पुरानी कहावत है कि, ‘पूत के पांव पालने में’। केजरीवाल की आआपा अपने चुनाव प्रचार में झूठे दावे करने वाले एसएमएस भेज कर युवा पीढ़ी को गुमराह कर रही है। 13 नवंबर 2013 को ऐसा ही एक एसएमएस दिल्ली के मतदाताओं को भेजा गया। जिसमें दावा किया गया कि आआपा ने भारत के इतिहास में पहली बार सीबीआई की स्वायत्तता का मुद्दा उठाया। पहली बार राजनैतिक चंदे में पारदर्शिता का मुद्दा उठाया। पहली बार राजनीति के अपराधिकरण के खिलाफ आवाज उठाई और पहली बार चुने हुए उम्मीदावारों को मतदाता द्वारा वापिस बुलाने की मांग उठाई। आआपा के ये सभी दावे 101 फीसदी झूठे हैं। युवा पीढ़ी आधुनिक भारत का इतिहास नहीं जानती। इसलिए केजरीवाल और उनके साथी इस पीढ़ी को गुमराह कर रहे हैं जिससे उनकी छवि देश में एक महान क्रांतिकारी की बन सके। जबकि सच्चाई यह है कि सीबीआई की स्वायत्त्ता का मामला 1993 से लगातार हम उठाते आ रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय से लेकर मीडिया और संसद तक सीबीआई की स्वायत्तता का जिक्र सर्वोच्च न्यायालय के ‘विनीत नारायण बनाम भारत सरकार’ फैसले के साथ ही अदालतों, संसद व मीडिया में किया जाता है। यह बात पूरा देश जानता है। फिर केजरीवाल का यह झूठा दावा क्यों ? सबसे जोर-शोर से 1994 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने राजनैतिक दलों की आमदनी और खर्चे की पारदर्शिता के लिए कठोर कदम उठाए थे जिनकी चर्चा उसके बाद लगातार होती रही है। 1994 में ही दिल्ली के आईएएस अधिकारी के.जे. एलफांस की एनजीओ जनशक्ति ने सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर यह मांग की थी कि हर चुनावी दल को अपनी आमदनी-खर्चे का आडिट करवाकर चुनाव आयोग व आयकर विभाग को देना चाहिए। ऐसा न करने वाले दलों की मान्यता निरस्त कर दी जानी चाहिए। तब इस मामले पर देश में भारी शोर मचा था। फिर केजरीवाल इन मुद्दों को पहली बार उठाने का झूठा दावा क्यों कर रहे हैं ?
राजनीति में अपराधीकरण को रोकने की मांग पिछले 3 दशक में अनेक बार जोर-शोर से उठाई गई है। इस पर संसद के विशेष सत्र भी बुलाए गए हैं। फिर केजरीवाल क्यो झूठा दावा कर रहे हैं ? इसी तरह चुने हुए प्रत्याशियों को मतदाताओं द्वारा वापिस बुलाने के अधिकार की मांग 1975 में लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने उठाई थी। तब से अनेके संगठन और जागरूक नागरिक यह मांग अलग-अलग स्तर पर उठाते रहे हैं। फिर केजरीवाल झूठा दावा क्यों कर रहे हैं ?
भारतीय आयकर अधिकारियों के संघ ने एक खुला पत्र भेजकर केजरीवाल से पूछा है कि वे यह झूठा दावा क्यों कर रहे हैं कि वे आयकर विभाग में आयुक्त थे और करोड़ों कमा सकते थे। जबकि वे कभी भी आयुक्त पद पर नहीं रहे और ना ही उनके बैच का कोई व्यक्ति अभी तक आयुक्त बन पाया है। इतने ऐतिहासिक तथ्यों को छिपा कर और खुलेआम झूठे दावे करके केजरीवाल इतिहास के साथ छेड़छाड़ और भारत की जनता के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं। इतना ही नहीं जहां उन्हें लगता है कि उनसे भी बड़े संघर्ष उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार के खिलाफ हो चुके हैं तो वे उसका जिक्र तक नहीं करना चाहते। इंडिया अगेन्स्ट करप्शन ने यू-ट्यूब पर 2010 में एक फिल्म डाली जिसमें आजाद भारत के सभी घोटालों का संबंधित वर्ष के साथ उल्लेख किया गया है। पर आश्चर्य की बात यह है कि इस फिल्म में 1996 का देश का सबसे बड़ा घोटाला हवाला कांड गायब है। जिसमें देश के 115 राजनेताओं और अफसरों को आजाद भारत के इतिहास में पहली बार भ्रष्टाचार के मामले में चार्जशीट किया गया। शायद केजरीवाल और डा0 योगेन्द्र यादव जैसे उनके साथी आत्मसम्मोहित हैं कि कहीं उनके आंदोलन की तुलना हमारे हवाला संघर्ष से हो गई तो उन्हें जवाब देना भारी पड़ जाएगा। केजरीबाल ने पिछले 36 महीने में भ्रष्टाचार से लड़ने के नाम पर करोड़ा रूपया खर्च कर दिया। टीवी चैनलों पर हजारों घंटे अपना राग अलाप लिया। देश के हजारों युवाओं को इस आंदोलन में झोंक दिया और फिर भी उनका दल भ्रष्टाचार के नाम पर एक चूहे तक को नहीं पकड़ सका। जबकि बिना टीवी चैनलों के हुए, बिना पैसा खर्च किए, बिना बड़े-बड़े दावे किए, बिना लोकपाल कानून बने और बिना सीबीआई को स्वायत्तता मिले हमने 28 महीने में ही देश के 115 ताकतवर नेताओं को पकड़ावा दिया था।
साफ जाहिर है कि केजरीवाल और उनकी टीम का इरादा येन-केन-प्रकारेण अपना प्रचार करना और राजनैतिक महत्वाकांक्षा पूरी करना रहा है। हाल में हुए स्टिंग आॅपरेशन ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। कुल मिलाकर केजरीवाल का आंदोलन अपनी अति महत्वाकांक्षओं को पूरा करने के लिए रहा है। इससे जनता को आज तक कोई लाभ नहीं मिला। केवल हताशा और निराशा फैली है। जब केजरीवाल और उनकी टीम इतनी भी ईमानदारी नहीं िकवे ऐतिहासिक तथ्यों को बिना तोड़े-मरोड़े प्रस्तुत कर सकें तो कैसे उम्मीद की जा सकती है कि सत्ता में आने के बाद उनकी कथनी और करनी में भेद नहीं होगा। असम गण परिषद के छात्र नेताओं आसाम की जनता को सपने दिखा कर आसाम का चुनाव जीता था। पर बाद में वहां लूट का तांडव शुरू हो गया। ऐसी ही दशा आआपा की भी हो सकती है, इसकी संभावना से कौन इंकार कर सकता है ?
यह दुःख की बात है कि इतना बड़ा आंदोलन खड़ा करके केजरीवाल ने अपने समर्थकों को निराश और हताश किया है।