Monday, October 15, 2018

सुब्रमनियन स्वामी: गिरगिटिया या हिंदुत्ववादी ?

हैदराबाद के ‘मदीना एजुकेशन सेंटर’ में 13 मार्च 1993 को भाषण देते हुए स्वनामधन्य डा. सुब्रमनियन स्वामी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के लिए भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद् की कड़े शब्दों में भत्र्सना की। उन्होंने इन तीनों संगठनों को ‘आतंकवादी’ बताया और प्रधानमंत्री नरसिंह राव से इन तीनों संगठनों को प्रतिबंधित करने की मांग भी की थी।जबकि मैने 1990 में  जोखिम उठाकर अपनी कालचक्र वीडियो मैगज़ीन में 'अयोध्या नरसंहार'  पर सशक्त वीडियो फ़िल्म बनाकर प्रसारित की थी, जिसकी विहिप, संघ और भाजपा ने हज़ारों प्रतियां बनवाकर देशभर में दिखाई थीं। 1990 से मैँ अयोध्या, मथुरा और काशी में मंदिरों के समर्थन में लिखता और बोलता रहा हूँ। जबकि स्वामी जैसे अवसरवादी केवल निजी लाभ के लिए मौके के अनुसार उछलते रहते हैं।



आज वहीं डा. स्वामी अपना रंग और चोला बदलकर, पूरी दुनिया के हिंदुओं को मूर्ख बना रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि वे अयोध्या में राम मंदिर बनवाकर ही दम लेंगे। युवा पीढ़ी चाहे भारत में हो या अमरिका में रहने वाले अप्रवासी भारतीय, डा. स्वामी के लच्छेदार भाषणों के सम्मोहन में आकर, इन्हें हिंदू धर्म का सबसे बड़ा नेता मान रही है। क्योंकि उन्हें इनका अतीत पता नहीं है।



आजकल डा. स्वामी दावा करते हैं कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्णं समर्थन प्राप्त है। अब ये स्पष्टीकरण तो आदरणीय मोहन भागवत जी को देश को देना चाहिए कि क्या डा. स्वामी का दावा सही है? जो व्यक्ति संघ और उससे जुड़े संगठनों को ‘‘आतंकवादी’’ करार देता आया हो, उसे संघ अपना नेता कैसे मान सकता है?



इतना ही नहीं दुनियाभर में ऐसे तमाम लोग हैं, जिन्हें डा. स्वामी ने यह झूठ बोलकर कि वे राम जन्मभूमि के लिए सर्वोच्च अदालत में मुकदमा लड़ रहे हैं, उनसे कई तरह की मदद ली है। कितना रूपया ऐंठा है, ये तो वे लोग ही बताऐंगे। पर हकीकत ये है कि डा. स्वामी का राम जन्मभूमि विवाद में कोई ‘लोकस’ ही नहीं है। पिछले दिनों सर्वोच्च अदालत ने ये साफ कर दिया है कि राम जन्मभूमि विवाद में वह केवल उन्हीं लोगों की बात सुनेंगी, जो इस मामले में भूमि स्वामित्व के दावेदार हैं। यानि डा. स्वामी जैसे लोग अकारण ही बाहर उछल रहे हैं और तमाम तरह के झूठे दावे कर रहे हैं कि वे राम मंदिर बनवा देंगे। जबकि उनकी इस प्रक्रिया में कोई कानूनी भूमिका नहीं है।



एक आश्चर्य कि बात ये है कि बाबरी मस्जिद गिरने के बाद जिस भारतीय जनता पार्टी की मान्यता रद्द करने के लिए डा. स्वामी ने चुनाव आयोग से मांग की थी, उसी भाजपा ने किस दबाब में डा. स्वामी को ‘राज्यसभा’ में मनोनीत करवाया? राजनैतिक गलियारों में ये चर्चा आम है कि इन्हें संघ के दबाव में लेना पड़ा। वरना इनके गिरगिटिया स्वभाव के कारण कोई इन्हें लेने तैयार नहीं था। सुनते हैं कि डा. स्वामी ने प्रधानमंत्री मोदी को यह आश्वासन दिया कि वे ‘नेशनल हेराल्ड’ मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओें को जेल भिजवा देंगे और ये दावा ये हर कुछ महीनों में दोहराते रहते हैं। जबकि कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ‘नेशनल हेराल्ड’ केस में कोई दम ही नहीं है।



भारतीय जनता पार्टी के नेता अमित शाह को सोचना चाहिए कि जिस व्यक्ति के संबंध कुख्यात हथियार कारोबारी अदनान खशोगी, विजय मल्ल्या और दूसरे ऐसे लोगों से रहे हों, उसे भाजपा अपने दल में रखकर क्यों अपनी छवि खराब करवा रही है। इतना ही नहीं बिना किसी खतरे के बावजूद डा. स्वामी को ‘जेड’ श्रेणी की सुरक्षा दे रखी है। इस पर इस गरीब देश का लाखों रूपया महीना बर्बाद हो रहा है। मजे की बात तो ये है कि डा. स्वामी आऐ दिन अखबारों में बयान देकर मोदी सरकार के मंत्रियों और अन्य नेताओं पर हमला बोलते रहते हैं और उन्हें नाकारा और भ्रष्ट बताते रहते हैं। तो क्या ये माना जाऐ कि डा. स्वामी को उनकी धमकियों से डरकर राज्यसभा की सदस्यता और जेड श्रेणी की सुरक्षा दी गई है? पुरानी कहावत है कि ‘मूर्ख दोस्त से बुद्धिमान दुश्मन भला’। डा. स्वामी वो बला हैं, जो जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं। ऐसे अविश्वसनीय और बेलगाम व्यक्ति को राज्यसभा और भाजपा में रखकर पार्टी क्या संदेश देना चाहती है?



डा. स्वामी खुलेआम झूठ बोलते हैं और इतनी साफगोई से बोलते हैं कि सामने वाले शक भी न हो। एक रोचक उदाहरण है कि 80 के दशक में जब पंजाब में सिक्ख आतंकवाद अपने चरम पर था, तो डा. स्वामी ने भिंड्रावाला के खिलाफ आक्रामक टिप्पणी कर दी। जब इन्हें सिक्ख संगठनों से धमकी आई, तो ये भागकर अमृतसर गए और स्वर्ण मंदिर में डेरा जमाए हुए भिंड्रावाला के पैरों में पड़ गऐ। अंदर का वातावरण छावनी जैसा था। हर ओर निहंग बंदूके और शस्त्र ताने हुए थे। यह सब खुलेआम देखकर भी डा. स्वामी की हिम्मत नहीं हुई कि वे भारत सरकार को अंदर की सच्चाई बता दें। डा. स्वामी ने भिड्रावाला से मिलने के बाद बाहर आकर झूठा बयान दिया कि,‘‘अंदर कोई हथियार नहीं हैं।’’




डा. स्वामी के डीएनए में दोष है। ये नाहक हर बात में टांग अड़ाते हैं और अपने ‘उच्च’ विचारों से देश के मीडिया को गुमराह करते रहते हैं। सारा मकसद अपनी ओर मीडिया का ध्यान आकर्षित करना होता है, देश, धर्म और समाज जाए गड्ढे में। ऐसे गिरिगिटिया, झूठे और ब्लेकमेलर स्वामी को संध नेतृत्व क्यों अपने कंधे पर ढो रहा है?

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