Sunday, May 29, 2011

अब एक और अनशन

Panjab kesari 30-05-2011
दिल्ली में भ्रष्टाचार के विरूद्ध सम्मेलनों और गोष्ठियों की बाढ़ आ गयी है। देश के कोने-कोने से लोग दिल्ली आकर इन सम्मेलनों में भ्रष्टाचार से निपटने के कारगर तरीके सुझा रहे हैं। उधर आगामी 4 जून से बाबा रामदेव के प्रस्तावित धरने से निपटने के लिए सरकार अपनी तैयारी में जुटी है। बाबा रामदेव का लक्ष्य अपने 5 लाख अनुयायियों को 40 दिन तक दिल्ली के रामलीला ग्राउण्ड में बिठाने का है। 80 शहरों में ऐसे ही धरने किये जाने की बात वे कह रहे हैं। साथ ही यह भी कि एक दिन छोड़कर एक दिन अलग-अलग शहरों से 5 हजार लोगों का दस्ता रामलीला ग्राउण्ड में आता रहे। जिससे धरने में बैठे लोगों को राहत मिलती रहे। सब तैयारियाँ पूरी हैं। अब तो 4 जून का इंतजार है। उधर lŸkk के गलियारों में यह भी चर्चा चल पड़ी है कि बाबा रामदेव का विशाल आर्थिक साम्राज्य सहारा गु्रप के मालिक देख रहे हैं। इसकी सच्चाई किसी ने परखी नहीं है। पर यदि ऐसा है तो माना जा रहा है कि सरकार के लिए बाबा रामदेव के आन्दोलन की कलाई मरोड़ना और भी आसान हो जायेगा। बाबा की माँगे ऐसी नहीं हैं कि उनपर फौरन अमल किया जा सके। जैसे कालाधन बाहर से लाना या 5सौ-हजार के नोट बन्द करना या काले धन को जब्त करना और राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करना। फिर भी बाबा रामदेव के अनुयायियों में भारी उत्साह है और वे मानकर चल रहे हैं कि इस धरने के निर्णायक परिणाम आयेंगे। दूसरी तरफ जानकारों का कहना है कि जिस तरह अन्ना हज़ारे का धरना किन्हीं खास कारणों से इतना मीडिया पर छा गया, वैसा बाबा के धरने के साथ शायद नहीं होगा। vycŸkk उनका चैनल इसका जरूर सीधा प्रसारण करता रहेगा। दूसरी चर्चा यह भी सुनने में आयी है कि सरकार इस धरने को बहुत दिन तक नहीं चलने देना चाहती, इसलिए दो-चार दिन के नाटक-नौटंकी के बाद ही किसी समिति की घोषणा कर दी जायेगी और बाबा रामदेव से धरना समाप्त करवा दिया जायेगा। क्या होगा अभी कहना मुश्किल है? क्योंकि इस पूरे अफरा-तफरी के माहौल में बड़े-बड़े खेल परदे के पीछे खेले जा रहे हैं।

Rajasthan Patirka 29-05-2011
देशभर से आये कुछ दर्जन भाजपाई मानसिकता के युवा इस माहौल को लेकर अतिउत्साहित हैं। उनका विश्वास है कि इस सबसे काँग्रेस लगातार कमजोर हो रही है और सरकार गिरने की संभावना बन रही है। इनका आंकलन है कि अगर बाबा रामदेव का धरना सफल हो जाता है तो 15 दिन में वे सरकार गिरा देंगे। वे संविधान को भी पूरी तरह बदलना चाहते हैं। पर जब इन लोगों से इस विषय पर गहराई से चर्चा की जाती है तो पता चलता है कि न तो इनके पास वैकल्पिक संविधान उपलब्ध है और न ही वैकल्पिक राजनैतिक नेतृत्व। अगर कुछ गोपनीय रखा गया है तो वह फिलहाल जनता के सामने नहीं है। उधर ये लोग यह भी आरोप लगाते हैं कि अन्ना हजारे की टीम सरकार द्वारा प्रायोजित टीम है और उसी के इशारे पर काम कर रही है। ऐसे माहौल में गम्भीर लोगों के लिए असलियत को जान पाना मुश्किल हो रहा है। भ्रम की सी स्थिति बन रही है। ऐसा लग रहा है कि तमाम शुभेच्छा होने के बावजूद, काले धन से निपटने और सरकार में सुधार लाने का आन्दोलन अभी अपने लक्ष्य और रणनीति को स्पष्ट नहीं कर पाया है। जिसकी आज सख्त जरूरत है। ऐसे में देशवासी उत्सुकता से इस धरने का आगाज और अंजाम देखना चाहेंगे।

उधर आमतौर पर बजट सत्र के बाद दिल्ली के बाबू राहत की साँस लेते हैं, पर गर्मी शुरू होते ही मंत्री से संतरी तक, सब पहाड़ या विदेशी दौरे पर निकल जाते हैं। पर इस बार दिल्ली कुछ हिली हुयी है। कनिमोझी से लेकर कलमाणी तक और 2जी स्पैक्ट्रम के उद्योग जगत के सितारों तक, सबका तिहाड़ जाना सŸाा के गलियारों में कौतुहल और आशंका का विषय बना हुआ है। विकीलीक्स हो या सर्वोच्च न्यायालय में पी.आई.एल. की सख्त सुनवाई, टी.वी. शो में छीछालेदर हो या जगह-जगह होने वाली गोष्ठियाँ, सब ओर भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया हुआ है। सभी दलों के राजनेता थोड़े विचलित हैं। पता नहीं कब किसकी धोती चैराहे पर खोल दी जाए। इस बार उठापटक में औद्योगिक घरानों की भूमिका भी विगत वर्षों के मुकाबले काफी बढ़ गयी है। वे टी.वी. चैनलों से लेकर और धरने प्रदर्शनों तक में रूचि ले रहे हैं और साधन मुहैया करा रहे हैं। जानकारों का मानना है कि जबसे देश के जाने-माने उद्योगपतियों को संसदीय जाँच समिति के आगे पेश होना पड़ा है, तबसे उद्योग जगत में हलचल है और इसीलिए सामने आये बिना शायद बहुत से लोग राजनेताओं को शीशा दिखाने के काम में जुट गये हैं। इस रस्सा खिंचाई के बीच अटकलों का बाजार भी गर्म हो गया है। एक बार फिर से प्रधानमंत्री बदले जाने की बात चल पड़ी है। सुशील शिन्दे का नाम इसमें VkWi पर चल रहा है। हालांकि इसकी कोई आधिकारिक सूचना उपलब्ध नहीं है। उधर भट्टा गाँव की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि काँग्रेस और उसके युवा नेता राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश पर आक्रामक हमला कर रहे हैं। यह सारी कवायद अगले साल होने वाले विधानसभा के चुनावों को ध्यान में रखकर की जा रही है।

2 comments:

  1. Vinit Ji, Thank you for posting. I feel like your observation still belongs to 20th century. We don't need pre-defined leadership. Have you followed Egypt lately?

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  2. enough of aanshans !! it's time to act,act for a change.we need to revolutionized movement.ask for everyone to be out on roads and throw these corrupt politicians out of power. those seeking bribe,beat them and beat them hard. aab bhashan aur aanshan se kuch nahin hone waala. civil disobedience is the mantra !!!

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