि सड़क का चौड़ीकरण कार्य पूर्ण होते ही इसे पुनः वहीं स्थापित कर दिया जायेगा। पर ऐसा नहीं हुआ।
स्वामी वामदेव मार्ग की जगह प्रशासन ने उसे फिर एक नये स्थान ‘आस्था मार्ग’ पर ऊँचा चबूतरा बनवाकर स्थापित किया। किंतु उसी रात वो मूर्ति वहाँ से चोरी हो गयी। उसकी जगह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वामी वामदेव जी की छोटी सी पत्थर की मूर्ति रखवाकर उसका सितम्बर 2021 में अनावरण कर दिया। जिससे संत समाज बहुत आहत हुआ और इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया। वैसे भी यह कार्यक्रम पितृपक्ष में किया गया था जबकि कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता।
अगली सुबह हरिद्वार में हड़कम्प मच गया। संतों का प्रतिनिधि मण्डल हरिद्वार के जिलाधिकारी से मिला तो उन्होनें कोई मदद नहीं की। चूंकि इस आयोजन में विहिप के नेता दिनेश जी सक्रिय थे इसलिये संतों ने उनसे भी गुहार लगाई। आश्चर्य है कि प्रशासन की देखरेख में ये चोरी क्यों और किसने की, इसका आजतक पुलिस पता क्यों नहीं लगाया पायी? आम अनुभव है कि यदि चोरी का समय और स्थान बता दिया जाये तो पुलिस चोर को कुछ घंटों में ही पकड़ लेती है। स्वामी वामदेव जी की मूर्ति कोई सुईं नहीं है, जो एक ही रात में लापता हो जाये। वह भी तब जब वह सारे प्रशासन, मुख्यमंत्री, मीडिया व पुलिस की मौजूदगी में कांक्रीट से वहाँ दिन में ही ये स्थापित की गई थी। उल्लेखनीय है कि वहाँ आस्था मार्ग पर सीसीटीवी कैमरे भी लगे थे। फिर चोर आज तक क्यों नहीं पकड़े गये? क्या यह उत्तराखण्ड पुलिस की अकर्मण्यता का प्रमाण नहीं है ? ये लापरवाही हिन्दुओं के इतने श्रद्धेय संत के प्रति उपेक्षा व अपमान का भी परिचायक है।
राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन में स्वामी वामदेव जी के ऐतिहासिक योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वे ‘राम जन्मभूमि मुक्ति समिति’ के ‘मार्गदर्शक मंडल’ के अध्यक्ष थे। जब विहिप अध्यक्ष श्री अशोक सिंघल के प्रयास से संत समाज, राजनैतिक कारणों से संकोच कर इस अभियान से जुड़ने को तैयार नहीं था तब श्री सिंघल ने स्वामी वामदेव जी से निवेदन किया कि वे इस अभियान को अपना आशीर्वाद प्रदान करें। तब हिन्दू संस्कृति की रक्षार्थ स्वामी जी ने साधुओं की अपनी विशाल विरक्त मंडली के साथ पूरे भारत के कोने-कोने में जाकर सभी साधु संतों को श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन से जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया।
जब अक्तूबर 30,1990 को कार सेवा करने बड़ी श्रद्धा से देश के कोने-कोने से अयोध्या पहुँचे लाखों निहत्थे कारसेवकों पर पुलिस ने फ़ाइरिंग करके सैंकड़ों को शहीद कर दिया था, तो उस भयानक रात अयोध्या की गलियों में मौत का सन्नाटा था। गलियों में जहां-तहाँ भक्तों के शव बिखरे पड़े थे। ऐसे आतंक के माहौल में आंदोलन के सभी नेता जहां-तहाँ छिपे थे। पर एक देवता जो सारी रात अकेला उन लाशों के बीच लाठी लेकर घूमता रहा, वो थे बूढ़े, अशक्त और अस्वस्थ श्रद्धेय स्वामी वामदेव जी महाराज।
ब्रहम्मुहूर्त में जब वे आश्रम में नहीं दिखे तो घबराहट में उनके साथ के साधुओं ने उनको खोजना शुरू किया। तो स्वामी जी गली में लाठी लिये खड़े मिले। चौंककर सबने पूछा महाराज! आप यहाँ क्या कर रहे हैं? उनका उत्तर सुनकर निश्चय ही आपके नेत्र सजल हो जाएँगे। वे बोले, “भगवान! मैं रात भर इन शहीदों के शवों की रक्षा करता रहा, जिससे गली के कुत्ते इन भक्तों के पवित्र शवों को अपना ग्रास न बना सकें”।
तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने स्वामी वामदेव जी से तब कहा था, “आप विहिप का साथ छोड़ दीजिए, मैं कल ही आपको राम जन्मभूमि दे दूंगा। “स्वामी जी ने कहा” आप लोकसभा मे आज ये घोषणा कीजिए, मैं कल ही विहिप का साथ छोड़ दूंगा।”
नरसिंह राव जी ने एक बार उनसे कहा “आप सुरक्षा गार्ड ले लें।” स्वामी जी बोले “गर्भ मे जिसने परीक्षित की रक्षा की थी, वे ही मेरा रक्षक है।” अयोध्या में ढाँचा गिरने के बाद वे सीधे हरिद्वार आए, उनका कमरा तैयार नहीं था, तो वे मौनी बाबा के तखत पर ही लेट गए। बाबा ने पूछा महाराज “आपका काम अधूरा रह गया। मंदिर कब बनेगा?” स्वामी वामदेव जी का उत्तर था, “मेरे तीन संकल्प थे; 1.जन्मभूमि से पराधीनता का चिन्ह मिटे। 2. भगवा वस्त्रधारी और श्वेतवस्त्रधारी संप्रदाय के भेद को भूलकर एक मंच पर आ जाएं। 3. देश का हिंदू जाग जाए। राम कृपा से तीनों संकल्प पूरे हुए, अब मंदिर कब बनेगा ये रामलला जाने।” रामलला ने आज मोदी जी व योगी जी के प्रयास से ये भी पूरा कर दिया।
चूंकि स्वामी वामदेव जी का वृन्दावन के आनंदवन (श्री अखंडानंद आश्रम) से गहरा नाता था। वे भारत की धरोहर तो थे ही वृन्दावनवासियों को भी प्राणों से अधिक प्रिय थे। इसलिये वृन्दावनवासी, सभी संतगण, भागवताचार्य व गोस्वामीगण, इस समाचार को सुनकर अत्यंत व्यथित हैं। उन्होने भी उत्तराखण के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी से मांग की है कि स्वामी जी की उस मूर्ति को अविलम्ब खोजकर ‘आस्था मार्ग’, हरिद्वार पर वहीँ स्थापित किया जाए जहाँ से ये चोरी हुई। अब देखना ये होगा की उत्तराखण्ड की पुलिस कब तक स्वामी वामदेव जी की मूर्ति को खोज कर लाती है। अगर ऐसा नहीं होता तो इसका बहुत गलत सन्देश देशभर के संतगणों व हिन्दू समाज में जाएगा।