Monday, February 28, 2022

उत्तर प्रदेश में चुनावी भाषणों का गिरता स्तर


ज्यों-ज्यों उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव अपने अंतिम चरणों की ओर पहुँच रहा है, त्यों-त्यों राजनैतिक भाषणों का स्तर तेज़ी से गिरता जा रहा है। लोकतंत्र के लिए ये बहुत बड़ी ख़तरे की घंटी है। आज़ादी के बाद से दर्जनों चुनाव हो गए पर ऐसी भाषा पहले कभी नहीं सुनी गई जैसी आज सुनी जा रही है। प्रदेश के मुख्य मंत्री और गौरक्ष पीठ के महंत से अपेक्षा होती है कि वे अपनी उपलब्धियों का बखान करेंगे और धर्म शस्त्रों से उदाहरण लेकर सारगर्भित ऐसे भाषण देंगे जिसमें उनके केसरिया स्वरूप के अपरूप कुछ आध्यात्मिकता का पुट हो। इसके विपरीत योगी आदित्यनाथ का चुनावी जनसभाओं में खुलेआम यह कहना कि,
चर्बी निकाल दूँगा, जून महीने में शिमला बना दूँगा, सब बुलडोज़रों की मरम्मत के आदेश दे दिए हैं, 10 मार्च के बाद सब हरकत में आ जाएँगे, चुनाव आचार संहिता का तो खुला उलंघन है ही। उनके स्तर के व्यक्ति की गरिमा और पद के भी बिलकुल विपरीत है। 


योगी जी कैराना से लेकर आजतक बार-बार चुनावी लड़ाई को 80 फ़ीसद बनाम 20 फ़ीसद या अब्बाज़ान के भाईजान बता कर अखिलेश यादव का मज़ाक़ उड़ते हैं। यही भाषा भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेता भी बाल रहे हैं। उन सब से मेरा प्रश्न है कि जब 1993 में देश में पहली बार हिज़बुल मुजाहिद्दीन को दुबई व लंदन से हवाला के ज़रिये आ रहे पैसे का मैंने भांडा फोड़ किया था तब आपकी भाजपा व आरएसएस ने क्यों नहीं उस लड़ाई में साथ दिया? अगर दिया होता तो देश में आतंकवाद कब का नियंत्रित हो जाता। पर तब तो आप लोग भाजपा के बड़े नेताओं को बचाने में जुट गये थे, जिन्होंने आतंकवादियों के इसी  स्रोत से खूब पैसे लिए थे। यानी राष्ट्र की सुरक्षा की आप लोगों को कोई चिंता नहीं है। अपने नेताओं को देशद्रोह के अपराध में फ़सने से बचाना ही क्या आपका राष्ट्रवाद है? फिर आप किस मुह से अपने विपक्षियों पर आतंकवादियों का साथ देने का आरोप लगाते हैं?


उधर तेलंगाना के भाजपा विधायक का खुलेआम धमकी देना कि, जो योगी को वोट नहीं देंगे, उन्हें उत्तर प्रदेश में रहने नहीं दिया जाएगा और यह भी कहना कि सारे देश से बुलडोज़र उत्तर प्रदेश की ओर चल दिए हैं, जो 10 मार्च के बाद विरोधियों को तबाह करेंगे। जो भाजपा सपा पर गुंडागर्दी का आरोप लगाते नहीं थकती उसके बड़े नेताओं की ऐसी बयानबाज़ी क्या हद दर्जे की गुंडागर्दी का प्रमाण नहीं है? हद तो तब हो गई जब देश के प्रधान मंत्री ने अहमदाबाद के बम धमाकों में साइकिल को घसीट कर सपा पर हमला बोला। मोदी जी ने कहा कि उस हमले में साइकिल का प्रयोग हुआ था और साइकिल समाजवादियों का चुनाव चिन्ह है। इसलिए समाजवादी आतंकवाद के समर्थक हैं। जबकि उस बम कांड की जाँच कर रहे डीसीपी अभय चूडास्मा ने स्पष्ट किया था, "लाल और सफ़ेद कारों में विस्फोटक फिट किया गया था। जाँच रिपोर्ट में कहीं साईकिल का ज़िक्र नहीं है। तब मोदी जी और मनमोहन सिंह घटनास्थल पर मुआयना करने गए थे। अभय चूडास्मा, हिमांशु शुक्ल, जीएल सिंघल तीनों आईपीएस अधिकारियों की यह रिपोर्टें अदालत में दाखिल हैं। 


साइकिल को इस तरह आतंकवाद से जोड़ कर मोदी जी क्या संदेश देना चाहते हैं? हर बच्चा जब चलना सीखता है तो सबसे पहले उसे साइकिल दिलवाई जाती है। यूरोप में अनेक देशों के प्रधानमन्त्री साईकिल चलाते हैं। ओलम्पिक खेलों में 1896 से साईकिल रेस होती है। प्रदूषण मुक्ति के लिए साइकिल का बड़ा  महत्व है। जब तक मोदी जी हवाई चप्पल पहनने वालों को (अपने चुनावी वायदे के अनुसार) हवाई जहाज़ में यात्रा ना करवा पाएँ, तब तक साईकिल करोड़ों आम भारतीयों की सवारी बनी रहेगी। वैसे भी भारत साइकिल का बड़ा निर्यातक है। अगर आडानी या अम्बानी साईकिल बनाते होते तब भी क्या साईकिल पर ये हमला होता, पूछता है भारत? 


उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव लड़ रहे भाजपा के सभी उम्मीदवार और नेता गरीब जनता को उलाहना दे रहे हैं कि हमने तुम्हें, नमक, तेल, आटा और चावल दिया तो तुम हमें वोट क्यों नहीं दोगे? इसकी जगह अगर ये नेता कहते कि हमने तुम्हें रोज़गार दिलवाया, तुम्हारी आमदनी बढ़वाई, तुम्हारे लिए बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्थाएँ दीं, तुम्हें फसल के वाजिब दाम दिलवाए, तब कुछ लगता कि इन्होंने जनता के लिए कुछ किया है। किंतु जनता के कर के पैसे से गरीब जनता को ख़ैरात बाँटना और उनके स्वाभिमान पर इस तरह चोट करना बहुत निंदनीय है। 


दूसरी तरफ़ भाजपा के विपक्ष में खड़े नेताओं जैसे, प्रियंका गांधी, बहन मायावती और जयंत चौधरी की भाषा में कहीं भी न तो हल्कापन है, न अभद्रता, न धमकी और न ही मवालीपन। ये सब नेता शिष्टाचार के दायरे के भीतर रहकर अपनी बात जनता के सामने रख रहे हैं। सबसे ज़्यादा क़ाबिले तारीफ़ आचरण तो सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का रहा है। इस चुनावी दौर में वे अकेले भाजपा के महारथियों के हमलों को झेल रहे हैं। उन्हें अपमानित और उत्तेजित करने के भाजपा नेताओं के हर वार ख़ाली जा रहे हैं। क्योंकि अखिलेश यादव बड़ी शालीनता से मुस्कुरा कर हर बात का उत्तर शिष्टाचार के दायरे के भीतर रह कर दे रहे हैं। आजतक उन्होंने अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया, जो उनके परिपक्व नेतृत्व का परिचायक है। 


वैसे भी आज के अखिलेश पिछले दौर के अखिलेश से बहुत आगे निकल आए हैं। उन्होंने बड़ी सावधानी से भाजपा के दुष्प्रचार को ग़लत सिद्ध कर दिया है। वे न तो सांप्रदायिक ताक़तों से घिरे हैं, न अराजक तत्वों को अपने पास भटकने दिया और न ही परिवार को खुद पर हावी होने दिया। एक शिक्षित और अनुभवी राजनेता होने के नाते वे केवल विकास के मुद्दों पर बात कर रहे हैं। जिसका भाजपा नेतृत्व जवाब नहीं दे पा रहा है। बरसाना के विरक्त संत श्रद्धेय विनोद बाबा किसी राजनैतिक या सामाजिक प्रपंच में नहीं फँसते। पिछले वर्ष जब अखिलेश यादव विनम्रता के साथ बाबा का दर्शन करने गये तो बाबा बहुत प्रसन्न हुए और बाद में अपने शिष्यों से कहा कि अखिलेश के विरुद्ध जो दुष्प्रचार किया जाता है उसके विपरीत अखिलेश का हृदय साफ़ है और वे एक आस्थावान युवा हैं जो सनातन धर्म की बड़ी सेवा करेंगे। अब प्रदेश की जनता किसे चुनती है ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा। 

Monday, February 21, 2022

जीयर स्वामी: युगपुरुष आज भी जन्म लेते हैं


गत
2 फ़रवरी से सारे भारत के सनातनधर्मियों का ध्यान हैदराबाद हवाई अड्डे के पास स्थित रामानुज सम्प्रदाय के अति सम्मानित संत श्री श्री श्री त्रिदंडी चिन्ना जीयर स्वामी के आश्रम पर केंद्रित है। जहां उन्होंने एक इतिहास रचा है। लगभग 100 एकड़ में फैले परिसर में जीयर स्वामी जी ने श्री रामानुजाचार्या की 216 फुट ऊँची प्रतिमा की स्थापना की है। इसमें श्री रामानुजाचार्या जी बैठी हुई मुद्रा में हैं। 150 किलो सोने की पालिश पंच धातुओं से बनी बैठी मुद्रा में यह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति है। इसी मुद्रा में इससे ऊँची मूर्ति थाईलैंड में भगवान बुद्ध की है।14 फ़रवरी तक चलने वाले इस महोत्सव में सारे भारत से भक्त और संतगण तो दर्शनार्थ आए ही, साथ ही भारत के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति प्रधान मंत्री भी इस प्रभावशाली विग्रह के दर्शन करके जा चुके हैं।   



जीयर
 स्वामी ने इस मूर्ति कोस्टैच्यू ऑफ इक्वालिटीका नाम दिया है, यानीसमता मूर्ति इस महोत्सव में दो दिन के लिए पुण्य लाभ प्राप्त करने मैं भी हैदराबाद गया। क्योंकि जीयर स्वामी का हम पर विशेष अनुग्रह रहा है। उनके ही आशीर्वाद से मथुरा के गोवर्धन क्षेत्र में हमनेसंकर्षण कुंडका जीर्णोद्धार किया था और उन्ही के द्वारा वहाँ 34 फुट ऊँची काले ग्रेनाइट की संकर्षण भगवान की मूर्ति स्थापित की गई थी। जिसे जीयर स्वामी ने ब्रज फ़ाउंडेशनके लिए तिरुपति बालाजी में बनवाया (तराशा) था। पर 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार ने सत्ता में आते ही नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। जिसका ब्रजवासियों को ही नहीं बल्कि जीयर स्वामी जी को भी भारी दुःख है।


पंचधातुसे बनीस्टैच्यू ऑफ इक्वालिटीभक्ति काल के संत रामानुजाचार्य की 1000 वीं जयंती (1017-2017) समारोह यानी श्री रामानुज सहस्राब्दि समारोह का हिस्सा है। इसमें सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता का एक संयोजन है, लोहा नहीं डाला गया है। यह मूर्ति 54-फुट ऊंचे आधार भवन पर स्थापित है, जिसका नामभद्र वेदीहै। इस परिसर में वैदिक डिजिटल पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र, प्राचीन भारतीय ग्रंथागार, एक थिएटर एक शैक्षिक दीर्घा है, जो यहाँ आने वाले दर्शनार्थियों को सदियों तक संत रामानुजाचार्य जी के जीवन शिक्षाओं के विषय में व्यापक जानकारी देगी। श्री रामानुजाचार्य जी ने लिंग, नस्ल, जाति या पंथ की परवाह किए बिना सबको आध्यात्मिक चेतना और ज्ञान प्रदान किया था और उन्होंने सबके बीच समानता का संदेश दिया था। इसीलिए इस प्रतिमा का नामस्टैच्यू ऑफ इक्वालिटीरखा गया है।


मुख्य प्रतिमा के चारों तरफ़ चार कोनों में 27-27 मंदिरों के चार समूह हैं। दक्षिण भारत की स्थापत्य कला से निर्मित ये 108 मंदिर पूरे भारत में स्थित 108 दिव्य देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें स्थापित भगवान के विग्रह उन्हीं दिव्य देशों में हुई भगवान या भक्तों की लीलाओं से संबंधित हैं। इन मंदिरों में 15 फ़रवरी से 250 पुजारी नियमित सेवा-पूजा कर रहे हैं। यह अपने आप में एक अद्भुत अनुभव है। पूरे भारत में शायद ऐसा कोई दूसरा धर्मस्थल होगा जहां 108 मंदिरों में, विधि विधान से, एक ही समय पर एक साथ पूजा की जाती हो। 


रामानुजाचार्य स्वामी के इस विग्रह को बनवाने में जीयर स्वामी को वर्षों काफ़ी परिश्रम करना पड़ा। वे चाहते थे कि यह विग्रह अगले 1000 साल तक भक्तों पर अनुग्रह करता रहे। इस स्तर की कारीगरी करने वाले विशेषज्ञ उन्हें भारत में नहीं, चीन में मिले। फिर वहीं इसका निर्माण हुआ और मूर्ति के 1500 भागों को चीन से लाकर हैदराबाद में जोड़ा गया। जिसके ऊपर फिर सोने की पालिश की गई। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने इस मूर्ति के आयात पर आयात शुल्क तक माफ़ नहीं किया। यह भी उल्लेखनीय है कि इस मेगा इवेंट में आरएसएस और भाजपा के बड़े-बड़े नेता अपने हिंदुत्व को चमकाने में जुटे रहे। जबकि इन दोनों ही संगठनों ने इस ऐतिहासिक परियोजना के निर्माण में लेश मात्र भी सहयोग नहीं दिया है। फिर भी दुनिया भर में प्रचार ऐसे किया जा रहा है कि मानो यह भी हिंदुत्व की सरकार की कोई बड़ी उपलब्धि हो। इस 1000 करोड़ रुपय के प्रोजेक्ट में भारी मात्रा में आर्थिक प्रशासनिक सहयोग हैदराबाद के मशहूर उद्योगपति डॉ रामेश्वर राव और तेलंगाना के मुख्य मंत्री श्री के चंद्रशेखर राव ने किया, क्योंकि दोनों ही जीयर स्वामी के दीक्षित शिष्य हैं। हास्यादपद बात यह है कि भाजपा संघ परिवार केसीआर को मुस्लिम परस्त बताते हैं। जबकि वे जीयर स्वामी के आदेशों के आगे दण्डवत रहते हैं। 


इतने महत्वाकांशी लक्ष्य का संकल्प लेना, उसकी योजना बनाना, उसके लिए संसाधन जुटाना और उसके क्रियांवन के लिए वर्षों रात-दिन जुटे रहना, बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य था। इस असंभव कार्य को श्री श्री श्री त्रिदंडी चिन्ना जीयर स्वामी ने अपने तप बल से पूरा कर दिखाया और आधुनिक भारत में एक इतिहास की रचना की। जिस समय जीयर स्वामी अनेक संत गणों, बाबा रामदेव और मुझे 108 दिव्य देशों का दर्शन करवा रहे थे, तो बाबा रामदेव और मैं यह आश्चर्य कर रहे थे कि धरती पर चटाई बिछा कर सोने वाले, स्वयं पकाई हुई खिचड़ी खाने वाले और 24 में से 22 घंटे भजन, प्रवचन और इस परियोजना के निर्माण के निर्देश देने वाले जीयर स्वामी कोई साधारण मानव नहीं, युग पुरुष हैं। जिन्हें श्री रामानुजाचार्य जी ने अपना शक्तिवेश अवतार बना कर भेजा है। 


जिनकी कृपा से आंध्र प्रदेश, तेलांगना, पुड्डुचेरि और तमिलनाडू ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के वैष्णव लाभान्वित हो रहे हैं।जीयर स्वामी के प्रशंसकों में कई जातियों धर्मों के लोग भी हैं। जिनमें हैदराबाद के मुसलमान नकसलवादी तक शामिल हैं। जीयर स्वामी जी अपने परिकरों सहित दो बार मेरे वृंदावन आवास पर ठहर कर हमें संत सेवा का सुख प्रदान कर चुके हैं। पहली बार 2012 में वे डॉ रामेशवर राव परिवार आंध्र प्रदेश के सैंकड़ों भक्तों के साथ तब आए थे, जब पौराणिक संकर्षण कुंड (गोवर्धन) दुर्गंधयुक्त, भयावह स्थिति में, दशकों से उपेक्षित पड़ा था। जिसके जीर्णोद्धार का श्रीगणेश जीयर स्वामी ने ही किया था। दूसरी बार 2017 में फिर उसी तरह बड़े लाव-लश्कर के साथ पधार कर जीयर स्वामी ने ब्रज फ़ाउंडेशन द्वारा नवनिर्मित संकर्षण कुंड का लोकार्पण किया था। कुंड की भव्यता देख कर स्वामीजी सैंकड़ों संतगणों हज़ारों भक्तों ने इसेअकल्पनीय और चमत्कृतकरने वाला बताया था। जिसे ईर्ष्यावश योगी सरकार ने तहस-नहस कर दिया। यही अंतर है सच्चे संत और संत बनने का दिखावा करने वालों के बीच। संत और भक्त प्रभु की सेवा में निष्काम भाव से जुटे रहते हैं, पर जो धर्म का ध्वज उठाते हैं वे तो ईमानदारी से धर्म की सेवा करते हैं और ही उसे अपने राजनैतिक लाभ के लिए भुनाने में संकोच करते हैं। आज हिंदू समाज को तय करना है कि वो वैदिक परम्पराओं में पले-बढ़े दीक्षित अधिकृत त्यागी संतों के मार्ग पर चल कर अपनी आध्यात्मिक चेतना का विस्तार करेगा और भारतीय संस्कृति की सच्चे अर्थों में सेवा करेगा या राजनैतिक स्वार्थों के लिए सनातनी मूल्यों का बलिदान करने वालों के भ्रम जाल में फँस कर आने वाली पीढ़ियों कोकॉक्टेल हिंदुत्वका विष सौंप कर जाएगा। हज़ारों साल से वैदिक संस्कृति सनातन धर्म इसीलिए टिका रहा है, क्योंकि हमारे संतों और आचार्यों ने शास्त्रीय ज्ञान को ज्यों का त्यों पालन किया, उसमें अपने मनोधर्म का घाल-मेल करके प्रदूषित नहीं किया।