Monday, September 14, 2020

राज्यों के उड्डयन विभागों में हो रही कोताही को क्यों अनदेखा कर रहा है डीजीसीए?


जब से उत्तर प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन के घोटाले सामने आएँ हैं तब से भारत सरकार का  नागर विमानन निदेशालय (डीजीसीए) भी सवालों के घेरे में आ गया है। कई राज्यों के नागरिक उड्डयन विभागों में हो रही ख़ामियों को जिस तरह डीजीसीए के अधिकारी अनदेखा कर रहे हैं  उससे वे न सिर्फ़ उस राज्य के अतिविशिष्ट व्यक्तियों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। बल्कि राज्य की सम्पत्ति और वहाँ के नागरिकों की जान से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। हाल ही में उत्तराखंड सरकार का नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण (उकाडा) एक नियुक्ति को लेकर विवाद में आया। वहाँ हो रही पाइलट भर्ती प्रक्रिया में यूँ तो उकाडा ने भारत सरकार के नागर विमानन निदेशालय के सेवा निवृत उपमहानिदेशक को विशेषज्ञ के रूप में बुलाया गया था। लेकिन विशेषज्ञ की सलाह को दर किनार करते हुए चयन समिति ने एक संदिग्ध पाइलट को इस पद पर नियुक्त करना लगभग तय कर ही लिया था। 

ग़नीमत है कि समय रहते दिल्ली के कालचक्र समाचार ब्युरो के प्रबंधकीय सम्पादक रजनीश कपूर ने राज्य सरकार के नागरिक उड्डयन सचिव को इस विषय में एक पत्र लिख कर इस चयन में हुई अनियमित्ताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। कपूर के अनुसार जिस कैप्टन चंद्रपाल सिंह का चयन इस पद के लिए किया जा रहा था उनके ख़िलाफ़ डीजीसीए में पहले से ही कई अनियमित्ताओं की जाँच चल रही है, जिसे अनदेखा कर उकाडा के चयनकर्ता उसकी भर्ती पर मुहर लगाने पर अड़े हुए थे। कपूर ने अपने पत्र में नागरिक उड्डयन सचिव को इस चयन में हो रहे भ्रष्टाचार की जाँच की माँग भी की थी।  



विगत कुछ महीनों में राज्य सरकारों के उड्डयन विभागों के और विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा से जुड़े ऐसे कई मामले कालचक्र ब्यूरो द्वारा डीजीसीए में उठाए गए हैं। इसकी सीधी वजह यह रही कि यदि मामले नियम और सुरक्षा का आदर करने वाले उन राज्यों के पाइलट या कर्मचारी उठाते हैं, तो बौखलाहट में उन पर डीजीसीए झूठे आरोप ठोक कर और अकारण दंडात्मक कार्यवाही कर के उल्टे शिकायतकर्ता के ही पीछे पड़ जाता है। 


ग़ौरतलब है कि वीवीआईपी व्यक्तियों के विमानों को उड़ाने के लिए पाइलट के पास एक निश्चित अनुभव के साथ-साथ साफ़ सुथरी छवि का होना ज़रूरी होता है। उन पर किसी भी तरह की आपराधिक मामले की जाँच से मुक्त होना भी अनिवार्य होता है। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में मौसम के मिज़ाज और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यहाँ विशेष अनुभव वाले पाइलट ही उड़ान भर सकते हैं। 


संतोष की बात है कि इस भर्ती में हो रही अनियमित्ताओं की शिकायत को जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया गया, उन्होंने इस गम्भीरता से लेते हुए उस संदिग्ध पाइलट की नियुक्ति पर रोक लगा दी। 


यहाँ सवाल उठता है कि भारत सरकार के नागर विमानन निदेशालय के अधिकारी राज्य सरकारों के नागरिक उड्डयन विभाग में हो रही ख़ामियों की ओर ध्यान क्यों नहीं देते? क्या वो तब जागेंगे जब फिर कोई बड़ा हादसा होगा? या फिर राज्यों के उड्डयन विभाग में हो रहे घोटालों में डीजीसीए के अधिकारी भी शामिल हैं?



उत्तराखंड के बाद अब बात हरियाणा की करें यहाँ के नागरिक उड्डयन विभाग में एक वरिष्ठ पाइलट द्वारा नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए मार्च 2019 में एक नहीं दो बार ऐसी अनियमित्ताएं की जिसकी सज़ा केवल निलम्बन ही है। लेकिन क्योंकि इस पाइलट के बड़े भाई डीजीसीए में एक उच्च पद पर तैनात थे इसलिए उनपर किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं की गई। ग़ौरतलब है कि हरियाणा राज्य सरकार के पाइलट कैप्टन डी एस नेहरा ने सरकारी हेलीकॉप्टर पर अवैध ढंग से टेस्ट फ्लाइट भरी। ऐसा उन्होंने सिंगल (अकेले) पायलट के रूप में किया और उड़ान से पहले के दो नियामक ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट (शराब पीए होने का पता लगाने के लिए सांस की जांच) भी खुद ही कर डाली। एक अपने लिए और दूसरी, राज्य सरकार के एक पाइलट कैप्टन दिद्दी के लिए, जो कि उस दिन उनके साथ पिंजौर में मौजूद नहीं थे। आरोप है कि कैप्टन नेहरा ने कैप्टन दिद्दी के फर्जी दस्तखत भी किए। इस घटना के दो दिन बाद ही कैप्टन नेहरा ने एक बार फिर ग्राउंड रन किया और फिर से सिंगल पायलट के रूप में राज्य सरकार के हेलीकॉप्टर की मेनटेनेंस फ्लाइट भी की। इस बार उन्होंने उड़ान से पहले होने वाले नियामक और आवश्यक ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट नहीं किया, बल्कि उस टेस्ट को उड़ान के बाद किया। जोकि नागरिक उड्डयन की निर्धारित आवश्यकताओं (सीएआर) का सीधा उल्लंघन है। इस बार भी उन्होंने फर्जीवाड़ा करते हुए, कैप्टन पी के दिद्दी के नाम पर प्री फ्लाइट ब्रेथ एनालाइजर एक्जामिनेशन किया और रजिस्टर पर उनके फर्जी हस्ताक्षर भी किए, क्योंकि उस दिन भी कैप्टन दिद्दी पिंजौर में नहीं थे। वे मोहाली में डीजीसीए के परीक्षा केंद्र में एटीपीएल की परीक्षा दे रहे थे।


इस गम्भीर उल्लंघन के प्रमाण को एक शिकायत के रूप में डीजीसीए को भेजा गया, लेकिन मार्च 2019 से इस मामले को डीजीसीए आज तक दबाए बैठी है। इसके पीछे का कारण केवल भाई भतीजावाद ही है। 



सवाल यह है की चाहे वो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की सुरक्षा में सेंध लगाने वाले और 203 शेल कम्पनियाँ चलाने वाले कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा हों या हरियाणा सरकार के कैप्टन नेहरा हों, भारत सरकार के नागर विमानन निदेशालय में तैनात उच्च अधिकारी, इनके द्वारा की गई अनियमत्ताओं को गम्भीरता से क्यों नहीं लेते? कहीं तो छोटी-छोटी अनियिमत्ताओं पर डीजीसीए तुरंत कार्यवाही करते हुए बेक़सूर पाइलटों या अन्य कर्मचारियों को कड़ी से कड़ी सज़ा देता है और कहीं कैप्टन नेहरा और कैप्टन मिश्रा जैसे ‘सम्पर्क’ वाले पाइलटों के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने में महीनों गुज़ार देता है। ऐसा दोहरा मापदंड अपनाने के पीछे डीजीसीए के अधिकारी भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं जितना कि एयरलाइन या राज्य सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग पर नियंत्रण रखने वाले आला अफ़सर। मोदी सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्री हों या राज्यों के मुख्यमंत्री उन्हें इस ओर ध्यान देते हुए इन दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। जिससे यह संदेश जा सके कि गलती करने और दोषी पाये जाने पर किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा चाहे वो व्यक्ति कितना भी रसूखदार हो। क़ानून सबसे ऊपर है क़ानून से ऊपर कोई नहीं।

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