आपकी
दबंगाई और भारत को सशक्त राष्ट्र बनाने का जुनून ही था जिसने सारे
हिंदुस्तान को 2014 में आपके पीछे खड़ा कर दिया। इन तीन वर्षों में अपने
कामों और विचारों से आपने यह संदेश दिया है कि आप लीक से हटकर सोचते हैं और
इतिहास रचना चाहते हैं। आशा है कि आप लोगों की अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे।
पर कुछ बुनियादी बात है जिन पर मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। जब
तक योजना बनाने और उसे लागू करने के तरीके में बदलाव नहीं आयेगा, आपके सपने
जमीन पर नहीं उतर पाऐंगे। आज भी केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों तक
कन्सल्टेंसी के नाम पर तमाम नामी कंपनियां देश को चूना लगा रही है। इन्हें
इनका नाम देखकर मोटी फीस दी जाती है। जबकि ये बुनियादी सर्वेक्षण भी नहीं
करती, फर्जी आकड़ों से डीपीआर बनाकर उसे पारित करवा लेती हैं। जिससे धन और
संसाधन दोनों की बर्बादी होती है। वांछित लाभ भी नहीं मिल पाता। हमारे जैसे
बहुत से लोग जो धरोहरों के संरक्षण का वर्षों से ठोस और बुनियादी काम कर
रहे हैं, उन्हें उनकी बैलेंसशीट भारी भरकम न होने के कारण मौका नहीं दिया
जाता। इस दुष्चक्र को तोड़े बिना सार्थक, बुनियादी, किफायती और जनउपयोगी
प्रोजेक्ट नहीं बन पाते। जो विकास के नाम पर खड़ा किया जाता है वो लिफाफों
से ज्यादा कुछ नहीं होता। आप चाहें तो आपको इसके प्रमाण भेजे जा सकते हैं।
दूसरी समस्या इस बात की है कि इन योजनाओं के क्रियान्वयन में उन ठेकेदारों को पुरातात्विक संरक्षण के ठेके दिये जाते हैं जिन्हें केवल नाली, खड़जे बनाने का ही अनुभव होता है। भला उनका कलात्मक धरोहरों से क्या नाता? इसमें एक बुनियादी परिवर्तन तब आया जब आपकी प्रेरणा से शहरी विकास मंत्रालय ने, आपकी प्रिय ‘हृदय योजना’ के लिए मुझे राष्ट्रीय सलाहाकार चुना और मैंने वेंकैया नायडू जी से कहकर एक नीतिगत सुधार करवाया कि ‘हृदय योजना’ के तहत ठेके देने और बिल पास करने का काम जिला प्रशासन बिना ‘सिटी एंकर’ की लिखित अनुमति के नहीं करेगा। ‘सिटी एंकर’ का चुनाव मंत्रालय ने योग्यता और अनुभव के आधार पर राष्ट्रव्यापी, पारदर्शी प्रक्रिया से किया था। इस एक सुधार के अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं।
तीसरी समस्या सांसद निधि को लेकर है। विभिन्न राजनैतिक दलों के हमारे कितने ही साथी और मित्र सांसद हैं और हमारे अनुरोध पर विभिन्न विकास योजनाओं के लिए अपनी सांसद निधि से, बिना कोई कमीशन लिए, सहर्ष आवंटन कर देते हैं। पर जिलों के स्तर पर इस पैसे में से मोटा कमीशन वसूल लिया जाता है। न सांसद कमीशन खा रहे हैं और न प्रेरणा देने वाली संस्था ही भ्रष्ट है, फिर क्यों राज्य सरकारों केे वेतनभोगी अधिकारी सांसद निधि में से मोटा कमीशन वसूलने को तैयार बैठे रहते हैं? जिस तरह आप निर्धनों के बैंक खातों में सब्सिडी की रकम सीधे डलवाने की जोरदार योजना लाने की तैयारी में हैं, उसी तरह आपके सांख्यिकी मंत्रालय को चाहिए कि वो शहरी विकास मंत्रालय की तरह ही राष्ट्रव्यापी व पारदर्शी व्यवस्था के तहत कार्यदायी संस्थाओं का चयन उनकी योग्यता और अनुभव के आधार पर कर लें। फिर वे चाहें धमार्थ संस्थाऐं ही क्यों न हों। इस चयन के बाद सांसद निधि से धन सीधा इनके खातों में डलवा दिया जायें जिससे प्रशासन का बिचैलियापन समाप्त हो जायेगा।
चैथी समस्या है कि कला, संस्कृति, पर्यावरण जैसे अनेक मंत्रालयों से जुड़ी अनेक संस्थाऐं और समीतियों में सदस्यों के नामित किये जाने की है। जिनमें समाज के अनुभवी और योग्य लोगों को नामित किया जाना चाहिए। आपके आलोचक काफी हल्ला मचा रहे हैं कि आपने अनेक राष्ट्रीय स्तर की अनेक संस्थाओं में अपने दल से जुड़े अयोग्य लोगों को महत्वपूर्णं पदों पर बैठा दिया है। मैं इन लोगों की आलोचना से सहमत नहीं हूँ। क्योंकि मैंने गत 35 वर्ष के पत्रकारिता जीवन में यही देखा कि जिसकी सरकार होती है, उसके ही लोग ऐसी जगहों में बिठा दिये जाते हैं। चाहें वे कितने ही अयोग्य क्यों न हों। पर आपसे शिकायत यह है कि जो लोग सिद्धातः किसी राजनैतिक दल से नही जुड़े हैं लेकिन पूरी निष्ठा, ईमानदारी और कुशलता के साथ अपने-अपने क्षेत्रों में योगदान दे रहें हैं। लेकिन उन्हें किसी भी महत्वपूर्णं जिम्मेदारी से केवल इसलिए वंचित किया जा रहा है क्योंकि वे आपके दल से जुड़े हुए नहीं हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि ऐसे योग्य, निष्ठावन और अनुभवी लोगों को तो कभी ऐसा मौका मिलेगा ही नहीं? क्योंकि जो भी दल सत्ता में आयेगा वो यही कहेगा कि आप हमारे दल के नहीं हो। कम से कम गुणों के पारखी नरेन्द्र मोदी की सरकार में तो ये बदलना चाहिए। हमने तो सुना था कि आप योग्य व्यक्तियों को बुलाकर काम सौंपते हो चाहे उसके लिए आपको नियमों और नौकरशाही के विरोध को भी दरकिनार करना पड़े। बिना ऐसा किये इन संस्थाओं की गुणवत्ता नहीं बदलेगी। आजादी के बाद कांग्रेस का दामन पकड़कर साम्यवादी इन संस्थाओं पर हावी रहे और इनका मूल भारतीय स्वरूप ही नष्ट कर दिया। अब मौका आया है तो आप दल के मोह से आगे बढ़कर राष्ट्रहित में काम हो, ऐसी नीति बनाओ।
पांचवी समस्या है कि एक ही क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र सरकार की अनेक योजनाऐं अलग-अलग मंत्रालयों से जारी होते हैं। समन्वय के अभाव में नाहक पैसा बर्बाद होता है। वांछित परिणाम नहीं मिलता। होना यह चाहिए कि केंद्र सरकार की ऐसी सभी योजनाऐं समेकित नीति के तहत जारी हों और उनकी गुणवत्ता और क्रियान्वयन पर जागरूक नागरिकों की निगरानी की व्यवस्था हो। ऐसे अनेक छोटे लेकिन दूरगामी परिणाम वाले कदम उठाकर आप अपनी सरकार से वो हासिल कर सकते हो, जिसका सपना लेकर आप प्रधानमंत्री बने हो। जाहिर है आप अपनी कुर्सी अपने किसी पप्पू को सौंपने तो आये नहीं हो, कुछ कर दिखाना चाहते हो, तो कुछ अनूठा करना पड़़ेगा।
दूसरी समस्या इस बात की है कि इन योजनाओं के क्रियान्वयन में उन ठेकेदारों को पुरातात्विक संरक्षण के ठेके दिये जाते हैं जिन्हें केवल नाली, खड़जे बनाने का ही अनुभव होता है। भला उनका कलात्मक धरोहरों से क्या नाता? इसमें एक बुनियादी परिवर्तन तब आया जब आपकी प्रेरणा से शहरी विकास मंत्रालय ने, आपकी प्रिय ‘हृदय योजना’ के लिए मुझे राष्ट्रीय सलाहाकार चुना और मैंने वेंकैया नायडू जी से कहकर एक नीतिगत सुधार करवाया कि ‘हृदय योजना’ के तहत ठेके देने और बिल पास करने का काम जिला प्रशासन बिना ‘सिटी एंकर’ की लिखित अनुमति के नहीं करेगा। ‘सिटी एंकर’ का चुनाव मंत्रालय ने योग्यता और अनुभव के आधार पर राष्ट्रव्यापी, पारदर्शी प्रक्रिया से किया था। इस एक सुधार के अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं।
तीसरी समस्या सांसद निधि को लेकर है। विभिन्न राजनैतिक दलों के हमारे कितने ही साथी और मित्र सांसद हैं और हमारे अनुरोध पर विभिन्न विकास योजनाओं के लिए अपनी सांसद निधि से, बिना कोई कमीशन लिए, सहर्ष आवंटन कर देते हैं। पर जिलों के स्तर पर इस पैसे में से मोटा कमीशन वसूल लिया जाता है। न सांसद कमीशन खा रहे हैं और न प्रेरणा देने वाली संस्था ही भ्रष्ट है, फिर क्यों राज्य सरकारों केे वेतनभोगी अधिकारी सांसद निधि में से मोटा कमीशन वसूलने को तैयार बैठे रहते हैं? जिस तरह आप निर्धनों के बैंक खातों में सब्सिडी की रकम सीधे डलवाने की जोरदार योजना लाने की तैयारी में हैं, उसी तरह आपके सांख्यिकी मंत्रालय को चाहिए कि वो शहरी विकास मंत्रालय की तरह ही राष्ट्रव्यापी व पारदर्शी व्यवस्था के तहत कार्यदायी संस्थाओं का चयन उनकी योग्यता और अनुभव के आधार पर कर लें। फिर वे चाहें धमार्थ संस्थाऐं ही क्यों न हों। इस चयन के बाद सांसद निधि से धन सीधा इनके खातों में डलवा दिया जायें जिससे प्रशासन का बिचैलियापन समाप्त हो जायेगा।
चैथी समस्या है कि कला, संस्कृति, पर्यावरण जैसे अनेक मंत्रालयों से जुड़ी अनेक संस्थाऐं और समीतियों में सदस्यों के नामित किये जाने की है। जिनमें समाज के अनुभवी और योग्य लोगों को नामित किया जाना चाहिए। आपके आलोचक काफी हल्ला मचा रहे हैं कि आपने अनेक राष्ट्रीय स्तर की अनेक संस्थाओं में अपने दल से जुड़े अयोग्य लोगों को महत्वपूर्णं पदों पर बैठा दिया है। मैं इन लोगों की आलोचना से सहमत नहीं हूँ। क्योंकि मैंने गत 35 वर्ष के पत्रकारिता जीवन में यही देखा कि जिसकी सरकार होती है, उसके ही लोग ऐसी जगहों में बिठा दिये जाते हैं। चाहें वे कितने ही अयोग्य क्यों न हों। पर आपसे शिकायत यह है कि जो लोग सिद्धातः किसी राजनैतिक दल से नही जुड़े हैं लेकिन पूरी निष्ठा, ईमानदारी और कुशलता के साथ अपने-अपने क्षेत्रों में योगदान दे रहें हैं। लेकिन उन्हें किसी भी महत्वपूर्णं जिम्मेदारी से केवल इसलिए वंचित किया जा रहा है क्योंकि वे आपके दल से जुड़े हुए नहीं हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि ऐसे योग्य, निष्ठावन और अनुभवी लोगों को तो कभी ऐसा मौका मिलेगा ही नहीं? क्योंकि जो भी दल सत्ता में आयेगा वो यही कहेगा कि आप हमारे दल के नहीं हो। कम से कम गुणों के पारखी नरेन्द्र मोदी की सरकार में तो ये बदलना चाहिए। हमने तो सुना था कि आप योग्य व्यक्तियों को बुलाकर काम सौंपते हो चाहे उसके लिए आपको नियमों और नौकरशाही के विरोध को भी दरकिनार करना पड़े। बिना ऐसा किये इन संस्थाओं की गुणवत्ता नहीं बदलेगी। आजादी के बाद कांग्रेस का दामन पकड़कर साम्यवादी इन संस्थाओं पर हावी रहे और इनका मूल भारतीय स्वरूप ही नष्ट कर दिया। अब मौका आया है तो आप दल के मोह से आगे बढ़कर राष्ट्रहित में काम हो, ऐसी नीति बनाओ।
पांचवी समस्या है कि एक ही क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र सरकार की अनेक योजनाऐं अलग-अलग मंत्रालयों से जारी होते हैं। समन्वय के अभाव में नाहक पैसा बर्बाद होता है। वांछित परिणाम नहीं मिलता। होना यह चाहिए कि केंद्र सरकार की ऐसी सभी योजनाऐं समेकित नीति के तहत जारी हों और उनकी गुणवत्ता और क्रियान्वयन पर जागरूक नागरिकों की निगरानी की व्यवस्था हो। ऐसे अनेक छोटे लेकिन दूरगामी परिणाम वाले कदम उठाकर आप अपनी सरकार से वो हासिल कर सकते हो, जिसका सपना लेकर आप प्रधानमंत्री बने हो। जाहिर है आप अपनी कुर्सी अपने किसी पप्पू को सौंपने तो आये नहीं हो, कुछ कर दिखाना चाहते हो, तो कुछ अनूठा करना पड़़ेगा।