यूं
तो बम्बईया फिल्मों में पुलिस को हमेशा से ‘लेट-लतीफ’ और ‘ढीला-ढाला’ ही
दिखाया जाता है। आमतौर पर पुलिस की छवि होती भी ऐसी है कि वो घटनास्थल पर
फुर्ती से नहीं पहुंचती और बाद में लकीर पीटती रहती है। तब तक अपराधी
नौ-दो-ग्यारह हो जाते हैं। पुलिस के मामले में उ.प्र. पुलिस पर ढीलेपन के
अलावा जातिवादी होने का भी आरोप लगता रहा है। कभी अल्पसंख्यक आरोप लगाते हैं
कि ‘यूपी पुलिस’ साम्प्रदायिक है, कभी बहनजी के राज में आरोप लगता है
कि यूपी पुलिस दलित उत्पीड़न के नाम पर अन्य जातियों को परेशान करती है। तो
सपा के शासन में आरोप लगता है कि थाने से पुलिस अधीक्षक तक सब जगह यादव भर
दिये जाते हैं। यूपी पुलिस का जो भी इतिहास रहा हो, अब उ.प्र. की पुलिस
अपनी छवि बदलने को बैचेन है। इसमें सबसे बड़ा परिवर्तन ‘यूपी 100’ योजना
शुरू होने से आया है।
इस
योजना के तहत आज उ.प्र. के किसी भी कोने से, कोई भी नागरिक, किसी भी समय
अगर 100 नम्बर पर फोन करेगा और अपनी समस्या बतायेगा, तो 3 से 20 मिनट के
बीच ‘यूपी 100’ की गाड़ी में बैठे पुलिसकर्मी उसकी मदद को पहुंच जायेंगे।
फिर वो चाहे किसी महिला से छेड़खानी का मामला हो, चोरी या डकैती हो, घरेलू
मारपीट हो, सड़क दुर्घटना हो या अन्य कोई भी ऐसी समस्या, जिसे पुलिस हल कर
सकती है। यह सरकारी दावा नहीं बल्कि हकीकत है। आप चाहें तो यूपी में इसे
कभी भी 24 घंटे आजमाकर देख सकते हैं। पिछले साल नवम्बर में शुरू हुई, यह
सेवा आज पूरी दुनिया और शेष भारत के लिए एक मिसाल बन गई है। ऐसा इसलिए भी
क्योंकि उ.प्र. के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अनिल अग्रवाल ने अपनी लगन से
इसे मात्र एक साल में खड़ा करके दिखा दिया। जोकि लगभग एक असंभव घटना है।
अनिल अग्रवाल ने जब यह प्रस्ताव शासन के सम्मुख रखा, तो उनके सहकर्मियों ने
इसे मजाक समझा। मगर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तुरंत इस योजना
को स्वीकार कर लिया और उस पर तेजी से काम करवाया।
आज इस सेवा में 3200 गाडियां है और 26000 पुलिसकर्मी और सूचना प्रौद्योगिकी के सैकड़ों विशेषज्ञ लगे हैं।
जैसे
ही आप 100 नम्बर पर फोन करते हैं, आपकी काल सीधे लखनऊ मुख्यालय में सुनी
जाती है। सुनने वाला पुलिसकर्मी नहीं बल्कि युवा महिलाऐं हैं। जो आपसे आपका
नाम, वारदात की जगह और क्या वारदात हो रही है, यह पूछती है। फिर ये भी
पूछती है कि आपके आस पास कोई महत्वर्पूण स्थान, मंदिर, मस्ज्जिद या भवन है
और आप अपने निकट के थाने से कितना है दूर हैं। इस सब बातचीत में कुछ सेकंेड
लगते हैं और आपका सारा डेटा और आपकी आवाज कम्प्यूटर में रिकार्ड हो जाती
है। फिर यह रिकार्डिंग एक दूसरे विभाग को सेकेंडों में ट्रांस्फर हा जाती
है। जहां बैठे पुलिसकर्मी फौरन ‘यूपी 100’ की उस गाड़ी को भेज देते हैं, जो
उस समय आपके निकटस्थ होती है। क्योंकि उनके पास कम्प्यूटर के पर्दें पर हर
गाड़ी की मौजूदगी का चित्र हर वक्त सामने आता रहता है। इस तरह केवल 3 मिनट
से लेकर 20 मिनट के बीच ‘यूपी 100’ के पुलिकर्मी मौका-ए-वारदात पर पहंच
जाते है।
अब
तक का अनुभव यह बताता है कि 80 फीसदी वारदात आपसी झगड़े की होती हैं।
जिन्हें पुलिसकर्मी वहीं निपटा देते हैं या फिर उसे निकटस्थ थाने के
सुपुर्द कर देते हैं।
ये
सेवा इतनी तेजी से लोकप्रिय हो रही है कि अब उ.प्र. के लोग थाना जाने की
बजाय सीधे 100 नम्बर पर फोन करते हैं। इसके तीन लाभ हो रहे हैं। एक तो अब
कोई थाना ये बहाना नहीं कर सकता कि उसे सूचना नहीं मिली। क्योंकि पुलिस के
हाथ में केस पहुंचने से पहले ही मामला लखनऊ मुख्यालय के एक कम्प्यूटर में
दर्ज हो जाता है। दूसरा थानों पर काम का दबाव भी इससे बहुत कम हो गया है।
तीसरा लाभ ये हुआ कि ‘यूपी 100’ जिला पुलिस अधीक्षक के अधीन न होकर सीधे
प्रदेश के पुलिस महानिदेशक के अधीन है। इस तरह पुलिस फोर्स में ही एक दूसरे
पर निगाह रखने की दो ईकाई हो गयी। एक जिला स्तर की पुलिस और एक राज्य स्तर
की पुलिस। दोनों में से जो गडबड़ करेगा, वो अफसरों की निगाह में आ जायेगा।
जब
से ये सेवा शुरू हुई है, तब से सड़कों पर लूटपाट की घटनाओं में बहुत तेजी
से कमी आई है। आठ महीने में ही 323 लोगों को मौके पर फौरन पहुंचकर
आत्महत्या करने से रोका गया है। महिलाओं को छेड़ने वाले मजनुओं की भी इससे
शामत आ गयी है। क्योंकि कोई भी लडकी 100 नम्बर पर फोन करके ऐसे मजनुओं के
खिलाफ मिनटों में पुलिस बुला सकती है। इसके लिए जरूरत इस बात की है कि
उ.प्र. का हर नागरिक अपने मोबाइल फोन पर ‘यूपी 100 एप्प’ को डाउनलोड कर ले
और जैसे ही कोई समस्या में फंसे, उस एप्प का बटन दबाये और पुलिस आपकी सेवा
में हाजिर हो जायेगी। विदेशी सैलानियों के लिए भी ये रामबाण है। जिन्हें
अक्सर ये शिकायत रहती थी कि उ.प्र. की पुलिस उनके साथ जिम्मेदारी से
व्यवहार नहीं करती है। इस पूरी व्यवस्था को खड़ी करने के लिए उ.प्र. पुलिस
और उसके एडीजी अनिल अग्रवाल की जितनी तारीफ की जाए कम है। जरूरत है इस
व्यवस्था को अन्य राज्यों में तेजी से अपनाने की।