Monday, May 24, 2021

जहाँ मुसलमान वहाँ हिंसा क्यों?


भारी दावों के विपरीत पश्चिम बंगाल का चुनाव बुरी तरह हारने के बाद बौखलाई भाजपा और उसकी ट्रोल आर्मी हाथ धो कर ममता सरकार के पीछे पड़े हैं। किसी तरह वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू हो जाए तो फिर विधायकों को तोड़ने का काम आसानी से हो पाएगा। सारा बवाल बंगाल के मुसलमानों को लेकर है। आरोप है कि ममता बनर्जी की सरकार में
  मुसलमान हिंदुओं के साथ मार-काट कर रहे हैं। भाजपा का प्रचार तंत्र देश-विदेश में रात दिन अपने समर्थन में विडीओ  क्लिप सोशल मीडिया पर डाल रहा है। ये बता कर कि ये आज के हालत हैं। कल एक ऐसी ही विडीओ क्लिप मेरे पास आई जिसमें दिखाया था कि घायल सैनिक को उपचार के लिए ले जाती हुई फ़ौज की गाड़ियों तक को ये लोग अपने इलाक़े से नहीं गुजरने दे रहे। जीप पर नम्बर प्लेट बंगला भाषा में थी तो मैंने वो क्लिप कलकत्ता में अपने कुछ मित्रों को भेज कर उसकी हक़ीक़त जाननी चाही।जवाब आया कि न तो ये आज की क्लिप है और न ही पश्चिम बंगाल की। बल्कि यह क्लिप बांग्लादेश की है और बहुत पुरानी है। जिस ‘भक्त’ ने यह क्लिप मुझे भेजी थी जब उसे मैंने यह बताया तो उसका जवाब था कि मुसलमान तो हर जगह हिंसा ही करते हैं। इस बात का वो कोई जवाब नहीं दे सका कि बंगलादेश की क्लिप को पश्चिम बंगाल की बता कर यह ज़हर क्यों फैलाया जा रहा है? ऐसा नहीं है कि वहाँ हिंसा की वारदातें नहीं हुई हों। पर जितनी हाइप बनाई जा रही है, वैसा नहीं है।  


कुछ अप्रवासी भारतीय भी इस मुद्दे को लेकर उतने ही उत्तेजित हैं जितने महीनों तक सुशांत सिंह राजपूत की तथाकथित ‘हत्या’ को लेकर थे। सब एक ही रट लगा रहे हैं कि बंगाल के हिंदुओं का जीना मुहाल है। जबकि वहाँ के शहरों में अगर अपने सम्पर्कों से आप बात करें तो ऐसा कुछ भी समाचार नहीं मिलता। 



उधर दशकों से राज्यपाल केंद्र सरकार की कठपुतली की तरह काम करते आएँ हैं। राज्यपाल बनाया ही उन्हें जाता है जो अपनी संविधान प्रदत्त स्वायत्तता को दर किनार कर केंद्रीय सरकार के इशारे पर अनैतिकता और झूठ की हदें पार करने में संकोच न करे। इसमें कोई अपवाद नहीं है। कांग्रेस के राज में भी यही होता था और भाजपा के राज में भी यही हो रहा है। 


शपथग्रहण समारोह से शुरू करके आज तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल महामहिम जगदीप धनकड़ ममता सरकार पर सीधा हमला करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे। कई बार तो उनकी भाव भंगिमा बहुत नाटकीय नज़र आती है। धनकड जी मेरे पुराने स्नेही हैं और सर्वोच्च न्यायालय के वकील रहे हैं। ये इत्तेफ़ाक ही है कि 1993 में जिस ‘जैन हवाला कांड’ को मैंने उजागर किया था, उसमें दुबई और लंदन से कश्मीर के आतंकवादियों को हवाला से आ रही आर्थिक मदद का एक अंश जगदीप धनकड जी को भी मिलने का आरोप था और वे हवाला कांड में चार्जशीट भी हुए थे। भाजपा और संघ के जो लोग मुसलमानों की हिंसक वृत्ति और भारत को इस्लामी देश बनाने का ख़तरा बता-बता कर हिंदू वोट बैंक को संगठित कर रहे हैं उनसे मेरा लगातार एक ही सवाल रहता है। कि जब इस्लामिक आतंकवाद के ख़िलाफ़ 1993 से लड़ाई लड़ी जा रही थी तो ये लोग एक ख़तरनाक खामोशी क्यों साधे बैठे थे ? 


संघ के संस्थापक डाक्टर केशव हेडगेवार जी कहा था कि परिवार के हित के लिए व्यक्ति का हित। समाज के हित के लिए संगठन का हित और राष्ट्र के हित के लिए अपने दल के हित को त्याग देना चाहिए। पर संघ और भाजपा ने तो तब उल्टा ही काम किया। अपने चंद नेताओं को बचाने में उन्होंने राष्ट्र के हित को बलिदान कर दिया। वरना ये  इस्लामिक आतंकवाद 27 बरस पहले ही नियंत्रित हो जाता। मेरे इन प्रश्नों का जवाब संघ और भाजपा के बड़े से बड़े नेता आजतक देने का नैतिक साहस नहीं दिखा पाए। पर आज वे इतिहास  से अनभिज्ञ और विवेकहीन अपने युवा समर्थकों से हर उस व्यक्ति को देशद्रोही कहलवाते हैं जो उनके ग़लत कामों पर ऊँगली उठाता है। तो बहुत दया आती है कि युवा कैसे मानसिक ग़ुलाम बन रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि हर नागरिक मीडिया के झूठ  से बच कर हर परिस्थिति का निष्पक्ष मूल्यांकन करे।


यहाँ मुझे यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि वर्तमान समय में जहां-जहां मुसलमान बहुसंख्यक हैं वहाँ वहाँ अशांति है, हिंसा है, अल्पसंख्यकों की उपेक्षा या दमन है। जिस तरह कश्मीर, असम, प.बंगाल के अलावा अन्य प्रांतों में भी अपनी बढ़ती जनसंख्या के बल पर मुसलमानों ने राजनीति में अपना दबदबा बढ़ाया है वहाँ-वहाँ हिंदू उनके आक्रामक व्यवहार से उत्तेजित हुआ है। जब सेकूलर मीडिया कश्मीर के हिंदुओं पर हुए अत्याचार को नहीं दिखाता और  उनके समर्थन में उतने ही ज़ोर शोर से आवाज़ नहीं उठाता जैसी मुसलमानों के लिए उठाता रहा है, तब मजबूरन  हिंदुओं को भाजपा की छत्र-छाया में जाना पड़ता है। फिर भी बंगाल की आधी हिंदू आबादी ने भाजपा को वोट नहीं दिया। 


मुसलमानों की शिकायत है कि उनके प्रति पक्षपात का आरोप ग़लत है। जिसके प्रमाण में वे अपने समाज के पिछड़ेपन और सेना या प्रशासन में अपनी नगण्य उपस्थिति का हवाला देते हैं। इसके कई सामाजिक कारण भी हैं जिन पर अलग से चर्चा की जा सकती है। पर यह तो स्पष्ट है कि किसी भी सार्वजनिक जगह पर, यहाँ तक कि भारी ट्राफ़िक वाली सड़कों पर भी मुसलमान अपना मुसल्ला बिछा कर नमाज़ पढ़ने लग जाते हैं। जिससे आम जन जीवन में व्यवधान पैदा होता है और अन्य धर्मावलम्बियों में आक्रोश। सरकार के मंत्रियों और राज्यपालों द्वारा इफ़्तार की दावतें देना, जबकि दिवाली, वैसाखि, गुरूपूरब, पोंगल आदि जैसे अन्य धर्मों के त्योहारों पर ऐसा कोई आयोजन नहीं करना या हज यात्रा पर जाने वालों को सब्सिडी देना, कुछ ऐसे काम होते रहे हैं जिनसे हर हिंदू उत्तेजित हुआ है। 


इसलिये समझदार और पढ़े लिखे मुसलमानों को समाज में पारस्परिक सौहार्द का वातावरण तैयार करने की सक्रिय पहल करनी चाहिए। अन्यथा दोनों पक्षों की साम्प्रदायिक ताक़तें राष्ट्र को तबाह कर देगी। 


यही बात मैं संघ और भाजपा के नेतृत्व से भी कहना चाहता हूँ। आप किस हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं? हज़ारों साल से हिंदू धर्म की ध्वजा को चारों पीठों के शंकराचार्यों ने वहन कर समाज को दिशा दी है। सनातन धर्म के स्थापित सम्प्रदायों जैसे श्री, रुद्र, ब्रह्म और कुमार सम्प्रदाय और इनकी शाखाओं में एक से बढ़ कर एक ज्ञानी, प्रतिष्ठित और सिद्ध संत हुए हैं और आज भी हैं। इनके अलावा मध्य-युग के भक्ति क़ालीन संत जैसे गुरु नानक देव, मीराबाई, तुलसीदास, सूरदास, रसखान, रहीम, कबीर, चैतन्य महाप्रभु, नामदेव, तुकाराम और अलवर जैसे महान संतों को छोड़ कर आप लोग पैसे, प्रचार और सत्ता के पीछे भागने वाले आत्मघोषित सदगुरुओं को, जो यशोदा मईया को भगवान कृष्ण की प्रेयसी बताने की धृष्टता करते हैं, क्यों हिंदू समाज पर थोपने पर तुले हैं ? इनसे हिंदुत्व का भला नहीं हो रहा बल्कि उसकी जड़ों में छाछ डालने का काम हो रहा है। आप लोगों को भी अपना मूल्यांकन करना चाहिए। क्योंकि ऐसे तमाम उदाहरण दिए जा सकते हैं हैं जिनसे सिद्ध होता है कि सत्ता के लालच में आप सनातन धर्म के स्थापित सिद्धांतों और मान्यताओं की बार-बार उपेक्षा कर रहे हैं और एक ‘सिन्थेटिक हिंदुत्व’ हम हिंदुओं पर थोपने की दुर्भाग्यपूर्ण कोशिश कर रहे हैं। इससे किसी का भला नहीं होगा न हिंदू समाज का  न राष्ट्र का।

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