तीन
राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद सोशल मीडिया पर दो बड़े खतरनाक संदेश
आये। एक में हरा झंडा लेकर कुछ नौजवान जुलूस निकाल रहे थे कि ‘बाबरी मस्ज़िद’ वहीं
बनाऐंगे। दूसरे संदेश में केसरिया झंडा लेकर एक जुलूस निकल रहा था, जिसमें
नारे लग रहे थे, ‘एक धक्का और दो, ज़ामा
मस्ज़िद तोड़ दो’’। ये बहुत खतरनाक बात है। इससे हिंदू और मुसलमान दोनों बर्बाद हो
जाऐंगे और मौज मारेंगे वो सियासतदान जो इस तरह का माहौल बना रहे हैं।
1980
के पहले मुरादाबाद का पीतल उद्योग निर्यात के मामले में आसमान छू रहा था। यूरोप और
अमरीका से खूब विदेशी मुद्रा आ रही थी।लोगों की तेजी से आर्थिक उन्नति हो रही थी।
तभी किसी सियासतदान ने ईदगाह में सूअर छुड़वाकर ईद की नमाज में विघ्न डाल दिया।
उसके बाद जो हिंदू-मुसलमानों के दंगे हुए, तो
उसमें सैंकड़ों जाने गईं। महीनों तक कर्फ्यू लगा और पीतल उद्योग से जुड़े हजारों
परिवार तबाह हो गऐ। कितने ही लोगों ने तो आत्महत्या तक कर ली। पर इस त्रासदी का
ऐसा बढ़िया असर पड़ा कि मुरादाबाद के हिंदू-मुसलमानों ने गांठ बांध ली कि अब चाहे
कुछ हो जाऐं, अपने शहर में कौंमी फसाद नहीं होने देंगे। 1990 के दौर
में जब अयोध्या विवाद चरम पर था और जगह-जगह साम्प्रदायिकता भड़क रही थी तब भी
मुरादाबाद में कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ।
जो
राजनेता ये कहते हैं कि मुसलमान पाकिस्तान चले जाऐं, वो
मूर्ख हैं। इतनी बड़ी आबादी को धक्के मारकर पाकिस्तान में घुसाया नहीं जा सकता और न
ही उनका कत्लेआम किया जा सकता। ठीक इसी तरह मुसलमानों के मजहबी नेता, जो
ख्वाब दिखाते हैं कि वे हिंदूओं को बदलकर, भारत
में इस्लाम की हुकूमत कायम करेंगे, वो उनसे भी बड़े मूर्ख हैं। ये जानते हुए कि 1000 साल तक
भारत पर यवनों की हुकूमत रही और फिर भी
भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं। तो अब ये कैसे संभव है ?
ये
तय बात है कि नेता चाहे हिंदू धर्म के हों, चाहे
मुसलमान, ईसाई या सिक्ख धर्म के, उनके
भड़काऊ भाषण आवाम के हक के लिए नहीं होते,
बल्कि आवाम को लड़वाकर अपने राजनैतिक आंकाओं के हित साधने
के लिए होते हैं। इन धार्मिक नेताओं के प्रवचनों में अगर आध्यात्म और रूहानियत
नहीं है और राजनीति हावी है, तो स्पष्ट है कि वे सत्ता का खेल रहे हैं। उनका मजहब से
कोई लेना-देना नहीं है।
कुछ
महीनों में लोकसभा के चुनाव आने वाले हैं। हर राजनैतिक दल की ये पुरजोर कोशिश होगी
कि वे हिंदू और मुसलमान के बीच खाई पैदा कर दे। जिससे वोटों का ध्रुवीकरण हो जाऐ
और ऐसे ध्रुवीकरण के बाद, जिनके हाथों में सत्ता जाऐगी, वे
फिर जनता की कोई परवाह नहीं करेंगे। धर्म और संस्कृति के नाम पर छलावे, दिखावे
और आडंबर किये जाऐंगे जिनमें हजारों करोड़ रूपया खर्च करके भी आम जनता को कोई लाभ
नहीं होगा। न तो उससे गांवों के सरोवरों में जल आएगा, न
उजड़े बागों में फल लगेंगे, न उनकी कृषि सुधरेगी, न
उसके बच्चों को रोजगार मिलेगा। तब आप किसके आगे रोयेंगे क्योंकि जो भी सत्ता के
सिंहासन पर बैठ जाऐंगे, वो केवल अपना और दल का खजाना बढ़ायेंगे और जनता
त्राही-त्राही करेगी।
अगर
हम ऐसी घुटन भरी जिंदगी से निजात पाना चाहते हैं, तो
हमें अपने इर्द-गिर्द के माहौल को देखकर समझना चाहिए कि आजतक इतने वायदे सुने पर
क्या हमारी जिंदगी में कोई बदलाव आया या नहीं? ये
बदलाव किसी सरकार के कारण आया या आपके अपने कठिन परिश्रम का परिणाम हैं ? आप
निराश ही होंगे। अखबारों के विज्ञापनों में सरकारें सैकड़ों करोड़ों रूपया खर्च करके
अपनी कामियाबी के जो दावें करती हैं,
वो सच्चाई से कितने दूर होते हैं आप जानते हैं। हुक्मरान
या जानना नहीं चाहते या उन्हें जमीनी हकीकत बताने वाला कोई नहीं। क्योंकि बीच के
लोग सही बात ऊपर जाने नहीं देते। राजा को लगता है कि मेरे राज्य में सब खुशहाल हैं
और अमन चैन है।
दुनिया
का इतिहास गवाह है कि जहां-जहां साम्प्रदायिक दंगे हुए, वहां
संस्कृतियां नष्ट हो गई। कौमें तबाह हो गईं। ये सही है कि मध्य युग के यवन
आक्रांताओं ने हिंदूओं के धर्मस्थलों को तोड़ा-फोड़ा। पर ये भी सही है कि यवनों से
पहले जो हिंदू राजा देश में थे, वे भी आक्रमण के बाद अपने शत्रु के साम्राज्य में ऐसी ही
तबाही मचाते थे। शिव भक्त राजा द्वारा भगवान विष्णु के मंदिर तोड़े जाने के और
विष्णु भक्त राजा द्वारा शिवजी के मंदिर तोड़े जाने के अनेक प्रमाण हैं। इतना ही
नहीं बाद की सदियों में बौद्धों ने हिंदू मंदिर तोड़े और हिदूंओं ने बौद्ध विहार। आज भी सत्ता के अहंकार में हिंदूवादी
सत्ताएं हिंदुधर्म क्षेत्रो का कैसा वीभत्स औऱ
कितना विनाश करती है इस पर फिर कभी लिखूंगा।
भड़काऊ
नारों और भाषणों से साम्प्रदायिकता फैलती
है और दोनों पक्षों की हानि होती है।
इसलिए जो वास्तव में मजहबी लोग हैं, जिनकी अपने धर्म में आस्था है, उन्हें
धार्मिक उन्माद फैलाने वाले वक्ताओं से ऐसे परहेज करना चाहिए, जैसे
विष मिले दूध से। जिसे कोई पीएगा नहीं।
आज
भी देश के करोड़ों लोग बुनियादी सुविधाओं
के लिए तड़़प रहे हैं और बडे़-बड़े उद्योगपति बैंकों का लाखों-करोड़ रूपया कर्ज लेकर
फरार हो गऐ हैं। जबकि 5000 रूपये कर्ज लेने वाला किसान आत्महत्या कर रहा है। खेती
अब फायदे का सौदा नहीं रही। हवा, पानी, दूध, फल और अनाज सबमें जहर घोला जा रहा है। पर कोई सरकार आज
दिन तक इसे रोक नहीं पाई। अगर हम विकास चाहते हैं तो हमारी धार्मिक आस्था हमारे
स्वयं के नैतिक उत्थान के लिए हो, दूसरे का विनाश करने के लिए नहीं। यह बात सबको सोचनी है, चाहे
वे किसी धर्म के क्यों न हो।
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