25 जुलाई को अन्ना एण्ड कम्पनी एक दिन के उपवास पर बैठने जा रही है। ऐसा वो ’देश जगाने’ के लिए कर रही है। यह बात दूसरी है कि पिछले डेढ़ साल से इस कम्पनी का दावा था कि देश की 120 करोड़ जनता उनके साथ है। जब देश की 100 फीसदी जनता अन्ना एण्ड कम्पनी के साथ है तो सो कौन रहा है, जिसे जगाने की जरूरत है ? वैसे अभी यह साफ नहीं हैं कि खुद अन्ना हजारे इस धरने पर बैठेंगे या नहीं। पिछले कुछ महीनों से अन्ना हजारे ने बाबा रामदेव की शरण ले ली है। वे अनेक सार्वजनिक मंचों पर बाबा के साथ ही नजर आते हैं। पिछले हफ्ते महाराष्ट्र में जब संवाददाता सम्मेलन के दौरान पत्रकारों ने अन्ना को घेर कर निरूत्तर कर दिया तो अन्ना बौखला गये और अन्ट-शन्ट बोलने लगे। पत्रकार उनके दोहरे आचरण को लेकर आक्रामक थे। आखिर बाबा रामदेव को अन्ना की रक्षा में उतरना पड़ा।
उधर गत 3 जून को बाबा रामदेव के सांकेतिक धरने के मंच से अरविन्द केजरीवाल ने जो कुछ कहा उससे बाबा के अनुयाइयों और अन्ना एण्ड कम्पनी के बीच मनमुटाव बढ़ा। बाबा के लोगों का मानना था कि अन्ना हजारे और बाबा के कंधे पर चढ़कर अरविन्द ने अपनी पहचान बना ली और अब उन्हें किसी की जरूरत नहीं है अन्ना की भी। शायद इसीलिए अभी तक अन्ना ने अपना रूख इस धरने को लेकर साफ नहीं किया है। इधर बाबा को शिकायत है कि दोनों टीमों के साथ आने के बावजूद क्या वजह है कि अरविन्द ने बाबा के पूर्व घोषित 9 अगस्त के धरने से पहले ही अपने धरने की घोषणा कर डाली ? इतनी छोटी बातों पर भी अगर इन दो समूहों में पारस्परिक विश्वास नहीं है तो देशवासी इनकी बात पर कैसे विश्वास करें ?
अन्ना एण्ड कम्पनी के पिछले डेढ़ वर्ष के कारनामों ने यह साफ कर दिया है कि भ्रष्टाचार खत्म करना उनका ऐजेण्डा नहीं है। इसलिए वे किसी न किसी बहाने चर्चा में रहना चाहते हैं। अन्ना एण्ड कम्पनी मानती है कि उनसे ज्यादा पवित्र और देश की सोचने वाला और कोई नहीं है। इसलिए इस कम्पनी को यह गुमान है कि हम जो भी कह रहे है ठीक है और सरकार को उसे फौरन मान लेना चाहिए। जबकि देशभर के वे लोग जो व्यवस्था के बाहर या भीतर रहकर भ्रष्टाचार से लड़ते रहे है, उनका साफ कहना है कि अन्ना एण्ड कम्पनी का लोकपाल एक मजाक है जिसे न तो वैधता दी सकती है और न ही उससे भ्रष्टाचार दूर होगा।
अन्ना एण्ड कम्पनी आजकल मध्य प्रदेश के दिवंगत क्रान्तिकारी दुष्यंत कुमार की कविताओं का पाठ कर रही है, ’’सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं’’ हालात बदलने की लड़ाई है। कोई पूछे कि जन्तर मन्तर के पहले धरने से लेकर आजतक जितने धरने अन्ना एण्ड कम्पनी ने किये और हिसार के चुनाव प्रचार से लेकर आजतक जो भी कार्यक्रम चलाये हैं, उससे क्या कहीं हालात बदलने का काम हुआ है या सिर्फ हंगामा खड़ा हुआ है। अन्ना एण्ड कम्पनी कहती है कि हम नींव हिलाना चाहते हैं। किसकी, क्या लोकतन्त्र की ? क्योंकि उनके अबतक के कारनामों से भ्रष्टाचार की नींव कहीं भी नहीं हिली। हां लोकतन्त्र को खतरा जरूर हो गया है।
वैसे अबतक के इनके कार्यकलाप भ्रष्टाचार के विरूद्व न होकर केवल सरकार के खिलाफ रहे हैं। यानी मकसद सरकार को बदलना है। पर किसे उसकी जगह बैठाना है इस पर अन्ना एण्ड कम्पनी रहस्यमयी तरीके से खामोश है। अब यह साफ हो जाना चाहिए कि यह मुहीम किस दल को सत्ता में बिठाने के लिए चलाई जा रही है ? अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ होती तो भ्रष्टाचार जूझते रहे सभी योद्धा अन्ना एण्ड कम्पनी के साथ खड़े होते। पर ऐसा नहीं है। देशभर के ऐसे सभी योद्धाओं को शुरू से पता है कि इस कम्पनी के नाटक का असली मकसद क्या है।
वैसे इन्हें गम्भीरता से इनके साथ दिखने वाले प्रोफेशनल्स भी नहीं लेते। वे भी आपसे की चर्चा में यही कहते हैं कि अब अन्ना एण्ड कम्पनी का अगला फंक्शन कब होगा। इनका धरना बयान बाजी, टीवी कवरेज, सलीम-जावेद के लिखे फिल्मी डायलोगों की तरह आक्रामक तेवर दिखाते हुए हर मशहूर आदमी पर हमला, बढ़िया खान-पान और मनोरंजन का मिला-जुला रंग लिये होता है। इसलिए लोग मनोरंजन होगा यह सोचकर वहां पहुंच जाते हैं। वहां पहुंचने वालों में ज्यादा तादाद उनकी होती है जिन्होंने भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा बनकर जिन्दगी का हर लुत्फ उठाया है। कभी भ्रष्टाचार के विरूद्व न तो संघर्ष किया, न तकलीफ झेली, न जान जोखिम में डाली और न हीं बड़े और ताकतवर लोगों से दुश्मनी ली और न ही इस सवाल पर किसी को नुकसान पहुंचाया। गुल-गुले खाकर और मौज उड़ाकर गुलिस्तां के उजड़ने का रोना रोने वाले घड़ियाली आंसू बहाया करते हैं। इसलिए अन्ना एण्ड कम्पनी का धरना एक मजाक और गीदड़ भभकी बनकर रह गया है।