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Monday, December 30, 2024

डॉ मनमोहन सिंह: सबके मन को मोहा


दुनिया से जाने के बाद इंसान के सद्गुणों को याद करने की परंपरा है। इसलिए आज भारतवासी ही नहीं दुनिया के तमाम देशों के महत्वपूर्ण लोग डॉ मनमोहन सिंह को याद कर रहे हैं। पिछले तीस वर्षों में मेरा उनसे कई बार सामना हुआ। हर बार एक नया अनुभव मिला। मेरा छोटा बेटा और डॉ मनमोहन सिंह का धेवता माधव दिल्ली के सरदार पटेल विद्यालय में पहली कक्षा से 12वीं कक्षा तक साथ पड़े। इसलिए इन दोनों बच्चों के जन्मदिन पर मेरी पत्नी और डॉ सिंह की बेटी अपने सुपुत्र को लेकर जन्मदिन की पार्टी में आती-जाती थीं। जब डॉ सिंह वित्त मंत्री थे तो मेरी पत्नी ने उनके कृष्ण मेनन मार्ग के निवास से लौट कर बताया कि उनकी यह पार्टी उतनी ही सादगी पूर्ण थी जैसी आम मध्यम वर्गीय परिवारों की होती है। न कोई साज सज्जा, न कोई हाई-फ़ाई केटरिंग, सब सामान घर की रसोई में ही बने थे। कोई सरकारी कर्मचारी इस आयोजन में भाग-दौड़ करते दिखाई नहीं दिये। माधव के माता-पिता और नाना-नानी ही सभी अतिथि बच्चों को खिला-पिला रहे थे।
 



सरदार पटेल विद्यालय के वार्षिक समारोह में डॉ मनमोहन सिंह भारत के वित्त मंत्री के नाते मुख्य अतिथि थे। विद्यालय की मशहूर प्राचार्या श्रीमती विभा पार्थसार्थी, अन्य अध्यापकगण और हम कुछ अभिभावक उनके स्वागत के लिए विद्यालय के गेट पर खड़े थे। तभी विद्यालय का एक कर्मचारी प्राचार्या महोदया के पास आया और बोला कि एक सरदार जी हॉल में आकर बैठे हैं और आपको पूछ रहे हैं। विभा बहन और हम सब तेज़ी से हॉल की ओर गये तो देखा कि वो डॉ मनमोहन सिंह ही थे। हुआ ये कि वे आदत के मुताबिक़ कैबिनेट मंत्री की गाड़ी, सुरक्षा क़ाफ़िला साथ न ला कर अपनी सफ़ेद मारुति 800 कार को ख़ुद चला कर विद्यालय के उस छोटे गेट से अंदर आ गये जहां वे अक्सर माधव को स्कूल छोड़ने आते रहे होंगे। 



1993-96 में जैन हवाला कांड उजागर करने के दौरान मैं देश भर में प्रायः रोज़ ही जनसभाएँ संबोधित करने बुलाया जाता था। उन दिनों मीडिया की सुर्ख़ियों में भी मेरे बयान छपते रहते थे, ऐसे में इण्डियन एयरलाइंस का स्टाफ़ एयरपोर्ट पर चेक-इन करते वक्त मुझे और मेरे सहयोगी रजनीश कपूर को प्राथमिकता देते थे। एक बार मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो डॉ मनमोहन सिंह ब्रीफकेस हाथ में लिए लाइन में पीछे खड़े थे। मुझे झिझक लगी तो मैंने उनसे आगे बढ़कर कहा कि, पहले आप चेक-इन कर लीजिए। उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया और अपना नंबर आने पर ही चेक-इन किया। 



हवाला कांड के अभियान के दौरान मैं देश के हर बड़े दल के नेताओं के घर जा कर उनसे तीखे सवाल करता था और पूछता था कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इतने बड़े कांड पर संसद मौन क्यों है? आप लोग सरकार से सवाल क्यों नहीं पूछते कि कश्मीर के आतंकवादियों को हवाला के ज़रिये अवैध धन पहुँचाने के मामले में सीबीआई जाँच क्यों दबाए बैठी है? इसी दौरान मैं तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह से मिलने उनके आवास भी गया। वे और उनकी पत्नी बड़े सम्मान से मिले। शिष्टाचार की औपचारिकता के बाद मैंने उन से पूछा, ‘आपकी छवि एक ईमानदार नेता की है। ये कैसे संभव हुआ कि बिना यूरिया भारत आए करोड़ों रुपये का भुगतान हो गया?’ फिर मैंने कहा, ‘हर्षद मेहता कांड और अब जैन हवाला कांड आपकी नाक के नीचे हो गये और आपको भनक तक नहीं लगी, ऐसे कैसे हो सकता है कि वित्त मंत्रालय को इसकी जानकारी न हो? यह भी संभव नहीं है कि आपके अफ़सरों ने आपको अंधेरे में रखा हो। पर अब तो ये मामले सार्वजनिक मंचों पर आ चुके हैं तो आपकी खामोशी का क्या कारण समझा जाए।’ उन्होंने मेरे इन प्रश्नों के उत्तर देने के बजाए चाय की चुस्की ली और मुझसे बोले, आपने बिस्कुट नहीं लिया। मैं समझ गया कि वे इन प्रश्नों का उत्तर देना नहीं चाहते या उत्तर न देने की बाध्यता है। फिर दोनों पति-पत्नी मुझे मेरी गाड़ी तक छोड़ने आए और जब तक मैं गाड़ी स्टार्ट करके चल नहीं दिया तब तक वहीं खड़े रहे। 



हवाला कांड के लंबे संघर्ष से जब मैं थक गया तो बरसाना के विरक्त संत श्री रमेश बाबा की प्रेरणा से मथुरा वृंदावन और आस-पास के क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थलियों का जीर्णोद्धार और संरक्षण करने में जुट गया। मुझे आश्चर्य हुआ यह देख कर कि 1947 से अब तक किसी भी राजनैतिक दल या उससे जुड़े सामाजिक संगठनों ने कभी भी भगवान श्री राधा कृष्ण की दिव्य लीलास्थलियों के जीर्णोद्धार का कोई प्रयास नहीं किया था। अगर कुछ किया तो सार्वजनिक ज़मीनों पर क़ब्ज़े करने का काम किया। ख़ैर भगवत कृपा और संत कृपा से हमारे कार्य की सुगंध दूर-दूर तक फैल गई। लेकिन इस दौरान मैं देश की मुख्य धारा के राजनैतिक और मीडिया दायरों से बहुत दूर चला गया। मेरी गुमनामी इस हद तक हो गई कि मात्र सात वर्षों में दिल्ली के महत्वपूर्ण लोग मुझे भूलने लगे। तभी   2009 में ‘आईबी डे’ पर आईबी के तत्कालीन निदेशक के आवास पर प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह अन्य गणमान्य लोगों से हाथ मिलाकर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। मैं और मेरी पत्नी उनसे काफ़ी दूर लॉन में एक पेड़ के नीचे खड़े थे। मेरी पत्नी ने कहा कि चलिए हम भी आगे बढ़कर प्रधान मंत्री जी से मिल लेते हैं। पर मैं संकोचवश वहीं खड़ा रहा। इतने में डॉ सिंह मुड़े और दूर से मुझे देख कर मेरे पास चलते हुए आए और बोले, विनीत जी आपका मथुरा का काम कैसा चल रहा है? हमारी यह मुलाक़ात शायद लगभग 15 वर्ष बाद हो रही थी। मुझे आश्चर्य हुआ उनका यह प्रश्न सुन कर। मैंने कहा, ‘हमारा काम तो ठीक चल रहा है पर आपकी धर्मनिरपेक्ष सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही।’ वे बोले, आप कभी आकर मुझ से मिलें। 


चालीस वर्षों की पत्रकारिता में देश के सभी बड़े राजनेताओं से अच्छा संपर्क रहा। अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि प्रधान मंत्री के पद पर रहते हुए भी जिस आत्मीयता से श्री चंद्रशेखर जी, श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी व डॉ मनमोहन सिंह जी मुझ से मिलते रहे वह चिरस्मरणीय है। ये तो तब जब इन तीनों की, उनके इस महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए, मैं अपने लेखों और भाषणों में तीखी आलोचना करता था।