Showing posts with label NHPC. Show all posts
Showing posts with label NHPC. Show all posts

Monday, March 2, 2020

‘कॉंक्लेव’ से नहीं कर्मठ लोगों से हल होंगी समस्या

अक्सर देश के बडे़ मीडिया समूह, दिल्ली में राष्ट्रीय समस्याओं पर सम्मेलनों का आयोजन करते हैं। जिनमें देश और दुनिया के तमाम बड़े नेता और मशहूर विचारक भाग लेते हैं। देश की राजधानी में ऐसे सम्मेलन करना अब काफी आम बात होती जा रही है। इन सम्मेलनों में ऐसी सभी समस्याओं पर काफी आंसू बहाऐ जाते है और ऐसी भाव भंगिमा से बात रखी जाती है कि सुनने वाले यही समझे कि अगर इस वक्ता को देश चलाने का मौका मिले तो इन समस्याओं का हल जरूर निकल जाएगा। जबकि हकीकत यह है कि इन वक्ताओं में से अनेकों को अनेक बार सत्ता में रहने का मौका मिला और ये समस्यायें इनके सामने तब भी वेसे ही खड़ी थी जैसे आज खड़ी हैं। इन नेताओं ने अपने शासन काल में ऐसे कोई क्रान्तिकारी कदम नहीं उठाये जिनसे देशवासियों को लगता कि वो ईमानदारी से इन समस्याओं का हल चाहते है। अगर उनके कार्यकाल के निर्णयों कोे बिना राग-द्वेष के मूल्यांकन किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि जिन समस्यों पर ये नेतागण आज घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, उन समस्याओं की जड़ में इन नेताओं की भी अहम भूमिका रही है। पर इस सच्चाई को बेबाकी से उजागर करने वाले लोग उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। मजे कि बात यह कि इन गिने चुने लोगों की बात को भी जनता के सामने रखने वाले दिलदार मीडिया समूह उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। विरोधाभास ये कि प्रकाशन समूह जिन समस्याओं पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करते हैं और दावा करते है कि इन सम्मेलनों में इन समस्याओं के हल खोजे जा रहे है वे प्रकाशन समूह भी इन सम्मेलनों में सच्चाई को ज्यों का त्यों रखने वालों को नहीं बुलाते। इसलिए सरकारी सम्मेलनों की तरह ये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन भी एक हाई प्रोफाइल जन सम्पर्क महोत्सव से ज्यादा कुछ नहीं होते।            

यह बड़ी चिंता की बात है कि ज्यादातर राष्ट्रीय माने जाने वाले मीडिया समूह अब जिम्मेदार पत्रिकारिता से हटकर जनसम्पर्क की पत्रिकारिता करने लगे हैं। इसलिए पत्रिकारिता भी अपनी धार खोती जा रही है और समस्याएं घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। इसलिए क्षेत्रीय मीडिया समूह का प्रभाव और समाज पर पकड़ बढ़ती जा रही है। ऐसे में देश के सामने जो बड़ी-बड़ी समस्यायें है उनके हल के लिए क्षेत्रीय मीडिया समूहों को एक ठोस पहल करनी चाहिए। अपने संवाददाताओं को एक व्यापक दृष्टि देकर उनसे ऐसी रिपोर्टों की मांग करनी चाहिए जो न सिर्फ समस्याओं का स्वरूप बताती हों बल्कि उनका समाधान भी। चिंता की बात यह कि आज कुछ क्षेत्रीय समाचार पत्र भी बयानों की पत्रकारिता पर ज्यादा जोर दे रहे है। ऐसे अखबारों में विकास और समाधान पर खबरें कम या आधी अधूरी होती है और छुटभैये नेताओं के बयान ज्यादा होते हैं। इससे उन नेताओं का तो सीना फूल जाता है पर समाज को कुछ नहीं मिलता, न तो मौलिक विचार और न हीं उनकी समस्याओं का हल। लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब आम आदमी तक हर सूचना पहुँचे और समस्याओं के समाधान तय करने में आम आदमी की भी भावना को तरजीह दी जाए। जो मीडिया समूह इस परिपेक्ष में पत्रकारिता कर रहे हैं उनके प्रकाशनों में गहराई भी है और वजन भी। पर चिंता की बात यह कि देश के अनेक क्षेत्रों में ऐसे लोग मीडिया के कारोबार में आ गए है जो आज तक तमाम अवैध धंधे और अनैतिक कृत्य करते आये हैं। उनका उद्देश्य मीडिया को ब्लैकमेंलिंग का हथियार बनाने से ज्यादा कुछ भी नहीं है। जिनसे समाज के हक में किसी सार्थक पहल की उम्मीद नहीं की जा सकती। 

मिसाल के तौर पर ऐसे सम्मेलनों में अगर कोई भी मंत्री या सत्तापक्ष का नेता अगर कहता है कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने के लिए प्रतिबद्ध है तो क्या वे अपनी इस कथनी को वास्तविकता का रूप दे रहे हैं? ताजा उदाहरण भारत सरकार के एक सार्वजनिक प्रतिष्ठान ‘एनएचपीसी लिमिटेड’ के एक वरिष्ठ अधिकारी श्री अभय कुमार सिंह से सम्बंधित है। श्री सिंह के खिलाफ तमाम पुख्ता सुबूत और शिकायतों के बावजूद उन्हें मौजूदा सरकार के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से बिना किसी जाँच के न सिर्फ दोषमुक्त किया गया बल्कि उन्हें ‘एनएचपीसी लिमिटेड’ के प्रबंध निदेशक पर नियुक्त किया गया है। श्री सिंह पर ‘एनएचपीसी लिमिटेड’ में कई अनियमित्ताओं के आरोप हैं जिनके चलते  जहां एक ओर एनएचपीसी लिमिटेड को भारी नुकसान उठाना पड़ा और वहीं दूसरी ओर श्री सिंह की निजी जायदाद में काफी बढ़ोतरी हुई। सोचने वाली बात ये है कि भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए बनी सीबीआई और सीवीसी भी आँखें मूँद कर बैठी रही, और बिना किसी ठोस जाँच के ऐसे भ्रष्ट अधिकारी को ‘एनएचपीसी लिमिटेड’ के सर्वोच्च पद पर जाने दिया गया। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 2014 में सत्ता में आए थे, तो उन्होंने ये साफ कह दिया था कि ‘न खाऊँगा न खाने दूँगा’ लेकिन ऐसा लगता है कि सरकारी तंत्र में कुछ भ्रष्ट अधिकारी ऐसे हैं, जो प्रधानमंत्री जी के इस नारे को झूठा साबित करने में तुले हुए हैं और श्री अभय कुमार सिंह जैसे भ्रष्टाचारियों के हौसलों को बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी! वो दिन दूर नहीं है कि जब किसी ईमानदार अधिकारी को इन भ्रष्ट अधिकारियों के बारे में पता चलेगा और वे इसे प्रधानमंत्री के संज्ञान में लाएँगे।

दरअसल देश की समस्याओं के हल के लिए विदेशी विचारको की नहीं बल्कि स्वयं सिद्ध व मौलिक विचारों के धनी ऐसे देशी लोगों की आवश्यक्ता है जो वास्तव में इन समस्याओं के हल प्रस्तुत कर सकें। चिंता की बात यह कि ऐसे ठोस लोगों की बात सुनने के लिए बहुत कम लोग अपना मंच उपलब्ध कराते हैं। 

मोदी जी ने कई क्रंातिकारी और कड़े निर्णंय लेकर, अपने लौहपुरूष होने का प्रमाण दिया है। जिनमें से कुछ निर्णंयों के लाभ आज नहीं तो कल जनता के सामने आऐंगे। पर मुझे यह कहते हुए दुखः भी है और चिंता भी कि जहाँ उनकी सोच वैश्विक है और वे योग्यता और ‘प्रोफेशनल्ज़िम’ को वरियता देते हैं और स्वयं सिद्ध लोगों का सम्मान करते हैं, वहीं आज भी अनेक सतही और दलालनुमा लोगों का धंधा सरकारी परियोजनाओं में पुराने ढर्रे के अनुसार फल-फूल रहा है। जिन्हें नौकरशाही के भ्रष्ट सदस्यों और राजनीतिज्ञों का पूरा समर्थन प्राप्त है। सत्ता के अहंकारवश यह वर्ग कोई भी सही बात सुनने या सलाह मानने को तैयार नहीं है। इसका अर्थ यह नहीं कि जनता सब देख-समझ नहीं रही। प्रमाण समाने है कि गत कई चुनावों में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी मतदाता भाजपा के प्रति उस तरह आकर्षित नहीं हुए, जैसा मोदी जी के नेतृत्व में आस्था होने के कारण, उसे होना चाहिए था। ये उनकेे लिए चिंता की बात होनी चाहिए।

एक बात जो मैं गत 30 वर्षों से हर नए प्रधानमंत्री को अपने लेखों के माध्यम से संबोधित करते हुए, लिखता आ रहा हूँ, वो एकबार फिर मोदी जी को सीधे संबोधित करते हुए कहना चाहता हूँ, ‘माननीय प्रधानमंत्रीजी! हर वो सम्राट महान कहलाया है, जिसके सलाहकार योग्य, ईमानदार और संवेदनशील रहे हैं। कोई भी राजा या शासक अकेले अपने बूते बहुत लंबे समय तक न तो राज कर सकता है और न लोकप्रिय बना रह सकता है। इसलिए उसे सही लोगों की जरूरत होती है। अगर इच्छा हो तो ऐसे लोगों को हर क्षेत्र में ढूढ़कर आपका मिशन पूरा करने के काम पर लगाया जा सकता है। पर ये पहल आपको ही करनी होगी। आपकी ‘रिफ्लैक्टेड ग्लोरी’ से दमकने वाले कभी ऐसे लोगों को आगे नहीं आने देंगे। जिससे उन्हें तो लाभ होगा पर आपको भारी हानि होगी। ये मेरा पिछले तीन वर्षों का मथुरा के विकास को लेकर चल रहे माहौल में अनुभव रहा है। निर्णंय आपको करना है।’