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Monday, July 15, 2013

राजनीति के लिए देश की सुरक्षा से खिलवाड़ क्यों ?

पिछले कुछ दिनों से देश में सम्भावित लोकसभा चुनावों की तैयारी का माहौल बनने लगा है। जब से भाजपा के गोवा अधिवेशन में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा ने इस चुनाव की बागडोर थमायी हैं तब से भाजपा के अन्दर और बाहर भारी उथल-पुथल का माहौल है। इसके साथ ही देश में एक बार फिर राजनैतिक धुव्रीकरण होने लगा है। एक तरफ कांग्रेस व उसके सहयोगी दल हैं जो धर्मनिरपेक्षता के झंडे तले लामबंद हो रहे है। दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी ने अमित शाह को उ.प्र. का प्रभारी बनाकर हिन्दु धुव्रीकरण का आगाज किया है। इसी माहौल में केन्द्र में सत्तारूढ़ दल नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध माहौल बनाने में जुट गया है। उधर सीबीआई ने भी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ पुराने मामले निकालकर हमला शुरू कर दिया है। इस सब के बीच इशरत जंहा का मामला तेजी से उछला है। सीबीआई का कहना है कि इशरत जंहा को गुजरात पुलिस ने एक फर्जी मुठभेड में मारा। जिसमें आईबी के विशेष निदेशक रहे राजेन्द्र कुमार की भूमिका को लेकर सीबीआई उनको आरोपित करने की तैयारी कर रही है। अन्दाजा है कि श्री कुमार जब 25 जुलाई को सेवा निवृत्त होंगे तो उन्हें सीबीआई गिरफ्तार कर लेगी। उन पर आरोप है कि उन्होंने इशरत जंहा व उसके साथियों के लश्कर-ए-तायबा के साथ संबन्धों की जानकारी गुजरात पुलिस को दी और इन तथाकथित आतंकवादियों की फर्जी मुठभेड में भूमिका निभायी।

सीबीआई का यह कदम पूरे देश में बहस का विषय बना हुआ है। सभी निष्पक्ष और समझदार लोगों का मानना है कि सीबीआई के इस कदम की कड़ी भत्र्सना की जानी चाहिए। ऐसा करके सीबीआई और सत्तारुढ़ दल आईबी संस्था का कभी न भरा जाने वाला नुकसान कर रहे हैं। राजेन्द्र कुमार ने वही किया जो उन्हें करना चाहिए था। आईबी के अधिकारी स्थानीय पुलिस को निर्देश नहीं देते पर जनहित में उनसे सूचनाएं जरुर साझा करते हैं। उल्लेखनीय है कि 2004 में इशरत जहां की मौत पर लश्कर-ए-तायबा ने अपने अखबार ‘गाजवा टाइम्स‘ में इशरत जंहा के प्रति श्रद्धांजली का संदेश प्रसारित किया था और उसे शहीद घोषित किया था। उधर डेविड हेडली ने अमरीकी अधिकारियों को बताया था कि लश्कर-ए-तायबा के अध्यक्ष मुज्जमिल ने 26/11 के आतंकी हमले के आॅपरेशन कमांडर जाकिर-उर-रहमान को बताया था कि इशरत उनकी ऐजेन्ट थी। अब यह ऐसे तथ्य हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। इनसे इशरत जंहा के आतंकवादी होने का भी प्रमाण मिलता है। पर आश्चर्य की बात है कि ये तथ्य उन सभी लोगों द्वारा बड़ी आसानी से अनदेखा किए जा रहे हैं जो इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का राजनैतिक लाभ उठाना चाहते हैं। इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात तो यह है कि इन तथ्यों पर मीडिया का भी ध्यान नहीं जा रहा। सीबीआई के इस एक कदम से पूरी आईबी की टीम हतोत्साहित होगी। क्योंकि भविष्य में देशभर में तैनात आईबी अधिकारी कोई भी ऐसी संवेदनशील सूचना स्थानीय पुलिस से साझा करने में हिचकेंगे क्योंकि उन्हें राजेन्द्र कुमार की हो रही दुर्गति का नजारा याद आ जायेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि आईबी खुफिया रहकर सूचनाएं एकत्र करती है। उसके पास कोई पुलिसिया अधिकार तो होते नहीं। अगर वह अपनी सूचनाएं केवल केन्द्र को भेजें और स्थानीय पुलिस से साझा न करे तो हो सकता है कि स्थानीय स्तर पर स्थिति बिगड़ जाये। क्योंकि जब तक सूचना केन्द्र को मिलेगी और केन्द्रीय गृह मंत्रालय उसे सम्बन्धित राज्य सरकार तक भेजेगा, तब तक काफी समय निकल सकता है। ऐसे में आतंकवादी तो आराम से अपना काम करके निकल जायेंगे पर सरकार हरकत में भी नहीं आ पायेगी। जबकि स्थानीय पुलिस से संवेदनशील सूचनाएं साझा करके आईबी अधिकारी प्रान्तीय सरकार को त्वरित कार्यवाही करने का अवसर देते हैं। अब अगर इस ‘अपराध‘ के लिए गुजरात में आईबी के विशेष निदेशक रहे राजेन्द्र कुमार को जेल भेजा जाता है तो फिर आईबी का कोई अधिकारी भविष्य में ऐसा क्यों करेगा ? परिणाम यह होगा कि आतंकवादी भारत में अपने कारनामों को खुलेआम अंजाम देकर फरार हो जायेंगे और केन्द्र और प्रान्तीय सरकारें लकीर ही पीटती रह जायेंगी। इसलिए यह बहुत खतरनाक खेल खेला जा रहा है। आईबी के मौजूदा निदेशक आसिफ इब्राहिम ने प्रधानमंत्री से मिलकर अपना विरोध दर्ज कराया है और सीबीआई को इस मामले में संयम बरतने का निर्देश देने को कहा है। प्रधानमंत्री शायद यह कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं कि इशरत जंहा का मामला न्यायालय के विचाराधीन है इसलिए सरकार दखल नहीं दे पायेगी।

उधर सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा आईबी के विशेष निदेशक राजेन्द्र कुमार के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल करने पर आमदा हैं। शायद वे यह सिद्ध करना चाहते हैं कि सीबीआई पिंजड़े में कैद तोता नहीं है और अपराध के मामले में किसी को भी बख्शती नहीं है। तो मैं उन्हें याद दिलाना चाहता हूँ कि जैन हवाला कांड में अपराधियों को बचाकर निकलने की आपराधिक साजिश करने वाले सीबीआई के तमाम वरिष्ठ अधिकारियों को आज तक सजा नहीं दी गयी है। सर्वोच्च न्यायालय में ‘विनीत नारायण केस‘ में उनके विरुद्ध प्रमाण सहित मेरे कई शपथपत्र जमा हैं। श्री सिन्हा को चाहिए कि वे पहले अपने विभाग के ऐसे अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करें। वे तर्क दे सकते हैं कि यह मामला तो काफी पुराना पड गया। पर यह तर्क स्वीकार्य नहीं है क्योंकि आपराधिक मामलों में कोई भी केस कभी भी खत्म नहीं होता। नए तथ्य सामने आते ही उसे कभी भी खोला जा सकता है। हवाला मामले में जिन तथ्यों को मैंने सर्वोच्च अदालत में अपने शपथ पत्रों के माध्यम से दाखिल किया था उन पर सीबीआई ने बड़ी आसानी से चुप्पी साध ली। वह भी आतंकवाद से जुडा एक बडा मामला था। सीबीआई की इस बेईमानी का नतीजा यह हुआ कि कश्मीर के आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिद्दीन को हवाला के जरिये दुबई और लंदन से आ रही अवैध आर्थिक मदद का 20 वर्ष पहले पर्दाफाश करने के बावजूद मैं अपराधियों को सजा नहीं दिलवा सका और देश में आतंकवाद और हवाला कारोबार बढ़ता चला गया। इसलिए सीबीआई को दूसरों पर उंगली उठाने से पहले अपने दामन के दाग देखने चाहिए।    

हमें भारत सरकार से अपील करनी चाहिए कि वह राजेन्द्र कुमार के मामले में दखल देकर उनकी प्रताड़ना पर फौरन रोक लगाये। समय आ गया है कि आईबी की संवैधानिक स्थिति स्पष्ट की जाये और उसके काम के नियम तय किये जाये जिससे भविष्य में ऐसी दुःखद परिस्थिति पैदा न हो। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आपसी राजनैतिक लड़ाई में आगे बढ़ने के लिए देश की सुरक्षा से खिलवाड़ ना किया जाये।