जब चारों तरफ़ मौत का भय, कोविड का आतंक, अस्पताल, ऑक्सिजन और दवाओं की कभी न पूरी होने वाली माँग के साये में आम ही नहीं ख़ास आदमी भी बदहवास भाग रहा है, तब हिंदी के कुछ मशहूर कवियों का आशा जगाने वाला एक गीत फिर से लोकप्रिय हो रहा है। पर्दे पर इस गीत को सुरेंद्र शर्मा, संतोष आनंद, शैलेश लोढ़ा, आदि ने गाया है। गीत का शीर्षक ‘फिर नई शुरुआत कर लेंगे’ है।
जब से कोविड का आतंक फैला है तब से सोशल मीडिया पर ज्ञान बाँटने वालों की भी भीड़ लग गई है। दुनिया भर से हर तरह का आदमी चाहे वो डाक्टर हो या ना हो, वैद्य हो या न हो या फिर स्वास्थ्य विशेषज्ञ हो या न हो, कोविड से निपटने या बचने के नुस्ख़े बता रहा है। उसमें कितना ज्ञान सही है और कितना ग़लत तय करना मुश्किल है। उधर देश की स्वास्थ्य सेवाएँ इस बुरी तरह से चरमरा गई हैं कि बड़े-बड़े प्रभावशाली आदमी भी मेडिकल सुविधाओं के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। सरकारों के हाथ पाँव फूल रहे हैं। दुनिया दिल थाम कर भारत में चल रहे मौत के तांडव का नजारा देख रही है। कल तक हम सीना ठोक कर कोविड पर विजय पाने का दावा कर रहे थे पर आज दुनिया के रहमोकरम के आगे घुटने टेक रहे है। अच्छी बात यह है कि हर सक्षम देश भारत की मदद को आगे आ रहा है। अब भारत सरकार ने भी तेज़ी से हाथ-पैर मारने शुरू कर दिए हैं। पर जिस तरह चेन्नई और प्रयाग में उच्च न्यायालयों ने सरकार की नाकामी पर करारा प्रहार किया है और चुनाव आयोग को हत्यारा तक कहा है। उससे यह साफ़ ज़ाहिर है कि कहीं तो सरकार ने भी लापरवाही की है। पर जनता भी कम ज़िम्मेदार नहीं जिसने कोविड की पहली लहर मंद पड़ जाने के बाद खुलकर लापरवाही बरती।
जहां तक इस आपदा से निपटने की तैयारी का सवाल है तो गौर करने वाली बात यह है कि 2005 में देश में ‘आपदा प्रबंधन क़ानून’ लागू किया गया था। जिसमें राष्ट्रीय व प्रांतीय आपदा प्रबंधन समितियों के गठन का प्रावधान है। उक्त क़ानून की धारा 2 (ई) के तहत आपदा का मूल्यांकन तथा धारा 2 (एम) के तहत तैयारियों का प्रावधान है। धारा 3 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपदा प्राधिकरण के अध्यक्ष माननीय प्रधान मंत्री होते हैं। उक्त क़ानून की धारा 42 के तहत एक आपदा संस्थान भी स्थापित करने का प्रावधान है। इसी क़ानून के तहत आपदा कोश बनाने का भी प्रावधान है। उक्त क़ानून की धारा 11 के तहत राष्ट्रीय योजना बनाने का भी प्रावधान है। दुर्भाग्य से न तो कोई योजना बनी, न संस्थान स्थापित हुआ। यही नहीं उक्त क़ानून की धारा 13 के तहत ये भी प्रावधान बनाया गया था की ऋण अदायगी के तहत भी छूट दी जाएगी। इसके अलावा ‘नेशनल डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फ़ोर्स’ की धारा 44 व 46 के तहत नेशनल डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फंड, धारा 47 के तहत नैशनल डिज़ास्टर लिटिगेशन फंड तथा धारा 48 के तहत नैशनल डिज़ास्टर लिटिगेशन फंड को राज्यों में भी बनाने का प्रावधान है। धारा 72 के तहत आपदा के तहत सभी मौजूदा क़ानून निशप्रभावी रहेंगे।
2005 से 2014 तक देश में डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी और 2014 से श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है। आपदा प्रबंधन के इन क़ानूनों की उपेक्षा करने के लिए ये दोनों सरकारें बराबर की ज़िम्मेदार हैं।
उक्त क़ानून के अध्याय 10 के तहत दंडनीय अपराधों का प्रावधान भी है। धारा 55, 56 तथा 57 के तहत यदि कोई प्रांतीय सरकार या सरकारी विभाग आपदा प्रबंधन के समय उक्त क़ानून के प्रावधानों की अवहेलना करता है तो यह उसका दंडनीय अपराध माना जाए। कोविड काल में देश में हुए विभिन्न धर्मों के सार्वजनिक आयोजन अन्य राजनैतिक कार्यक्रमों का इतने वृहद् स्तर पर, बिना सावधानियाँ बरते, आयोजन करवाना या उनकी अनुमति देना भी इस क़ानून के अनुसार सम्बंधित व्यक्तियों को अपराधी की श्रेणी में खड़ा करता है। ख़ासकर तब जबकि पिछले वर्ष मार्च से आपदा प्रबंधन क़ानून लागू कर दिया गया था तथा धार 72 के तहत समस्त दूसरे क़ानून निष्प्रभावी थे। ऐसे में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की अनुमति के बिना, विभिन्न धार्मिक, राजनैतिक व सामाजिक आयोजन कराना क्रमशः राज्य सरकारों तथा भारत के चुनाव आयोग के सम्बंधित अधिकारियों को दोषी ठहराता है।
फ़िलहाल जो आपदा सामने है उससे निपटना सरकार और जनता की प्राथमिकता है। जब विधायक और सांसद तक चिकित्सा सुविधाएँ नहीं जुटा पाने के कारण गिड़गिड़ा रहे हैं क्योंकि इनकी देश भर में सरेआम काला बाज़ारी हो रही है। नौकरशाही इस आपदा प्रबंधन में किस हद तक नाकाम सिद्ध हुई है इसका प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश के राजस्व बोर्ड के अध्यक्ष तक को 12 घंटे तक लखनऊ के सरकारी अस्पताल में बिस्तर नहीं मिला और जब मिला तो बहुत देर हो चुकी थी और उनका देहांत हो गया। इसलिए समय की माँग है कि ऑक्सिजन, दवाओं और अस्पतालों में बिस्तर के आवंटन और प्रबंधन का ज़िम्मा एक टास्क फ़ोर्स को सौंप देना चाहिए। प्रधान मंत्री श्री मोदी को फ़ौज और टाटा समूह जैसे बड़े औद्योगिक संगठनों को मिलाकर एक राष्ट्रीय समन्वय टास्क फ़ोर्स गठित करनी चाहिए जो इस आपदा से सम्बंधित हर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो।
अब जब भारत सरकार भारतीय वायु सेना को इस आपदा प्रबंधन में लगा रही है तो उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि हवाई जहाज़ अन्य वाहन एवं वायु सेना के सम्बंधित कर्मचारी व अधिकारी पूरी तरह से कोविड से बचाव करते हुए काम में लगाए जाएं। ऐसा न हो कि लापरवाही के चलते वायु सेना के लोग इस महामारी की चपेट में आ जाएं। सावधानी यह भी बरतनी होगी कि कोविड उपचार में जुटे डाक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों का उनकी क्षमता से ज़्यादा दोहन न हो। अन्यथा ये व्यवस्था भी चरमरा जाएगी।
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