जब से अमरिकी
राष्ट्रपति ट्रम्प ने पाकिस्तान की तरफ से हाथ खींचा है, तब से पाकिस्तान में हताशा का माहौल है। उधर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
पाकिस्तान की छवि आतंकवाद को संरक्षण देने वाले और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों
का हनन करने वाले देश के रूप में बन चुकी है। ऐसे में पाकिस्तान की सरकार और उसका
मीडिया तमाम कोशिशे करके अपनी छवि सुधारने में जुटा है।
पिछले दिनों ‘यू-ट्यूब’ चैनलों पर ऐसी दर्जनों टीवी रिर्पोट अपलोड की गई हैं, जिनमें पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं और सिक्खों के धर्मस्थलों, त्यौहारों और सामान्य जीवन पर प्रकाश डाला जा रहा है। ये बताने की कोशिश की जा रही है कि पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों को किसी किस्म का सौतेला व्यवहार नहीं झेलना पड़ता। उन्हें अपने धर्म के अनुसार जीवन जीने की पूरी आजादी है और उन पर कोई अत्याचार नहीं होता। यह बात करांची के रहने वाले हिंदुओं और शेष पाकिस्तान में रहने वाले मुठ्ठीभर संपन्न हिंदुओं पर तो शायद लागू हो सकती हो, पर शेष पाकिस्तान में हालात ऐसे नहीं है जैसा दिखाया जा रहा है। एक सीधा सा प्रश्न है कि आजादी के समय पाकिस्तान की अल्पसंख्यक आबादी कितने फीसदी थी और आज कितने फीसदी है? दूसरी तरफ भारत में अल्पसंख्यकों की आबादी कितने फीसदी थी और आज कितनी है? उत्तर साफ है कि पाकिस्तान में ये आबादी लगभग 90 फीसदी कम हो गयी। जबकि भारत में ये लगातार बढ़ रही है।
लेकिन इस तस्वीर का एक
दूसरा पहलू भी है। आज तक जो भी भारत से पाकिस्तान घूमने गया, उसने आकर वहां की मेहमान नवाजी की तारीफों के पुल बांध दिये। यहां तक कि
पाकिस्तान के दुकानदार और होटल वाले, भारतीयों से अक्सर पैसा
तक नहीं लेते और बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत करते हैं। जबकि भारत आने पर शायद
पाकिस्तानियों को ऐसा स्वागत नहीं मिलता। इससे साफ जाहिर है कि पाकिस्तान का आवाम
भावनात्मक रूप से आज भी खुद को आजादी पूर्व भारत का हिस्सा मानता है और उसके दिल
में विभाजन की टीस बाकी है।
पर ये टीस भी इकतरफा
नहीं है। पिछले कुछ समय से कुछ उत्साही नौजवानों ने भारत, पाकिस्तान, इंग्लैंड व कनाडा आदि देशों में उन
बुर्जुगों के टीवी इंटरव्यू रिकार्ड कर अपलोड करने शुरू किये, जिन्हें विभाजन के समय मजबूरन अपनी जन्मभूमि को छोड़कर, भारत या पाकिस्तान जाना पड़ा था। इनकी उम्र आज 80 से 95 वर्ष के बीच है। पर इनकी याददाश्त कमाल की है। इन्हें अपने घर, गली, मौहल्ले, शहर, स्कूल, बाजार और अड़ोस-पड़ोस की हर बात बखूबी याद है।
इनमें से कुछ ने तो अपने परिवार की मदद से भारत या पाकिस्तान जाकर उन जगहों को
देखा भी है। ‘यू-ट्यूब’ पर इनकी भावनाऐं देखकर, पत्थर दिल
इंसान की भी आंखे भर आती है। इस कदर प्यार और गर्मजोशी से जाकर ये लोग वहां मिलते
हैं कि बिना देखे विश्वास नहीं किया जा सकता। ये बात दूसरी है कि इनकी पीढ़ी का
शायद ही कोई साथी इन्हें अब अपनी जगह मिल पाता हो। पर घर, दुकान
तो वहीं हैं न। कुछ लोगों को तो अपने घरों में 70 बरस बाद
जाकर भी अपनी तिजोरी और फर्नीचर ज्यों का त्यों मिला और उनके जजबातों का सैलाब टूअ
पड़ा।
भला हो इन नौजवानों का
जिन्होंने ये कोशिश की। वरना इस पीढ़ी के चले जाने के बाद, हमें कौन बताता कि आजादी के पहले आज के हिंदुस्तान और पाकिस्तान में रहने
वाले हिंदु, मुसलमान और सिक्खों के बीच कितना प्रेम और
सौहार्द था। किसी तरह का कोई वैमनस्य नहीं था। सब एक-दूसरे के तीज-त्यौहारों में
उत्साह से भाग लेते थे और एक-दूसरे की भावनाओं की भी कद्र करते थे। कभी उन्होंने
सपने में भी नहीं सोचा था कि एक ऐसा वक्त आयेगा, जब उन्हें
अपनों के बीच पराये होने का अहसास होगा। बहुत से लोगों को तो बंटवारे के दिन तक यह
यकीन नहीं हुआ कि अब वे अपने ही देश में बेगाने हो गये हैं और उन्हें परदेश जाना
पड़ेगा।
ये सब बुजुर्ग एक स्वर
से कहते हैं कि विभाजन सियासतदानों की महत्वाकांक्षाओं का दुष्परिणाम था और
अंग्रेजी की साजिश थी, जिसने भारत के सीने पर तलवार
खींचकर खून की नदियां बहा दी। हम उस पीढ़ी के हैं, जिसने इस
त्रासदी को नहीं भोगा। पर जब से हमारा जन्म हुआ है, विभाजन
के मारों से इस त्रादसी की दुखभरी दासतानें सुनते आऐ हैं। अब जब इन नौजवानों ने इन
बुर्जुगों को इनका मादर-ए-वतन दिखाने की जो कोशिश शुरू की है, वो काबिल-ऐ तारीफ है। काश ‘यू-ट्यूब पहले बना होता और ये कोशिश पचास बरस
पहले शुरू की गई होती, तो शायद अब तक हिंदुस्तान और
पाकिस्तान का आवाम फिर से गले मिलने और एक हो जाने को बेचैन हो उठता। नफरत का जो
बीज कट्टरपंथियों ने इन दशकों में बोया और नयी पीढ़ियों को गुमराह किया, वो शायद कामयाब न होता। उम्मीद की जानी चाहिए कि पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी
की तरह ही एक दिन फिर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक
राष्ट्र बनेंगे या कम से कम महासंघ बनेंगे। जहां हमारी ताकत और अरबों रुपये नाहक की जंगों में और हथियारों के जखीरे खरीदने
में बार्बाद होने की बजाय आम जनता के आर्थिक और समाजिक विकास पर खर्च होगें। हम
ननकाना साहब, कटास राज, तक्षशिला,
हिंगलाज शक्तिपीठ, शारदा शक्ति पीठ और श्री
लक्ष्मीनारायण मंदिर जैसे तीर्थों में खुलकर जा सकेंगे और वे भी अजमेर शरीफ,
निजामुद्दीन, सलीम चिश्ती जैसे अपने तीर्थों
पर खुलकर आ सकेंगे। सारा भारतीय महाद्वीप अमन, चैन और तरक्की
के रास्ते पर आगे बढ़ेगा और अपनी मेहनत और कबिलियत के बल पर भारत फिर से सोने की
चिड़िया बनेगा।