नागरिक उड्डयन मंत्रालय
और निजी एयरलाइन्स की मिली भगत के कई घोटाले हम पहले उजागर कर चुके हैं। हमारी ही
खोज के बाद जैट ऐयरवेज को सवा सौ से ज्यादा अकुशल पाइॅलटों को घर बैठाना पड़ा था।
ये पाइलेट बिना कुशलता की परीक्षा पास किये, डीजीसीए में
व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण यात्रियों की जिंदगी के खिलवाड़ कर रहे थे। हवाई जहाज
का पाइॅलट बनना एक मंहगा सौदा है। इसके प्रशिक्षण में ही 50 लाख
रूपये खर्च हो जाते हैं। एक मध्यम वर्गीय परिवार पेट काटकर अपने बच्चे को पाइॅलेट
बनाता है। इस उम्मीद में कि उसे जब अच्छा वेतन मिलेगा, तो वह
पढ़ाई का खर्चा पाट लेगा। पाइॅलेटों की भर्ती में लगातार धांधली चल रही है। योग्यता
और वरीयता को कोई महत्व नहीं दिया जाता। पिछले दरवाजे से अयोग्य पाइलटों की भर्ती
होना आम बात है। पाइॅलटों की नौकरी से पहले ली जाने वाली परीक्षा मे भी खूब रिश्वत
चलती है?
ताजा मामला एयर इंडिया का है। 21 अगस्त को एयर इंडिया में पाइॅलट की नौकरी के लिए आवेदन करने का विज्ञापन आया। जिसमें रैटेड और सीपीएल पाइॅलटों के लिए आवेदन मांगे गये हैं, लेकिन केवल रिर्जव कोटा के आवेदनकर्ताओं से ही। देखने से यह प्रतीत होता है कि ये विज्ञापन बहुत जल्दी में निकाला गया है। क्योंकि 31 अगस्त के लखनऊ के एक समाचार पत्र में सरकार का एक वकतव्य आया था कि रिजर्वेशन पाने के लिए परिवार की सालाना आय 8 लाख से कम होनी चाहिए। ये बात समझ के बाहर है कि कोई भी परिवार जिसकी सालाना आय 8 रूपये से लाख से कम होगी वह अपने बच्चे को पाइॅलट बनाने के लिए 35 से 55 लाख रूपये की राशि कैसे खर्च कर सकता है, वह भी एक से दो साल के अंदर?
इस विज्ञापन में पहले की बहुत सी निर्धारित योग्यताओं को ताक पर रखा गया है। आज तक शायद ही कभी एयर इंडिया का ऐसा कोई विज्ञापन आया हो, जिसमें सीपीएल और हर तरह के रेटेड पाइॅलटों से एक साथ आवेदन मांगे गये हों।
कई सालों से किसी भी वकेंसी में आवेदन के लिए साईकोमैट्रिक पहला चरण हुआ करता था। पिछले कुछ सालों में रिर्जव कैटेगरी के बहुत से प्रत्याशी इसे सफलतापूर्वक पास नहीं कर पाये। इस बार के विज्ञापन में उसको भी हटा दिया गया है। अब तो और भी नाकारा पाइॅलटो की भर्ती होगी।
अभी तक सरकारी नौकरियों में रिर्जव केटेगरी के लिए 60 प्रतिशत का रिजर्वेंशन आता था। इस वेंकेसी में टोटल सीट ही रिर्जव कैटेगरी के लिए हैं, जनरल कोटे वालों का कहीं कोई जिक्र नहीं है। पिछले साल एयर इंडिया अपनी वेंकेसी में रिजर्व कैटेगरी की सीट उपयुक्त प्रत्याशी के अभाव में नहीं भर पाई थी। उस संदर्भ में ये विज्ञापन अपने आप में ही एक मजाक प्रतीत होता है।
एयर इंडिया के हक में
और प्रत्याशियों के भविष्य को देखते हुए, क्या यह उचित
नहीं होगा कि रिर्जव कैटेगरी के योग्य आवेदनकर्ताओं के अभाव में रिर्जव कैटेगरी की
सीटों को जनरल कैटेगरी से भर लिया जाये।
महत्वपूर्ण बात यह है कि सीपीएल का लाईसेंस लेने के लिए व्यक्ति को 30 से 35 लाख रूपये खर्च करने पड़ते है। किसी भी विशिष्टि विमान की रेटिंग के लिए उपर से 20 से 25 लाख रूपये और खर्च होते हैं। जब सारी योग्यताऐं लिखित और प्रायोगिक पूरी हो जाती हैं, तभी डीजीसीए लाईसेंस जारी करता है। सारे पेपर्स और रिकौर्ड्स चैक करने के बाद ही यह किया जाता है। इतना सब होने के बाद किसी भी एयर लाईन को पाइॅलट नियुक्त करने के लिए अलग से लिखित परीक्षा/साक्षात्कार/सिम चैक लेने की क्या आवश्यक्ता है? एक व्यक्ति को लाईसेंस तभी मिलता है, जब वह डीजीसीए की हर कसौटी पर खड़ा उतरता है। नियुक्ति के बाद भी हर एयर लाईन्स अपनी जरूरत और नियमों के अनुसार हर पाईलेट को कड़ी ट्रैनिंग करवाती है। एक बार ‘सिम टैस्ट’ देने में ही पाइलेट को 25 हजार रूपये उस एयर लाईन्स को देने पड़ते है। आना-जाना और अन्य खर्चे अलग। इतना सब होने के बाद भी नौकरी की गांरटी नहीं । किसी भी आम पाइॅलट के लिए ये सब खर्च अनावश्यक भार ही तो है।
जरूरत इस बात की है कि
डीजीसीए में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जाये। भाई-भतीजावाद को रोका जाए। डीजीसीए
आवेदनकर्ता पाइॅलटों की आनलाईन एक वरिष्ठता सूची तैयार करे। जिसमें हर पाइॅलट को
उसके लाईलेंस जारी करने की तारीख और रेंटिंग की तारीख के अनुसार रखा जाए। इसके बाद
हर एयर लाईस अपनी जरूरत के अनुसार उसमें से सीनियर्टी के अनुसार प्रत्याशी ले ले
और अपनी जरूरत के अनुसार उनको और आगे की ट्रेनिंग दे।