Monday, January 13, 2025

हॉलीवुड जलकर हो रहा है ख़ाक


आज से 50 साल पहले इस्कॉन के संस्थापक आचार्य स्वामी प्रभुपाद कार में कैलिफ़ोर्निया हाईवे पर जा रहे थे। खिड़की के बाहर दूर से बहुमंजलीय अट्टालिकाओं की क़तार दिखाई दे रही थी। श्रील प्रभुपाद के मुँह से अचानक निकला कि इन लोगों ने रावण की सोने की लंका बनाकर खड़ी कर दी है जो एक दिन ख़ाक हो जाएगी। जिस तेज़ी से लॉस एंजल्स का हॉलीवुड इलाक़ा भयावह आग की चपेट में हर क्षण ख़ाक हो रहा है, उससे 50 वर्ष पूर्व की गई एक सिद्ध संत की भविष्यवाणी सत्य हो रही है।
 



कैलिफ़ॉर्निया राज्य के शहर लॉस एंजेलिस के जंगलों में फैली आग भयावह रूप लेती जा रही है  I अब तक इस आग की चपेट में छह जंगल आ चुके हैं और इसका दायरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। आग की वजह से अब तक दस लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग दो लाख से अधिक लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है। तेज़ हवा राहत कार्यों में बाधक बन रही है। चार लाख से अधिक घरों की बिजली कटी हुई है। कैलिफ़ॉर्निया के इतिहास में इसे सबसे विनाशकारी हादसा बताया जा रहा है। शुरू में महज़ 10 एकड़ के इलाके में लगी ये आग कुछ ही दिनों me 17,200 एकड़ में फैल गई। पूरे शहर में धुएँ के बादल छाए हुए हैं। इस भयावह आग से अभी तक अनुमानित लगभग 135-150 अरब डॉलर (12 हज़ार अरब रुपयों) का नुक़सान हो चुका है। 



हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री पेरिस हिल्टन के मकान की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं। मालिबू नगर में समुद्र के किनारे बने फ़िल्मी सितारों के खूबसूरत घर अब मलबे में तब्दील हो चुके हैं और इनके केवल जले हुए अवशेष ही बचे हैं। अमरीका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का घर भी ख़तरे में है। इसके चलते उनके घर को भी ख़ाली कराया गया है। राजनीति, उद्योग और सिने जगत की कई जानी-मानी हस्तियों के आलीशान मकानों को भी ख़ाली करने के आदेश जारी हुए हैं। 



उल्लेखनीय है कि लॉस एंजेलिस अमेरिका की सबसे ज्यादा आबादी वाला काउंटी है। यहां 1 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं। कैलिफोर्निया में कई सालों से सूखे के हालात हैं। इलाके में नमी की कमी है। इसके अलावा यह राज्य अमेरिका के दूसरे इलाकों की तुलना में काफी गर्म है। यही वजह है कि यहां पर गर्मी के मौसम में अक्सर जंगलों में आग लग जाती है। यह सिलसिला बारिश का मौसम आने तक जारी रहता है। बीते कुछ सालों से हर मौसम में आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं। पिछले 50 सालों में कैलिफोर्निया के जंगलों में 78 से ज्यादा बार आग लग चुकी है। कैलिफोर्निया में जंगलों के पास रिहायशी इलाके बढ़े हैं। ऐसे में आग लगने पर नुकसान ज्यादा होता है। 1933 में लॉस एंजिलिस के ग्रिफिथ पार्क में लगी आग कैलिफोर्निया की सबसे बड़ी आग थी। इसने करीब 83 हजार एकड़ के इलाके को अपनी चपेट में ले लिया था। करीब 3 लाख लोगों को अपना घर छोड़कर दूसरे शहरों जाना पड़ा था।


मौसम के हालात और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की वजह से आने वाले दिनों में इस आग के और भड़कने की आशंका जताई जा रही है। अमेरिकी की बीमा कंपनियों को डर है कि यह अमेरिका के इतिहास में जंगलों में लगी सबसे महंगी आग साबित होगी, क्योंकि आग के दायरे में आने वाली संपत्तियों की कीमत बहुत ज़्यादा है। 


यदि आग के कारणों की बात करें तो अमेरिकी सरकार के रिसर्च में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि पश्चिमी अमेरिका में बड़े पैमाने पर जंगलों में लगी भीषण आग का संबंध जलवायु परिवर्तन से भी है। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती गर्मी, लंबे समय तक सूखा और प्यासे वायुमंडल सहित जलवायु परिवर्तन पश्चिमी अमेरिका के जंगलों आग के ख़तरे और इसके फैलने की प्रमुख वजह रहे हैं। अमेरिका में दक्षिणी कैलिफोर्निया में आग लगने का मौसम आमतौर पर मई से अक्टूबर तक माना जाता है। परंतु राज्य के गवर्नर गैविन न्यूसम ने मीडिया को बताया कि आग लगना पूरे साल की एक समस्या बन गई है। इसके साथ ही इस आग को फैलाने का एक बड़ा कारण ‘सेंटा एना’ हवाएँ भी हैं, जो ज़मीन से समुद्र तट की ओर बहती हैं। माना जाता है कि क़रीब 100 किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा की गति से चलने वाली इन हवाओं ने आग को अधिक भड़काया। ये हवाएं साल में कई बार बहती हैं।


अमरीका हो, भारत हो या विश्व का कोई भी देश, चिंता की बात यह है कि यहाँ के नेता कभी पर्यावरणवादियों की सलाह को महत्व नहीं देती। पर्यावरण के नाम पर मंत्रालय, विभाग और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन सब काग़ज़ी ख़ानापूरी करने के लिए हैं। कॉर्पोरेट घरानों के प्रभाव में और उनकी हवस को पूरा करने के लिए सारे नियम और क़ानून ताक पर रख दिये जाते हैं। पहाड़ हों, जंगल हों, नदी हो या समुद्र का तटीय प्रदेश, हर ओर विनाश का ऐसा ही तांडव जारी है। विकास के नाम पर होने वाले विनाश यदि ऐसे ही चलते रहेंगे तो भविष्य में इससे भी भयंकर त्रासदी आएँगीं। 


अमरीका जैसे संपन्न और विकसित देश में जब ऐसे हादसे बार-बार होते हैं तो लगता है कि वहाँ भी जाने-माने पर्यावरणविदों, इंजीनियर और वैज्ञानिकों के अनुभवों और सलाहों को खास तवज्जो नहीं दी जाती। यदि इनकी सलाहों को गंभीरता से लिया जाए तो शायद आनेवाले समय में ऐसा न हो। एक शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर नज़र रखने वाले यूएन के वैज्ञानिकों ने अक्तूबर 2018 में चेतावनी दी थी कि अगर पर्यावरण को बचाने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए तो बढ़ते तापमान की वजह से 2040 तक भयंकर बाढ़, सूखा, अकाल और जंगल की आग का सामना करना पड़ सकता है। दुनिया का कोई भी देश हो क्या कोई इन वैज्ञानिक शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों की सलाह को कभी सुनेगा?  

Monday, January 6, 2025

देशी गाय के वैज्ञानिक महत्व को समझने की ज़रूरत


जबसे मुसलमान शासक भारत में आए तब से गौवंश की हत्या होनी शुरू हुई। हिन्दू लाख समझाते रहे कि गौमाता सारे संसार की जननी के समान है। उसके शरीर के हर अंश में लोक कल्याण छिपा है और तो और उसका मूत्र और गोबर तक औषधि युक्त है, इसलिये उसकी हत्या नहीं उसका पूजन किया जाना चाहिये। पर यवनों पर कोई असर नहीं पड़ा। आज भी मूर्खतावश बहुत से मुसलमान गौवंश की हत्या करते हैं। अक्सर यह दोनों धर्मों के बीच विवाद का विषय रहता है। अंग्रेज जब भारत में आए तो उन्होंने हिन्दुओं का मजाक उड़ाया। वे अपने सीमित ज्ञान के कारण यह समझने में असमर्थ थे कि हिन्दू गौवंश का इतना सम्मान क्यों करते हैं? आजादी के बाद धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वालों ने भी हिन्दुओं की इस मान्यता पर ध्यान नहीं दिया।
 



कुछ वर्ष पहले जब यह सूचना आई कि गौमूत्र का औषधि के रूप में अमरीका में पेटेंट हो गया है, तो सारे देश में सनसनी पैदा हो गई। योग और आयुर्वेद की तरह अब पूरी दुनिया जल्दी ही गोमाता के महत्व को स्वीकारने लगेगी। हमेशा की तरह हम अपनी ही धरोहर को विदेशी पैकेज में कई गुना दामों में खरीदने पर मजबूर होंगे। जिस तरह पेप्सी कंपनी हमारे बाजारों से दो रुपये किलो आलू खरीद कर 250 रुपये किलो के चिप्स बेचती है वैसे ही आने वाले दिनों में गौमूत्र व गोबर सुंदर पैकेजिंग और आकर्षक विज्ञापनों के सहारे सैकड़ों रुपये कीमत पर बिकेगा। आवश्यकता इस बात की है कि हम गोमाता के महत्व को समय रहते पहचानें। शास्त्रीय और वैज्ञानिक आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि गौमाता के शरीर के हर हिस्से से हम पर कृपा बरसती है।


गो दूध का वैज्ञानिक महत्व



अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हृदय विशेषज्ञों ने इस बात को ज़ोर देकर कहा है कि हृदय रोगियों के लिये देशी गाय का दूध विशेष रूप से उपयोगी है। देशी गाय के दूध के कण सूक्ष्म और सुपाच्य होते हैं। अतः वह मस्तिष्क की सूक्ष्मतम नाडि़यों में पहुँच कर मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करते हैं। देशी गाय के दूध में केरोटीन (विटामिन-ए) नाम का पीला पदार्थ रहता है, जो आंख की ज्योति बढ़ाता है। चरक सूत्र स्थान 1/18 के अनुसार, देशी गाय का दूध जीवन शक्ति प्रदान करने वाले द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ है। देशी गाय के दूध में 8 प्रतिशत प्रोटीन, 8 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 0.7 प्रतिशत मिनरल (100 आई.यू) विटामिन ए और विटामिन बी, सी, डी एवं ई होता है। निघण्टु के अनुसार देशी गाय का दूध रसायन, पथ्य, बलवर्धक, हृदय के लिये हितकारी, बुद्धिवर्धक, आयुप्रद, पुंसत्वकारक तथा त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) नाशक है।


देशी गाय के घी का वैज्ञानिक महत्व



गोघृत खाने से कोलेस्टरोल नहीं बढ़ता। इसे सेवेन से हृदय पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। रूसी वैज्ञानिक शिरोविच के शोधानुसार देशी गाय के घी में मनुष्य शरीर में पहुँचे रेडियोधर्मी कणों का प्रभाव नष्ट करने की असीम शक्ति है। गोघृत से यज्ञ करने से आक्सीजन बनती है। देशी गाय के घी को चावल के साथ मिलाकर जलाने से (यज्ञ) ईथीलीन आक्साइड, प्रोपीलीन आक्साइड और फोरमैल्डीहाइड नाम की गैस पैदा होती है। ईथीलीन आक्साइड और फारमैल्डीहाइड जीवाणी रोधक है जिसका उपयोग आपरेशन थियेटर को कीटाणु रहित करने में आज भी होता है। प्रोपीलीन आक्साइड वर्षा करने के उपयोग में आती है- अर्थात गोघृत द्वारा किये गये यज्ञ से वातावरण की शुद्धि और वर्षा होना दोना स्वाभाविक परिणाम हैं। भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार गोघृत नेत्रों के लिये हितकारी, अग्निप्रदीपक, त्रिदोष नाशक, बलवर्धक, आयुवर्धक, रसायन, सुगंधयुक्त, मधुर, शीतल, सुंदर और सब घृतों में उत्तम होता है।


गोमूत्र का वैज्ञानिक महत्व


गोमूत्र में ताम्र होता है जो मानव शरीर में स्वर्ण के रूप में परिवर्तित हो जाता है। स्वर्ण सर्व रोग नाशक शक्ति रखता है। स्वर्ण सभी प्रकार का विषनाशक है। गोमूत्र में ताम्र के अतिरिक्त लोहे, कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य प्रकार के क्षार (मिनरल्स), कार्बोनिक एसिड, पोटाश और लेक्टोज नाम के तत्व मिलते हैं। गोमूत्र में 24 प्रकार के लवण होते हैं जिनके कारण गोमूत्र से निर्मित विविध प्रकार की औषधियां कई रोगों के निवारण में उपयोगी हैं। गोमूत्र कीटनाशक होने से वातावरण को शुद्ध करता है और जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। गोमूत्र त्रिदोष नाशक है, किन्तु पित्त निर्माण करता है। लेकिन काली देशी गाय का मूत्र पित्त नाशक होता है। नवयुवकों के लिये गोमूत्र शीघ्रपतन, धातु का पतलापन, कमजोरी, सुस्ती, आलस्य, सिरदर्द क्षीण स्मरण शक्ति में बहुत उपयोगी है। पंचगव्य गोघृत गोमय, गोदधि, गोदुग्ध, गोमुत्र से मिलकर बनता है। उसका सेवन मिर्गी, दिमागी कमजोरी, पागलपन, भयंकर पीलिया, बवासीर आदि में बहुत उपयोगी है। कैंसर जैसे दुस्साध्य और उच्च रक्तचाप तथा दमा जैसे रोगों में भी गोमूत्र सेवन अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है।


गोबर का वैज्ञानिक महत्व


इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. जी.ई. बीगेड ने गोबर के अनेक प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया है कि देशी गाय के ताजे गोबर से टी बी तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। आणविक विकरण से मुक्ति पाने के लिये जापान के लोगों ने गोबर को अपनाया है। गोबर हमारी त्वचा के दाद, खाज, एक्जिमा और घाव आदि के लिये लाभदायक होता है। सिर्फ एक देशी गाय के गोबर से प्रतिवर्ष 45000 लीटर बायो गैस मिलती है। बायो गैस के उपयोग करने से 6 करोड़ 80 लाख टन लकड़ी बच सकती है जो आज जलाई जाती है। जिससे 14 करोड़ वृक्ष कटने से बचेंगे ओर देश के पर्यावरण का संरक्षण होगा। गोबर की खाद सर्वोत्तम खाद है। जबकि फर्टिलाइजर से पैदा अनाज हमारी प्रतिरोधक क्षमता को लगातार कम करता जा रहा है।


ऐसी तमाम जानकारियों का संचय कर उसके व्यापक प्रचार प्रसार में जुटे युवा वैज्ञानिक श्री सत्यनारायण दास बताते हैं कि विदेशी इतिहासकारों और माक्र्सवादी चिंतकों ने वैदिक शास्त्रों में प्रयुक्त संस्कृत का सतही अर्थ निकाल कर बहुत भ्रांति फैलाई है। इन इतिहासकारों ने यह बताने की कोशिश की है कि वैदिक काल में आर्य गोमांस का भक्षण करते थे। यह वाहियात बात है। ‘गौधन’ जैसे शब्द का अर्थ अनर्थ कर दिया गया। श्री दास के अनुसार वैदिक संस्कृत में एक ही शब्द के कई अर्थ प्रयुक्त होते हैं जिन्हें उनके सांस्कृतिक परिवेश में समझना होता है। इन विदेशी इतिहासकारों ने वैदिक संस्कृत की समझ न होने के कारण ऐसी भूल की। आईआईटी से बी.टेक. और एम.टेक. करने वाले श्री दास गो सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं। इसलिए समय की माँग है कि अब भारत सरकार और प्रांतीय सरकारें गौवंश की हत्या पर कड़ा प्रतिबंध लगायें और इनके संवर्धन के लिये उत्साह से ठोस प्रयास करें। शहरी जनता को भी अपनी बुद्धि शुद्ध करनी चाहिये। गौवंश की सेवा हमारी परंपरा तो है ही आज के प्रदूषित वातावरण में स्वस्थ रहने के लिये हमारी आवश्यकता भी है। हम जितना गो माता के निकट रहेंगे उतने ही स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगे।