जब भारत का कोई संत श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में जुड़ने को तैयार नहीं था तब देशभर के संतों को जोड़कर अकेले अपने बूते पर इस आंदोलन को खड़ा करने वाले विरक्त संत स्वामी वामदेव जी महाराज की प्रबल इच्छा थी कि भारत हिंदू राष्ट्र बने। इस विषय पर दशकों पुराना उनका लेख वृंदावन के विरक्त संत और स्वामी वामदेव महाराज के दाहिने हाथ रहे त्यागी बाबा से प्राप्त हुआ है। उसे यहाँ ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ, “वह राष्ट्र जिसका नाम इण्डिया के स्थान में हिन्दुस्थान होगा, क्योंकि संविधान में ‘इण्डिया दैट इज भारत’ इण्डिया देश का नाम है और ‘भारत’ द्वितीय श्रेणी का नाम है। इसलिये इण्डिया के स्थान में हिन्दुस्थान होना आवश्यक है, जिससे ऐसा भान हो, कि यह देश हिन्दू संस्कृति का है। ऐसा सांस्कृतिक वातावरण बनाया जायेगा, जहाँ हर व्यक्ति सर्वसुखी हों, सर्वनिरोगी हो, सर्व अपनी इन्द्रियों से सुखदायी वस्तु का अनुभव करें। कोई दुःखी न हो, इस संकल्प के साथ अपने दैनिक कार्यों का प्रारम्भ करेगा।” स्वामी जी लिखते हैं।
स्वामी जी कहते हैं कि, “हिन्दू-राष्ट्र शब्द उस भूभाग का बोध कराता है, जहाँ पवित्र हिमालय पर्वत है, जहाँ गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी, ब्रह्मपुत्रादिक अनेकानेक नदी-नद बह रहे हैं। जो अनेक अवतारों की जन्मभूमि है। जिसे अनेक धर्मगुरुओं ने जन्म पवित्र किया है। जहाँ अनेक वीर तथा वीरांगनाओं की गाथा गूँज रहीं हैं। जहाँ युग परिवर्तन के समय अपना दिशा दर्शन देने वाले महापुरुष जन्मे हैं। जहाँ अध्यात्म चर्चा व्यक्ति के जीवन में नया उल्लास फूँक रही है। जहाँ की संस्कृति अनेक मत पंथों तथा भाषाओं आदि को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही नहीं देती, अपितु उनका पोषण तथा सामंजस्य भी स्थापित करती है। ऐसा बोध इण्डिया शब्द से नहीं होता।”
इसलिए वे चाहते थे कि “देश का नाम हिन्दुस्थान होना चाहिये। यह देश हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। कन्याकुमारी में ही इन्दू सरोवर है। हिमालय से कन्याकुमारी (इन्दू सरोवर) तक फैले इस देश का परिचय थोड़े शब्दों में देने की प्रक्रिया के अनुसार हिमालय का प्रथम अक्षर 'हि' ग्रहण कर तथा इन्दू सरोवर के नाम से 'न्दू' अक्षर को ग्रहण करके अर्थात् हि + न्दू = हिन्दू नाम इस विस्तृत देश का मनीषियों ने ही रखा है। इसे हिन्दुस्थान कहते आये हैं। गालिब आदि अनेक मुसलमान विद्वानों ने भी इस देश को हिन्दुस्थान नाम देकर ही गौरव प्रदान किया है। इसमें रहने वाले लोग इस देश के नाम के अनुसार अपने को हिन्दू मानते चले आये हैं। अंग्रेजों के आने से पहले यहाँ के मुसलमानों ने भी इस देश का नाम हिन्दुस्थान ही तो माना था। अंग्रेजों के आने पर इसका नाम इण्डिया रखा था। जब इस देश से अंग्रेजी शासन चला गया तो उनकी गुलामी का बोध कराने वाले विक्टोरिया आदि की पाषाणादि की प्रतिमायें हटा दी गई। उसी समय से इण्डिया नाम भी अंग्रेजों की गुलामी का बोध कराने वाला है, अतः हटा देना चाहिए था। इण्डिया नाम संविधान में संशोधन कर निकाल दिया जायेगा तथा हिन्दुस्थान नाम को संविधान में लाकर सम्मान देंगे।”
वे लिखते हैं कि “विदेशों में जब कभी कई देशों की बैठकें होती है तथा उस बैठक में भारत भी शामिल होता है। वहाँ अन्य देशों के प्रतिनिधियों के बैठने का स्थान नियत होता है। उस स्थान पर हर देश का नाम लिखा रहता है। जैसे जो स्थान पाकिस्तान के प्रतिनिधि के लिए होगा, उस पर पाकिस्तान लिखा रहता है। लंका के प्रतिनिधि के स्थान पर श्रीलंका ऐसा लिखा रहता है, परन्तु भारत के प्रतिनिधि के स्थान पर इण्डिया लिखा रहता है। हर स्वाभिमानी देश का नागरिक इण्डिया नाम से इस देश में गुलामी का स्मरण करता है। अतः गुलामी का स्मरण कराने वाला इण्डिया नाम देश के लिये अपमान का जनक है। इस देश का आम व्यक्ति यह समझता है, कि इस देश का नाम भारत है, परन्तु सन् 1992 तदनुसार संवत् 2048 के उज्जैन कुम्भ में सरकार की ओर से लगे मार्ग-दर्शक पट्टिका की ओर ध्यान गया तो देखा, उनके ऊपर इण्डिया नाम में लिखा था तथा उसके नीचे भारत नाम लिखा था अर्थात् भारत नाम दूसरी श्रेणी का है, उत्तम श्रेणी का नाम तो इण्डिया है। स्वतन्त्रता से पूर्व लंका का नाम सीलोन था। जब लंका स्वतंत्र हुआ तो अंग्रेजों की पराधीनता का नाम त्याग दिया। देश का नाम उन्होंने लंका ही नहीं किन्तु 'श्रीलंका' रखकर अपने देश को गौरवान्वित किया है, परन्तु हमारे नेताओं ने ऐसा नहीं किया। ऐसा न करना देश के गौरव के अत्यन्त विरुद्ध है। ऐसा यदि जानकर किया है तो अपराध है और यदि अनजाने में किया है तो भूल है। यदि अंग्रेजों से दबकर किया है तो यह गुलामी है।”
स्वामी जी आगे कहते हैं कि “विश्व में मुख्य रूप से रहने वाली जनता ईसाई, मुसलमान और हिन्दू नाम से जानी जाती है। उनमें से यीशु के द्वारा प्रचारित रिलिजन को मानने वाले ईसाई और मोहम्मद साहब द्वारा प्रचारित मजहब को मानने वाले मुसलमान कहलाते हैं। किसी कल्चर, मजहब या पंथ को मानने के कारण हिन्दू का नाम नहीं रखा गया है, किन्तु भारत-भूमि में जन्मी सभी विचार पद्धतियों का एक मात्र केन्द्र हिन्दू है। अतएव वह असाम्प्रदायिक तथा पंथ-निरपेक्ष है। उसने किसी की पूजा-पद्धति से द्वेष नहीं किया है। उदाहरण के लिये इस देश में पारसी आये, उनके रहन-सहन से हिन्दू को कोई द्वेष नहीं है। संसार में अपमानित और प्रताड़ित होकर भारत में यहूदी आये। हिन्दुओं में सम्मानपूर्वक रहे, इसका इतिहास साक्षी है। परन्तु आज इन विशिष्ट गुणों से युक्त हिन्दू को साम्प्रदायिक आदि शब्दों से अपमानित किया जा रहा है तथा साम्प्रदायिक, राष्ट्र-द्रोही लोगों को प्रोत्साहन देकर देश में खूनी संघर्ष किये जा रहे हैं। इन कारणों से देश में आर्थिक संकट तथा नैतिकता का पतन हो रहा है।”
वे दृढ़ता कहते हैं कि “यद्यपि यह देश हिन्दू-राष्ट्र ही है तथापि जिस दिन हिन्दू राष्ट्र के नाम से इस देश की घोषणा होगी, उस दिन हिंदुओं में अपने विशिष्ट गुणों को लेकर एक ऐसी जागृति में आयेगा कि फिर इस देश में साम्प्रदायिकता और राष्ट्रद्रोह को अवकाश प्राप्त नहीं होगा। इसके आधार पर होने वाले खूनी संघर्ष भी समाप्त हो जाएँगे।”
अपने अनुभव के आधार पर वामदेव महाराज कहते हैं कि “यद्यपि वेदान्त का अध्ययन और साधना, जिन वृद्ध संतो के संरक्षण में मैं करता था, उस काल में मेरा अखबारी दुनियाँ से कोई सम्बन्ध नहीं था तथापि जिस समय भारत को धर्म-निरपेक्ष देश घोषित किया गया, उसके विषय में वे संतगण कहा करते थे, कि देश को धर्म-निरपेक्ष घोषित करने वाले नेताओं के पास उनके अजीज ईसाई और मुसलमान गये और कहा हम तो धर्म-निरपेक्ष नहीं हो सकते, तब उनसे नेताओं ने कहा, भले ही आप धर्म-निरपेक्ष न रहें, परन्तु आपसे अतिरिक्त भी तो जनता है, वह धर्म निरपेक्ष रहेगी। जिसका सीधा अर्थ था कि धर्म-निरपेक्षता हिन्दुओं के लिए ही थी। किन्तु धर्म-निरपेक्षता का अर्थ सर्व-धर्म-समभाव है ऐसा प्रचार करके हिन्दुओं को गुमराह किया गया। अब तो यह बात मुस्लिम लीग के साथ गठबन्धन करने, मिजोरम आदि में बाइबिल के अनुसार शासन चलाने के आश्वासन देने आदि से स्पष्ट है कि ये उसी भावना की देन है। अतः अपराध के प्रायश्चित स्वरूप, भूल के सुधार स्वरूप, गुलामी की भावना के परित्याग रूप में, इण्डिया नाम देश के संविधान से निकाल देना होगा। देश के हिन्दुस्थान नाम की जगह इण्डिया नाम रहने से ऐसा भी लगता है, मानो हिन्दू नाम की विरोधी भावनाओं की ही यह देन है। इस भावना की निवृत्ति के लिये भी इसका परिवर्तन आवश्यक है। इस नाम के रहते संविधान हिन्दू विरोधी है, यह भाव भी अभिव्यक्त होता है। तब संविधान को यदि कोई हिन्दू विरोधी कहता है तो वे लोग उलटा-सीधा बोलते हैं, जो इण्डिया नाम के रखने के अपराध, भूल, गुलामी तथा हिन्दू विरोध की पुष्टि करते चले आ रहे हैं। इस हिन्दू विरोध के कारण ही, इस देश की धरती, संस्कृति तथा गौरव की भावनाओं में उत्पन्न हिन्दू से एक वर्ग (मुसलमान) घृणा करने लगा है। अतएव कट्टरपंथी मुसलमान तथा उनके कट्टरपने को पुष्ट करने वाले राजनैतिक नेता लोग, हिन्दू राष्ट्र का नाम सुनते ही चिल्लाने लगते हैं कि यह देश को तोड़ने का षड्यंत्र है। मुसलमानों में असुरक्षा की भावना पैदा हो रही है। इस विषय में हम विशेष तर्क न देकर कहना चाहते हैं कि नेपाल हिन्दू राष्ट्र है (तब था) वहाँ कौन ईसाई या मुसलमान असुरक्षित है? कौन देश तोड़ने की रट लगा रहा है? यह बात अवश्य है कि हिन्दू नाम से घृणा करने वाले राजनैतिक दलों द्वारा घृणा फैलाकर वोटों का स्वार्थ पूरा किया जा रहा है, उनका वह स्वार्थ अवश्य संकटग्रस्त हो जायेगा।”
साम्प्रदायिक सद्भाव के संदर्भ में वे लिखते हैं “सर्व वर्गों, सर्व मत-पंथों में समरसता लाने के लिये हिन्दू राष्ट्र भारत का नाम हिन्दुस्थान रखना ही उचित है। जैसा कि अंग्रेजों से पहले भी था। हिन्दुस्थान का प्रत्येक नागरिक हिन्दू, मुसलमान भी हिन्दू, ईसाई भी हिन्दू, जैन भी हिन्दू, सनातनी आर्य भी हिन्दू, कबीरपंथी भी हिन्दू, सिख भी हिन्दू, पारसी भी हिन्दू। हम सब एक हैं। हमारा हिन्दू राष्ट्र एक है। मन्दिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे पूजा के स्थान हैं। पूजा हम अपनी पद्धति से करें, परन्तु सर्व स्थान सबके लिये सम्मान्य होंगे। इनमें से किसी का भी अपमान सर्व का अपमान है। इस भावना की अभिव्यक्ति का कारण बनेगा हिन्दू राष्ट्र अगर इसका हिन्दुस्थान नाम हो गया तो। आज तो धर्म-निरपेक्षता बनाम हिन्दू धर्म-निरपेक्षता है।”
वे कहते हैं कि “परिणामतः देश के राजनेता, विदेशों में भी कहीं हिन्दू सम्मेलन होते हैं तो भारत सरकार के राजदूत को आमन्त्रित करने पर भी उनमें भाग न लेकर हिन्दू धर्म की उपेक्षा करते हैं। साथ ही विदेशों में भी कहीं हिन्दुओं पर अत्याचार हो तो भारत सरकार उन देशों को यह कहकर नहीं ललकार सकती, कि आपके यहाँ हिन्दुओं पर क्यों अत्याचार हो रहे हैं, क्योंकि यहाँ की सरकार अपने को हिन्दू-निरपेक्ष मानती है। फिजी में हिन्दुओं पर अत्याचार हुआ तो उसकी अनुभूति भारत सरकार को नहीं हुई, परन्तु मालद्वीप में मुसलमान सरकार पर संकट आया तो उसकी बहुत भारी अनुभूति हुई। साथ ही सेना भेजकर उसके संकट को दूर कर दिया। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि धर्म-निरपेक्षता के नाम पर बनी सरकार हिन्दू के साथ अन्याय पूर्वक पक्षपात करती है। सरकार हिन्दुओं के ईसाईकरण तथा इस्लामीकरण को भी प्रोत्साहन देती है, जिससे हिन्दुओं की जनसंख्या निरन्तर कम होती चली जा रही है।”
वे लिखते हैं कि “भारत वर्ष में साम्प्रदायिकता, राष्ट्रद्रोहः व इस आधार पर होने वाले खूनी संघर्ष, धर्म-निरपेक्षता के नाम पर हिन्दू धर्मनिरपेक्षता, हिन्दुओं के साथ अन्यायपूर्ण पक्षपात तथा हिन्दुओं की जनसंख्या कम करने के उपायों की समाप्ति पूर्वक राष्ट्र में आर्थिक और नैतिक उत्थान के लिये देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना आवश्यक है।”
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