Monday, June 27, 2022

तेलंगाना ने बनाया तिरुपति जैसा भव्य मंदिर



क्या आपको पता है कि हैदराबाद से 60 किलोमीटर दूर यदाद्रीगिरीगुट्टा क्षेत्र में भगवान लक्ष्मी-नृसिंह देव का एक अत्यंत भव्य मंदिर पिछले वर्षों में बना है। पिछले हफ़्ते जब मैं इसके दर्शन करने गया तो इसकी भव्यता और पवित्रता देख कर दंग रह गया। दरअसल 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद तेलंगाना में ये एक कमी थी। प्रसिद्ध तिरुमाला तिरुपति मंदिर आंध्र प्रदेश के हिस्से में चला गया था। तेलंगाना सरकार ने इस कमी को पूरा करने के लिए पौराणिक महत्व के यदाद्री लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर का 1800 करोड़ रुपए की लागत से तिरुपति की तर्ज पर भव्य निर्माण करवाया है। आज यहाँ लाखों दर्शनार्थियों का मेला लगा रहता है। 


यदाद्री लक्ष्मी-नृसिंह गुफा का उल्लेख 18 पुराणों में से एक स्कंद पुराण में मिलता है। शास्त्रों के अनुसार त्रेता युग में महर्षि ऋष्यश्रृंग के पुत्र यद ऋषि ने यहां भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। उनके तप से प्रसन्न विष्णु ने उन्हें नृसिंह रूप में दर्शन दिए थे। महर्षि यद की प्रार्थना पर भगवान नृसिंह तीन रूपों ज्वाला नृसिंह, गंधभिरंदा नृसिंह और योगानंदा नृसिंह में यहीं विराजित हो गए। दुनिया में एकमात्र ध्यानस्थ पौराणिक नृंसिंह प्रतिमा इसी मंदिर में है। भगवान नृसिंह की ये तीन और माता लक्ष्मी की एक प्रतिमाएं, करीब 12 फीट ऊंची और 30 फीट लंबी एक गुफा में आज भी मौजूद हैं। इस गुफा में एक साथ 500 लोग दर्शन कर सकते हैं। इसके साथ ही आसपास हनुमान जी और अन्य देवताओं के भी स्थान हैं। इसी गुफा के ऊपर व चारों ओर ये विशाल मंदिर परिसर बनाया गया है। 



मंदिर के निर्माण में कहीं भी ईंट, सीमेंट या कंक्रीट का प्रयोग नहीं हुआ है। सारा मंदिर ग्रेनाइट की भारी-भारी श्री कृष्ण शिलाओंसे बना है जिन्हें पुराने  तरीक़े के चूने के मसाले से जोड़ा गया है। मंदिर के निर्माण में 80 हज़ार टन पत्थर लगा है। जो ये सुनिश्चित करेगा कि ये मंदिर सदियों तक रहेगा। नवनिर्मित मंदिर का सारा निर्माण कार्य आगम, वास्तु और पंचरथ शास्त्रों के सिद्धांतों पर किया गया है। जिनकी दक्षिण भारत के खासी मान्यता है। पारम्परिक नक्काशी से सुसज्जित यह मंदिर कुल साढ़े चार साल में बन कर तैयार हुआ है जो अपने आप में एक आश्चर्य है। इसके लिए इंजीनियरों और आर्किटेक्ट्स ने करीब 1500 नक्शों और योजनाओं पर काम किया। मंदिर का सात मंज़िला ग्रेनाइट का बना मुख्य द्वार, जिसे राजगोपुरम कहा जाता है, करीब 84 फीट ऊंचा है। इसके अलावा मंदिर के 6 और गोपुरम हैं। राजगोपुरम के आर्किटेक्चर में 5 सभ्यताओं द्रविड़, पल्लव, चौल, चालुक्य और काकातिय की झलक मिलती है।    


हजारों साल पुराने इस तीर्थ का क्षेत्रफल करीब 9 एकड़ था। मंदिर के विस्तार के लिए 1900 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई। इसकी भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर में 39 किलो सोने और करीब 1753 टन चांदी से सारे गोपुरम (द्वार) और दीवारों को मढ़ा गया है। नवस्थापित भगवान के विशाल विग्रह व गरुड़स्तंभ भी सोने के बने हैं। मंदिर की पूरी परिकल्पना हैदराबाद के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट आनंद साईं की है। यदाद्री मंदिर ऊँचे पहाड़ पर मौजूद है। मुख्य मंत्री के चंद्रशेखर राव की सनातन धर्म में गहरी आस्था है, ये इस बात से सिद्ध होता है कि उन्होंने मंदिर परिसर के आस-पास कोई भी दुकान या खान-पान की व्यवस्था नहीं होने दी। क्योंकि उससे मंदिर की पवित्रता भंग होती। इन सब गतिविधियों के लिए उन्होंने पहाड़ के नीचे तलहटी में पूरा व्यावसायिक परिसर बनाया है। जबकि उत्तर भारत में हो रहे धार्मिक नव निर्माणों में मंदिर परिसर या उसके आस-पास भोजनालय, दुकानें और अतिथि निवास बना कर अफ़सरों और इंजिनीयरों ने अनेकों सुप्रसिद्ध मंदिरों की पवित्रता और शांति को भंग कर दिया है।   


मंदिर तक पहुंचने के लिए हैदराबाद सहित सभी बड़े शहरों से जोड़ने के लिए फोरलेन सड़कें तैयार की गई हैं। मंदिर के लिए अलग से बस-डिपो भी बनाए गए हैं। इस इलाक़े में यात्रियों से लेकर वीआईपी तक सारे लोगों की सुविधाओं का ध्यान रखते हुए कई तरह की व्यवस्थाएं की गई हैं। यात्रियों के लिए मंदिर की पहाड़ से दूर अन्य पहाड़ों पर अलग-अलग तरह के गेस्ट हाउस और टेम्पल सिटी का निर्माण भी किया गया है। पूरे परिक्षेत्र में जो हरियाली और फुलवारी लगाई गई है वो अंतरराष्ट्रीय स्तर की है। जैसी आपको सिंगापुर, शंघाई, वीयना जैसे शहरों में देखने को मिलती है। सफ़ाई और रख-रखाव भी पाँच सितारा स्तर का है। जिससे उत्तर भारत के मंदिरों के प्रशासकों व तीर्थ विकास में लगे अफ़सरों को प्रेरणा लेनी चाहिए। अच्छा होगा कि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ जी इस भव्य मंदिर और इसके परिसर का दर्शन व भ्रमण करके आएँ। तब वे तुलना कर सकेंगे कि पिछले सात सालों में उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने तेलंगाना के अधिकारियों की तुलना में गुणवत्ता व कलात्मकता की दृष्टि से कैसा काम किया है। ज्ञान जहां से भी मिले बटोरना चाहिए, ये हमारा वेद-वाक्य है।   


आश्चर्य की बात यह है कि यदाद्रीगिरीगुट्टा के इस इलाक़े में जहां दूर-दूर तक एक बूंद पानी नहीं था। भूमि सूखी और पथरीली थी। जल का कोई स्रोत न था। वहाँ तेलंगाना के मुख्य मंत्री के चंद्रशेखर राव की विश्व भर में चर्चित ‘मिशन भागीरथ’ योजना से दस लाख लीटर शुद्ध जल प्रतिदिन पहुँचाया जा रहा है। यहाँ बने कल्याणकट्टा मंडप में प्रतिदिन 15 हज़ार भक्त मुंडन करवाने के बाद सामने लक्ष्मी सरोवर में दर्शनार्थी स्नान करते हैं। प्रसाद हॉल में एक बार में 750 और दिन भर में 15 हज़ार लोग प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं। इसके अलावा तिरुपति की तरह ही यदाद्री मंदिर में भी लड्डू प्रसादम् मिलता है। इसके लिए अलग से एक कॉम्प्लेक्स तैयार किया गया है, जहां लड्डू प्रसादम् के निर्माण से लेकर पैकिंग की व्यवस्था है। मंदिर में दर्शन के लिए क्यू कॉम्पलेक्स बनाया गया है। इसकी ऊंचाई करीब 12 मीटर है। इसमें रेस्टरूम सहित कैफेटेरिया की सुविधाएं भी हैं। अब आप जब चाहें तिरुपति के साथ ही स्कंद पुराण में वर्णित इस दिव्य तीर्थ स्थल का भी दर्शन करने हैदराबाद से यदाद्रीगिरीगुट्टा मंदिर जा सकते हैं। आपको दिव्य आनंद की प्राप्ति होगी।

Monday, June 20, 2022

बुलडोज़र बनाम क़ानून

प्रयागराज में मोहम्मद जावेद की पत्नी की मिल्कियत वाला मकान प्रशासन ने बुलडोज़र से ध्वस्त कर दिया। जावेद पर प्रयागराज में पत्थरबाज़ी करवाने व दंगे भड़काने का आरोप है। आरोप सिद्ध होने तक वो फ़िलहाल हिरासत में है। प्रशासन की इस कार्यवाही से कई क़ानूनी सवाल पैदा हो गए हैं। इस विषय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोविंद माथुर ने एक अख़बार से हुई बातचीत में बताया कि, 'ये पूरी तरह से गैरकानूनी है। भले ही आप एक पल के लिए भी मान लें कि निर्माण अवैध था, लेकिन करोड़ों भारतीय भी ऐसे ही रहते हैं, यह अनुमति नहीं है कि आप रविवार को एक घर को ध्वस्त कर दें जब उस घर का निवासी हिरासत में हों। यह कोई तकनीकी मुद्दा नहीं है बल्कि कानून के शासन का सवाल है।' 


जस्टिस माथुर ने समझाया कि प्रशासन द्वारा बुलडोज़र से केवल किसी संपत्ति का अवैध रूप से निर्मित हिस्सा या तो गिराया जा सकता है या उस पर जुर्माना लगा कर उसे कंपाउंड कर दिया जाता है। अगर मकान का कोई हिस्सा या अधिकतर भाग वैध रूप से निर्मित है तो उसे कभी भी ध्वस्त नहीं किया जा सकता। दंगे भड़काने के आरोपी को सज़ा देने के कई प्रावधान भारतीय दंड संहिता में हैं। लेकिन उसकी निज संपत्ति गिराने का कोई प्रावधान क़ानून में नहीं है। किसी भी आरोपी के मकान या संपत्ति को केवल कुर्क किया जा सकता है, वो भी तब जब वो फ़रार हो और भगोड़ा घोषित हो। जो आरोपी हिरासत में है उसकी संपत्ति इस तरह नहीं गिराई जा सकती। इसलिए इस विषय पर देश के न्यायविदों में बहस छिड़ गई है। सरकार के विरोधी उस पर प्रशासन, पुलिस व न्यायपालिका तीनों की भूमिका एक साथ निभाने का आरोप लगा रहे हैं। उनका आरोप है कि इस तरह हमारे लोकतंत्र में स्थापित चारों खंबों का संतुलन बिगड़ जाएगा जिससे फिर क़ानून का नहीं केवल डंडे का शासन चलेगा। जिससे लोकतंत्र ख़तरे में पड़ जाएगा। 


दूसरी तरफ़ उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के चाहने वाले उनके इस अवतार से बेहद खुश और प्रभावित हैं। पिछले कुछ महीनों से योगी जी एक नया नाम ‘बुलडोज़र बाबा’ भी दे दिया गया है। जो शायद उन्हें भी सुहाता है तभी पिछले चुनावों में इस नाम का भरपूर प्रचार किया गया। दरअसल पुलिस और क़ानून की जटिल व बेहद लम्बी प्रक्रिया से आम आदमी त्रस्त है। इसलिए वो तुरंत समाधान को क़ानून की प्रक्रिया से बेहतर मानने को विवश है। भारत जैसे सामंतवादी देश में राजा का कड़ा या अधिनायकवादी होना उसके प्रशंसकों को अच्छा लगता है। पर इसके बहुत सारे ख़तरे भी हैं। 



जिस तरह तेलंगाना में पुलिस ने चार बलात्कारियों को अपनी हिरासत में फ़र्ज़ी एनकाउंटर में मार गिराया और आम जनता की वाह-वाही लूटी थी, उससे भी यह संदेश गया कि इस तरह सीधी सज़ा देना जनता को ज़्यादा पसंद है। पर बाद में जब यह सिद्ध हो गया कि इन आरोपियों को पुलिसवालों ने अवैध तरीक़े से मारा तो अब वे पुलिस वाले ही हत्या के आरोप का मुक़दमा झेल रहे हैं। क़ानून की प्रक्रिया लम्बी व जटिल ज़रूर है पर इसके पीछे एक पवित्र लक्ष्य है कि भले ही सौ अपराधी क्यों न छूट जाएं पर किसी बेगुनाह को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। दूसरी तरफ़ पंजाब के आतंकवाद का उदाहरण है जो किसी भी तरह क़ाबू में नहीं आ रहा था तो वहाँ के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल ने भी यही रास्ता अपनाया। आरोप है कि उन्होंने कुछ ही हफ़्तों में सैंकड़ों आतंकवादियों फ़र्ज़ी एनकाउंटर में मार गिराया। जिसका प्रभाव यह हुआ कि आतंकवाद क़ाबू में आ गया। अब यह दुधारी तलवार है। मनवाधिकारों का संज्ञान लेकर अगर क़ानूनी प्रक्रिया से चला जाए तो दुर्दांत अपराधी को भी दशकों तक सज़ा नहीं होती। अगर फ़र्ज़ी एनकाउंटर वाला रास्ता अपनाया जाता है तो समस्या का तात्कालिक समाधान मिल जाता है, भले ही वो समस्या फिर से सिर उठा ले। 


अवैध निर्माण गिराने के मामले में तो एक और पेच है, वो ये कि अवैध निर्माण इकतरफ़ा नहीं होते। उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में जिस व्यापक स्तर पर अवैध निर्माण हो चुके हैं वो विकास प्राधिकरणों, पुलिस व प्रशासन की मिलीभगत से ही हुए हैं। जिसके लिए बहुत मोटा पैसा रिश्वत में अफ़सरों को मिलता है। वरना अवैध निर्माण कोई चींटी का घर तो नहीं जो रातों रात हो जाए। महीनों लगते हैं। तब ये अफ़सर क्या भांग पीकर सोए रहते हैं? पर संपत्ति ध्वस्त होती है केवल बनाने वाले की। तो इन अफ़सरों को क्या सज़ा मिलती है? कुछ नहीं। इसलिए अवैध निर्माण बेरोकटोक सालों साल चलते रहते हैं। सरकार चाहे किसी की भी हो। क्योंकि ऐसे अफ़सरों को अपने राजनैतिक आकाओं का संरक्षण प्राप्त होता है। जिनकी इस लूट में हिस्सेदारी होती है। इसलिए अवैध निर्माण की समस्या घटने के बजाए बढ़ती जा रही है। बुलडोज़र बाबा को चाहिए कि एक सार्वजनिक अपील जारी करें जिसमें अवैध भवनों  के निर्माताओं को प्रोत्साहित किया जाए ये बताने के लिए की उन्होंने ये अवैध निर्माण किन-किन अफ़सरों के कार्यकाल में, किस को कितना रुपया देकर किए थे। ऐसे नामों के सामने आने पर उनकी संपत्ति आदि की जाँच की जाए और उन्हें कठोरतम सज़ा दी जाए। वरना मतदाता तो हर हाल में बर्बाद होगा ही पर भ्रष्टाचारी अफ़सरों और नेताओं को कोई सबक नहीं मिलेगा। 


अगर जनता ये बताने में डरती है या संकोच करती है तो भी इन अफ़सरों को कड़ी सजा सिर्फ़ इस आधार पर भी दी जा सकती है कि इस अवैध निर्माण के दौरान वे उस शहर में संबंधित पदों पर तैनात थे और इन्होंने जानबूझ कर ऐसे अवैध निर्माणों के होते हुए उन पर से आँखें फेर ली। अगर बुलडोज़र बाबा पूरे प्रदेश में से 100-200 भ्रष्ट अफ़सरों को ऐसी सज़ा दे पाते हैं तो उनका डंका बजेगा। अगर नहीं कर पाते तो उनके बुलडोज़र बाबा होने पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। आशा की जानी चाहिए कि अपनी दबंग छवि के अनुरूप योगी जी का बुलडोज़र उन सैंकड़ों भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति पर भी उसी तीव्रता से चलेगा जिस तीव्रता से वे अपराधियों की संपत्ति को ध्वस्त करते आए हैं।

Monday, June 13, 2022

देश में आग किसने लगाई ?


जिस दिन से भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता रहीं नूपुर शर्मा के बयान पर विवाद खड़ा हुआ है उस दिन से देश में आग लग गई है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? यकीनन टीवी चैनल ही इस अराजकता फैलाने के गुनहगार है। जो अपनी टीआरपी बढ़ाने के लालच में आये दिन इसी तरह के विवाद पैदा करते रहते है। जानबूझ कर ऐसे विषयों को लेते है जो विवादास्पद हों और ऐसे ही वक्ताओं को बुलाते है जो उत्तेजक बयानबाजी करते हों। टीवी ऐन्कर खुद सर्कस के जोकरों की तरह पर्दे पर उछल कूद करते है। जिस किसी ने बीबीसी के टीवी समाचार सुने होगें उन्हें इस बात का खूब अनुभव होगा कि चाहें विषय कितना भी विवादास्पद क्यों न हो, कितना ही गम्भीर क्यों न हो, बीबीसी के ऐन्कर संतुलन नहीं खोते। हर विषय पर गहरा शोध करके आते है और ऐसे प्रवक्ताओं को बुलाते है जो विषय के जानकार होते है। हर बहस शालीनता से होती है। जिन्हें देखकर दर्शकों को उत्तेजना नहीं होती बल्कि विषय को समझने का संतोष मिलता है।



भारत के कुछ टीवी, न्यूज चैनलों के ऐन्कर तो विषय के अनुसार परिधान भी बदल देते है। अगर चन्द्रयान चांद पर उतरने वाला था तो ये कार्टून एस्ट्रोनेट की ड्रेस पहनकर चांद की सतह के ब्लोअप फोटो के सामने ऐसी कलाकारी दिखाते हैं, मानो कुछ ही क्षणों में ये खुद चांद पर उतरने वाले है। जब चन्द्रयान उतरने में नाकाम रहता है तो ये मर्सिया गाने लगते है। जैसे मुर्दनी छा गई हो। जबकि पत्रकार को संत कबीर दास जी की ये वाणी याद रखनी चाहिये, ‘‘दास कबीर जतन से ओढी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया।’’ बिना राग-द्वेष के हर विषय को निष्पक्षता से प्रस्तुत करना, पैनल पर बैठे मेहमानों को अपनी बात कहने देना, नाहक विवाद को उठने से पहले रोक देना और कार्यक्रम का समापन, यदि सम्भव हो तो, समाधान के साथ करना। पर दुख की बात है कि आज भारत के अधिकतर टीवी चैनल इस आचार संहिता का पालन नहीं कर रहे। जिसके लिए काफी हदतक मौजूदा केन्द्र सरकार भी जिम्मेदार है। जो अपनी कमियां या आलोचना बर्दाश्त नहीं करती। नतीजन टीवी चैनलों के पास दो ही रास्ते बचते हैंः या तो सरकार का झूठा यशगान करें या इस तरह की उत्तेजक, बिना सिर पैर की बहस करवा कर टीआरपी बढ़ाएँ।


जब भारत में कोई प्राईवेट टीवी चैनल नहीं था तब 1989 में देश की पहली हिन्दी विडियो समाचार कैसेट ‘कालचक्र’ जारी करके मैंने टीवी पत्रकारिता के कुछ मानदंड स्थापित किये थे। बिना किसी औद्योगिक घराने या राजनैतिक दल की आर्थिक मदद के भी कालचक्र ने देश भर में तहलका मचा दिया था। हमने कालचक्र में जनहित के मुद्दों को गम्भीरता से उठाया और उन पर देश के मशहूर लोगों से बेबाक बहस करवाई। जिनकी चर्चा लगातार देश के हर अखबार में हुई। इसी तरह आज के साधन सम्पन्न टीवी चैनल अगर चाहें तो जनहित में अनेक गम्भीर मुद्दों पर बहस करवा सकते है। जैसे नौकरशाही या लालफीताशाही पर, शिक्षा व्यवस्था पर, न्याय व्यवस्था पर, पुलिस व्यवस्था पर, अर्थ व्यवस्था पर, पर्यावरण पर व स्वास्थ्य व्यवस्था जैसे अनेक अन्य विषयों पर गम्भीर बहसें करवाई जा सकती हैं। जिनके करने से देश के जनमानस में मंथन होगा और उससे विचारों का जो नवनीत निकलेगा उससे समाज और राष्ट्र को लाभ होगा। आज की तरह देश में अराजकता, हिंसा और कुंठा नहीं फैलेगी। 


रही बात धर्म चर्चा की तो इस बात का श्रेय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को दिया जाना चाहिये कि उन्होंने हजारों साल पुराने वैदिक सनातन धर्म को देश की मुख्य धारा के बीच चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है। जबकि पिछली सरकारें ऐसा करने से बचती रही। जिसका परिणाम ये हुआ कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर  बहुसंख्यक हिन्दु समाज अपने को उपेक्षित महसूस करता रहा। इसलिए आज वो अवसर मिलने पर इतना मुखर हो गया है कि धर्म के हर प्रश्न पर आक्रमकता के साथ सक्रिय हो जाता है। 


हम इस विवाद में नहीं पड़ेंगे कि नूपुर शर्मा ने जो कहा वो सही था या गलत। हम इस विवाद में भी नहीं पड़ेंगे  कि भारत के विभिन्न धर्मावलम्बी अपने-अपने धर्म को लेकर क्या गलत और क्या सही कहते है। पर ये तो साफ है कि धर्म के सवाल पर टीवी चैनलों में और आम जनता के बीच भी जिस स्तरहीनता की बहस आजकल हो रही है उससे न तो सनातन धर्म का लाभ हो रहा है और न ही भारत हिन्दु राष्ट्र बनने की तरफ बढ़ रहा है। इन बहसों से हिन्दु समाज का ही नही हर धर्म के मानने वालों का अहित हो रहा है। जो एक डरावने भविष्य की ओर संकेत कर रहा है। दुनिया के अनेक विशेषज्ञों ने तो भारत में भविष्य में गृहयुद्व की सम्भावनाओं की भविष्यवाणी करनी शुरू कर दी है। यह हम जैसे सभी गम्भीर नागरिकों और सनातन धर्मियों के लिए बहुत चिन्ता का विषय है। इसलिए सभी राजनैतिक दलों व संगठनों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वे टीवी चैनलों पर विषयों के जानकार और गम्भीर प्रवक्ताओं को ही भेजे। स्तरहीन डिबेट में अपने प्रतिनिधी भेजे ही नहीं, जो असंसदीय भाषा का प्रयोग करें। टीवी चैनलों को भी धर्म चर्चा में पोंगे पण्डितों, फर्जी धर्माचार्यों और कठमुल्लों को न बुलाएं।


धर्म के विषय पर अगर ये टीवी चैनल गम्भीरता से बहस करवाये तो समाज का बहुत लाभ हो सकता है। सदियों की उलझी हुई गुत्थियां सुलझ सकती है। भारत अपनी पारम्परिक सांस्कृतिक विरासत की पुनः स्थापना कर सकता है। बशर्ते इन बहसों में धर्म के धुरंधर और विद्वान शामिल हो। उन्हें अपनी बात कहने दी जाये। ऐन्कर भी पढ़े लिखे हो, मूर्ख नहीं हो, आत्ममुग्ध नहीं हो और विषय पर शोध करके आयें। इस तरह की बहसों से सरकार को भी कोई अपत्ति नहीं होगी। टीआरपी भी धीरे-धीरे बढ़ेगी और स्वास्थ्य समाज व राष्ट्र का निर्माण होगा। राष्ट्र निर्माण का दावा करने वाले संगठनों की सत्ता में भी अगर धर्म के विषयों पर ऐसी गम्भीर बहसें नहीं होंगी, तो फिर कब होंगी ? इसलिए इन संगठनों को भी सोचना होगा कि क्या वे वाकई राष्ट्र का निर्माण करना चाहते है या आम लोगों की धार्मिक भावनाओं का दोहन करके, केवल अपना राजनैतिक हित साधना चाहते है?

Monday, June 6, 2022

संघ को सोचना पड़ेगा



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा॰ मोहन भागवत जी के ताज़ा बयान का देश के धर्मनिरपेक्षवादियों, वामपंथियों, समाजवादियों व कांग्रेसियों द्वारा भरपूर स्वागत किया जा रहा है। उन्हें ख़ुशी है कि भागवत जी के इस बयान से देश में अमन चैन पैदा होगा। हिंसा रुकेगी और हिंदू मुसलमानों के बीच सौहार्द बढ़ेगा। इन विचारधाराओं के वो लोग जो कल तक सोशल मीडिया पर संघ और भाजपा के कट्टर हिंदुवाद को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे, आज अचानक भागवत जी के बयान की खुलकर प्रशंसा कर रहे हैं। भागवत जी ने कहा कि अब संघ किसी मंदिर की मुक्ति के लिए आंदोलन नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि मस्जिदों के नीचे शिवलिंगों को खोजना बंद करें। हालांकि ज्ञानवापी मस्जिद व श्री कृष्ण जन्मस्थान मथुरा के विषय में उनके विचार भिन्न थे।



किंतु भागवत जी के इस बयान ने हिंदू जनमानस को विचलित कर दिया है। उनके इस बयान पर सोशल मीडिया में हिंदुओं की तीखी प्रतिक्रियाएँ भी आनी शुरू हो गई हैं। ‘सेव टेम्पल कैम्पेन’ नाम का संगठन, जो 40 हज़ार मस्जिदों से हिंदू मंदिरों को मुक्त कराने की सूची लेकर बैठा है और लगातार उनके विषय में जानकारियाँ प्रकाशित करता रहता है, उसने तो इस बयान को हिंदुओं के साथ धोखा और अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम संगठनों के साथ करार बताया है। देश के हिंदू संत भी इस वक्तव्य से बहुत आहत हैं और इस विषय पर माननीय भागवत जी से गंभीर वार्ता करने की तैयारी कर रहे हैं। वृंदावन के सोहम आश्रम के विरक्त संत त्यागी बाबा का कहना है, भागवत जी के इस बयान से तो यह तय हो गया कि अब हिंदू राष्ट्र का हमारा स्वप्न अधूरा रह जाएगा और अब भारत कभी हिंदू राष्ट्र नहीं बन पाएगा। 


यहाँ यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि भागवत जी को अचानक संघ और भाजपा की धारा के विरुद्ध ये बयान क्यों देना पड़ा? पिछले 32 वर्षों से भाजपा, संघ और उसके अनुसांगिक संगठनों जैसे विहिप आदि ने देश भर में हिंदू राष्ट्र बनाने का एक सघन अभियान चलाया हुआ है। 1990 की विहिप की दिल्ली के बोट क्लब पर हुई उस विशाल रैली को याद करें जिसमें लगभग 10 लाख हिंदू दिन भर मंच से भाजपा व संघ के नेताओं का आह्वहन  सुनते रहे थे, हिंदू राष्ट्र बनाना हमको हिंदुस्तान हमारा। मशहूर सिने संगीतकार रविंद्र जैन का ये गाना, राम जी की सेना चली तो इतना प्रभावी हो गया कि लाखों हाथ अति उत्साह में त्रिशूल और भाले लेकर हवा में लहराने लगे। इसके बाद तो देश के हर गली मोहल्ले में संघ परिवार ने घर-घर जा कर हिंदू राष्ट्र बनाने की अलख जगानी शुरू कर दी। उनके ही इस प्रयास का ये परिणाम है कि आज भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति व प्रधान मंत्री तीनों संघ परिवार से हैं। आज हिंदुओं का बहुसंख्यक हिस्सा ये तय कर चुका है कि अब भारत हिंदू राष्ट्र बन कर रहेगा। 


पिछले 8 वर्षों में देश में हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए जो सक्रियता संघ और भाजपा ने दिखाई उसका भारी असर पड़ा है। फिर वो चाहे गोरक्षा का मामला हो, मॉब लिंचिंग का मामला हो, मस्जिदों पर भगवा झंडे फहराने की कोशिशों का मामला हो, बॉलीवुड के मुसलमान सितारों की फ़िल्मों के बहिष्कार का मामला हो, तबलीकी जमात को भारत में कोरोना फैलने के लिए ज़िम्मेदार ठहराने का मामला हो, सदगुरु जग्गी वासुदेव का ‘सेव टेम्पल कैम्पेन’ के समर्थन में लगातार बयान देना हो, आर्यन खान को अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया का सदस्य बता कर जेल में डालने का मामला हो, ‘द कश्मीर फ़ाइल्ज़’ जैसी फ़िल्म को संघ व भाजपा सरकार द्वारा प्रोत्साहित कर जनता के बीच लोकप्रिय बनाने में सक्रिय भूमिका निभाने का मामला हो या ज्ञानवापी मस्जिद व श्री कृष्ण जन्मभूमि के साथ ही देश भर की मस्जिदों व क़ुतुब मीनार जैसी इमारतों से हिंदू मंदिरों को मुक्त कराने का मामला हो, इन सब मुद्दों ने हिंदू जनमानस को गहराई तक प्रभावित किया है। 


सबसे ज़्यादा असर तो हिंदुओं की युवा पीढ़ी पर पड़ा है। जिसके ज्ञान का स्रोत कुछ चुनिंदा टीवी चैनल और सोशल मीडिया है। रोज़गार के अभाव में ख़ाली बैठे ये युवा अब इतने उत्तेजित हो चुके है कि बात-बात पर हिंसक हो जाते हैं। कानपुर और बरेली के दंगे और पिछले वर्षों में इसी तरह के विषयों पर हुई हिंसक वारदातें इसका परिणाम हैं। देश के ग़द्दारों को, गोली मारो सालों को जैसे नारों ने आग में घी का काम किया है। सांप्रदायिक हिंसा के लिए पहले से बदनाम रहे मुसलमानों की भी युवा पीढ़ी इस माहौल में और ज़्यादा उत्तेजित और आक्रामक हुई है। आनेवाले समय में इस सब से देश की क़ानून व्यवस्था को बनाए रखना बहुत बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में सरकार चलाना भी मुश्किल हो जाएगा। जिसका भरपूर लाभ विपक्षी दल आने वाले चुनावों में उठाएँगे। इसी ख़तरे को भाँप कर माननीय भागवत जी ने ये बयान दिया है। जिससे भाजपा की सरकारों को बचाया जा सके। 


पहले संघ और भाजपा के बीच सम्मानजनक दूरी रहती थी। संघ की घोषित नीति थी कि उसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। वो केवल सामाजिक संगठन है। पर पिछले कुछ वर्षों में यह अंतर समाप्त हो गया है। अब भाजपा का संघ में विलय हो गया है। भाजपा वही करती है जो संघ चाहता है। इसलिए इस पूरे संघ व भाजपा परिवार के मुखिया होने के नाते माननीय भागवत जी को ये बयान देना पड़ा है। जिससे हालात बेक़ाबू होने से पहले संभल जाएं। पर भाजपा और संघ के शुभचिंतकों, हिंदू संतों और हिंदुओं के बहुसंख्यक हिस्से को इस बयान से भाजपा और संघ के अस्तित्व पर ख़तरा नज़र आ रहा है। इस वर्ग का मानना है कि जिस विचारधारा को लेकर संघ पिछले 100 वर्षों से चला, उसे ही इस तरह शिखर पर पहुँचने के बाद, नकार देने से संघ और भाजपा की सार्थकता क्या रह जाएगी? पिछले कुछ वर्षों में विकास के मुद्दों और सामाजिक सुरक्षा के सवालों को उठने से पहले ही संघ की इस विचारधारा ने हमेशा पीछे धकेला। हिंदू गर्व से कहता है कि हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए वो महंगाई और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं को भी भूलने को तैयार है। ऐसे में भागवत जी का ये बयान तपते तवे  पर ठंडे पानी की बौछार जैसा है। यहाँ ये याद रखना असंगत न होगा कि पिछले दशकों में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन चलाने वाले प्रांतीय और राष्ट्रीय नेता जब सत्ता पाने के बाद भ्रष्टाचार को नहीं रोक पाए और उसमें स्वयं भी लिप्त हो गए तो भ्रष्टाचार का मुद्दा ही समाप्त हो गया। इसी तरह इन परिस्थितियों में अब इस बात में कोई संदेह नहीं कि हिंदू राष्ट्र बनाने का मुद्दा भी समाप्त हो जाएगा। इस पर देश में हिंदुओं की क्या प्रतिक्रिया होती है और संघ परिवार उससे कैसे निपटता है, ये तो वक्त ही बताएगा।