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Monday, December 5, 2022

‘पप्पू’ में बहुत गहराई है- प्रियंका गांधी



कुछ हफ़्तों पहले सोशल मीडिया पर प्रियंका गांधी का एक अंग्रेज़ी वीडियो जारी हुआ। उसमें उन्होंने अपने भाई राहुल गांधी के व्यक्तित्व के बारे में काफ़ी कुछ कहा। उनके इस वक्तव्य से राहुल गांधी के व्यक्तित्व की अनेक उन बातों का पता चला जिनकी चर्चा कभी एकतरफ़ा हो चुके मीडिया ने नहीं की। इन दिनों जब राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ काफ़ी चर्चा में हैं, तो पाठकों के साथ इस वीडियो का ज़िक्र करना उचित होगा।


प्रियंका गांधी अपने भाई को अपना सबसे करीबी मित्र बताते हुए अपने बचपन को याद करती हैं। किस तरह उनका बचपन दर्दनाक हादसों और हिंसा का साक्षी रहा। इन दोनों ने अपनी दादी, इंदिरा गांधी को दूसरी माँ के रूप में पाया। 1984 में इंदिरा जी की हत्या के समय राहुल की उम्र मात्र 14 साल की थी। वे कहती हैं कि चार जनों के एक छोटे परिवार के पारस्परिक स्नेह ने ही उनको सभी कठिनाइयों का सामना करने की ताक़त दी। 


1991 में जब राजीव गांधी की हत्या हुई तो राहुल विदेश में पढ़ रहे थे। इस निर्मम हत्या कांड ने बहन भाई को झकझोर कर रख दिया था। उस कठिन समय में भी राहुल ने प्रियंका से कहा कि उनके मन में किसी तरह का गुस्सा नहीं है। राहुल को अक्सर उनके मुक्त विचारों के लिये विपक्ष से निंदा का सामना करना पड़ता है। उनके साहस का मज़ाक़ उड़ाया जाता रहा। इसके बावजूद वे कभी भी क्रोधित नहीं हुए और न ही अपने अंदर किसी के प्रति घृणा को उत्पन्न होने दिया। 



विपक्ष द्वारा हर रोज़ उन्हें पप्पू कहकर अपमानित किया जाता रहा, उनकी पढ़ाई लिखाई पर सवाल उठाए गये। सवाल भी उन लोगों ने उठाए जिनके बड़े-बड़े नेता भी अपने पढ़े लिखे होने का सही प्रमाण आज तक नहीं दे पाये।


प्रियंका कहती हैं कि बावजूद इस सबके राहुल ने सूझबूझ और हिम्मत दिखा कर विपक्षी नेताओं को गले लगाने का साहस भी दिखाया। बहुत कम लोग जानते हैं कि राहुल ने धार्मिक किताबें भी पढ़ी हैं। फिर वो चाहे हिंदू, इस्लाम, बौद्ध या ईसाई धर्म की किताबें हों। राहुल ने वेद, शैव और उपनिषदों को जानने का भी प्रयास किया है।


अपने निजी जीवन में वे एक साधारण व्यक्तित्व वाले आम इंसान हैं। प्रियंका याद करते हुए बताती हैं कि एक दिन जब वे उनके घर गईं तो वे अपनी अलमारी की सफ़ाई कर रहे थे। प्रियंका के पूछने पर राहुल ने बताया कि वे अपने सामान को केवल दस वस्तुओं में सिमेट रहे हैं। वे बताती हैं तब से राहुल के पास न तो उन दस वस्तुओं से अधिक कुछ है न ही उससे अधिक रखने कि इच्छा है। किसी ने कभी राहुल गांधी को महँगे कपड़े या चश्मे पहने नहीं देखा होगा। 


राहुल जापानी आत्मरक्षा ‘आइकीडो’ में ‘ब्लैक बेल्ट’ हासिल कर चुके हैं। साथ ही वे अपने पिता की ही तरह एक योग्य पायलट भी हैं।


कम लोगों को पता होगा कि राहुल गांधी प्रशिक्षक स्तर के गोताखोर होने के नाते एक साँस में 75 मीटर गहराई तक समुद्र में छलाँग लगा सकते हैं। उनकी शारीरिक क्षमता का अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि वे भारत तिब्बत सीमा पुलिस द्वारा आयोजित पर्वतारोहण के कार्यक्रम में भी भाग ले चुके हैं। 



सामाजिक आंदोलनों व विभिन्न संस्कृति के लोगों को समझने की नीयत से राहुल दुनिया के कई देशों में यात्रा कर चुके हैं। प्रियंका गांधी के अनुसार राहुल को अपने सहयोगियों व समर्थकों के लिए सामाजिक न्याय, सच्चाई व समानता बहुत महत्व रखती है। वे लोकतंत्र में पूरा विश्वास रखते हैं। वे अभिव्यक्ति की आज़ादी, धर्म, भाषा व संस्कृति की आज़ादी में भी पूरा विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि इस राष्ट्र के वास्तविक स्वरूप की स्थापना जनता द्वारा और जनता के लिए ही हुई।


प्रियंका के इस वीडियो को देख कर राहुल गांधी के बारे में बहुत कुछ ऐसा पता चला जो शायद देश के ज़्यादातर लोगों को पता नहीं होगा। सोचा क्यों इसे व्हाट्सएप पर अपने साढ़े सात हज़ार संपर्कों को भी भेजा जाए। इस पर बहुत सारी रोचक प्रतिक्रियाएँ आईं। अधिकतर लोगों का कहना था कि राहुल गांधी अपने पिता की तरह एक साफ़ दिल इंसान हैं। उनके व्यक्तित्व में झूठ बोलने या अपने बारे में बढ़-चढ़ कर दिखावा करने की प्रवृत्ति नहीं है। पर इन टिप्पणीयों के साथ ही कई टिप्पणियाँ ऐसी भी आईं जिन में कहा गया कि राहुल गांधी एक अच्छे इंसान तो हैं पर कुशल राजनेता नहीं हैं। कुछ की राय यह थी कि राहुल गांधी को नाहक राजनीति में धकेला जा रहा है। प्रश्न है कि देश की राजनीति में सत्ताधारी भाजपा को मिलाकर कितने नेता ऐसे हैं जिनका व्यक्तित्व राहुल गांधी के निकट भी हो। बहुत से अपराधी, बलात्कारी, माफ़ियाओं और कम पढ़े लिखे लोगों को चुनने वाली इस देश की जनता के लिए क्या राहुल गांधी इतने बेकार हैं कि उन्हें राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए? लोकतंत्र में अगर समाज विरोधियों की भूमिका है, तो राहुल गांधी जैसे व्यक्ति की क्यों नहीं हो सकती?



दिन-रात एक ही दल और उसके नेता की चारण भाटों की तरह प्रशंसा और गुणगान करने वाला मीडिया आज राहुल गांधी की इतनी सफल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर कोई विस्तृत रिपोर्टिंग नहीं कर रहा। पर यही मीडिया पिछले कुछ वर्षों से राहुल गांधी को ‘पप्पू’ सिद्ध करने में कोई मौक़ा नहीं छोड़ रहा। जबकि ये तथाकथित ‘पप्पू’ हर दिन, हर मोड़ पर बड़ी बेबाक़ी से मीडिया का सामना करता आ रहा है। जो हिम्मत पिछले बरसों में इस देश के कई बड़े नेता एक बार भी नहीं दिखा पाए। अगर उनमें सच्चाई और नैतिक बल है तो वे प्रेस से इतना डरते क्यों हैं? ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की समाप्ति के बाद राहुल गांधी राजनीति में क्या हासिल कर पाएँगे ये तो भगवान या इस देश के मतदाता ही जानते हैं। पर इस लंबी यात्रा में चल कर और आम जनता से घुलमिल कर राहुल गांधी ने वो प्राप्त किया है जो भारत के सैंकड़ों वर्षों के इतिहास में किसी ने प्राप्त नहीं किया। क्योंकि उन्होंने ऐसी हिम्मत ही नहीं दिखाई। इस देश की राजनीति में कभी भी विपक्ष का सत्ता पक्ष द्वारा इतना अपमान नहीं किया गया जितना पिछले आठ वर्षों में सार्वजनिक मंचों से किया गया है। अगर ऐसी अपमानजनक टिप्पणियाँ करने वाले नेताओं और दल के दामन बेदाग़ होते तो उनकी बात का असर पड़ता। पर असर नहीं पड़ा तभी तो ब्लैकमेलिंग के हमले सह कर भी विपक्ष सीना तान कर खड़ा है। यूँ राजनीति में दूध का धुला तो कोई नहीं होता।   

Monday, February 28, 2022

उत्तर प्रदेश में चुनावी भाषणों का गिरता स्तर


ज्यों-ज्यों उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव अपने अंतिम चरणों की ओर पहुँच रहा है, त्यों-त्यों राजनैतिक भाषणों का स्तर तेज़ी से गिरता जा रहा है। लोकतंत्र के लिए ये बहुत बड़ी ख़तरे की घंटी है। आज़ादी के बाद से दर्जनों चुनाव हो गए पर ऐसी भाषा पहले कभी नहीं सुनी गई जैसी आज सुनी जा रही है। प्रदेश के मुख्य मंत्री और गौरक्ष पीठ के महंत से अपेक्षा होती है कि वे अपनी उपलब्धियों का बखान करेंगे और धर्म शस्त्रों से उदाहरण लेकर सारगर्भित ऐसे भाषण देंगे जिसमें उनके केसरिया स्वरूप के अपरूप कुछ आध्यात्मिकता का पुट हो। इसके विपरीत योगी आदित्यनाथ का चुनावी जनसभाओं में खुलेआम यह कहना कि,
चर्बी निकाल दूँगा, जून महीने में शिमला बना दूँगा, सब बुलडोज़रों की मरम्मत के आदेश दे दिए हैं, 10 मार्च के बाद सब हरकत में आ जाएँगे, चुनाव आचार संहिता का तो खुला उलंघन है ही। उनके स्तर के व्यक्ति की गरिमा और पद के भी बिलकुल विपरीत है। 


योगी जी कैराना से लेकर आजतक बार-बार चुनावी लड़ाई को 80 फ़ीसद बनाम 20 फ़ीसद या अब्बाज़ान के भाईजान बता कर अखिलेश यादव का मज़ाक़ उड़ते हैं। यही भाषा भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेता भी बाल रहे हैं। उन सब से मेरा प्रश्न है कि जब 1993 में देश में पहली बार हिज़बुल मुजाहिद्दीन को दुबई व लंदन से हवाला के ज़रिये आ रहे पैसे का मैंने भांडा फोड़ किया था तब आपकी भाजपा व आरएसएस ने क्यों नहीं उस लड़ाई में साथ दिया? अगर दिया होता तो देश में आतंकवाद कब का नियंत्रित हो जाता। पर तब तो आप लोग भाजपा के बड़े नेताओं को बचाने में जुट गये थे, जिन्होंने आतंकवादियों के इसी  स्रोत से खूब पैसे लिए थे। यानी राष्ट्र की सुरक्षा की आप लोगों को कोई चिंता नहीं है। अपने नेताओं को देशद्रोह के अपराध में फ़सने से बचाना ही क्या आपका राष्ट्रवाद है? फिर आप किस मुह से अपने विपक्षियों पर आतंकवादियों का साथ देने का आरोप लगाते हैं?


उधर तेलंगाना के भाजपा विधायक का खुलेआम धमकी देना कि, जो योगी को वोट नहीं देंगे, उन्हें उत्तर प्रदेश में रहने नहीं दिया जाएगा और यह भी कहना कि सारे देश से बुलडोज़र उत्तर प्रदेश की ओर चल दिए हैं, जो 10 मार्च के बाद विरोधियों को तबाह करेंगे। जो भाजपा सपा पर गुंडागर्दी का आरोप लगाते नहीं थकती उसके बड़े नेताओं की ऐसी बयानबाज़ी क्या हद दर्जे की गुंडागर्दी का प्रमाण नहीं है? हद तो तब हो गई जब देश के प्रधान मंत्री ने अहमदाबाद के बम धमाकों में साइकिल को घसीट कर सपा पर हमला बोला। मोदी जी ने कहा कि उस हमले में साइकिल का प्रयोग हुआ था और साइकिल समाजवादियों का चुनाव चिन्ह है। इसलिए समाजवादी आतंकवाद के समर्थक हैं। जबकि उस बम कांड की जाँच कर रहे डीसीपी अभय चूडास्मा ने स्पष्ट किया था, "लाल और सफ़ेद कारों में विस्फोटक फिट किया गया था। जाँच रिपोर्ट में कहीं साईकिल का ज़िक्र नहीं है। तब मोदी जी और मनमोहन सिंह घटनास्थल पर मुआयना करने गए थे। अभय चूडास्मा, हिमांशु शुक्ल, जीएल सिंघल तीनों आईपीएस अधिकारियों की यह रिपोर्टें अदालत में दाखिल हैं। 


साइकिल को इस तरह आतंकवाद से जोड़ कर मोदी जी क्या संदेश देना चाहते हैं? हर बच्चा जब चलना सीखता है तो सबसे पहले उसे साइकिल दिलवाई जाती है। यूरोप में अनेक देशों के प्रधानमन्त्री साईकिल चलाते हैं। ओलम्पिक खेलों में 1896 से साईकिल रेस होती है। प्रदूषण मुक्ति के लिए साइकिल का बड़ा  महत्व है। जब तक मोदी जी हवाई चप्पल पहनने वालों को (अपने चुनावी वायदे के अनुसार) हवाई जहाज़ में यात्रा ना करवा पाएँ, तब तक साईकिल करोड़ों आम भारतीयों की सवारी बनी रहेगी। वैसे भी भारत साइकिल का बड़ा निर्यातक है। अगर आडानी या अम्बानी साईकिल बनाते होते तब भी क्या साईकिल पर ये हमला होता, पूछता है भारत? 


उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव लड़ रहे भाजपा के सभी उम्मीदवार और नेता गरीब जनता को उलाहना दे रहे हैं कि हमने तुम्हें, नमक, तेल, आटा और चावल दिया तो तुम हमें वोट क्यों नहीं दोगे? इसकी जगह अगर ये नेता कहते कि हमने तुम्हें रोज़गार दिलवाया, तुम्हारी आमदनी बढ़वाई, तुम्हारे लिए बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्थाएँ दीं, तुम्हें फसल के वाजिब दाम दिलवाए, तब कुछ लगता कि इन्होंने जनता के लिए कुछ किया है। किंतु जनता के कर के पैसे से गरीब जनता को ख़ैरात बाँटना और उनके स्वाभिमान पर इस तरह चोट करना बहुत निंदनीय है। 


दूसरी तरफ़ भाजपा के विपक्ष में खड़े नेताओं जैसे, प्रियंका गांधी, बहन मायावती और जयंत चौधरी की भाषा में कहीं भी न तो हल्कापन है, न अभद्रता, न धमकी और न ही मवालीपन। ये सब नेता शिष्टाचार के दायरे के भीतर रहकर अपनी बात जनता के सामने रख रहे हैं। सबसे ज़्यादा क़ाबिले तारीफ़ आचरण तो सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का रहा है। इस चुनावी दौर में वे अकेले भाजपा के महारथियों के हमलों को झेल रहे हैं। उन्हें अपमानित और उत्तेजित करने के भाजपा नेताओं के हर वार ख़ाली जा रहे हैं। क्योंकि अखिलेश यादव बड़ी शालीनता से मुस्कुरा कर हर बात का उत्तर शिष्टाचार के दायरे के भीतर रह कर दे रहे हैं। आजतक उन्होंने अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया, जो उनके परिपक्व नेतृत्व का परिचायक है। 


वैसे भी आज के अखिलेश पिछले दौर के अखिलेश से बहुत आगे निकल आए हैं। उन्होंने बड़ी सावधानी से भाजपा के दुष्प्रचार को ग़लत सिद्ध कर दिया है। वे न तो सांप्रदायिक ताक़तों से घिरे हैं, न अराजक तत्वों को अपने पास भटकने दिया और न ही परिवार को खुद पर हावी होने दिया। एक शिक्षित और अनुभवी राजनेता होने के नाते वे केवल विकास के मुद्दों पर बात कर रहे हैं। जिसका भाजपा नेतृत्व जवाब नहीं दे पा रहा है। बरसाना के विरक्त संत श्रद्धेय विनोद बाबा किसी राजनैतिक या सामाजिक प्रपंच में नहीं फँसते। पिछले वर्ष जब अखिलेश यादव विनम्रता के साथ बाबा का दर्शन करने गये तो बाबा बहुत प्रसन्न हुए और बाद में अपने शिष्यों से कहा कि अखिलेश के विरुद्ध जो दुष्प्रचार किया जाता है उसके विपरीत अखिलेश का हृदय साफ़ है और वे एक आस्थावान युवा हैं जो सनातन धर्म की बड़ी सेवा करेंगे। अब प्रदेश की जनता किसे चुनती है ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा।