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Monday, December 24, 2018

राज्यसभा की याचिका समिति करे कार्यवाही

राज्यसभा का सदस्य भारतीय राजनीति का सबसे वरिष्ठ और परिपक्व व्यक्तित्व होना चाहिए। क्योंकि भारत के लोकतंत्र में इससे बड़ी कोई विधायिका नहीं है। अगर राज्यसभा का कोई सदस्य झूठ बोले, भारत के नागरिकों को धमकाऐ और राज्यसभा द्वारा प्रदत्त सरकारी स्टेशनरी का दुरूपयोग इन सब अवैध कामों के लिए करें, तो क्या उस पर कोई कानून लागू नहीं होता है? कानून के तहत ऐसा करने वाले पर बाकायदा आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है और उसे 2 वर्ष तक की सजा भी हो सकती है। पर इससे पहले की कोई कानूनी कार्यवाही की जाऐ, राज्यसभा की अपनी ही एक ‘याचिका समिति’ होती है। जिसके 7 सदस्य हैं। इस समिति से शिकायत करके दोषी सदस्य के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है।
पिछले दिनों ‘कालचक्र समाचार ब्यूरो’ के प्रबंधकीय संपादक रजनीश कपूर ने इस समिति के सातों सदस्यों को और राज्यसभा के सभापति व भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री एम. वैंकेया नायडू जी को एक लिखित प्रतिवेदन भेजकर राज्यसभा के सदस्य डा. सुब्रमनियन स्वामी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की मांग की।
जून 2018 में रजनीश कपूर ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर प्रवर्तन निदेशालय के उपनिदेशक राजेश्वर सिंह की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच की मांग की थी। क्योंकि सत्ता के गलियारों में छोटे से पद पर तैनात द्वितीय श्रेणी के इस अधिकारी का संपर्क जाल और कारोबार दूर-दूर तक फैला हुआ है, ऐसी बहुत शिकायतें आ रही थी। सर्वोच्च न्यायालय ने रजनीश कपूर की याचिका को गंभीरता से लेते हुए, इस जांच के आदेश दे दिए। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के कैबिनेट सचिव की ओर से भी एक गोपनीय दस्तावेज भेजकर अदालत में रजनीश कपूर की याचिका का समर्थन किया गया था।
इस पहल से भाजपा के राज्यसभा सांसद और विवादास्पद डा. सुब्रमनियन स्वामी तिलमिला गऐ और उन्होंने रजनीश कपूर को डराने के मकसद से अपनी सरकारी स्टेशनरी का दुरूपयोग करते हुए, एक पत्र भेजा। जिसमें लिखा था कि, ‘उन्हें अदालत ने आदेश दिया है कि वे श्री कपूर सूचित करे और उनका अदालत में उपस्थित रहना सुनिश्चित करे।’ यह सरासर झूठ था। न तो सर्वोच्च अदालत ने श्री कपूर के लिए ऐसा कोई आदेश दिया था और न ही डा. स्वामी से ऐसा करने को कहा था। गाहे-बगाहे हरेक के काम में टांग अड़ाने वाले डा. स्वामी ने ये पत्र राज्यसभा की सरकारी स्टेशनरी पर भेजा था। जबकि अदालत में वे राजेश्वर सिंह के पक्ष में निजी हैसियत से खड़े हुए थे। उसका राज्यसभा से कोई लेनादेना नहीं था। इस तरह यह पत्र सीधे-सीधे ब्लैकमेलिंग की श्रेणी में आता है। जिसका उद्देश्य श्री कपूर को धमकाना था। इसके पहले भी डा. स्वामी मुझे और रजनीश को इस मामले से हट जाने के लिए दबाव डाल रहे थे।
यह रोचक बात है कि एक द्वितीय श्रेणी के अधिकारी, जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप हो, उसकी मदद के लिए राज्यसभा के सांसद डा. स्वामी क्यों इतने बैचेन थे? इस मामले में जो तथ्य प्रकाश में आऐ हैं, वे किसी भी कानूनप्रिय नागरिक को विचलित करने के लिए काफी है।
इन घटनाओं के बाद श्री कपूर ने उपराष्ट्रपति व राज्ससभा की याचिका समिति को उक्त प्रतिवेदन भेजा है। जिसमें उन्हें घटनाओं ब्यौरा देते हुए, सर्वोच्च न्यायालय के उस दिन के आदेश की प्रति व डा. स्वामी के पत्र की प्रति संलग्न की है। जिससे कि समिति के माननीय सदस्य स्वयं देख लें कि डा. स्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को किस तरह तोड-मरोड़कर रजनीश कपूर को धमकाने के उद्देश्य से भेजा और इसके लिए राज्यसभा की स्टेशनरी का दुरूपयोग किया। जोकि सीधा-सीधा कानूनन अपराध है।
अब ये राज्यसभा समिति के सदस्यों के ऊपर है कि वे कितनी जल्दी इस याचिका पर अपना निर्णंय देते हैं। यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि डा. स्वामी राजनैतिक पाले बदलने में माहिर हैं। ये सारा देश जानता है। कभी वो राजीव गांधी के साथ खड़े होते हैं। तो फिर कभी उन्हें धोखा देकर अटलबिहारी बाजपेयी के साथ आ जाते हैं। फिर उन्हीं अटलबिहारी बाजपेयी की सरकार गिराने में जयललिता का साथ लेते हैं। फिर उन्हीं जयललिता के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। बाबरी मस्ज़िद गिरने पर डॉ स्वामी ने देशभर में बयान दिये थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुडे़ सभी संगठनों को आतंकवादी घोषित कर प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग से लिखकर मांग की थी कि भाजपा की मान्यता रद्द कर देनी चाहिए। आज वे राम मंदिर के अगुआ बनकर भोले-भाले धर्मप्रेमियों को भ्रमित कर रहे हैं। कहाँ तो वे स्वयं को मोदी जी का शुभचिंतक बताते हैं और कहां वे रोज़ मोदी जी के नियुक्त अधिकारियों को रोजाना भृष्ट घोषित करते रहते हैं। वैसे अपने राजनैतिक दल ‘जनता पार्टी’ के उपाध्यक्ष पद पर 7 वर्ष तक उन्होंने विवादास्पद  विजय माल्या को पदासीन रखा था। विवादास्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी और हथियारों के कुख्यात अंतर्राष्ट्रीय व्यापारी अदनान खशोगी  के भी वे घनिष्ठ मित्र रहे हैं। राजीव गांधी हत्या कांड में चंद्रास्वामी व डा. सुब्रमनियन स्वामी की संलिप्तता की सच्चाई्र जानने वाली जांच अभी तक नहीं हुई है। भ्रष्टाचार के विरूद्ध स्वयं को मसीहा घोषित करने वाले डा. स्वामी अपनी जनता पार्टी में काले धन को कैसे जमा करते आऐ हैं, इस पर दिल्ली उच्च न्यायालय कड़ी टिप्पणी कर चुका है। इसलिए राज्यसभा की याचिका समिति के माननीय सदस्यों को इस बे-लगाम घोड़े की लगाम कसने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए।

Monday, October 15, 2018

सुब्रमनियन स्वामी: गिरगिटिया या हिंदुत्ववादी ?

हैदराबाद के ‘मदीना एजुकेशन सेंटर’ में 13 मार्च 1993 को भाषण देते हुए स्वनामधन्य डा. सुब्रमनियन स्वामी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के लिए भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद् की कड़े शब्दों में भत्र्सना की। उन्होंने इन तीनों संगठनों को ‘आतंकवादी’ बताया और प्रधानमंत्री नरसिंह राव से इन तीनों संगठनों को प्रतिबंधित करने की मांग भी की थी।जबकि मैने 1990 में  जोखिम उठाकर अपनी कालचक्र वीडियो मैगज़ीन में 'अयोध्या नरसंहार'  पर सशक्त वीडियो फ़िल्म बनाकर प्रसारित की थी, जिसकी विहिप, संघ और भाजपा ने हज़ारों प्रतियां बनवाकर देशभर में दिखाई थीं। 1990 से मैँ अयोध्या, मथुरा और काशी में मंदिरों के समर्थन में लिखता और बोलता रहा हूँ। जबकि स्वामी जैसे अवसरवादी केवल निजी लाभ के लिए मौके के अनुसार उछलते रहते हैं।



आज वहीं डा. स्वामी अपना रंग और चोला बदलकर, पूरी दुनिया के हिंदुओं को मूर्ख बना रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि वे अयोध्या में राम मंदिर बनवाकर ही दम लेंगे। युवा पीढ़ी चाहे भारत में हो या अमरिका में रहने वाले अप्रवासी भारतीय, डा. स्वामी के लच्छेदार भाषणों के सम्मोहन में आकर, इन्हें हिंदू धर्म का सबसे बड़ा नेता मान रही है। क्योंकि उन्हें इनका अतीत पता नहीं है।



आजकल डा. स्वामी दावा करते हैं कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्णं समर्थन प्राप्त है। अब ये स्पष्टीकरण तो आदरणीय मोहन भागवत जी को देश को देना चाहिए कि क्या डा. स्वामी का दावा सही है? जो व्यक्ति संघ और उससे जुड़े संगठनों को ‘‘आतंकवादी’’ करार देता आया हो, उसे संघ अपना नेता कैसे मान सकता है?



इतना ही नहीं दुनियाभर में ऐसे तमाम लोग हैं, जिन्हें डा. स्वामी ने यह झूठ बोलकर कि वे राम जन्मभूमि के लिए सर्वोच्च अदालत में मुकदमा लड़ रहे हैं, उनसे कई तरह की मदद ली है। कितना रूपया ऐंठा है, ये तो वे लोग ही बताऐंगे। पर हकीकत ये है कि डा. स्वामी का राम जन्मभूमि विवाद में कोई ‘लोकस’ ही नहीं है। पिछले दिनों सर्वोच्च अदालत ने ये साफ कर दिया है कि राम जन्मभूमि विवाद में वह केवल उन्हीं लोगों की बात सुनेंगी, जो इस मामले में भूमि स्वामित्व के दावेदार हैं। यानि डा. स्वामी जैसे लोग अकारण ही बाहर उछल रहे हैं और तमाम तरह के झूठे दावे कर रहे हैं कि वे राम मंदिर बनवा देंगे। जबकि उनकी इस प्रक्रिया में कोई कानूनी भूमिका नहीं है।



एक आश्चर्य कि बात ये है कि बाबरी मस्जिद गिरने के बाद जिस भारतीय जनता पार्टी की मान्यता रद्द करने के लिए डा. स्वामी ने चुनाव आयोग से मांग की थी, उसी भाजपा ने किस दबाब में डा. स्वामी को ‘राज्यसभा’ में मनोनीत करवाया? राजनैतिक गलियारों में ये चर्चा आम है कि इन्हें संघ के दबाव में लेना पड़ा। वरना इनके गिरगिटिया स्वभाव के कारण कोई इन्हें लेने तैयार नहीं था। सुनते हैं कि डा. स्वामी ने प्रधानमंत्री मोदी को यह आश्वासन दिया कि वे ‘नेशनल हेराल्ड’ मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओें को जेल भिजवा देंगे और ये दावा ये हर कुछ महीनों में दोहराते रहते हैं। जबकि कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ‘नेशनल हेराल्ड’ केस में कोई दम ही नहीं है।



भारतीय जनता पार्टी के नेता अमित शाह को सोचना चाहिए कि जिस व्यक्ति के संबंध कुख्यात हथियार कारोबारी अदनान खशोगी, विजय मल्ल्या और दूसरे ऐसे लोगों से रहे हों, उसे भाजपा अपने दल में रखकर क्यों अपनी छवि खराब करवा रही है। इतना ही नहीं बिना किसी खतरे के बावजूद डा. स्वामी को ‘जेड’ श्रेणी की सुरक्षा दे रखी है। इस पर इस गरीब देश का लाखों रूपया महीना बर्बाद हो रहा है। मजे की बात तो ये है कि डा. स्वामी आऐ दिन अखबारों में बयान देकर मोदी सरकार के मंत्रियों और अन्य नेताओं पर हमला बोलते रहते हैं और उन्हें नाकारा और भ्रष्ट बताते रहते हैं। तो क्या ये माना जाऐ कि डा. स्वामी को उनकी धमकियों से डरकर राज्यसभा की सदस्यता और जेड श्रेणी की सुरक्षा दी गई है? पुरानी कहावत है कि ‘मूर्ख दोस्त से बुद्धिमान दुश्मन भला’। डा. स्वामी वो बला हैं, जो जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं। ऐसे अविश्वसनीय और बेलगाम व्यक्ति को राज्यसभा और भाजपा में रखकर पार्टी क्या संदेश देना चाहती है?



डा. स्वामी खुलेआम झूठ बोलते हैं और इतनी साफगोई से बोलते हैं कि सामने वाले शक भी न हो। एक रोचक उदाहरण है कि 80 के दशक में जब पंजाब में सिक्ख आतंकवाद अपने चरम पर था, तो डा. स्वामी ने भिंड्रावाला के खिलाफ आक्रामक टिप्पणी कर दी। जब इन्हें सिक्ख संगठनों से धमकी आई, तो ये भागकर अमृतसर गए और स्वर्ण मंदिर में डेरा जमाए हुए भिंड्रावाला के पैरों में पड़ गऐ। अंदर का वातावरण छावनी जैसा था। हर ओर निहंग बंदूके और शस्त्र ताने हुए थे। यह सब खुलेआम देखकर भी डा. स्वामी की हिम्मत नहीं हुई कि वे भारत सरकार को अंदर की सच्चाई बता दें। डा. स्वामी ने भिड्रावाला से मिलने के बाद बाहर आकर झूठा बयान दिया कि,‘‘अंदर कोई हथियार नहीं हैं।’’




डा. स्वामी के डीएनए में दोष है। ये नाहक हर बात में टांग अड़ाते हैं और अपने ‘उच्च’ विचारों से देश के मीडिया को गुमराह करते रहते हैं। सारा मकसद अपनी ओर मीडिया का ध्यान आकर्षित करना होता है, देश, धर्म और समाज जाए गड्ढे में। ऐसे गिरिगिटिया, झूठे और ब्लेकमेलर स्वामी को संध नेतृत्व क्यों अपने कंधे पर ढो रहा है?

Monday, August 6, 2018

डॉ. सुब्रमनियन स्वामी से झगड़ा क्यों?

अपने राजनैतिक जीवन में अनेक बार दल बदल चुके, राज्यसभा के विवादास्पद सांसद, जो मोदी सरकार में वित्त मंत्री न बनाये जाने से बेहद खफा हैं, ने मेरे ऊपर हमला करते हुए आरोप लगाये कि मैं 21वीं सदी का सबसे बड़ा ‘नटवरलाल’ हूँ और मेरे विरूद्ध उन्होंने 8 पेज की शिकायत उ0प्र0 के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजकर, सीबीआई से जांच करवाने की मांग की।

उनका आरोप पत्र लेकर उनके दो सहयोगी वकील हवाई जहाज से पिछले हफ्ते लखनऊ गये और मुख्यमंत्री योगी जी को शिकायत का हर बिंदु समझाया। इसके साथ ही डॉ. स्वामी ने अपने शिकायत पत्र को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया।

इस शिकायत पत्र में लगाये गए आरोपों को पढ़कर हर उस व्यक्ति को डॉ. स्वामी की बुद्धि पर तरस आया, जो मुझे पत्रकार के नाते या भगवान श्रीकृष्ण की धरोहरों के संरक्षणकर्ता के रूप में जानते हैं। किसी को डॉ. स्वामी के लगाये आरोपों पर यकीन नहीं हुआ। हमने भी बिना देरी करे सभी आरोपों का जवाब, मय प्रमाणों के साथ प्रस्तुत कर दिये।

जबकि डॉ. स्वामी से हमने दो महीने पहले पूछा था कि आज तक उन्होंने भ्रष्टाचार के कितने मुद्दे उठाये और उनमें से कितनों में सजा दिलवाई। क्योंकि उनकी ख्याति ये है कि वू धूमधाम से ऐसे मुद्दे उठाते हैं और फिर परदे के पीछे आरोपी से डील करके अपने ही मुकदमों को ढीला करवा देते हैं। जैसे जैट एयरवेज-एतिहाद डील के खिलाफ उन्होंने खूब शोर मचाया और सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की और फिर आरोपियों से डील करके धीरे धीरे अपनी याचिका को कई बार बदलकर ठंडा कर दिया। हमने पूछा था कि अय्याश और बैंकों के हजारो करोड़ों रूपया लूटकर विदेश भागने वाले, शराब निर्माता विजय माल्या से बेहतर चरित्र का क्या कोई व्यक्ति डॉ. स्वामी को जीवन में अपने दल के लिए नहीं मिला? उल्लेखनीय है कि डॉ. स्वामी ने 2003 से 2010 के बीच विजय माल्या को अपनी जनता पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था। हैं न दोनों मौसेरे भाई।

हमने पूछा कि क्या डॉ. स्वामी भाजपा के प्राथमिक सदस्य हैं? अगर नही तो उन्हें भाजपा का वरिष्ठ नेता क्यों कहा जाता है? हमने पूछा कि अगर वे इतने ही पाक-साफ हैं, तो अंतर्राष्ट्रीय दलाल, हथियारों के सौदागरों के ऐजेंट, कुख्यात तांत्रिक चंद्रा स्वामी और अदनान खशोगी  से डॉ. सुब्रमनियम स्वामी के इतने घनिष्ठ संबंध क्यों थे? गूगल पर इनके काले कारनामे भरे पड़े हैं।

डॉ. स्वामी लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निकटस्थ लोगों पर हमले करते रहते हैं। हमने पूछा कि क्या उन्हें मोदी जी की योग्यता पर शक है और वे स्वयं को मोदी से बेहतर प्रशासक मानते हैं? पिछले दिनों डॉ. स्वामी ने खुलेआम कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था को सुधारने की क्षमता केवल उनमें है। इसलिए उन्हें भारत का वित मंत्री बनाना चाहिए। हमने पूछा कि कहीं ये विश्वनाथ प्रताप सिंह की तरह इतिहास तो नहीं दोहरायेंगे? पहले वित मंत्री बनाओं, फिर प्रधानमंत्री और अमित शाह के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे और फिर खुद प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पेश करेंगे। हमारी जानकारी के अनुसार डॉ. स्वामी का दावा है कि इन्हें संघ और भाजपा के एक बड़े वर्ग का समर्थन प्राप्त है। ये बात दूसरी है कि वे सार्वजनिक जीवन में ज्यादातर समय ऐसे ही  झूठ बोलते हैं।

हमने पूछा कि वे भ्रष्टाचार के सब मुद्दे ट्वीटर और मीडिया पर ही क्यों उछालते है? जबकि उनके पास राज्यसभा में बोलने का सशक्त माध्यम है। कारण स्पष्ट है कि राज्यसभा में उठाये मुद्दों के प्रति उनकी जवाबदेही बन हो जाऐगी। तब उन्हें डील करके ठंडा करना आसानी से संभव नहीं होगा।

इधर मुझ पर डॉ. स्वामी का पहला आरोप है कि मैंने ब्रज वृंदावन में सैकड़ों करोड़ की सार्वजनिक भूमि पर कब्जा कर लिया। मेरा उन्हें जवाब है कि  वृंदावन में मेरे पैतृक निवास के अतिरिक्त मेरे नाम या मेरी संस्था ब्रज फाउंडेशन के नाम मथुरा के राजस्व रिकॉर्ड में वे एक इंच जमीन भी सिद्ध करके दिखा दें, तो मैं कड़ी से कड़ी सजा भुगतने को तैयार हूं। अगर न सिद्ध कर पाऐ, तो बतायें उनकी सजा क्या होगी?

उनका दूसरा आरोप यह है कि मेरे सहयोगी आईआईटी के मेधावी छात्र राघव मित्तल ने मथुरा की युवा सीडीओ से बदतमीजी की। हमारा उत्तर यह है कि हमने योगी सरकार को दो बड़े घोटालों में फंसने से बचाया। जिसके प्रमाण मौजूद हैं।  जिससे मथुरा के कुछ भ्रष्ट नेता बैचेन हो गऐ, जो इन घोटालों में मोटा कमीशन खाते। इसलिए पिछले वर्ष से ब्रज फाउंडेशन पर तरह-तरह के झूठे आरोप लगाये जा रहे हैं। जिसमें हम उनकी भविष्य की योजना पर पलीता न लगा सकें।

हमपर उनका तीसरा आरोप यह था कि ब्रज का पर्यटन मास्टर प्लान बनाने के लिए हमने उ0प्र0 शासन से 57 लाख रूपये फीस ली, काम बिगाड़ दिया और झगड़ा कर लिया।हमारा उत्तर है कि पैसा ब्रज फाउंडेशन को नहीं ‘आईएलएफएस’ को मिला। जो हमारा लीड पार्टनर थे। फीस 2 करोड़ 17 लाख मिलनी थी। पर पर्यटन विभाग और एमवीडीए एक दूसरे पर टालते रहे और 1.5 करोड़ रूपया फीस उन पर आज भी बकाया है। जबकि ब्रज फाउंडेशन के बनाये मास्टर प्लान की तत्कालीन पर्यटन सचिव सुशील कुमार और भारत के योजना आयोग के सचिव डॉ. सुभाष पाणि ने लिखकर भारी प्रशंसा की और इसे बेमिसाल बताया था। पाठकों आप खुद ही मूल्यांकन कर लें कि असली ‘नटवरलाल’ कौन है?