हाल ही में दिल्ली का एक नामी व्यापारी काफ़ी सुर्ख़ियों में रहा। इस व्यापारी नवनीत कालरा के दिल्ली में कई कारोबार हैं। इसके कारोबारों में दिल्ली के खान मार्केट में कबाब का एक मशहूर रेस्टोरेंट, चश्मों की एक चर्चित दुकान और अंतर्राष्ट्रीय व्यंजन के कई और रेस्टोरेंट शामिल हैं। इन सबके अलावा कालरा की एक अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल सिम सेवा भी शामिल है। लेकिन कालरा इन सभी व्यवसायों के कारण सुर्ख़ियों में नहीं था। वो तो कोविड आपदा में अवसर ढूँढने के चक्कर में विवादों में आया।
कोविड की दूसरी लहर के चलते मरीज़ों में ऑक्सीजन की कमी की पूर्ति के लिए ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर की माँग अचानक बहुत बढ़ गई थी। इसी यंत्र को विदेशों से मंगा कर दिल्ली और आस पास के मरीज़ों को मुह माँगे दामों पर बेचने के कारण नवनीत कालरा सुर्ख़ियों में आया। चूँकि ये मामला अभी अदालत के विचाराधीन है इसलिए इस पर अभी कुछ नहीं कहें तो बेहतर होगा। हाँ अगर अदालत मानती है कि उसने कोई अपराध किया है तो नवनीत कालरा सज़ा पाएगा।
इसी बीच पिछले हफ़्ते दो ऐसे हादसे हुए जिन्हें गम्भीरता से लेने की ज़रूरत है। पहला हादसा नागपुर से मुंबई आ रही एक एयर एम्बुलेंस का था। जिसमें नागपुर से उड़ान भरते समय विमान का एक पहिया हवाई पट्टी के पास गिर गया था। ग़नीमत है कि हवाई अड्डों की सुरक्षा में तैनात सीआईएसएफ के एक सतर्क सिपाही ने इसकी सूचना तुरंत नागपुर एटीसी को दी, जिन्होंने विमान चालक से सम्पर्क किया। यह एयर एम्बुलेंस एक निजी कम्पनी द्वारा संचालित की जा रही थी। हैरानी वाली बात यह है कि इस एयर एम्बुलेंस के कप्तान को विमान द्वारा ऐसा कुछ भी संकेत नहीं मिला कि उसका पहिया नागपुर में ही गिर चुका है। उस सिपाही की सतर्कता के कारण ही विमान को मुंबई में आपातकाल लैंडिंग से उतारा गया, बिना किसी जान माल के नुक़सान के। उस विमान में सवार मरीज़ को भी समय पर कोविड की चिकित्सा के लिए अस्पताल ले जाया गया।
अगर एयर एम्बुलेंस की बात करें तो नवनीत कालरा की तरह इन्हें चलाने वाली निजी कम्पनियाँ भी आजकल आपदा के दौर में खूब अवसर खोज रही हैं। पर इस हादसे से यह साबित होता है कि अंधा पैसा कमाने के चक्कर में वे विमान के रख रखाव पर भी ध्यान नहीं दे रही हैं। इसीलिए ऐसे हादसे होते हैं। इतना ही नहीं एयर एम्बुलेंस चलाने वाली इन निजी कम्पनियों की कई बड़े अस्पतालों के साथ साँठगाँठ है जिसके कारण वे सवारियों से मुह माँगे दाम वसूल रही हैं।
मिसाल के तौर पर अगर किसी मरीज़ को पटना से किसी बड़े अस्पताल में ले जाना है तो बजाय कोलकाता या किसी नज़दीक शहर में ले जाने के ये कम्पनियाँ उस मरीज़ को हैदराबाद जैसे दूर दराज के शहर ले जाती हैं और उसके बदले में मरीज़ के घरवालों से 25-30 लाख रुपय ऐंठती हैं। जबकि आम तौर पर ऐसी चार्टेड यात्रा का खर्च 2 से 3 लाख रुपय आता है। ऐसे समय में मरीज़ों से मुह माँगे दाम ऐंठना कालाबाज़ारी से कम अपराध नहीं है।
इतना ही नहीं इन विमानों में मरीज़ों को ले जाए जाने के लिए तय मापदंडों की भी धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। ये लापरवाही जान बचाने की बजाय जानलेवा भी हो सकती हैं। नागर विमानन निदेशालय (डीजीसीए) को इस दिशा में कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए और निजी कम्पनियों द्वारा चलाई जा रही एयर एम्बुलेंस की निगरानी सख़्ती से होनी चाहिए। पर आश्चर्य है कि ऐसा नहीं हो रहा।
दरअसल ऐसे सवारी वाले छोटे विमानों में कार्गो या सामान की ढ़ुलाई करने के लिए यदि विमान की सीटों को निकाला जाता है तो विमान निर्माता व डीजीसीए से विशेष अनुमति लेना अनिवार्य होता है। आपात स्थिति बताकर इस विमान में ऐसा नहीं किया गया था। यह सब भी कैप्टन माजिद अख़्तर के रसूख़ के चलते उसकी ही देख रेख में हुआ।
ग़ौरतलब है कि इस विमान के पाइलट कैप्टन माजिद अख़्तर के ख़िलाफ़ दिल्ली के ‘कालचक्र समाचार ब्यूरो’ के प्रबंधकीय सम्पादक रजनीश कपूर ने डीजीसीए को कई महीने पहले पत्र लिख कर शिकायत की थी। जिसमें कैप्टन माजिद की क़ाबिलियत एवं अनुशासनहीनतापूर्ण कार्यप्रणाली को लेकर सप्रमाण कई सवाल उठाए थे। लेकिन कैप्टन माजिद के रसूख़ के चलते उन शिकायतों की अनदेखी कर न तो उसे विमान उड़ाने से रोका गया और न ही शिकायत पर कोई कार्यवाही हुई। ऐसी लापरवाही क्यों की गई?
उल्लेखनीय है कि कैप्टन माजिद अख़्तर मध्य प्रदेश शासन के पाइलट होने के साथ साथ डीजीसीए द्वारा ‘बी 200’ विमान के परीक्षक के पद पर भी नियुक्त था। इस कार्यवाही को अंजाम देते हुए इसने कई पाइलटों के प्रशिक्षण एवं जाँच में धांधली की और ग़ैर ज़िम्मेदाराना हरकतों को अंजाम दिया। जिसकी शिकायत कालचक्र द्वारा समय-समय पर डीजीसीए से लिखकर की गई। यदि समय रहते डीजीसीए इन शिकायतों का संज्ञान लेता और जाँच करता तो इस तरह की लापरवाही भरे आचरण पर लगाम लगती और जान-माल के नुक़सानों से बचा जा सकता था।
कैप्टन माज़िद द्वारा एक और संगीन अपराध किया गया। डीजीसीए द्वारा दिए गए दिशा निर्देश के तहत किसी भी पाइलट या क्रू, जिसने कोविड का वैक्सीन लगवाया हो, उसे अगले 48 घंटे तक उड़ान भरने की मनाई है। लेकिन कैप्टन माजिद अख़्तर के लिए सभी नियम और क़ानून केवल किताबी हैं। उसने इस नियम की भी धज्जियाँ उड़ाते हुए 17 मार्च 2021 को कोविड वैक्सीन लगवाने के कुछ ही घंटों में मध्य प्रदेश के राज्यपाल के साथ उड़ान भरी। जिसकी शिकायत डीजीसीए से की गयी। लेकिन इस शिकायत के बाद भी डीजीसीए ने माज़िद पर कोई भी कार्यवाही क्यों नहीं की ?
ठीक उसी तरह, कैप्टन अख़्तर ने बतौर परीक्षक उत्तर प्रदेश सरकार के कई पाइलटों को उड़ान जाँच योग्यता में पास कर दिया जिसमें से अधिकतर पाइलटों का आपदा प्रबंधन का अनिवार्य सर्टिफिकेट अवैध था। बिना इस गम्भीर बात की जाँच किए हुए उन्होंने ये गैर ज़िम्मेदाराना कार्य किया और इस प्रकार के दर्जनों अनुशासनहीन प्रशिक्षण कार्य कराते आए हैं। इस शिकायत को भी डीजीसीए द्वारा अनदेखा किया गया।
डीजीसीए के अधिकारियों को ऐसी गम्भीर लापरवाही करने वाले अपने लोगों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। इसी तरह अनुशासनहीन पाइलटों को भी विमान उड़ाने की इजाज़त न दी जाए।
उधर निजी चार्टर विमानों में अगर सवारी की जगह मरीज़ और डाक्टर को ले जाने का प्रबंध करना है तो तय मापदंडों के अनुसार ही विमान में फेर बदल किया जाए न कि निजी कम्पनी की इच्छा अनुसार। ऐसा करने से कालाबाज़ारी कर रहे लोगों पर लगाम कसेगी और जान माल की भी रक्षा होगी।
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