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Monday, June 30, 2025

अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव: एक अनोखी दुनिया

41 साल बाद, भारत ने एक बार फिर अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया है। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा शुरू की, जिसने न केवल भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि 1.4 अरब भारतीयों के सपनों को भी पंख दिए। 


अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा एक ऐसा अनुभव है जो सामान्य मानवीय अनुभवों से परे है। यह न केवल वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि एक गहन व्यक्तिगत और दार्शनिक अनुभव भी है। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा के दौरान कहा, क्या कमाल की सवारी थी! यह उत्साह और आश्चर्य उनकी भावनाओं का प्रतीक है, जो हर उस व्यक्ति के मन में कौतूहल जगाता है जो अंतरिक्ष की सैर का सपना देखता है। 



अंतरिक्ष स्टेशन में प्रवेश करने पर सबसे पहला अनुभव शून्य गुरुत्वाकर्षण (माइक्रोग्रैविटी) का होता है। शुभांशु ने इसे शिशु की तरह चलना सीखने जैसा बताया। अंतरिक्ष यात्री को अपने शरीर को नियंत्रित करने, खाने, पढ़ने और यहां तक कि सोने के लिए भी नए तरीके सीखने पड़ते हैं। यह अनुभव चुनौतीपूर्ण होने के साथ-साथ रोमांचक भी है। अंतरिक्ष में तैरना, जहां हर वस्तु हवा में लंगरहीन होती है, एक ऐसी अनुभूति है जो पृथ्वी पर असंभव है। 


इसके साथ ही अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखना एक गहन अनुभव है। नीले ग्रह की सुंदरता, बादलों की नाजुक परतें और महासागरों की विशालता अंतरिक्ष यात्रियों को प्रकृति और मानवता के प्रति गहरी जिम्मेदारी का एहसास कराती है। शुभांशु ने अपनी यात्रा के दौरान कहा, मैं दृश्यों का आनंद ले रहा हूं। यह दृश्य न केवल मनमोहक है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि हमारा ग्रह कितना नाजुक और अनमोल है।



अंतरिक्ष यात्रा शारीरिक और मानसिक रूप से कठिन होती है। लॉन्च के दौरान तीव्र जी-फोर्स का अनुभव, अंतरिक्ष में प्रारंभिक असुविधा और माइक्रोग्रैविटी में अनुकूलन की प्रक्रिया हर अंतरिक्ष यात्री के लिए एक कठिन परीक्षा होती है। शुभांशु ने हंसते हुए बताया कि उन्होंने अंतरिक्ष में काफी सोया जो उनके अनुकूलन का हिस्सा था। इसके अलावा, अंतरिक्ष स्टेशन पर लंबे समय तक रहने से मांसपेशियों का क्षय और हड्डियों की कमजोरी जैसी समस्याएं हो सकती हैं, जिनका अध्ययन इस मिशन का एक हिस्सा था।


अंतरिक्ष स्टेशन पर समय केवल दृश्यों का आनंद लेने तक सीमित नहीं है। एक्सिओम-4 मिशन के दौरान शुभांशु और उनकी टीम ने 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए, जिनमें से सात भारत के थे। इन प्रयोगों में माइक्रोग्रैविटी में फसल बीजों का प्रभाव, मांसपेशियों के क्षय का अध्ययन और डीएनए मरम्मत जैसे विषय शामिल थे। यह कार्य न केवल वैज्ञानिक खोजों को बढ़ावा देता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी मजबूत करता है।



41 साल पहले, 1984 में, विंग कमांडर राकेश शर्मा ने सोवियत यूनियन के सोयुज टी-11 मिशन के तहत अंतरिक्ष में कदम रखा था। तब से, भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन मानव अंतरिक्ष उड़ान में यह दूसरा बड़ा कदम है। शुभांशु शुक्ला की अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन यात्रा भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है।


शुभांशु की एक्सिओम-4 मिशन में भागीदारी भारत के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन, गगनयान (2027), के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसरो ने इस मिशन के लिए 5 अरब रुपये ($59 मिलियन) का निवेश किया, ताकि शुभांशु को प्रशिक्षण और अंतरिक्ष अनुभव प्राप्त हो सके। इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने कहा, इस मिशन से प्राप्त अनुभव और प्रशिक्षण भारत के लिए अभूतपूर्व लाभकारी होगा। शुभांशु का यह अनुभव गगनयान के लिए लॉन्च प्रोटोकॉल, माइक्रोग्रैविटी अनुकूलन, और आपातकालीन तैयारी में मदद करेगा।


एक्सिओम-4 मिशन नासा, इसरो, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और निजी कंपनी एक्सिओम स्पेस के बीच सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मिशन भारत की बढ़ती वैश्विक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष समुदाय में इसके योगदान को दर्शाता है। पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्रियों के साथ, यह मिशन वैश्विक एकता और साझा वैज्ञानिक लक्ष्यों का प्रतीक है।


शुभांशु की यात्रा ने भारत के युवाओं में अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति उत्साह जगाया है। लखनऊ में उनके स्कूल, सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, में आयोजित वॉच पार्टी में सैकड़ों छात्रों ने उनके प्रक्षेपण को देखा और उत्साह के साथ तालियां बजाईं। इसरो ने शुभांशु के लिए भारतीय छात्रों के साथ बातचीत के आयोजन की योजना बनाई है, जो नई पीढ़ी को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगा।


भारत ने 2035 तक अपनी अंतरिक्ष स्टेशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने और 2040 तक चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्री भेजने की महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाई हैं। शुभांशु की अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन यात्रा इन लक्ष्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह भारत को न केवल तकनीकी रूप से सक्षम बनाता है, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है।


शुभांशु ने अपनी कक्ष से संदेश में कहा, मेरे कंधे पर तिरंगा मुझे बताता है कि मैं अकेला नहीं हूं, मैं आप सभी के साथ हूं। यह भावना 1.4 अरब भारतीयों के गर्व और एकता को दर्शाती है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उपलब्धि को 1.4 अरब भारतीयों की आकांक्षाओं का प्रतीक बताया। यह मिशन भारत की प्रगति और आत्मनिर्भरता का एक और प्रमाण है।


अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा एक ऐसी यात्रा है जो न केवल वैज्ञानिक खोजों को बढ़ावा देती है, बल्कि मानवता को अपनी सीमाओं से परे सोचने के लिए प्रेरित करती है। शुभांशु शुक्ला की एक्सिओम-4 मिशन में भागीदारी भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है, जो 41 साल बाद अंतरिक्ष में देश की वापसी को चिह्नित करता है। यह मिशन न केवल गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे भविष्य के मिशनों के लिए आधार तैयार करता है, बल्कि भारत के युवाओं को सपने देखने और उन्हें हासिल करने की प्रेरणा भी देता है। जैसा कि शुभांशु ने कहा, यह मेरी उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे देश की सामूहिक जीत है। यह यात्रा भारत के अंतरिक्ष युग के नए अध्याय की शुरुआत है।  

Monday, August 28, 2023

चंद्रयान-3 के श्रेय पर विवाद क्यों ?

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम लैंडर उतारकर भारत ने पूरी दुनिया में अपनी कामयाबी के झंडे गाढ़  दिए हैं। हमारी इस सफलता पर पूरी दुनिया हर्षित है। यहाँ तक कि हमेशा खफ़ा रहने वाला पाकिस्तान भी हमें इस कामयाबी के लिए बधाई दे रहा है। अब भारत दुनिया के उन चार देशों में से एक है जिन्होंने चाँद पर अपना उपग्रह उतारा है। इनमें भी चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर ये करामात दिखने वाला भारत अकेला देश है। इस अभूतपूर्व सफलता के लिए वो सैकड़ों वैज्ञानिक जिम्मेदार हैं जिन्होंने पिछले साठ सालों में रात-दिन मेहनत करके यह संभव कर दिखाया है। इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व को दक्षिण अफ़्रीका से संबोधित करते हुए कहा कि, अब चंदा मामा दूर के नहीं बल्कि चंदा मामा टूर के हो गये हैं



जब से ये उपलब्धि हुई है तब से इसका श्रेय लेने वालों में होड़ लग गई है। जहाँ भाजपा और संघ परिवार इसे मोदी जी के नेतृत्व में मिली सफलता बताकर जश्न मना रहा हैं, वहीं कांग्रेस के नेता ये याद दिला रहे हैं कि इस सफलता के पीछे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की दूरदृष्टि और वैज्ञानिक सोच है। जिन्होंने डॉ विक्रम साराभाई की योग्यता को पहचाना और 1962 में ‘इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च’ की स्थापना की। यही समिति 15 अगस्त 1969 को ‘इसरो’ (इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन) बनी। तब से होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई, सतीश धवन, मेघानन्द साहा, शांति स्वरुप भटनागर, ए पी जे अब्दुल कलाम और वर्तमान में श्रीधर सोमनाथ व के सिवान जैसे वैज्ञानिकों ने भारत के अन्तरिक्ष अभियान को दिशा प्रदान की। हालाँकि भारत के सुविख्यात परमाणु वैज्ञानिक डॉ भाभा की इस अभियान में कोई सीधी भागीदारी नहीं थी पर उन्हें इस बात के लिए याद किया जाता है कि उन्होंने डॉ विक्रम साराभाई को प्रोत्साहित किया। 


23 अगस्त 2023 को मिली सफलता एक ही दिन के प्रयास से संभव नहीं हुई है। इसके पीछे 48 वर्षों की कठिन तपस्या का इतिहास है। भारत ने सबसे पहला उपग्रह 1975 में भेजा था जिसे ‘आर्यभट्ट’ के नाम से जाना जाता है। तब से अब तक भारत द्वारा 120 उपग्रह अन्तरिक्ष में भेजे जा चुके हैं। इस तरह क्रमश हम इस मुकाम तक पहुंचे हैं। हर बार भारत के वैज्ञानिकों ने कुछ नया सीखा और उसके अनुसार अगले उपग्रह को तैयार किया। 2019 में चंद्रयान-2 की विफलता से सीखकर चंद्रयान-3 भेजा गया और ये अभियान सफल रहा।



किसी भी देश की नीतियों पर उसके प्रधानमंत्री की सोच और नेतृत्व का असर पड़ता है। भारत के अन्तरिक्ष अभियान को आगे बढ़ाने में पंडित नेहरु के बाद श्रीमति इंदिरा गाँधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ मनमोहन सिंह व श्री नरेन्द्र मोदी सबकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसलिए किसी एक को इस उपलब्धि का श्रेय नहीं दिया जा सकता। पर मोदी जी की आलोचना करने वालों का यह तर्क गलत है कि वे इसका श्रेय क्यों ले रहे हैं। सामान्य सी बात है कि किसी भी मोर्चे पर देश को अगर सफलता मिलती है या असफलता तो यश और अपयश दोनों प्रधानमंत्री के खाते में जाता है। उदाहरण के तौर पर बांग्लादेश को आजाद कराने की लड़ाई मोर्चे पर तो भारतीय फौज ने लड़ी थी और पाकिस्तान को न सिर्फ करारी शिकस्त दी थी बल्कि उसके दो टुकड़े कर दिए। पर दुनिया में यशगान तो श्रीमति इंदिरा गाँधी का हुआ, जिन्होंने सही समय पर कड़े निर्णय लिए। ऐसे ही चंद्रयान-3 की इस उपलब्धि का श्रेय ‘इसरो’ के वैज्ञानिकों के साथ प्रधानमंत्री मोदी को भी मिलना स्वाभाविक है। 



इसी तरह जब आज़ादी मिलने के कुछ वर्ष बाद ही 1962 में चीन के हमले में भारत को पराजय का मुंह देखना पड़ा था तो पंडित नेहरु को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया और कहा गया कि उनका पंचशील का सिद्धान्त असफल रहा। जिसके लिए संघ परिवार आज तक पंडित नेहरु की आलोचना करता है कि उन्होंने भारत की भूमि का एक हिस्सा चीन के हाथ जाने दिया। ठीक वैसे ही जैसे आज का विपक्ष गलवान की शहादत और चीन के भारत पर हाल के वर्षों में किये गये हस्तक्षेप और घुसपैठ को न रोक पाने के लिए मोदी जी को जिम्मेदार ठहराता है। 


चंद्रयान-3 की सफलता के बाद से पिछले दिनों मीडिया में भारत के अन्तरिक्ष अभियान को लेकर तमाम जानकारियां दी जा रही हैं। सबसे महत्वपूर्ण है ये जानना कि पृथ्वी के 14 दिन चाँद के एक दिन के बराबर होते हैं। इन 14 दिनों में विक्रम लैंडर चाँद की सतह पर से तमाम वैज्ञानिक सूचनाएँ पृथ्वी पर भेजेगा। उसके बाद ये काम करना बंद कर देगा क्योंकि वहाँ अँधेरा छा जायेगा और इसकी सौर उर्जा बैटरियां निष्क्रिय हो जाएँगी। उल्लेखनीय है कि 50 वर्ष पूर्व हुए अमरीका के ‘अपोलो मिशन’ की तरह चंद्रयान-3 चाँद पर से मिट्टी या पत्थर का नमूना लेकर नहीं लौटेगा। ऐसा हो सके इसके लिए भारत के वैज्ञानिकों को अभी और मेहनत करनी होगी। पर इस विषय में मेरे पास एक ऐसी अनूठी वस्तु है जो 2019 में चन्द्रयान-2 की विफलता के बाद मैंने मीडिया से साझा की थी। ये एक माइक्रो फिल्म है जो अपोलो-14 के कमांडर एलान बी शेपर्ड, 1971 में अपने साथ चाँद पर लेकर गये थे। इस फिल्म में अमरीका के दैनिक की 25 नवम्बर 1908 की वो ख़बर थी जिसमें लिखा था कि एक दिन मानव चन्द्रमा पर उतरेगा। उनके साथ ऐसी 100 माइक्रो फिल्म चाँद पर भेजी गईं थीं। पृथ्वी पर लौटने के बाद इन 100 फिल्मों को प्लास्टिक के ग्लोब में सील करके दुनिया के 100 प्रमुख लोगों को भेंट किया गया था। उन्हीं 100 लोगों में से एक की पत्रकार बेटी जूली ज्विट जब 2010 में मेरे पास वृन्दावन आईं थीं तो उन्होंने ये बहुमूल्य भेंट मुझे दी यह कहकर कि अब मैं वृद्ध हो गई हूँ। मेरे बाद इस धरोहर का मूल्य कोई नहीं समझेगा। तुम पत्रकार होने के नाते इसका महत्व समझते हो इसलिए तुम्हें दे रही हूँ। चन्द्रयान-2 की विफलता के बाद मीडिया के उदास मित्रों को खुश करने के लिए मैंने वो उपहार उन्हें दिखाया तो उन्होंने उसकी फोटो अख़बारों में प्रकाशित की। जब तक भारत अन्तरिक्ष अभियान चाँद की सतह को छूकर वापस लौटेगा तब तक ये उपहार अपना महत्व कायम रखेगा। आशा और यकीन है कि भारत के अन्तरिक्ष मिशन में वह पल जल्दी ही आयेगा।